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Friday, May 27, 2011

'27 मई 1964 आकाशवाणी गोवा'.....शुभ्रा शर्मा

कल मैंने आकाशवाणी के समाचार प्रभाग की मशहूर समाचार-वाचिका शुभ्रा शर्मा के रेडियोनामा से जुड़ने का ऐलान किया था और लीजिए आज शुभ्रा जी बाक़ायदा रेडियोनामा पर अवतरित हो रही हैं।

इस आत्‍मीय आलेख में शुभ्रा जी ने अपने बचपन की एक बेहद महत्‍वपूर्ण घटना का सुंदर ब्‍यौरा दिया है।
आज पंडित जवाहर लाल नेहरू की पुण्‍यतिथि है। इस आलेख के ज़रिए रेडियोनामा उन्‍हें नमन भी कर रहा है।

ये आलेख शुभ्रा जी की आगामी श्रृंखला से अलग है। उनकी श्रृंखला जून के पहले सप्‍ताह में शुरू होगी और हर हफ्ते आप तक पहुंचेगी।
                                                                                           ......यूनुस ख़ान



बात उन दिनों की है जब गोवा पुर्तगाली शासन से नया-नया मुक्त हुआ था, हालाँकि हवा तब भी साढ़े चार सौ वर्षों की दासता से भारी महसूस होती थी. लोग तब भी देश के अन्य हिस्सों को इंडिया कहते थे, बाज़ारों में विदेशी सामान भरा पड़ा था और समुद्र तट पर १२-१४ वर्ष के बच्चे भी बियर या वाइन का लुत्फ़ लेते देखे जा सकते थे. आकाशवाणी पर भी एमिसोरा  डि गोवा का असर बाक़ी था. दोपहर के लंच के बाद लगभग दो घंटे  सिएस्टा के लिए नियत थे. केंद्र निदेशक का कमरा बहुत बड़ा और सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा हुआ था. कमरे
की एक पूरी दीवार शीशे की थी, जहाँ से बगीचे का कोना नज़र आता था. कमरे में एक तरफ आरामदेह सोफा- कम- बेड था, जहाँ पुर्तगाली केंद्र निदेशक सिएस्टा का आनंद लेते थे. नए केंद्र निदेशक मेजर अमीन फौजी व्यक्ति थे, जिन्हें आराम के नाम से चिढ़ थी. वैसे भी वह नेहरूजी के 'आराम हराम है' के नारे वाला दौर था.  मेरे पिताजी, कृष्ण चन्द्र शर्मा 'भिक्खु' सहायक केंद्र निदेशक थे. दोनों अधिकारियों  की पूरी कोशिश रहती कि कम से कम आकाशवाणी से सिएस्टा का चलन ख़त्म हो जाये. लेकिन आह का असर होने के लिए
भी तो एक उम्र दरकार होती है.


गोवा में तब आकाशवाणी के कर्मचारियों को सरकारी आवास उपलब्ध नहीं थे. दोनों बड़े अधिकारी एक होटल में एक-एक कमरा किराये पर लेकर रहते थे. साल में एक बार, गर्मी की छुट्टियों में माँ, डॉ० शकुन्तला शर्मा मुझे लेकर गोवा जाती थीं. उसी एक कमरे में हम दोनों भी समा जाते थे. कमरे में समुद्र की ओर खुलने वाली बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ थीं. उन्हीं में से एक के आगे माँ अपना चूल्हा-चौका जमा लेती थीं. घनघोर मांसाहारी प्रदेश में शाकाहारियों के लिए न तो कोई होटल था और न पंजाबी ढाबा या मारवाड़ी बासा. इसलिए माँ सोचती थीं - डेढ़-दो महीने के लिए ही सही, कम से कम पिताजी को घर का खाना तो खिला दें. आकाशवाणी से होटल की दूरी बस इतनी थी कि पिताजी दोपहर में खाना खाने आ जाते थे. ये और बात थी कि उनके पास एक अदद अम्बेसेडर कार थी जबकि उनका ड्राईवर सिल्वेस्ता मर्सिडीज़ में चलता था. पिताजी अम्बेसेडर में खाना
खाने आते थे, लेकिन शाम को उन्हें घर छोड़ने के बाद सिल्वेस्ता मुझे और मेरे दोस्तों को अपनी मर्सिडीज़ में घुमाने ले जाता था और आइसक्रीम भी खिलाता था.

एक दिन पिताजी खाना खाने बैठे ही थे कि फ़ोन की घंटी बजी. मैंने दौड़कर
फ़ोन उठाया. उधर से आवाज़ आई -
"मिस्टर शर्मा से बात कराइये, हम दिल्ली से बोल रहे हैं."
मैंने कह दिया कि वे खाना खा रहे हैं, लेकिन उधर से आदेश हुआ -" कोई बात
नहीं, उन्हें फ़ोन दीजिये".

मैं ज़रा लाडली बेटी थी, सो अड़ गयी कि थोड़ी देर बाद कर लीजियेगा. लेकिन तब तक दिल्ली का नाम nehru air सुनकर पिताजी उठ कर आ गए. नौ साल की उम्र के गुस्से में बिफरी हुई मैं माँ से शिकायत करने उनके पास चली आई. तभी पिताजी को कहते सुना - "हाय, ये क्या हो गया". फ़ोन रखकर पिताजी वहीँ दीवार से लिपटकर बुरी तरह रोने लगे. मैंने इससे पहले कभी उन्हें रोते नहीं देखा था. मैं बहुत डर गयी और माँ के पास सिमट गयी. माँ ने पूछा - "क्या हुआ?" पिताजी ने उसी तरह बिलखते हुए कहा - "नेहरुजी नहीं रहे".
इस पर माँ भी रोने लगीं. दोनों पुराने कांग्रेसी थे और छात्र जीवन में अपने-अपने तौर पर स्वतंत्रता सेनानी रह चुके थे. हालाँकि इस बात के लिए उन्होंने न तो कभी किसी प्रमाण-पत्र का दावा किया और न ही उसका कोई अन्य लाभ उठाया. उस समय नेहरूजी के इन दोनों आत्मीय स्वजनों को रोते देखकर मेरा क्या हाल हुआ
होगा, आप खुद समझ सकते हैं.

