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Monday, November 30, 2009

रेडियोनामा के जन्मदाता और ब्लोगींग की दूनियामें मेरे पिता श्री सागर नहार से रूबरू

आदरणिय पाठक गण,

रेडियोनामा के हमारे युनूसजी के रेडियोवाणी द्वारा परिचीत और ब्लोगींग की दुनियामें मेरे 'पिता' (यह प्रयोग एक रूपसे जानेमाने रेडियो प्रसारक श्री मनोहर महाजनजी की 'नकल' है, जिन्होंनें श्री हरमंदिरजी 'हमराझ'के हिन्दी फिल्मी गीतकोष के के वोल्यूमके रिलीझ कार्यक्रममें श्री गोपाल शर्माजी के लिये 'दादा', उनके पहेले आये पर गोपल शर्माजी के बाद रेडियो सिलोन गये स्व. शिवकूमार 'सरोज' के लिये 'पिता' और उनके बाद रेडियो श्रीलंका गये श्री रिपूसूदन कूमार ऐलावादीजी के लिये 'पुत्र' के रूपमें रेडियो प्रसारण की दुनिया के सम्बन्धमें परिचय दिया था, जो रेकोर्डिंग मूझे मेरे सुरत निवासी मित्र श्री हरीशभाई रघुवंशीजी के यहाँ देख़नेको काफ़ी समय पहेले देख़नेको मिली थी ।) श्री सागरभाई नहार जो एक लम्बी अवधी के ब्लोग और चेट परिचय के बाद आज मेरे घर आये थे , तो मैंनें सोचा की उनके शौख़ या उनके विचार सब तो ब्लोग पठको के लिये जाने पहचाने है । मैं सुरज को रोशनी क्या दिख़ाऊँ ! पर आप सबने उनके ब्लोगमें या रेडियोनामा पर युनूसजी की पोस्टमें उनको तसवीरमें सिर्फ़ देख़ा है , तो उनको बोलते हुए भी सुनाऊँ , जो सुन्दर भाषा बोलते है सुन्दर आवाझमें । तो सिर्फ़ थोडी सेकंड्स की छोटी अनौपचारिक बातचीत यहाँ प्रस्तूत की है ।



पियुष महेता ।
सुरत-395001.

Friday, November 20, 2009

रात के सुकून भरे कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 19-11-09

हवामहल के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम रात 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है। इस सप्ताह एक ख़ास दिन रहा - बालदिवस, वैसे तो देश में बाल सप्ताह मनाया जाता है इसका असर इस प्रसारण में भी नजर आया।

9 बजे गुलदस्ता कार्यक्रम की शुरूवात हुई परिचय धुन से जो अंत में भी बजी। यह गैर फिल्मी रचनाओं का कार्यक्रम है। इस बार भी विभिन्न मूड की रचनाएँ सुनवाई गई।

शुक्रवार को शुरूवात हुई निदा फ़ाज़ली के कलाम से, इसे आवाजे दी चन्दन दास ने. इसके बाद कुछ ऐसे नाम आए जो इस कार्यक्रम में कम ही सुनाई देते है। हसन काजमी का कलाम तलत अजीज की आवाज में -

ख़ूबसूरत है आँखे तेरी रात को चाँद न छोड़ दे
ख़ुद ब ख़ुद नींद आ जाएगी मुझे सोचना छोड़ दे

हसन रिजवी का कलाम भी सुनवाया गया गुलाम अली की आवाज में।

शनिवार को शुरूवात हुई ग़ुलाम अली और आशा भोंसले की आवाज़ में नक्शलयल पुरी के गीत से -

नैना तोसे लागे सारी रैन जागे

इसके अलावा जगजीत सिंह की आवाज़ में वली आरसी का कलाम सुनवाया गया। छाया गांगुली की आवाज़ में कृष्ण बिहारी नूर की रचना और रविन्द्र रावल की रचना सुनी भूपेन्द्र-मिताली के युगल स्वरों में। इस दिन कुछ विविधता रही। रविवार को गीतकार और शायर नक्शलायल पुरी की रचनाएँ सुनवाई गई। शुरूवात बड़ी अजीब रही, वही गीत सुनवाया गया जिसे पिछली रात शुरू में सुनवाया गया था - नैना तोसे लागे सारी रैन जागे। लगातार दो दिन इसी रचना से शुरूवात ठीक नहीं लगी।
इसके बाद जगजीत सिह की आवाज़ में सुना - रिश्तों में दरार आई

फिर आशा भोंसले की आवाज़ और उसके बाद गूँजी दिलीप कपूर की आवाज़ जो शायद ही सुनी जाती है। सोमवार को शुरूवात में ज़फ़र गोरखपुरी का कलाम पंकज उदहास की आवाज़ मे सुनवाया गया। चंदन दास की आवाज में बशीर बद्र का कलाम, अलका याज्ञिक और हरिहरन की आवाजो में जावेद अख्तर का कलाम सुनवाया गया। अच्छी लगी यह रचना -

ढलते जाए शाम के साए लेकिन तुम न आए

मंगलवार को कुछ पुरानी स्वर लहरी उठी। शुरूवात नूरजहाँ से हुई, फिर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का कलाम सुनवाया शकीला ख़ानम की आवाज़ में। सुषमा श्रेष्ठ की आवाज़ में यह ग़ज़ल अच्छी लगी -

आज किसी ने दस्तक दी है वो भी इतनी रात गए
आहट तो ये उनकी सी है वो भी इतनी रात गए

इसके अलावा वली आरसी का कलाम अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन की युगल आवाज़ों में और बशीर बद्र का कलाम भी सुनवाया गया।

बुधवार को हेमन्त कुमार के गाए हसरत जयपुरी के गीत से शुरूवात हुई -

कल तेरी तस्वीर के सजदे किए रात हम

उसके बाद गूँजा भूपेन हज़ारिका का स्वर - ओ गंगा बहती हो क्यों

गीत रचना पंडित नरेन्द्र शर्मा की जिसके बाद वीनू पुरूषोत्तम की आवाज़ में बेख़ुद देहलवी का कलाम -

जब ख़्याल आपका नहीं होता
दर्द दिल से जुदा नहीं होता

इसके बाद एक एलबम से चन्दन दास की ग़ज़ल सुनवाई गई, कलाम बशीर बद्र का। समापन हुआ मिताली मुखर्जी की आवाज़ मे अश्क अंबालवी के कलाम से। वाह ! आनन्द आ गया !! वाकई गुलदस्ता महका, रंग-बिरंगे फूलों का।

गुरूवार को फैय्याज हाशमी के कलाम से शुरूवात हुई। गुलाम अली की आवाज में सुना कातिल शिफाई को, गुलज़ार की रचना गूंजी -

एक परवाज दिखाई दी है
एक आवाज सुनाई दी है

आवाज जगजीत सिंह की। रीता गांगुली की आवाज भी सुनी जो ज़रा कम ही सुनी जाती है।

सप्ताह में सिर्फ़ बुधवार को ही बढिया विविधता रही, हर दिन गजलों का ही बोलबाला रहा। एकाध बार विज्ञापन भी प्रसारित हुए और विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों में फ़रमाइश भेजने के संदेश तो थे ही।

हर दिन इस वाक्य से समापन अच्छा लगा - सुनने वालों के लिए ये था विविध भारती का नजराना - गुलदस्ता

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में बालदिवस ही नही बाल सप्ताह नजर आया।

शुक्रवार को राजू बन गया जेन्टलमैन फ़िल्म के गीत लेकर आए युनूस खान जी। ख़ास जानकारी यह दी कि 17 साल पहले इसी दिन यह फ़िल्म रिलीज हुई थी और इसी दिन जूही चावला का पच्चीसवा जन्म दिन था। ऎसी ख़ास बातें जानना अच्छा लगता है।

शनिवार को बाल दिवस पर विशेष फ़िल्म लेकर आई निम्मी (मिश्रा) जी - धनपत मेहता की फ़िल्म - हम बच्चे हिन्दुस्तान के
बहुत दिन बाद सुने यह गीत -

शीर्षक गीत - हम बच्चे हिन्दुस्तान के

ये रक्षाबंधन सबसे बड़ा त्यौहार

मानचित्र पर कितना सुंदर देश हमारा है ये देश हमारा है

गीत लिखे है सनम गोरखपुरी ने। गायक कलाकार है - शमसी (पूरा नाम नोट नहीं कर पाई), अनूप जलोटा, प्रीति सागर, ज्ञानेश्वर और दिलराज कौर, इस फ़िल्म के रिलीज का वर्ष और कलाकारों के नाम नही बताए गए। मेरी जनकारी के अनुसार मुख्य भूमिका में बाल कलाकार के रूप में पल्लवी जोशी है।

सोमवार को 1965 में रिलीज फ़िल्म मेरे सनम के गीत सुनवाए गए। ओ पी नय्यर का संगीत और सिर्फ़ नायक नायिका के नाम बताए गए - विश्वजीत और आशा पारिख। इसके अलावा रेणु (बंसल) जी ने कोई जानकारी नही दी जैसे बैनर का नाम और अन्य कलाकारों के नाम। गाने सभी सुनवाए गए।

मंगलवार को 1971 में रिलीज़ आप आए बहार आई फ़िल्म के गीत सुनवाए शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। फ़िल्म के नायक राजेन्द्र कुमार नायिका साधना, गीतकार, संगीतकार और बैनर का नाम बताया गया और सभी गीत सुनवाए। लेकिन फ़िल्म से संबंधित कुछ ख़ास बातें नहीं बताई। जहाँ तक मेरी जानकारी है इस फ़िल्म में प्रेम चोपडा की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस फ़िल्म का विषय बलात्कार है और इस विषय पर बनी शायद यह पहली फ़िल्म है। इस फ़िल्म से राजेन्द्र कुमार ने एक ऐसे ड्रस का फ़ैशन चलाया जिसे सुना है उन दिनों कालेज के लडके बहुत पहना करते थे - दो गहरे रंग - हल्दी जैसा पीला और गहरा गुलबी रंग। एक ही कपडे से पैंट और शर्ट जिस पर काला चौडा बेल्ट और शर्ट के कालर चौडे।

बुधवार को 1947 मे रिलीज़ फ़िल्म दर्द के गीत सुनवाए गए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने और फ़िल्म से जुड़े सभी प्रमुख नाम बताए गए जैसे बैनर, निर्माता निर्देशक का नाम, गीतकार शकील बदायूँनी, संगीतकार नौशाद, गायक कलाकार सुरैया, उमादेवी, शमशाद बेगम और अभिनय श्याम कुमार और सुरैया का। नामों से ही समझा जा सकता है कार्यक्रम सुनने में कितना आनन्द आया होगा। शुरूवात हुई लोकप्रिय गीत से -

अफ़साना लिख रही हूँ दिले बेक़रार का
आँखों में रंग भरके तेरे इंतेज़ार का

इतनी पुरानी फ़िल्म की इससे अधिक जानकारी देना भी कठिन है। लेकिन एक बात छूट गई जो बताई जा सकती थी कि दर्द नाम से एक फ़िल्म सत्तर के दशक में भी आई थी जिसके मुख्य कलाकार राजेश खन्ना और हेमामालिनी है।

गुरूवार को बच्चो की फ़िल्म बूट पालिश के गीत सुनवाए गए। यह फ़िल्म 1954 में रिलीज हुई थी। इसका विषय है बाल मजदूरी।

इस तरह इस सप्ताह भर लगभग हर दशक से एक फ़िल्म के गीत सुनवाए गए। हर दिन फिल्म से जुड़े नाम बताए गए और दर्द और बूट पालिश को छोड़ कर बाक़ी फिल्मो के लिए कुछ ही सामान्य जानकारी भी दी गई लेकिन कई ख़ास बातें नही बताई, लगता है विविध भारती के उदघोषक फ़िल्में नहीं देखते।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में ख़्यात गायिका शमशाद बेगम से कमल (शर्मा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। कार्यक्रम की शुरूवात परम्परा के अनुसार परिचय धुन से हुई। इस कड़ी में मुंबई आने के बाद की बातें बताई गई। बताया कि पहली फ़िल्म महबूब साहब की तक़दीर रही। इसके बाद पन्ना फ़िल्म के सभी गीत गाए, यह फ़िल्म और गाने बहुत लोकप्रिय हुए। जब यह पूछा गया कि पर्दे पर पहली बार अपना नाम कब देखा तब बताया कि उन दिनों नाम पर इतना ध्यान नहीं होता था, कभी कहा भी नहीं नाम देने के लिए, फ़िल्मकार खुद नाम देने लगे। एक पुराने स्टूडियो को याद किया जो आज के रंजीत स्टूडियो के पास था। आज के संगीत को शोर बताया। ख़ास बात यह कही कि अंत तक उन्होनें रेडियो नहीं छोड़ा। उनकी आवाज़ में उमर का असर साफ़ नज़र आ रहा था। बीच-बीच में उनके गाए अधिक सुने जाने वाले और कम सुने जाने वाले दोनों ही तरह के गीत सुनवाए -

कहाँ चले जी प्यार में दीवाना करके
मैं तो नीम तले आ गई बहाना करके

दिल तुझको दे दिया किसी को क्या
रात रंगीली गाए रे मोसे रहा न जाए रे
मैं क्या करूँ

इस कार्यक्रम का संयोजन सुभाष (भावसरे) जी के तकनीकी सहयोग और पी के ए नायर जी के प्रस्तुति सहयोग से कमलेश (पाठक) जी ने किया और प्रस्तुति कमल (शर्मा) जी की रही। ऐसे कार्यक्रमों को प्रायोजित किया जा सकता है।

10 बजे छाया गीत प्रसारित हुआ जो प्रायोजित था। शुक्रवार को कमल (शर्मा) जी की प्रस्तुति रही। पचास साठ के दशक के कुछ लोकप्रिय और कुछ कम सुने गीतों से कार्यक्रम को सजाया गया।

फिर वही शाम वही गम वही तन्हाई

से आरम्भ कर गम, उदासी और अकेलेपन की चर्चा हुई। कम सुने गीत रहे -

दिल उनको ढूँढता है हम उनको ढूँढते है

रात में ऎसी काव्यात्मक प्रस्तुति अच्छी तो लगती है पर माहौल को उदास कर देती है।

शनिवार को अशोक जी ने इस बार भी मोहब्बत की बातें की, गीत लोकप्रिय और कम सुने दोनों ही सुनवाए -

आप से प्यार हुआ आप खफा हो बैठे

मेरे पहलू में आके बैठो खुदा के वास्ते

रविवार को युनूस (खान) जी की प्रस्तुति रही। एक ख़ास बात रही सभी गीत मुकेश के रहे अन्य गायिकाओं के साथ। लोकप्रिय गीत -

प्यार का फ़साना बनाए दिल दीवाना

और कम सुने जाने वाले गीत भी शामिल थे - तारों कि ठण्डी छैंया याद रहे

सावन, वीर दुर्गादास फ़िल्मों के गीत भी शामिल थे। आलेख में तो नई बात नहीं थी पर समापन नए ढंग से किया। सभी सुनवाए गए गीतों की झलक सुनवाते हुए विवरण यानि फ़िल्म, गीतकार, संगीतकार और गायक के नाम बताए। यह अच्छा रहा क्योंकि अक्सर इस कार्यक्रम में विवरण नहीं बताया जाता।

सोमवार को छायागीत प्रस्तुत किया अमरकान्त जी ने, सुन कर लगा कि एक विषय पर दो त्रिवेणी कार्यक्रम तैयार किए गए और इसे जोड़ कर छाया गीत के नाम से सुनवा दिया गया। विषय सुनवाए गए इन गीतों में स्पष्ट है -