नेहरु जी के निधन के बाद सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा कर दी गयी. आकाशवाणी से जुड़े लोग इस घोषणा के महत्त्व को समझ सकते हैं. सभी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम बंद, गीत-संगीत का प्रसारण बंद, केवल भक्ति-संगीत और वह भी बिना वाद्य-यंत्रों के. किसी और केंद्र पर शायद इतनी कठिनाई नहीं हुई होगी. लेकिन यहाँ तो स्थिति ही अलग थी. एमिसोरा डि गोवा के आर्काइव्स में भला ऐसा भक्ति संगीत कहाँ से मिलता? मगर प्रसारण तो होना ही था. ठीक समय पर होना था. आज की तरह किसी और स्टेशन को पैच करने की सुविधा मौजूद नहीं थी. अब क्या हो? चारों तरफ गाड़ियाँ दौड़ायी गयीं. जहाँ कहीं भी कोई हिंदी- संस्कृत के विद्वान् थे, सादर आमंत्रित किये गए. गायकों- संगीतकारों को स्टूडियो में बुलाकर रेकॉर्डिंग शुरू की गयी. मैंने वह दृश्य अपनी आँखों से देखा है कि प्रोड्यूसर से लेकर केंद्र निदेशक तक सभी स्पूल-टेप लेकर इधर-उधर दौड़े चले जा रहे हैं. धीरे-धीरे एमिसोरा पर आकाशवाणी का रंग छाने लगा. लेकिन अभी तो सात दिनों तक प्रसारण जारी रखना था.

केंद्र निदेशक मेजर अमीन को याद आया कि माँ ने किसी प्रसंग में बताया था कि परिवार में किसी का निधन होने पर उन्होंने पूरी रात बैठकर गीता पाठ किया था. आकाशवाणी से लौटकर वे सीधे माँ के पास आये.  उन्होंने माँ से कहा - मुझे आपसे गीता की रेकॉर्डिंग  करानी है. शर्मा जी से ज़िक्र करने की कोई ज़रुरत नहीं है. उनके जाने के बाद आप तैयार रहिएगा, मैं गाड़ी भेज दूंगा. माँ ने उनसे कहा कि यदि कहीं से रामचरितमानस की व्यवस्था हो जाये तो वे उसके कुछ अंश भी रिकॉर्ड करा देंगी. शोक सप्ताह के बीच एक shubhra sharma रविवार भी पड़ रहा था. उस दिन एक घंटे का बच्चों का कार्यक्रम होता था. मेजर अमीन उस के लिए भी चिंतित थे. क्या करेंगे, कैसे करेंगे? क्या बच्चों को एक घंटे तक सिर्फ नेहरूजी के विषय में ही बताते
रहेंगे? उनकी यह समस्या भी माँ ने हल कर दी. माँ ने उन्हें बताया कि जब मैं कोई पाँच साल की थी, तब नेहरूजी मेरे स्कूल में आये थे. मैंने जिद करके अपने लिए सैनिकों जैसी वर्दी सिलवाई थी और वही पहनकर स्कूल गयी थी. नेहरुजी आये तो बहुत सारी यूनीफॉर्म-धारी बच्चियों के बीच मैं अकेली सैनिक लिबास में थी. सच पूछिए तो नेहरु चाचा के आगे खुद को किसी ब्रिगेडियर से कम नहीं समझ रही थी. वे जब पास आये तो मैंने जमकर सेल्यूट ठोंका. वे हँसे. मेरा नाम पूछा और मुझे गोद में उठाकर आगे बढ़ गए. नेहरूजी
की गोद में चढ़ने के बाद मेरा क्या हुआ, इसका होश मुझे तो है नहीं . लेकिन लोगों ने बताया कि उन्होंने कहा था - हमें इस जैसी ही बच्चियों की ज़रुरत है. माँ से यह किस्सा सुनकर मेजर अमीन समझ गए कि रविवार की बाल सभा का भी इंतज़ाम हो ही गया समझो. कोई भी कुशल इंटरव्यूअर इस घटना को बड़े आराम से एक घंटे तक खींच सकता था और नेहरु चाचा के प्रति बच्चों के प्यार को भी रेखांकित कर सकता था.

अगले दिन मुस्कुराता हुआ सिल्वेस्ता हमें लेने आया. हम केंद्र निदेशक के उसी खूबसूरत कमरे में बिठाये गए. मेजर अमीन ने फ़ोन उठाकर नंबर घुमाया और कहा - "शर्माजी मेरे आर्टिस्ट आ गए हैं. आप ज़रा इनकी रेकॉर्डिंग की व्यवस्था देख लीजिये." कुछ ही देर में पिताजी - "मे आई कम इन सर" कहते हुए कमरे में दाखिल हुए और उनके आर्टिस्ट्स को देखकर दंग रह गए. आकाशवाणी परिवार के सदस्य होने के नाते हमें उस दिन मात्र एक-एक रुपये की टोकन फीस मिली लेकिन हम उसी दिन से बाक़ायदा आकाशवाणी के कलाकार तो बन ही गए.
                                                                                         
-- डॉ0 शुभ्रा शर्मा

Thursday, May 26, 2011

'अब आप शुभ्रा शर्मा से समाचार सुनिए'

रेडियोनामा अब अपने नए रूप में आपके सामने है। और हमारी कोशिश यही है कि इसे और जीवंत बनाया जाए। रेडियोनामा की गतिविधियां बढ़ाई जाएं।
(इस नई दिखावट-सजावट का श्रेय डॉ. अजीत को जाता है, मैं समझ सकता हूं कि सबकी जिंदगी इन दिनों किस क़दर मसरूफ़ है और ब्‍लॉग का ले-आउट बदलना कितना पेचीदा काम हो सकता है। ज़ाहिर है कि जुनूनी मन ही ऐसे पहाड़ उठा सकता है। उन्‍हें इस जुनून की बधाई)


रेडियोनामा परिवार को ये ख़बर देते हए मुझे ख़ुशी हो रही है
shubhra.jpg कि आकाशवाणी के समाचार-प्रभाग की वरिष्‍ठ सदस्‍या शुभ्रा शर्मा जल्‍दी ही रेडियोनामा पर एक श्रृंखला लेकर आएंगी। शुभ्रा जी की आवाज़ पूरे भारत में आकाशवाणी के समाचारों में गूंजती रही है--'ये आकाशवाणी है, अब आप शुभ्रा शर्मा से समाचार सुनिए।'

शुभ्रा जी का ताल्‍लुक़ बनारस से है। वही बनारस जिसके बारे में नज़ीर बनारसी कहते हैं--