मुसाफिर हूँ यारो

जिन्दगी एक सफर है सुहाना

इसके अलावा फकीरा, सम्बन्ध फिल्मो के गीत शामिल थे।

मंगलवार को शहनाज़ (अख़्तरी) जी की प्रस्तुति रही। ख़ुशियों के जहाँ की तलाश हुई, प्यार-मोहब्बत की बात हुई। कुल मिलाकर कोई नई बात नहीं थी। गाने साठ सत्तर के दशक के अच्छे सुनवाए गए। लोकप्रिय गीत -

आ जा मेरे प्यार के सहारे कभी कभी

कम सुना हुआ गीत -

ऐसा होता तो नहीं है
ऐसा हो जाएगा
तुम्ही मिल जाओ

बुधवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए। सप्ताह भर के इस समय के प्रसारण में यह एक्लौता कार्यक्रम रहा जिसमें नए गीत सुनवाए गए। इसीलिए यह प्रस्तुति ख़ास लगी।

गुरूवार को रेणु (बंसल) जी की प्रस्तुति रही, प्यार की बातें हुई -

दिल की बातें दिल ही जाने

वो चाँद खिला वो तारे हसे

इस बार भी किसी भी दिन कोई नयापन नही रहा, वही प्यार, चाँद, रात की बातें। कम से कम एक दिन बच्चो के लिए प्रस्तुत करते तो कुछ तो नया रहता।

10:30 बजे प्रसारित हुआ आप की फरमाइश कार्यक्रम जिसमे श्रोताओं की फ़रमाइश पर गीत सुनवाए गए। यह कार्यक्रम प्रायोजित रहा। हर गीत की फ़रमाइश में देश के विभिन्न भागों से औसत 5 पत्र आए और हर पत्र में नामों की लम्बी सूची। अधिकतर कुछ पुराने गीतों की फ़रमाइश की गई। बुधवार और गुरूवार को एस एम एस से प्राप्त फ़रमाइश पर गीत सुनवाए गए। अक्सर एकाध एस एम एस पर ही गीत सुनवाए गए।

शुक्रवार को साठ के दशक के अच्छे गीत सुनवाए गए। फ़िल्म गूँज उठी शहनाई से -

जीवन में पिया तेरा साथ रहे

और हरियाली और रास्ता, इन्तेकाम, प्रिंस और एक सत्तर के दशक की फ़िल्म हम किसी से कम नहीं भी शामिल रही।

शनिवार को बाल दिवस को ध्यान में रख कर श्रोताओं ने फरमाइश भेजी। शुरूवात हुई बेटी फ़िल्म के इस गीत से -

बच्चो तुम तक़दीर हो कल के हिन्दुस्तान की

इसके बाद घराना फ़िल्म का गीत सुना - दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ

सन आफ इंडिया फ़िल्म का शान्ति माथुर का गाया गीत भी शामिल था - नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूँ

इसके साथ काला बाजार फ़िल्म से खोया खोया चाँद जैसे अन्य गीत भी शामिल रहे।

रविवार को साठ सत्तर के दशक के लोकप्रिय गीत गूँजे। वक़्त, ख़ानदान, आप आए बहार आई और दुल्हन वही जो पिया मन भाए फ़िल्म से -

ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में
प्यार की छाँव में बिठाए रखना
सजना सजना

सोमवार को अनाडी, नई उमर की नई फसल, ताजमहल और ममता फ़िल्म का यह गीत सुनवाया गया -

रहे न रहे हम महका करेगे

मंगलवार को लव मैरिज, साथी, प्रेम पुजारी फ़िल्मों के गीत के साथ सुनवाया गया यह गीत -

जिस दिल में बसा था प्यार तेरा
उस दिल को कभी का तोड दिया

बुधवार को नई फ़िल्म इतिहास के साथ कुछ समय पुरानी फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए - धर्मात्मा, उमराव जान और कभी-कभी फ़िल्म का शीर्षक गीत

गुरूवार को दोस्ताना, रातो का राजा, निकाह, आशिकी के साथ पुरानी फ़िल्म हकीकत का गीत भी शामिल था।

11 बजे अगले दिन के कार्यक्रमों की जानकारी दी गई जिसका प्रसारण सीधे केन्द्रीय सेवा से होने से सभी कार्यक्रमों की जानकारी मिली हालांकि क्षेत्रीय प्रसारण के कारण सभी कार्यक्रम यहां प्रसारित नहीं होते। जिसके बाद दिल्ली से समाचार के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद प्रसारण समाप्त होता रहा।

विविध भारती का यह प्रसारण हम तक पहुँचाया सविता (सिंह) जी, शेफ़ाली (कपूर) जी, मंजू (द्विवेदी) जी, राजेन्द्र (त्रिपाठी) और संगीत (श्रीवास्तव) जी ने जयंत (महाजन) जी, प्रशांत (काटगरे) जी, अशोक (माहुलकर) जी, साइमन (परेरा) जी, सुनील (भुजबल) जी, मंगेश (सांगले) जी, वन्दना (नायक) जी और निखिल (धामापुरकर) जी के तकनीकी सहयोग से और यह प्रसारण हम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर करने) के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी आफ़िसर रहे मालती (माने) जी, आशा (नाईकन) जी, रमेश (गोखले) जी

Tuesday, November 17, 2009

बारूद फ़िल्म का गीत

सत्तर के दशक में शायद वर्ष 1976 के आसपास एक फ़िल्म रिलीज हुई थी - बारूद

इस फ़िल्म के नायक है ऋषि कपूर और नायिका है शोमा आनंद जिनकी यह पहली फ़िल्म है। यह वही शोमा आनद है जो आजकल धारावाहिकों और फिल्मो में चरित्र भूमिकाओं में नजर आ रही है।

यह फ़िल्म बहुत लोकप्रिय हुई थी और लता जी का गाया यह गीत भी। रेडियो से यह गीत सभी केन्द्रो से बहुत सुनवाया जाता था पर अब बहुत समय से नही सुना। इस गीत का सिर्फ़ मुखड़ा मुझे याद आ रहा है -

दिल काँटों में उलझाया है
इक दुश्मन पे प्यार आया है
शीशा पत्थर से टकराया है
इक दुश्मन पे प्यार आया है
दिल काँटों में

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Saturday, November 14, 2009

14 नवम्बर सेक्षोफ़ोन और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक श्यामराजजी को जन्म-दिन की बधाई

14 नवम्बर, 1948 के दिन काठमान्डू नेपालमें जन्में जाने पहचाने सेक्षोफोन और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक श्यामराजजी के श्री एनोक डेनियल्स साहब के साथ बिल्लीमोरा के श्री नरेश मिस्त्री द्वारा 21 फरवरी, 2009 के दिन अयोजीत एक कार्यक्रममें मिलनेका और दोनों को साथ सुननेका मोका मिला था, जिसका जिक्र मैं पिछली कुछ पोस्टोंमें कर चूका हूँ । जिसमें एक 16 अप्रैल, 2009 के दिन श्री डेनियेल्स साहबके जनम दिन के दिन थी और बादमें एक पोस्ट श्री श्यामराजजी से किये गये
विडीयो साक्षात्कार , जो सुरतमें किया था,

http://radionamaa.blogspot.com/2009/03/blog-post_14.html?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+http%2Fradionamaablogspotcom+%28radionamaa%29
पर थी । और वह इस मंच पर दिख़ाया भी गया था और इन दोनों साझों पर उनके द्वारा छोटी छोटी झलके प्रस्तूत की गयी थी ।
तो आज उनको जनम दिन की ढेर सारी बधाईयाँ रेडियोनामा की और से देते हुए,
1. टेरर सेक्षोफोन पर फिल्म शोले के गीत महेबूबा की धून




तथा 2. वेस्टर्न फ्ल्यूट पर फिल्म जब जब फूल खिले के गीत ए शमा


इधर नरेशभाई मिस्त्री और गुन्जन ललित कला के सौजन्य से प्रस्तूत की है ।
श्यामराज जी ने इस धूनो को अपना स्पर्श बखूबी दिया है । उद्दधोषक थे विज्ञापन प्रसारण सेवा, विविध भारती, पूणे के स्थायी उद्दघोषक श्री मंगेश वाघमारे है {
निख़ील महामूनी (सिंथेसाईझर), विजय मूर्ती (बास गिटार ),कमल निम्बारकर (स्पेनिश गिटार), विजय अत्रे (अक्टोपेड), केदार मोरे (ढोलक और बोन्गा), डो. राजेन्द्र दूरकर (तबला), नरेन्द्र वकील (साईड रिधम) उनके सथी दार है ।

Friday, November 13, 2009

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 12-11-09

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण शुरू हो जाता है जिसके बाद दुबारा हम 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

7 बजने से 2-3 मिनट पहले क्षेत्रीय भाषा में झरोखा प्रसारित हुआ जिसमें 7 बजे के बाद से प्रसारित होने वाले क्षेत्रीय और केन्द्रीय सेवा के कार्यक्रमों की जानकारी दी गई फिर 7 बजे से 5 मिनट के लिए दिल्ली से समाचार प्रसारित हुए।

समाचार के बाद कुछ समय के लिए धुन बजी है ताकि क्षेत्रीय केन्द्र अपने विज्ञापन प्रसारित कर सके। इसके बाद गूँजी जयमाला की ज़ोरदार परिचय (विजय) धुन जिसके बाद शुरू हुआ कार्यक्रम।

सप्ताह भर एस एम एस द्वारा भेजी गई फ़ौजी भाइयों की फ़रमाइश पर ही गीत सुनवाए गए। ज्यादातर एक ही एस एम एस प्राप्त होने पर ही गीत सुनवा दिया गया।

शुक्रवार को नई फ़िल्म तलाश के गीत से शुरूवात हुई जिसके तुरन्त बाद सत्तर के दशक की फ़िल्म प्रेमरोग का यह गीत सुनवाया गया -

मेरी क़िस्मत में तू नहीं शायद क्यूँ तेरा इंतेज़ार करता हूँ
मैं तुझे कल भी प्यार करता था मैं तुझे अब भी प्यार करता हूँ

इसके बाद फ़िल्म राजा हिन्दुस्तानी से शुरू कर अस्सी नब्बे के दशक की लोकप्रिय फ़िल्मों - डर, साजन, कयामत से कयामत तक के लोकप्रिय गीत भौजी भाइयों की फ़रमाइश से चुने गए।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया अभिनेत्री माला सिन्हा ने। खुद की फ़िल्मों के गीत सुनवाए, शुरूवात अनपढ फ़िल्म से की फिर गुमराह, आँखें, मर्यादा, धूल का फूल, फूल बने अंगारे, सभी अच्छे गीत। हर गीत के साथ उसके भाव को लेकर फ़ौजी भाइयों को संबोधित करती रही। कोई किस्सा बयाँ नहीं किया, जो भी कहा दिल से कहा, अच्छा लगा।

इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया शकुन्तला (पंडित) जी ने और संयोजन किया कलपना (शेट्टी) जी ने, सहयोग रहा रमेश (गोखले) जी का।

हर दिन लगभग हर दशक से एक फ़िल्म का गीत फ़ौजी भाइयों के संदे्शों से प्राप्त अनुरोध पर सुनवाया गया। साठ के दशक से अब तक और सुनवाने का क्रम नया-पुराना मिलाजुला रखा।

रविवार की फ़िल्में रही - मोहरा, आराधना, अमरदीप, अंदाज़, लगान, करण-अर्जुन।

सोमवार की फ़िल्में रही - सच्चा झूठा, हरियाली और रास्ता, अनामिका, नसीब, आशिकी, साथी के गीतों के साथ सुनवाया गया नई फ़िल्म कल हो न हो का शीर्षक गीत।

मंगलवार को एक पुराना गीत आख़िरी ख़त फ़िल्म से रहा -

बहारों मेरा जीवन भी सँवारों

और नई फ़िल्में ग़ज़नी और मुस्कान फ़िल्म का यह गीत -

जानेमन चुपके चुपके

इसके साथ कुछ पुरानी फ़िल्म बेताब और कुछ ही समय पहले की फ़िल्म बार्डर के गीत शामिल थे।

बुधवार को शुरूवात की पुराने फ़िल्मी देश भक्ति गीत से, नया दौर फ़िल्म का रफ़ी साहब और बलवीर का गीत -

ये देश है वीर जवानों का

आशिकी, राजा हिन्दुस्तानी और नई फ़िल्म दोस्ताना का यह गीत -

आपके प्यार में हम सँवरने लगे

इस सप्ताह भी फ़ौजी भाइयों ने लोकप्रिय गीतों के लिए ही फ़रमाइश भेजी जिनमें से सुनवाने के लिए गीतों का संयोजन अच्छा रहा। हर दिन के लिए विभिन्न दौर के गीत चुने गए जिससे मिली-जुली आवाज़े गूँजी - लताजी, रफ़ी साहब जैसे पुराने कलाकार, सुरेश वाडेकर, अलका याज्ञिक, अनुराधा पौडवाल, उदित नारायण और आज के दौर के सुखविन्दर सिंह जैसे कलाकारों की आवाज़ जिससे हर दिन माहौल अच्छा रहा, विविधता रही।

यह कार्यक्रम प्रायोजित नही था। एक भी विज्ञापन प्रसारित नहीं हुआ। हालांकि पहले प्रायोजित हुआ करता था। यहाँ हैदराबाद से भी एक भी क्षेत्रीय विज्ञापन प्रसारित नहीं हुआ। एकाध बार विविध भारती के संदेश प्रसरित हुए जिसमें फ़रमाइश भेजने का तरीका बताया गया।

कार्यक्रम का समापन भी परिचय धुन से होता रहा।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत कार्यक्रम प्रसारित हुआ जो बढिया रहा। बृज का यह पारम्परिक लोकगीत शशि तिवारी और साथियों की आवाज़ों में सुन कर आनन्द आ गया -

मोरे अंगना पवन अइयो हौले-हौले

इसके बाद बदरूद्दीन की आवाज़ में यह राजस्थानी गीत सुनवाया गया जो पारम्परिक तो नहीं लगा पर सुन कर मज़ा आ गया -

अरे हाथ में चूड़ी पग में पायल तेरे गोरे-गोरियाँ
मारवाड़ी बोले छोरी बोले अंग्रेज़ी बोलियाँ

शुरूवात इस मैथिली गीत से हुई इथनीराम महतो और साथियों की आवाज़ों में -

मातुर मैंया बाड़ी दूर जाए रे (बोल लिखने में शायद ग़लती हो)

गीत सुनने में अच्छा लगा पर न भाव पता थे और न ही बोल समझ में आ रहे थे इसीलिए पूरा आनन्द नही मिला। अगर इन गीतों का विवरण बताते समय एक-दो पंक्तियों में इनके भाव भी बता दिए जाए तो अच्छा रहेगा, कम से कम उन गीतों के लिए जिनके बोल सामान्य हिन्दी जानने वालों के लिए समझना कठिन हो। वैसे यह काम कठिन है पर कोशिश तो की जा सकती है…