हर सन्त के, साधु के, ऋषि और मुनि के
सपने हुए साकार बनारस की गली में
शंकर की जटाओं की तरह साया फ़िगन है
हर साया-ए-दीवार बनारस की गली में
गर स्वर्ग में जाना हो तो जी खोल के ख़रचो
मुक्ति का है व्योपार बनारस की गली में।


शुभ्रा जी से हमने ना केवल अपनी निजी जिंदगी में रेडियो की जगह से जुड़े संस्‍मरण लिखने का अनुरोध किया है बल्कि समाचार सेवा प्रभाग के कुछ पुराने दिग्‍गजों के बारे में हम उनसे जानना चाहेंगे।


जब मैंने उनसे इस संदर्भ में अनुरोध किया तो उन्‍होंने सहर्ष स्‍वीकार करते हुए ये बात लिखी---
'बोलो कब और कहाँ शुरू करूँ? आकाशवाणी की मेरी यादें बहुत पहले से शुरू होती हैं...लगभग ५ साल की उम्र से. मेरे पिताजी रेडियो में थे और इलाहाबाद, लखनऊ, पणजी, कोहिमा के रेडियो स्टेशन मेरे प्ले ग्राउंड. टीवी - कम्प्यूटर का युग आने से पहले ट्रांजिस्टर ही सबसे बड़ा हमजोली होता था. मेरा भी था...'
बस इस एक झलक से आप समझ सकते हैं कि रेडियोनामा पर आने वाली ये सीरीज़ कितनी दिलचस्‍प होगी।
ये बतातें चलें कि ये सीरीज़ साप्‍ताहिक होगी। हर हफ्ते किस दिन....इसकी सूचना आपको शीघ्र दे दी जाएगी।


उम्‍मीद है कि शुभ्रा जी इस सीरीज़ से पहले ही अपने एक बेहद दिलचस्‍प आलेख के साथ रेडियोनामा पर अपनी आमद का ऐलान करेंगी।

Sunday, May 22, 2011

आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है….

redio1 

आप सभी प्रिय श्रोताओं और पाठकों का धन्यवाद जिन्होंने रेडियोनामा के नए स्वरुप को सराहा और इसकी समालोचना की. इसके साथ ही आपने दूर देश बैठ कर इस प्रिय BLOG के माध्यम से विविध भारती का आनंद लिया और पसंद किया. हम आभारी हैं श्री रोहित दवे जी के जिनके ऑनलाइन विविध भारती प्रसारण  को हम रेडियोनामा के जरिये आप सबों तक पहुंचाने में कामयाब हो सके.

साथ ही हमें फ़ख्र है अपने नियमित स्तंभकारों पर जिनकी कलम आपके लिये हमेशा कुछ नया लेकर आती रहती है.. खास कर मैं जिक्र करना चाहुंगा अन्नपूर्णा जी और पीयूष जी की जो हमेशा सामयिक विषयों को और अलभ्य तथ्यों को हमारे पास लेकर आते हैं.

हम रेडियो के पितामह पुरुष स्व. पंडित  नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री श्रीमति लावण्या शाह जी को कोटिशः धन्यवाद देना चाहेंगे कि जिनसे हमें हमेशा लगता रहता है हमारे इस छोटे से प्रयास ( रेडियोनामा) पर एक रेडियो की महान हस्ती का आशीर्वाद हमेशा बना हुआ है.. और लावण्या जी ( हम सबकी प्यारी लावण्या दीदी…), हम चाहेंगे कि आपका प्यार और स्नेह हमपर इसी तरह बना रहे… आप इसी तरह समय समय पर अपनी और पंडित जी के संस्मरण हमें सुनाती रहें.

मैं याद करना चाहुंगा भाई श्री संजय पटेल जी को जिनके अनुभव और संस्मरण  पहले हम देख और सुन चुके हैं.. उनके पास तो संस्मरणों का तो जैसे खजाना सा है.. पर संजय भाई, अपने समय को थोडा सा फिर से हमारे लिए अपने पाठकों के लिए फिर से चुराइए ना.. जिससे की आपकी जोग लिखी फिर से हमारे सामने साकार हो जाए.. 

रेडियो से सीधे सीधे जुड़े हमारे दो और साथी हैं जिनके विचार एक नियमित अंतराल पर हमेशा हमारे पास पहुँचते रहे हैं... वो हैं हमारे और आप सब के प्रिय उदघोषक  यूनुस भाई और इरफ़ान भाई.. फिर भी मैं इनसे गुजारिश करना चाहूँगा कि आप भी अपने व्यस्त  लम्हों में से कुछ वक़्त निकालकर अपने संस्मरणों ,विचारो से हमें अवगत आगे भी कराते रहें ...

मैं गुज़ारिश करना चाहूंगा अपने उन रेडियो प्रेमी दोस्तों श्रोताओं से जो इस “रेडियोनामा” रूपी नाव के सहयात्री भी हैं, के वे सब भी अपना कुछ कुछ योगदान देते रहें ताकि ये किश्ती  मंझधार में डूबे ना…

अंत में धन्यवाद देना चाहूंगा अपनी तकनीकी टीम को जिनकी पर्याप्त सहायता के बगैर हम आगे बढ ही नहीं सकते थे. विशेष कर सागर भाई, रवि भाई और विकास भाई का धन्यवाद जिनकी तकनीकों को जोड़ कर रेडियोनामा को आपके सामने एक नए रूप में रखने में कामयाब हुआ..

हमारा कारवां यूँ ही बढ़ता रहे इन्हीं अपेक्षाओं के साथ मैं अब विराम लेता हूँ और आशा करता हूँ कि आप आप इसी तरह हमारे साथ हमेशा जुड़े रहेंगे.