कार्यक्रम के शुरू और अंत में कर्णप्रिय परिचय धुन बजी।

शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी आए। इस बार तारीफ़ों का सिलसिला ख़ूब चला। श्रोताओं ने आज के मेहमान, संगीत सरिता, सेहतनामा, यूथ एक्सप्रेस, उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम की तारीफ़ की। एकाध बड़ी मीठी शिकायत आई जैसे कि कार्यक्रमों के दौरान बार-बार फ़रमाइश भेजने के लिए ई-मेल भेजने का पता क्यों बताया जाता है। एक गाँव से श्रोता ने कहा कि हमें पहले बता दे कि हमारे ई-मेल पर आधारित गीत कब सुनवाया जाएगा क्योंकि इस ग्रामीण क्षेत्र में पहले पता हो तो अच्छा रहेगा, यह शिकायत हजम नहीं हुई (हाजमोला खाने पर भी), जब पहले से सूचना पाने के लिए मेल देख सकते है तब गाना सुनने के लिए दो दिन कार्यक्रम क्यों नहीं सुन सकते, जबकि गाने आजकल सेलफोन में हेडसेट से भी सुने जा सकते है, जहाँ ई-मेल है वहाँ यहँ सुविधा बड़ी बात नहीं, ख़ैर… कुछ फ़रमाइशें भी हुई जैसे उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में दिलीप कुमार और निम्मी को बुलाए। कुछ मेल भी आए पर पत्रों की संख्या ही अधिक रही। विभिन्न क्षेत्रों से पत्र आए जैसे कोल्हापुर, झाड़खण्ड, कर्नाटक और गाँवों से भी पत्र आए।

मंगलवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम बज्म-ए-क़व्वाली। अच्छा संयोजन रहा। शुरूवात हुई प्रभु से लौ लगाने की -

आया तेरे दर पर दीवाना

फिर नई फ़िल्म हज़ारों ख़्वाहिशें की क़व्वाली सुनवाई गई। अच्छा लगा सुनकर क्योंकि आजकल फ़िल्मों में इसका चलन कम हो गया है। हालांकि पुरानी क़व्वालियों जैसा आनन्द नहीं आया। यह कमी पूरी हुई अंतिन रचना से जो जब से तुम्हें देखा है फ़िल्म से सुनवाई गई -

तुम्हें हुस्न देके ख़ुदा ने सितमगर बनाया

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में निम्मी (मिश्रा) जी की चरित्र अभिनेता ज्ञान प्रकाश से बातचीत प्रसारित हुई। बातचीत से अच्छी जानकारी मिली कि शिक्षा नैनीताल में हुई और वही से कालेज के समय से नाटकों में अभिनय की शुरूवात हुई। फिर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एन एस डी) में गुज़ारे समय की बात हुई। बताया कि शुरूवात धारावाहिक से हुई। पहली फ़िल्म मिली महेश भट्ट की ज़ख़्म। आजकल जिन फ़िल्मों में काम कर रहे है उसकी भी जानकारी दी। लगता है रिकार्डिंग कुछ पुरानी है क्योंकि बताया कि तेरे मेरे सपने धारावाहिक आने वाला है जबकि यह आजकल चल रहा है। अपने घूमने और पढने के शौक के बारे में बताया। अच्छा परिचय मिला इस कलाकार का।

राग-अनुराग कार्यक्रम में रविवार को ऐसे फ़िल्मी गीत सुनवाए जिसमें राग तिलक कामोद की झलक है -

संत ज्ञानेश्वर फ़िल्म का भजन - जय जय राम कृष्णहारि

मेरे महबूब - जानेमन एक नज़र देख ले

बेटी-बेटे - अगर तेरी जलवा नुमाई न होती, ख़ुदा की कसम ये ख़ुदाई न होती

8 बजे का समय है हवामहल कार्यक्रम का। इस सप्ताह हवामहल की इमारत बहुत बुलन्द रही आख़िर मज़बूत स्तम्भ जो जुड़े थे। बंगला नाटक पर आधारित धारावाहिक का प्रसारण हुआ। रवीन्द्रनाथ मैत्र के लिखे नाटक मानमई गर्लस स्कूल का कितना सच कितना झूठ शीर्षक से रेडियो नाट्य रूपान्तर किया सत्येन्द्र शरद जी ने और निर्देशक है लोकेन्द्र शर्मा जी, सहयोग पी के ए नायर जी का है । हर दिन शुरूवात में रेणु (बंसल) जी ने पिछली कड़ियों की जानकारी दी जिसे सिर्फ़ कथा की तरह नहीं बताया बल्कि संवादों के अंश भी शामिल किए जिससे हर कड़ी सुनते समय पिछले पूरे भाग से श्रोता जुड़े रहे।

नायक और नायिका है मानस और निहारिका। दोनों एक स्कूल में काम करने के लिए झूठ बोलते है कि दोनों पति-पत्नी है। कई बार परिस्थितियाँ ऐसी आई कि लगा भेद खुलेगा जैसे निहारिका ने छुट्टी माँगी कि तबियत ठीक नहीं और मानस को पता ही नहीं कि निहारिका की तबियत ठीक नहीं पर स्थिति को सँभालते गए। बीमारी में मानस ने निहारिका का ध्यान रखा। निहारिका ने जब देखा कि मानस का कमरा ठीक नहीं है तब सफ़ाई कर दी। निहारिका छुट्टी पर जा राही है तो स्कूल में उसक लिए विदाई समारोह का आयोजन होता है जिसमें स्नेह की धारा फूट पड़ती है और अंत में मानस और निहारिका का मिलन होता है। सहज, स्वाभाविकता बनी रही। सभी कड़ियों में रोचकता भी बनी रही। इसके कलाकार है - कमल शर्मा, सुधीर पाण्डेय, सुलक्षणा खत्री, आशा शर्मा, प्रतिभा शर्मा, शैलेन्द्र गौड़, अमरकान्त, अशोक सोनामणे। बढिया धारावाहिक।

मंगलवार को झलकी सुनवाई गई - आधूरी बात जिसके निर्देशक है विजय दीपक छिब्बर। दफ़्तर में कर्टसी वीक मनाया जा रहा है इसीलिए सभी बेवजह हँसे जा रहे है। बाँस की बेटी आती है और इंजीनियर से बातें करने लगती है, वह हाँ ना करता रहता है और चला जाता है, सुन नहीं पाता कि वह उससे प्यार करती है। बाँस को इंजीनियर पर शक होता है पर बेटी प्यार के बारे में बताती है, वह शादी की बात करने जा रहा है पर बेटी न कह कर उसका नाम लेता है, नाम है - किटी, इंजिनियर समझता है किटी उनकी बिल्ली का नाम है और हाँ सर ना सर करता हुआ चला जाता है। इस तरह न बेटी प्यार की बात पूरी कह पाती है और न बाप शादी की बात पूरी कह पाता है और रह जाती है बात अधूरी… दिल्ली केन्द्र की प्रस्तुति थी। बहुत मज़ा तो नहीं आया पर ठीक ही रहा।

बुधवार को बहुत पुरानी झलकी प्रसारित की गई। झलकी में मनोरंजन के साथ संदेश है पर इतनी पुरानी झलकी कि अब यह संदेश भी लगता है उपयोगी नहीं रहा। संदेश है छोटे परिवार का, आज तो सभी छोटा परिवार ही बना रहे है। राकेश निगम की लिखी यह झलकी है - एक और सावित्री। पति प्रमोशन के लिए बाँस को खाने पर बुलाना चाहता है पर पत्नी कहती है सात बच्चों के इस परिवार में इसका जुगाड़ नहीं हो पाएगा। रात में पति सपना देखता है कि यमदूत उसकी पत्नी सावित्री को ले जा रहा है और कह रहा है कि सात बच्चों को जन्म देने के अपराध में ऊपर की अदालत में सावित्री पर मुकदमा चलेगा। तब उसे समझ में आता है छोटे परिवार का महत्व। लखनऊ केन्द्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक है जयदेव शर्मा कमल।

हर दिन हवामहल के शुरू और अंत में वही पुरानी जानी-पहचानी परिचय धुन बजती रही।

विविध भारती का यह प्रसारण हम तक पहुँचाया अशोक (सोनामणे) जी, शेफ़ाली (कपूर) जी, कमल (शर्मा) जी, संगीत (श्रीवास्तव) जी, राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी, निम्मी (मिश्रा) जी ने सुनील (भुजबल) जी, साइमन (परेरा) जी, प्रदीप (शिन्दे) जी, अशोक (माहुलकर) जी, विनय (तलवलकर) जी के तकनीकी सहयोग से और यह प्रसारण हम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर करने) के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी आफ़िसर रहे मालती (माने) जी, माधुरी (केलकर) जी, पी के ए नायर जी।