हमें पता है कि सम्पूर्णता में अभी भी कमी है जो आपकी राय के बगैर पूरी हो भी नहीं सकती. आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है, अपने विचार आप हमसे खुलकर बांटिये.  आलोचनाओं का स्वागत है, पर एक सच्चे दिशा निर्देश की भी अपेक्षा है. हमारे जो भी नए पाठक, श्रोता हमसे जुड़ना चाहते हैं उनका तहे दिल से स्वागत है. आप अपने रेडियो के अनुभव हमसे बांटिये. हम उन्हें रेडियो नामा के माध्यम से पूरी दुनिया को बताएँगे. हम आमंत्रित करना चाहेंगे रेडियो से जुड़ी शख्शियतों को जिससे हमारे परों को और विस्तृत आसमान मिले. आप रेडियो नामा से संपर्क कर सकते है.. हमें लिखिए इस ईमेल पते पर - radionama @gmail .com

 

Saturday, May 21, 2011

BREAKING NEWS

रविवार को मुझे एक BREAKING NEWS मिली - महेंद्र मोदी जी की विविध भारती में वापसी

मोदी साहब मुम्बई आ चुके हैं और सोमावार 16 .5.2011 को विविध भारती में कार्यभार संभाल रहे हैं।

यह वाकई BREAKING NEWS हैं, जिस तरह BREAK छोटा होता हैं उसी तरह छोटे से समय, एक साल से भी कम समय के लिए मोदी साहब विविध भारती से दूर हो गए थे।

आज मैं आप सब के साथ साझा करना चाहती हूँ मोदी साहब से मेरी वो छोटी सी मुलाक़ात...

बात उन दिनों की हैं जब मैंने रेडियोनामा पर नया-नया ही साप्ताहिकी लिखना शुरू किया था। आकाशवाणी के हैदराबाद केंद्र में एक कार्यशाला का आयोजन था जिसमे भाग लेने मोदी साहब पधारे थे। अपने व्यस्त कार्यक्रम में से थोड़ा सा समय उन्होंने मेरे लिए निकाला था। चर्चा कार्यक्रमों की चली, फिर साप्ताहिकी पर चर्चा आई। तब मुझे लग रहा था कि साप्ताहिकी लिखते समय मैं सिर्फ कार्यक्रमों के बारे में लिखती हूँ और यह भूल जाती हूँ कि कार्यक्रम की शिकायत कार्यक्रम तैयार करने वालो को बुरी भी लग सकती हैं और साप्ताहिकी नेट पर हैं जिसे कोई भी पढ़ सकता हैं। यह सब मैंने उनसे कहा, इन सारी बातो के जवाब में उन्होंने मुझसे एक ही बात कही, आप कार्यक्रम सुनिए और आपको जैसा लगता हैं वैसा लिखिए, परवाह नही कि किसी की शिकायत हो आलोचना हो, हम आलोचनाओं से भी सीखते हैं। बस... यह एक बात मेरे लिए ऐसा सूत्र बनी कि आज तक साप्ताहिकी लिखते समय मेरा ध्यान सिर्फ कार्यक्रम पर होता हैं, उससे जुड़े नामो की परवाह किए बगैर मैं आलोचना कर देती हूँ और इस आलोचना को अनेको पाठक पढ़ते हैं। मैं समझ सकती हूँ कि कार्यक्रम से जुड़े लोकप्रिय लोगो को इससे बुरा भी लगता हैं और मुझसे नाराज भी हैं।

रेडियोनामा एक ऐसा नायाब तोहफा हैं जिसे विविध भारती की स्वर्ण जयंति के अवसर पर श्रोताओं को दिया गया। हालांकि आधिकारिक वेबसाईट को प्रभावी बनाने के लिए रेडियोनामा को रोका जा सकता था। यह तोहफा जैसे ही मिला इस मंच पर मुझ जैसे सदस्य आ बैठे और पूरी आजादी से लिखते हैं। आज भी हमारी किसी भी पोस्ट, टिपण्णी को विविध भारती से रोका जा सकता हैं पर कभी रोका नही गया। कई श्रोता रेडियोनामा के माध्यम से विविध भारती के करीब आए। हालांकि इस देश में और देश के बाहर के भी लाखो करोडो श्रोता हैं जिनमे से कुछ पत्रावली में निरंतर पत्र लिखते हैं पर कईयों के बारे में विविध भारती जानती भी नही, वे श्रोता भी आज रेडियोनामा के पाठक बन विविध भारती के कार्यक्रमों की जानकारी ले रहे हैं।

स्वर्ण जयंति के बाद ही एक और तोहफा मिला - अति आधुनिक तकनीक से सजा एक घंटे का दैनिक फरमाइशी गीतों का कार्यक्रम - SMS के बहाने VBS के तराने जो सजीव (लाइव) प्रसारण हैं। यह कार्यक्रम मोदी साहब के समय में ही शुरू हुआ। हो सकता हैं अब भी कार्यक्रमों में कुछ फेरबदल हो और प्रसारण की शोभा कुछ और बढ़ जाए।

ये ख़ास बात रही विविध भारती की कि जब भी श्रोताओं ने शिकायत की उसको सहजता से लिया गया। पत्रावली में मोदी साहब एक-एक शिकायत सुनते और धैर्य से उसका समाधान बताते। शायद दुबारा फिर पत्रावली में भी मोदी साहब की वापसी हो। हो सकता हैं देश के कोने-कोने से और विदेशो से भी विविध भारती को चाहने वाले लाखो श्रोता पत्रावली में फिर से मोदी साहब की आवाज सुन सके।

शुभम...

Friday, May 20, 2011

वेल कम टू विविध भारती ..महेंद्र मोदी

पिछले करीब 4-5 दिन पर विविध भारती सेवा पर सहायक केन्द्र निर्देशक के रूप में श्री महेन्द्र मोदी दिल्ली से लौट आये है। उनकी निवृती के कितने साल बाकी है और उनमें उनको कितनी छुट्टी लेनी है वह तो पता नहीं, पर एक काम उन्होंने अपने ही क्रिएशन विविध भारती की वेबसाईट को फ़िर से सक्रिय कर दिया है और इसी पर अपनी वापसी और इस साईट के सक्रिय होने की बात लिखी है। तो श्रोताओं की और से और रेडियोनामा की और से उनका स्वागत है और इस ख़बर को मुझे सबसे पहले अन्नपूर्णा जी ने मुझ तक पहुँचा कर मुझे ही इस पोस्ट लिख़ने के लिये कहा, अन्नपूर्णाजी का धन्यवाद ।

*****
लेम्यूअल हेरी साहब को श्रद्धाजंली
एक दु:खद समाचार यह है कि आकाशवाणी अमदावाद के स्पस्ट उच्चारण वाले और सुंदर आवाज के मालिक, जिसे मैं बचपन से सुन कर खुश होता था, वैसे गुजराती और अंग्रेजी समाचार वाचक श्री लेम्यूअल हेरी साहब का निधन अमदावाद में हुआ । इस पर रेडियोनामा की तरफ़ से ख़ेद प्रकट करता हूँ ।

उनसे मेरी फोन पर बात हुई थी और स्पीकर फोन पर बात उनकी आज्ञा से मेरे निजी संग्रह के लिये रेकोर्ड कर के रख़ने का भी सौभाग्य मुझे मिला है पर सैद्धांतिक रूप से मिलना तय होते हुए भी ईश्‍वर ने हमारी नहीं सुनी और उनसे मिलने का कोई मौका ही नहीं बना, इसका मुझे हमेशा अफ़सोस रहेगा।

मेरे रेडियो श्रवण के शुरूआती दिनोंमें हर बुधवार गीतमाला के बाद ऑल इन्डिया रेडियो के राष्ट्रीय अंग्रेजी समाचार के बाद श्री हैरी, समाचार दर्पण नामक गुजराती रेडियो न्यूज रील कार्यक्रम प्रवक्ता के रूप में करते थे, तो इस कार्यक्रम का आकर्षण सबसे ज्यादा उनकी आवाज ही थी और उनसे जब इस कार्यक्रम को अन्य वक्ता को दिया गया तब वे अच्छे होने पर भी उनका स्थान मेरे मन में नहीं पा सके थे।

कुछ समय वे दिल्ही राष्ट्रीय गुजराती समाचार पठन के लिये भी भेज़े गये थे। गीतो भरी कहानी उनका ही आविष्कार था। जो बाद में गीत-गाथा नाम से स्व. रजनी शास्त्रीजी प्रस्तुत करते थे, जो हिन्दी फिल्मी गीतों को पिरोये हुए गुजराती भाषामें कहानी के रूप में प्रस्तुत होते थे।

श्री लेम्यूअल हेरी साहब को विनम्र श्रद्धांजलि

पियुष महेता ।

Tuesday, May 17, 2011

सुबह के गरिमामय प्रसारण को लगा धक्का - प्यार-मोहब्बत के गानों से केन्द्रीय सेवा की शुरूवात

यहाँ हैदराबाद में एक अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई हैं, बात केन्द्रीय सेवा के हिन्दी कार्यक्रम और क्षेत्रीय केंद्र के क्षेत्रीय भाषा तेलुगु के कार्यक्रम की नही हैं बल्कि बात प्रसारण की गरिमा की हैं। पहले सुबह 6:00 बजे पहले प्रसारण में 5 मिनट के दिल्ली से प्रसारित समाचार बुलेटिन के बाद मुम्बई से केन्द्रीय सेवा के अंतर्गत हिन्दी में वन्दनवार प्रसारित होता था जो पहला कार्यक्रम था। यह भक्ति संगीत का कार्यक्रम हैं। इसके तीन भाग हैं - शुरूवात में सुनवाया जाता हैं चिंतन जिसमे महापुरूषों के कथन बताए जाते जिसके बाद भक्ति गीत सुनवाए जाते हैं। इन गीतों का विवरण नही बताया जाता हैं। उदघोषक आलेख प्रस्तुति के साथ भक्ति गीत सुनवाते हैं और समापन देश भक्ति गीत से होता। 6:30 बजे क्षेत्रीय केंद्र से क्षेत्रीय भाषा तेलुगु में भक्ति संगीत का कार्यक्रम अर्चना प्रसारित होता था। 7:00 बजे पुराने मधुर गीतों का कार्यक्रम भूले-बिसरे गीत फिर 7:30 बजे शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम संगीत सरिता और 7:45 पर विचारोत्तेजक कार्यक्रम त्रिवेणी का प्रसारण। इस तरह पूरा एक घंटा भक्ति संगीत का माहौल (हिन्दी और तेलुगु) फिर पुराने मधुर हिन्दी गीत, फिर शास्त्रीय संगीत फिर विचारोत्तेजक त्रिवेणी के साथ सुबह का पहले दो घंटे का प्रसारण बहुत गरिमामय था। अब केवल एक परिवर्तन करने से पूरे प्रसारण की गरिमा को धक्का लगा हैं। अब सुबह 6:05 से 6:30 बजे तक तेलुगु भक्ति संगीत का कार्यक्रम अर्चना प्रसारित हो रहा हैं। इसके बाद मुम्बई से रिले हो रहा हैं जिसमे पहला कार्यक्रम हैं - तेरे सुर और मेरे गीत जो फिल्मी युगल गीतों का कार्यक्रम हैं, जाहिर हैं इसमे अधिकाँश प्यार-मोहब्बत के गीत सुनवाए जाते हैं, इसके बाद 8 बजे तक लगातार प्रसारण रिले हो रहा हैं कोई परिवर्तन नही पर इस तरह से केन्द्रीय सेवा की शुरूवात प्यार-मोहब्बत के फिल्मी गीतों से हो रही हैं जो पहले हैदराबाद में प्रसारित गरिमामय कार्यक्रम का हिस्सा नही थे। अगर 6:30 बजे से वन्दनवार प्रसारित हो तो अच्छा रहेगा पर ऐसा शायद संभव नही, क्योंकि भक्ति संगीत का होने के कारण यह पहला कार्यक्रम होता हैं और इसका 6:30 बजे प्रसारण का अर्थ हैं प्रसारण की शुरूवात केन्द्रीय सेवा से 6:30 बजे से यानि आधा घंटा देर से यानि आधा घंटा प्रसारण समय कम जो असंभव हैं। दूसरा विकल्प वन्दनवार की रिकार्डिंग 6:30 बजे सुनवाई जा सकती हैं जो क्षेत्रीय केंद्र के लिए कष्टप्रद हो सकती हैं। इसीलिए अनुरोध हैं कि इस परिवर्तन पर फिर एक बार विचार कीजिए।

Thursday, May 12, 2011

विविध भारती के मेहमान - साप्ताहिकी 12-5-11

विविध भारती में लगभग हर दिन मेहमान पधारे। उनके अनुभव और संघर्ष यात्रा को जानने के साथ नई जानकारियाँ भी मिली और उनके पसंदीदा गीत भी सुने। ये कार्यक्रम हैं - शुक्रवार - सरगम के सितारे, शनिवार - विशेष जयमाला, रविवार - उजाले उनकी यादो के, सोमवार - सेहतनामा, बुधवार - आज के मेहमान और इनसे मिलिए इनमे से विशेष जयमाला को छोड़ कर सभी भेंटवार्ताएं हैं। आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