गुरूवार को प्रसारण नहीं हुआ। 7 बजे समाचार शुरू होने के एक मिनट बाद ही खरखराहट शुरू हुई। सुई आसपास घुमाने पर दूसरे केन्द्रों का प्रसारण साफ़ सुनाई दे रहा था। यानि इसी फ़्रीक्वेन्सी 102.8 पर ही प्रसारण सुनाई नहीं दे रहा था, शायद रिले ही नहीं हो पा रहा था या फिर कोई और तकनीकी समस्या थी।

हवामहल के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम रात 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

Tuesday, November 10, 2009

पहचान फ़िल्म का एक शरारती गीत

सत्तर के दशक के शुरू में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी - पहचान जो मनोज कुमार की एक लोकप्रिय और हिट फ़िल्म रही।

राजकपूर के बाद मनोज कुमार ही एक ऐसे अभिनेता है जिस पर मुकेश की आवाज़ खूब फबी। इस फ़िल्म में नायिका शायद बबिता है। आज इस फ़िल्म के जिस गीत को हम याद कर रहे है उसे मुकेश, सुमन कल्याणपुर और साथियों ने गाया है। इस गीत में नायक (मनोज कुमार) को विवाह के लिए अलग-अलग तरह की लड़कियाँ दिखाई जा रही है पर उसे हर लड़की में कोई न कोई बुराई नज़र आ रही है जैसे किसी के कटे बाल अच्छे नहीं है तो किसी की ऊँची ऐड़ी की सैन्डिल।

पहले यह शरारतीपूर्ण गीत रेडियो के हर केन्द्र से, सिलोन से बहुत ज्यादा सुनवाया जाता था। अब बहुत समय से नहीं सुना। इसके कुछ बोल याद है -

वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ
के गोरी कोई पसन्द न आए तुझको

----------------------
सोलह साल की उमर कोकाकोला सी कमर
कहीं आई हो नज़र
---------------------------

इससे भँगड़ा कौन कराए
ये गंगाराम की समझ में न आए

ये अंतिम पंक्ति हर अंतरे के अंत में है।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Friday, November 6, 2009

दोपहर बाद के जानकारीपूर्ण कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 5-11-09

दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज (अख़्तरी) जी ने। कार्यक्रम शुरू हुआ, पहला फोनकाल फिर दूसरा तो लगा बालदिवस आ गया, पर इस दिन से तो नवम्बर शुरू भी नहीं हुआ था… छोटी सखियों के फोन से शुरूवात हुई, लगता है बड़ी सखियाँ कार्यक्रम से बोर हो गई ख़ैर… वैसे इस बार छोटी सखियों के फोन ही अधिक आए जिससे विविध जानकारियाँ नही मिल पाई। छात्राओं ने अपनी पढाई के बारे में बताया और अपने सिलाई कढाई के शौक के बारे में बताया। एक सखि ने बताया ज्यादा विषय पसन्द नहीं है आगे भी ज्यादा पढना नहीं चाहती। इससे अधिक बात करना उनके लिए कठिन भी होता है। परिपक्व उमर की सखियों की बातचीत से उस क्षेत्र की जानकारी मिलती है। कुछ कम शिक्षित घरेलु महिलाओं ने भी बात की। विविध भारती के कार्यक्रम पसन्द करने की भी बात की। सखियों की बातचीत से पता चला श्रीनगर का मौसम आजकल अच्छा है पर इस समय वहाँ सैलानी अधिक नहीं है। अलवर बिहार का गाँव है जहाँ आजकल धान की खेती हो रही है। इस बार भी विभिन्न स्थानों से फोनकाल आए जैसे जौनपुर जिला उत्तर प्रदेश, श्रीनगर, बिहार - अलवर, गोकुलपुरा - उदयपुर - राजस्थान।

कुच सखियों ने पुरानी फ़िल्मों के गीतों की फ़रमाइश की जैसे -

दिल का खिलौना हाय टूट गया

और छोटी सखियों ने नई फ़िल्मों के गीत पसन्द किए जैसे ओम शान्ति ओम।

इस बार का कार्यक्रम सुनकर लगा कि इसका शीर्षक हैलो सहेली नहीं बल्कि हैलो बेबी हाय बेबी होना चहिए था।

सोमवार को पधारे सुनीता (पाण्डेय) जी और निम्मी (मिश्रा) जी। यह दिन रसोई का होता है और यह बात सखियों ने बहुत याद से याद रखी। यहाँ हम एक बात कहना चाहेंगे कि कोई भी दिन सिर्फ़ दिन या कोई वार (जैसे सोम, मंगल) नहीं होता उसके अलावा कभी-कभी कुछ और भी होता है। सोमवार को रसोई की बातें जोर-शोर से बताई गई। पौष्टिकता और खाद्य पदार्थों में मिलावट की बातें करते-करते खेतों तक पहुँच गई। मौसम के अनुसार आँवले का मुरब्बा, चूर्ण बनाना बताया। सखियों के पत्र भी ऐसे ही रहे, हरियाणा की सखि ने पशुपालन को बढावा देने की बात की और दूध, दही से पनीर तक बात हुई और पनीर के व्यंजन भी बताए। बात सिर्फ़ यहीं तक नहीं है, आँवले की बात करते हुए आँवला नवमी के पूजन की भी चर्चा हो गई फिर भी याद नहीं आया कि उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी, गुरू नानक जयन्ती थी जिसे प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गुरू नानक जी की कितनी शिक्षाप्रद बातें है, अगर एकाध ज्ञान की बात से कार्यक्रम शुरू होता तो, लेकिन हाय रे पेट ! सच कहा गया है - भूखे पेट भजन न होए गोपाला…

सखियों की पसन्द पर इस दिन पुराने गीत सुनवाए गए जिनमें से कुछ बहुत ही कम सुने गीत सुनकर अच्छा लगा जैसे दुनिया न माने फ़िल्म का शीर्षक गीत -

हो सकता है काँटों से भी फूल की ख़ुशबू आए
दुनिया न माने

कुछ लोकप्रिय गीत भी शामिल रहे - वो चाँद जहाँ खो जाए

मंगलवार को पधारी सखियां शहनाज़ (अख़्तरी) जी और सुनीता (पाण्डेय) जी। इस दिन करिअर की बात होती है। शुरूवात में बताया गया कि घर में तनाव न होने और सकारात्मक माहौल होने से जीवन में आगे बढने में सहायता मिलती है। श्रोता सखि के पत्र के आधार पर सेना में महिलाओं के करिअर बनाने की जानकारी दी गई। इस दिन हमेशा की तरह सखियो के अनुरोध पर गाने नए ही सुनवाए गए जैसे कल हो न हो, जब वी मेट, दस और उमराव जान फ़िल्म का यह गीत -

अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो

बुधवार को सखियाँ पधारीं - शहनाज़ (अख़्तरी) जी और सुधा जी। इस दिन स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। इस बार फूलों से इत्र बनाने का प्राचीन समय का तरीका बताया गया जो शायद सभी लोग नहीं जानते इसीलिए अच्छा लगा। इसके अलावा ऐसी बातें बताई गई जो गाँव शहर की सभी महिलाएँ जानती है जैसे हरी सब्जियाँ खानी चाहिए, हद तो तब हो गई जब अंत में कहा गया कि पैरों में मोजे पहनने चाहिए। वैसे बहुत अधिक बोला गया जिनमें इत्र को छोड़ कर बाकी बातें कहना, लगा कि अनावश्यक रूप से विभिन्न कोणों से विषय को विस्तार दिया जा रहा है।

इस दिन सखियों के अनुरोध पर कुछ पुराने समय के गाने सुनवाए गए - आँधी, अभिलाषा और बदलते रिश्ते फ़िल्म का यह गीत -