शाम बाद 7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद प्रसारित होने वाले फ़ौजी भाईयों के इस जाने-पहचाने सबसे पुराने कार्यक्रम जयमाला में शनिवार को विशेष जयमाला में मेहमान रहे जाने-माने लेखक, निर्माता और निर्देशक जनाब कमाल अमरोही साहब। अच्छे गीतों के साथ बाते भी अच्छी बताई। बताया कि पारंपरिक परिवार से सम्बन्ध रहा जो फिल्मो से दूर था। अपनी फिल्मो की शूटिंग के दौरान हुए खट्टे-मीठे अनुभव सुनाए। एक बार रात के समय कोटा के पास डाकुओं से सामना और बाद में मीनाकुमारी जी के कारण हुआ बचाव। यह बात भी सामने आई कि कभी-कभार शेरो-शायरी भी लिखते हैं, उन्ही का लिखा उनकी बेहतरीन फिल्म पाकीजा का गीत सुनवाया - मौसम हैं आशिकाना और इस फिल्म की जजीरे पर की गई शूटिंग के अनुभव भी बताए कैसे पानी घिर आया था। यह शूटिंग स्थल मीना जी की पसंद था और उन्ही की जिद से शूटिंग हुई थी, गीत सुन कर मुझे भी वह ख़ूबसूरत लोकेशन याद आ गई। एक बढ़िया अनुभव बताया हिन्दू-मुस्लिम एकता और सदभावना से जुडा और इसी के आधार पर बनाई फिल्म - शंकर हुसैन। इसके अलावा खय्याम साहब के संगीत को पहली बार शगुन फिल्म में सुनने के अनुभव बताए। अपनी फिल्मो के और दूसरे भी बेहतरीन गीत जैसे ठंडी हवाएं और तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नही बनती सुनवाए। अच्छी प्रस्तुति रही संग्रहालय से जिसकी प्रस्तुतकर्ता हैं कल्पना (शेट्टे) जी। शुरू और अंत में जयमाला की संकेत धुन सुनवाई गई। यह कार्यक्रम प्रायोजित था। प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए।

इसी समय के प्रसारण में बुधवार को जयमाला के बाद 7:45 पर 15 मिनट के कार्यक्रम इनसे मिलिए में अभिनेता, लेखक और निर्देशक हर्ष छाया से रेणु (बंसल) जी की बातचीत की दूसरी और अंतिम कड़ी प्रसारित हुई। बताया कि जिस काम में दिलचस्पी होती हैं, वही करते हैं। अपने पुराने धारावाहिक स्वाभिमान और हसरते की चर्चा की। अपने ब्लॉग लेखन के बारे में बताया। स्टेज में नाटको के अनुभव बताए। यह भी चर्चा की कि एक लघु फिल्म बना रहे हैं। इस कार्यक्रम के लिए तकनीकी सहयोग प्रदीप (शिंदे) जी का रहा, संयोजन शकुन्तला (पंडित) जी का और प्रस्तुति वीणा (राय सिंघानी) जी की रही।

शेष कार्यक्रम शाम 4 से 5 बजे तक पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसारित किए जाते हैं। पिटारा कार्यक्रम की अपनी परिचय धुन है जो शुरू और अंत में सुनवाई जाती हैं और कार्यक्रमों की अलग परिचय धुन है जिसमे आज के मेहमान कार्यक्रम में संकेत धुन के स्थान पर श्लोक का गायन हैं।

शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सरगम के सितारे। जैसा कि शीर्षक से ही समझा जा सकता हैं इस कार्यक्रम के मेहमान संगीत के क्षेत्र से होते हैं। इस सप्ताह पार्श्व गायक मनहर उदहास से युनूस (खान) जी की बातचीत की दूसरी कड़ी सुनवाई गई। बताया कि सत्तर के दशक में जब फिल्म संगीत के क्षेत्र में प्रवेश किया तब स्थापित गायक थे और नए गायकों की आवश्यकता नही थी। पहला गीत विश्वास फिल्म के लिए गाया जो लोकप्रिय हुआ। इसके बाद संगीत की शिक्षा ली और उर्दू भी सीखी। यहाँ उनकी गाई गैर फिल्मी गजल भी सुनवाई - दिया जलाती हैं ये बरसात सनम तेरे बिना। पूरब और पश्चिम के गीत पुरवा सुहानी आई रे, मिलने की बाते बताई। कहा कि उन्हें वही गीत मिले जिसमे दो-तीन गायक हैं। यह गीत उन्होंने विनोद खन्ना के लिए गाया इसी तरह आगे भी उन्हें ऐसे ही गीत मिले। यही पर चर्चा कि अभिमान फिल्म की। यह भी बताया कि उन्होंने लताजी के साथ कई चैरिटी शोज किए और लताजी ने ही अभिमान फिल्म के लिए उनका नाम एस डी बर्मन को सुझाया। जब वह बर्मन साहब से मिले तब उन्हें कोई फिल्मी गीत गाकर सुनाना नही चाहते थे, अपनी प्रतिभा दिखाने, कुछ अलग सुनाने के लिए नेपाली लोकगीत गाकर सुनाया। वही गीत सुनवाया गया और उन्होंने गुनगुनाया भी। अभिमान के इस गीत की लोकप्रियता की चर्चा हुई जिसके लिए उन्होंने माना भी कि यह गीत सभी बड़े कलाकारों के साथ था। इसके बाद कागज़ की नाव फिल्म के गीत की चर्चा चली। उसके बाद कुर्बानी फिल्म मिलने की बात बताई कि कल्याणजी आनंदजी ने उन्हें बुलाया। आधुनिक तकनीक के अनुसार संगीत रिकार्ड हुआ और गीत के बोल रिकार्ड होने की चर्चा शुरू नही हो पाई जो अगली कड़ी में होगी। एक ख़ास बात भी बताई कि उनकी आवाज मुकेश जी से कुछ-कुछ मिलती हैं। शुरू में लोग उनसे कहते थे मुकेश जी की नक़ल न करे और मुकेश जी के निधन के बाद लोग कहने लगे थोड़ा ऐसे॥ गा दीजिए ताकि मुकेश जी जैसा लगे पर हर बार उन्होंने कहा कि उनकी आवाज मूल रूप से ऎसी ही हैं और मुकेश जी की नक़ल उन्होंने कभी नही की। कार्यक्रम बहुत अच्छा तैयार किया गया, बिलकुल कार्यक्रम के शीर्षक के अनुरूप। उनके गाए गीत सुनवाए, जिनसे उन्हें प्रेरणा मिली वो गीत सुनवाए और उनके गाए बहुत से गीतों के अंश शुरू में, बीच में और अंत में सुनवाए। इस कार्यक्रम को माधुरी (केलकर) जी के सहयोग से तनूजा (कोंडाजी कानडे) जी ने प्रस्तुत किया। रिकार्डिंग इंजीनियर हैं विनायक (रेडके) जी। अच्छी रही प्रस्तुति। शुरू और अंत में इस कार्यक्रम की संकेत धुन सुनवाई गई जो लोकप्रिय गीतों के अंशो को जोड़ कर बनाई गई हैं। शुरू में परिचय दिया और समापन किया अमरकांत जी ने। समापन पर विविध भारती का पता भी बताया कि श्रोता बता सके कि यह कार्यक्रम उन्हें कैसा लगा - सरगम के सितारे, विविध भारती सेवा, पोस्ट बॉक्स नंबर 19705 मुम्बई 400091

रविवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम उजाले उनकी यादो के। मेहमान रहे लेखक, निर्माता और निर्देशक सागर सरहदी जिनसे बातचीत की युनूस (खान) जी ने। बातचीत की यह सातवी और समापन कड़ी थी। इसमे शुरू में उनकी बनाई फिल्म बाजार की चर्चा हुई जिसके लिए यह ख़ास बात उन्होंने बताई कि पच्चीस साल पहले बनाई गई यह फिल्म अब उन्हें ख़ास नही लगती। इस फिल्म का सीन भी सुनवाया। अपनी बनाई फिल्मो के बारे में बताया कि इन फिल्मो को व्यावसायिक सफलता नही मिली। अपनी दक्षता की भी चर्चा की कि रोमांटिक सीन में संवाद लिखने में महारत हासिल हैं। चांदनी फिल्म की चर्चा की जिसमे यश चोपड़ा जी से कुछ अनबन होने के बाद उन्होंने किसी और को लिया था पर बाद में इन्ही से संवाद लिखवाए। इसी तरह कहो न प्यार हैं फिल्म भी की। अपनी इस कला का उन्होंने मुख्य कारण माना कि वो हमेशा समय के साथ चलते हैं, संवाद लिखते समय चरित्र को ध्यान में रखते हैं और कलाकार को भी तभी भाषा और भाव जमते हैं। अपनी फिल्म फासले की असफलता की चर्चा की। यह स्पष्ट कहा कि पैसो की जरूरत के लिए व्यावसायिक फिल्मे करते हैं। फिल्मो के अलावा अपने मूल काम की चर्चा की कि मुख्य रूप से उर्दू अफसाने लिखते हैं, नाटक लिखते हैं और इन्ही कामो के लिए मिले एवार्ड्स की चर्चा की। अपनी अंतिम फिल्म चौसर की चर्चा की जो नए कलाकारों को लेकर बनाई हैं पर सिनेमाघर में शायद रिलीज न हो पाए, इसीलिए चैनलों पर रिलीज करवाना चाहते हैं। अब एक-दो फिल्मे कर रहे हैं और अपनी एक फिल्म भी बनाना चाहते हैं। चर्चा में आई फिल्मो के गीत सुनवाए गए। अच्छी रही प्रस्तुति। इस कार्यक्रम को कल्पना (शेट्टे) जी ने प्रस्तुत किया। रिकार्डिंग इंजीनियर हैं विनायक (तलवलकर) जी।

सोमवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सेहतनामा। इसमे त्वचा के रोग और त्वचा की सुन्दरता पर बातचीत की गई। मेहमान डाक्टर थी त्वचा रोग विशेषज्ञ डाक्टर कल्पना सारंगी जिनसे रेणु (बंसल) जी की बातचीत सुनवाई गई। बहुत विस्तार से जानकारी दी। इलाज और सावधानी पर चर्चा की। सबसे पहले साफ़ और सुन्दर त्वचा की जानकारी दी, अगर दाग-धब्बे न हो तो स्वस्थ और स्किन टोन बराबर हो और शुष्कता न हो तो सुन्दर त्वचा हैं। हारमोन में गड़बड़ी होने से धब्बे आते हैं जिसका इलाज आसान हैं पर आनुवांशिकी त्वचा रोग हो तो इलाज कठिन हैं जिसमे होंठो, उँगलियों के पोरों पर सफ़ेद धब्बे होते हैं जो फैलते जाते हैं। गृहणियों को अक्सर त्वचा के संक्रमण का खतरा रहता हैं, अधिक पानी में काम करना हो तो पहले हाथो में थोड़ा तेल लगा ले। त्वचा की उम्र 25 साल होती हैं जिसके बाद ध्यान रखे, कोई समस्या होने पर परीक्षण करा ले। आधुनिक जीवन शैली के बारे में सलाह दी की कम से कम दस मिनट धूप अवश्य ले, सन स्क्रीन का उपयोग करे। संतुलित आहार ले जिसमे प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट और वसा सामान हो जो फल और हरी सब्जियां लेने से भी पर्याप्त हैं। उम्र के साथ कोशिकाओं में नमी कम होने से त्वचा सूखी लगती हैं। मेकअप ध्यान से करे, अवांछित बालो को लेजर से निकालने में हानि नही हैं। बातचीत के साथ डाक्टर साहब की पसंद के गीत सुनवाए गए - पुरानी फिल्म दिल अपना और प्रीत पराई जैसी फिल्मो के और नई फिल्म जैसे मर्डर के गीत। इस कार्यक्रम को पी के ए नायर जी के सहयोग से कमलेश (पाठक) जी ने प्रस्तुत किया। तकनीकी सहयोग तेजेश्री (शेट्टे) जी का रहा।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम मे मेहमान रहे अभिनेता और निर्देशक विक्रम गोखले जिनसे बातचीत की निम्मी (मिश्रा) जी ने। दूसरी और अंतिम कड़ी प्रसारित हुई पर पहली कड़ी से जोड़ने से यह भी पता चला कि पारिवारिक माहौल कला का रहा जिससे इस क्षेत्र में आए। संवाद बोलने से ज्यादा भावो को दर्शाने का प्रभाव अधिक होने पर अच्छी चर्चा चली। बताया कि दुःख हैं तो जरूरी नही कि रोया जाए। अपनी फिल्म यही हैं जिन्दगी की चर्चा की जिसमे कृष्ण की भूमिका की थी, इसके लिए संजीव कुमार को याद किया। अपनी फिल्मो और टेलीविजन के अनुभव बताए। थियेटर में किए नाटको के अनुभव बताए। बताया कि एक नाटक में एक भूमिका 35 साल तक की जिसे दर्शको ने खूब सराहा, बाद में इसी नाटक का निर्देशन किया और यही भूमिका दूसरो से करवाना अच्छा लगा। इस तरह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को अच्छा माना। रेडियो की भी चर्चा कि जिससे पता चला कि पूना रेडियो के लिए गायक कलाकार रहे। अमीन सयानी को पसंद फरमाया और कहा कि अब भी कार में रेडियो सुनते हैं। उनके द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यो की भी चर्चा की। चलते-चलते बताया कि नेत्रहीन और मानसिक विकलांग की भूमिका करना चाहते हैं। अपनी फिल्मो के गीत भी सुनवाए और पसंद के पुराने गीत भी सुनवाए, शास्त्रीय संगीत को पसंद करने की बात बताई। इस कार्यक्रम को कल्पना (शेट्टे) जी ने प्रस्तुत किया। रिकार्डिंग इंजीनियर हैं विनायक (तलवलकर) जी। शुरू में इस कार्यक्रम की संकेत धुन के स्थान पर इस श्लोक का गायन सुना - अथ स्वागतम शुभ स्वागतम, आनंद मंगल मंगलम, इत प्रियम भारत भारतम