मेरी साँसों को जो महका रही है
पहले प्यार की ख़ुशबू
तेरी साँसों से शायद आ रही है

गुरूवार को भी पधारीं रेणु (बंसल) जी और सुधा जी। इस दिन सबसे पहले राष्ट्रमंडल खेलों की मशाल आगे बढाने की ख़बर सुनाई गई। इस दिन सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस बार नोबुल शान्ति पुरस्कार प्राप्त स्वीडन की अल्वा मिडाइल के बारे में बताया गया जो समाज सेविका थी।

सखियों की पसन्द पर मिले-जुले गीत सुनवाए गए जैसे मेरे हमसफ़र, आपकी कसम, गोलमाल, नमक हलाल, कामचोर और ज़मीर फ़िल्म का गीत -

ज़िन्दगी हंसने गाने के लिए है पल दो पल

हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। कुछ पत्रों में कार्य्रक्रमों में कार्यक्रमों की तारीफ़ थी, कुछ पत्रों में सखियों ने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार भी बताए और कुछ ने अच्छी जानकारी भी दी जैसे पर्यावरण को प्रदूषित न करने के लिए बिना पटाखों के मनाई गई दीवाली का समाचार। इस कार्यक्रम की दो परिचय धुनें सुनवाई गई - एक तो रोज़ सुनी और एक विशेष धुन हैलो सहेली की शुक्रवार को सुनी।

इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया वीणा (राय सिंघानी) जी, कल्पना (शेट्टी) जी, कमलेश (पाठक) जी ने प्रदीप शिन्दे जी के तकनीकी सहयोग से।

सदाबहार नग़में कार्यक्रम में गीत तो सदाबहार थे साथ ही विविधता भी रही। शनिवार को संगीतकार सचिन देव बर्मन को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए उनके सदाबहार गीत सुनवाए। उनके निर्देशन में विभिन्न मूड के और विभिन्न गायकों के गाए गीत सुनवाए गए जैसे हेमन्त कुमार, आशा जी और रफ़ी साहब का गाया फ़िल्म बेनज़ीर का यह रोमांटिक गीत -

दिल में एक जाने तमन्ना ने जगह पाई है
आज गुलशन में नहीं घर में बहार आई है

टैक्सी ड्राइवर फ़िल्म का किशोर कुमार का गाया यह मस्ती भरा गीत -

चाहे कोई खुश हो चाहे गालियाँ हज़ार दे
मस्त राम बनकर ज़िन्दगी के दिन गुज़ार दे

काग़ज़ के फूल फ़िल्म का गाया यह उदास गीत -

वक़्त ने किया क्या हसीं सितम

और समापन किया उन्ही के गाए सुजाता फ़िल्म के गीत से - सुन मेरे बन्धु रे

इन फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए - तेरे घर के सामने, जाल, तीन देवियाँ, लाजवन्ती, चलती का नाम गाड़ी। प्रस्तुति भी अच्छी थी।

और रविवार को भी विभिन्न मूड के सदाबहार गीत सुनवाए गए - मैं सुहागन हूँ, चन्द्रकान्ता, देवदास, एक रात, नीला आकाश और नागिन फिल्म का यह गीत -

मेरा दिल ये पुकारे आजा

इस सप्ताह इस कार्यक्रम में प्रायोजकों के विज्ञापन भी प्रसारित हुए।

3:30 बजे नाट्य तरंग में शनिवार को लक्ष्मी देवी का लिखा नाटक सुनवाया गया - सदियों पहले जिसके निर्देशक है- गंगा प्रसाद माथुर। शेरगढ के ग़ुलाम हैदर शाह और उनकी बेगम गुल बेगम की कहानी थी। प्राचीन समय की सत्ता को लेकर राजघरानों के राज और षडयंत्रो की कहानी थी। रविवार को हरीश थापलिवाल का लिखा नाटक सुनवाया गया - श्रीमान टोपीबाज जिसके निर्देशक है अनूप सेठी। जैसे की नाम से ही पता चलता है झूठ बोलना, हेरा फेरी करना बताया गया और वैसे इससे मनोरंजन हुआ।

शाम 4 से 5 बजे तक सुनवाया जाता है पिटारा कार्यक्रम जिसकी अपनी परिचय धुन है।

शुक्रवार को सुना कार्यक्रम पिटारे में पिटारा जिसमें कुछ चुने हुए कार्यक्रमों का दुबारा प्रसारण होता है। इस बार 3 अक्तूबर यानि विविध भारती का जन्मदिन और साथ ही स्वर्ण जयन्ती छायी रही। स्वर्ण जयन्ती के दौरान प्रसारित विशेष कार्यक्रम सुहाना सफ़र याद किया गया, उसकी परिचय धुन के साथ। संगीतकार शंकर जयकिशन के गीतों पर आधारित कार्यक्रम की झलक सुनवाई गई। लोकधुनों पर आधारित फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम की भी झलक मिली जिसमें शामिल रहा यह गीत -

घूँघट नहीं खोलूँगी सैंय्या तोरे आगे

फोन-इन-कार्यक्रम में रेणु (बंसल) जी द्वारा श्रोताओं से की गई बातचीत के अंश भी सुनने को मिले।

रविवार को यूथ एक्सप्रेस लेकर आए युनूस खान जी। इसकी परिचय धुन बदली सी लगी। पूरा कार्यक्रम जानकारियों का पुलिंदा था। सबसे अच्छी जानकारी थी कि इंटरनेट पर अब हिन्दी समेत अन्य भाषाओ में भी डोमेन नाम दिए जा सकेगें। कार्टूनिस्ट और व्यंग्यकार आबिद सुरती के बारे में यह बताया गया कि आजकल वो पानी बचाओ अभियान चला रहे है और नलाकारियो (प्लंबर) को साथ लेकर बहते नालो को दुरूस्त करवाते है। आस्ट्रेलिया से ख़बर कि वहां बिजली की बचत और पर्यावरण पर अच्छे असर के लिए सप्ताह में एक दिन रेल नही चलती। साथ ही विभिन्न सर्वेक्षणो की जानकारियाँ कि सिगरेट पीने वाले के सामने खड़े होने वाले पर भी इसका असर पङता है, सेल फोन के अधिक उपयोग से ब्रेन ट्यूमर का खतरा है, इसके अलावा रामचंद्र मिश्र की वार्ता का विषय - शीतल पेय से नुकसान - यह सभी जानकारियाँ युनूस जी पुरानी है। ब्रेन स्ट्रोक दिवस की भी जानकारी दी गई और हमेशा की तरह विभिन्न पाठ्यक्रमो की सूचना भी दी। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में मधुमेह और हृदय रोग विषय पर डा प्रफ़्फ़ुल पटेल से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई। बताया कि मधुमेह अनुवांशिक होता है। कठिनाई यह है कि इसके लक्षण नहीं दिखने से अन्य लोगों में रोग का पता नहीं चलता। ब्लड शुगर की जाँच करवाने से पता चलता है। मोटापे से इस रोग को ख़तरा है। जीवन शैली के कारण गाँव की महिलाओं में कम और शहर की महिलाओं में इस रोग का ख़तरा अधिक रहता है। इंसुलिन के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। इस रोग के विभिन्न स्तर भी समझा कर बताए गए।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में चरित्र अभिनेता लिलिपुट से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। उनको पर्दे पर देख कर जो आनन्द आता है वही आनन्द बातचीत से आया। पूरी बातचीत अच्छी रही जिसमें जीवन के आरंभिक समय यानि बचपन और शिक्षा की बात बताई जो गया शहर में हुई। अच्छा लगा कि उस दोस्त को याद किया जिसकी सहायता से मुंबई पहुँचे इस क्षेत्र में क़दम रखने। खुल कर बताया अभिनय यात्रा को, संवाद की शैली में। सबसे बड़ी बात रही असली नाम जानना जो मोहम्मद मिस्बाउद्दीन फ़ारूकी है और लिलिपुट नाम ख़ुद ही रख लिया मुंबई आते समय रेलवे के रिज़र्वेशन में। यह सुन कर बड़ा अच्छा लगा कि अभिनय के साथ-साथ गायक भी है। निम्मी जी के अनुरोध पर गाकर सुनाई यह पंक्तिया -

तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा

एक बेहतरीन कलाकार के बारे में अधिक जानने का मौका मिला इस कार्यक्रम से। प्रस्तुति कल्पना (शेट्टी) जी की रही।

हैलो फ़रमाइश कार्यक्रम में शनिवार को श्रोताओं से फोन पर बात की युनूस खान जी ने। श्रोताओ से इतनी सहज बातचीत हुई की लगा आमने-सामने बैठ कर ही बात हो रही है। कुछ श्रोताओं ने अच्छी विस्तार से बात की, एक श्रोता ने अपने कांच लकडी के काम को विस्तार से बताया जिससे जानकारी अच्छी मिली और थोडा ज्ञान भी बढा। कुछ श्रोताओ ने बहुत ही कम बात की। नए पुराने गानों के लिए अनुरोध किया, सुहाग रात फिल्म का गीत -

अरे ओ रे धरती की तरह हर दुःख सह ले

पडोसन का गीत - सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकडा रहता है

और मुझसे शादी करोगी जैसी नई फिल्मों के गीत सुनवाए गए।

मंगलवार को फोन पर श्रोताओं से बातचीत की निम्मी (मिश्रा) जी ने। कुछ श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की। कुछ श्रोताओं ने अपने स्थान के बारे में बताया जैसे झाँसी से बताया गया कि वहाँ एक मन्दिर में राजा के रूप में है राम। इस दिन बातचीत में अधिक आनन्द नहीं आया पर जिन गीतों का अनुरोध किया गया उन्हें सुन कर बहुत आनन्द आया -

मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू (फ़िल्म आराधना)

फ़िल्म अवतार का भजन - चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है

एक श्रोता ने फ़िल्म एक फूल दो माली का यह गीत अपने भैय्या-भाभी को उनके पुत्र-रत्न के जन्म पर समर्पित किया -

तुझे सूरज कहूँ या चन्दा

इस तरह कुछ संवेदनशील बातें भी हुई।

और गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। अन्य दिनों की तरह इस दिन भी कुछ श्रोताओं ने बातचीत खुल कर की पर कुछ श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की। एक श्रोता ने बताया कि अंधेरी शहर पहले कैसा था और अब कैसा है, अल्मोड़ा के बारे में बताया गया कि वहाँ फूलों के बाग़ बहुत है, छत्तीसगढ से बात हुई और भी कई शहरों से फोन आए। बातचीत के साथ नए-पुराने गानों की फ़रमाइश की जैसे लव स्टोरी फिल्म से यह गीत -

याद आ रही है तेरी याद आ रही है

एक बात पर मेरा ध्यान गया कि छत्रों खासकर नवीं दसवीं के छात्रों से अधिक बात नहीं की गई जबकि की जानी चाहिए थी, पता तो चलता कि विभिन्न मुद्दों पर आने वाली पीढी क्या सोचती है जैसे पहले कैरिअर शिक्षा-नौकरी से ही बनता था अब तो और भी रास्ते है, ऐसी बहुत सी परिवर्तन की बातें है।

इस कार्यक्रम को सुभाष जी, प्रदीप शिन्दे जी, जयंत महाजन जी के सहयोग से महादेव (जगदल) जी ने प्रस्तुत किया।

हैलो सहेली और हैलो फरमाइश के तीनो दिन के प्रसारण के अंत में रिकार्डिंग का दिन और फोन नंबर बताए गए।

हैलो फ़रमाइश, यूथ एक्सप्रेस और आज के मेहमान कार्यक्रमों की अपनी परिचय धुन भी बजाई गई।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के दिल्ली से प्रसारित होने वाले बुलेटिन के बाद प्रसारित हुआ नई फ़िल्मों का कार्यक्रम - फ़िल्मी हंगामा जो पूरी तरह व्यावसायिक स्तर का रहा। शुरू में 15 मिनट रिलीज़ होने वाली फ़िल्मों के विज्ञापन प्रसारित हुए। अंत के 15 मिनट में नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए साथ में विज्ञापन भी प्रसारित हुए। इस कार्यक्रम में सिर्फ हंगामा ही नही रहा बल्कि संजीदा गीत भी शामिल रहे।

शुक्रवार को दोस्ताना, बचना ऐ हसीनों के साथ दशावतार फ़िल्म का के के की आवाज़ में यह भक्ति सुन कर सुखद आश्चर्य हुआ -

श्री राम जय राम जय जय राम

ऐसे हंगामेदार कार्यक्रम में यह भजन, वैसे लम्बे समय के बाद शायद किसी फ़िल्म में भजन रखा गया है।

शनिवार के गीत अच्छे थे। विक्टोरिया नंबर 203 फिल्म का गीत जो इसके पुराने संस्करण के गीत जैसा ही था - दो बेचारे बिना सहारे

दलेर मेहदी का हैलो फिल्म से हंगामेदार गीत था और सबसे अच्छा लगा खोया खोया चाँद फिल्म से श्रेया घोषाल का गाया गीत जो पुरानी गजलो की याद दिला गया - चले आओ सैय्या

रविवार को भी हैलो फिल्म का गीत सुनवाया गया लेकिन गीत अलग था। इसके अलावा बाम्बे टू गोआ और ढूँढते रह जाओगे का यह गीत सुनवाया गया - आँखे है तेरे सपने

सोमवार को भी हंगामेदार गीत शामिल रहे। मंगलवार को जहाँ भी जाएगा हमें पाएगा फ़िल्म के इस गीत -

नज़रों को कोई शिकार चाहिए

के साथ पिछले समय की फ़िल्म अक्सर का गीत भी सुनवाया गया।

बुधवार को आने वाली फ़िल्म 42 किलोमीटर्स के साथ लकी फ़िल्म का धमाकेदार गीत भी शामिल था - नच ले, और यह संजीदा गीत भी -

कहने को जश्ने बहारा

ऐसा ही एक रोमांटिक गीत अन्य गीतों के साथ गुरूवार को भी सुना -

प्यार दीवाना होता है

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण शुरू हो जाता है जिसके बाद दुबारा हम 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

Tuesday, November 3, 2009

महिलाओं की पारम्परिक भारतीय छवि को दर्शाता गीत

आज महिलाओं की पारम्परिक भारतीय छवि को दर्शाता एक गीत याद आ रहा है जो पहले रेडियो से बहुत सुनवाया जाता था। अब तो एक अर्सा हो गया यह गीत सुने।

इस गीत को गाया है लता जी ने, यह एक ही पक्की जानकारी है मेरे पास। फ़िल्म का नाम मुझे न याद आ रहा है और न ही मैं कोई अंदाज़ा लगा पा रही हूँ, न ही इतने अच्छे बोल देने वाले गीतकार का नाम याद आ रहा है और न ही संगीतकार का नाम जिसने कम वाद्यों का प्रयोग करते हुए केवल आवाज़ को ही उभार कर इस गीत की मधुरता से ज्यादा भाव के महत्व को उभारा है। इतना अंदाज़ा है कि यह फ़िल्म शायद साठ के दशक की है। इसकी धुन मुझे याद है और जितने बोल याद आ रहे है वो इस तरह है -

नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी
होठों पे मधुर मुस्कान कभी आँखों में असुवन धार कभी
नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी

दिए की तरह ख़ुद जलती है दुनिया को उजाला देती है
दुनिया को उजाला देती है
कभी --------- और ------------- कभी
नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी

दुनिया को सब सुख देती है माँ बेटी बहन पत्नी बन कर
माँ बेटी बहन पत्नी बन कर
कभी --------- और ------------- कभी
नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी

यही सीता बनी यही मीरा बनी यही रानी बनी थी झाँसी की
यही रानी बनी थी झाँसी की
कभी फूल चढाए श्रृद्धा के और हाथों में ली तलवार कभी
नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

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