सभी कार्यक्रम अपनी-अपनी जगह अच्छे रहे पर सप्ताह भर के इन कार्यक्रमों पर समग्र दृष्टि डालने पर कुछ बाते खटकती रही। पहली बात ज्यादातर मेहमान लेखन और निर्देशन क्षेत्र से रहे जिससे विविधता नही रही। दूसरी बात संयोजन की खटकी, शनिवार और रविवार के मेहमान क्षेत्र के मामले में एक जैसे रहे उसी तरह बुधवार के दोनों कार्यक्रमों के मेहमान भी। तीसरी बात बुधवार के दोनों कार्यक्रम दो कडियों में अनावश्यक विस्तार लगे, एक कड़ी में बातचीत ज्यादा प्रभावी होती। इनसे मिलिए कार्यक्रम अपने वास्तविक स्वरूप में नजर नही आया। जहां तक मेरी जानकारी हैं इस छोटे से कार्यक्रम में नई उभरती प्रतिभाओं से बातचीत होती हैं। अच्छा होता अगर परदे के पीछे काम करने वाले कलाकारों को भी आमंत्रित किया जाता जैसे सिनेमा के निर्माण में तकनीकी पक्ष से जुड़े लोग, इसी तरह कई लोकप्रिय गीतों की लोकप्रिय धुनों में विभन्न साज के वादक कलाकार। इससे कई नई जानकारियाँ भी मिलती थी और इन प्रतिभाओं के धनी कलाकारों को सुनने का मौक़ा मिलता।

Tuesday, May 10, 2011

विन्ड इन्स्त्रूमेन्ट्स के वादक कलाकार सुरेश यादवजी को जनम दिन की बधाई



आदरणिय पाठक गण, आज यानि दि. 10 मई को भारतीय फिल्म संगीत में अल्टो सेक्षोफोन, सुप्रानो सेक्षोफोन, सुप्रानिनो सेक्षोफोन, क्लेरीनेट और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादन द्वारा सालों से कई संगीत कारों के साथ तथा एक वाद्यवृंद एरेन्जर के रूपमें विषेष प्रदान करने वाले श्री सुरेष यादव की जनम तारीख़ है । तो इस अवसर पर रेडियोनामा की और से उनको शुभ: कामनाएँ प्रदान करता हूँ । आज रेडियो श्री लंकासे श्रीमती ज्योति परमारजीने मेरे द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर उनको जनम दिन की शुभ: कामनाएँ प्रदान की पर उनकी लायब्रेरी का समय सुबह का नहीं होते हुए वे उनकी धून का सिर्फ़ जिक्र कर सकी पर धूने सुनवा नहीं सकी, जिसकी रेकोर्डिंग पूणे के रेडियो श्रोता श्री गिरीष मानकेश्वर द्वारा प्राप्त हुई है तो इन के प्रति घन्यवाद कहते हुए नीचे इस संदेश को सुनिये ।



और अब देख़ीये भी और सुनिये भी, नीचे गुजरात के बिल्लीमोरा शहरमें दि. 20 फरवरी, 2010 के दिन उनका सजीव शॉ प्रसिद्ध एकोर्डियन वादक श्री सुमीत मित्रा के साथ किया था, उसमें से कुछ आईटम्स या उसके कुछ अंश प्रस्तूत किये है । उम्मीद है कि आप उनका मझा लेंगे ।
बन के पंछी-(फिल्म : अनारी) क्लेरीनेट पर


एक दो तीन-(फिल्म : तेजाब)-सुप्रानिनो सेक्षोफोन पर् (जो मूल फिल्ममें भी इन्होंने ही बजाया है ।)


एक प्यार का नग्मा है – (फिल्म: शोर) अल्टो सेक्षोफोन पर


माय हार्ट इझ बिटींग (फिल्म ज्यूली) वेस्टर्न फ्ल्यूट (जो मूल फिल्म में उन्होंने ही बजाया है )


चोली के पीछे क्या है –(खल नायक) सुप्रानिनो सेक्षोफोन पर (जो मूल फिल्ममें उन्होंनें ही बजाया है )


तो एक बार फ़िर सुरेष यादवजीको जनम दिन की शुभ: कामनाएँ और वे सो साल तक़ इसी तरह बजाते रहे वैसी शुभ: कामना ।
पियुष महेता
सुरत-395001.

फिल्म रामनगरी का मधुर युगल गीत

सत्तर के दशक के अंतिम वर्षो या अस्सी के दशक के आरंभिक वर्षो में अमोल पालेकर की एक फिल्म रिलीज हुई थी - रामनगरी। यह फिल्म शायद अमोल पालेकर ने ही बनाई थी। इसकी नायिका हिन्दी फिल्मो की लोकप्रिय नायिका नही हैं, मुझे नाम याद नही आ रहा। इतना याद हैं इसमे सुलभा देशपाण्डेय और नीलू फूले भी मुख्य भूमिकाओं में रहे। यह फिल्म शायद अधिक नही चली थी। पर इस फिल्म का एक युगल गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था जिसमे शायद सुरेश वाडकर की आवाज हैं, दूसरी आवाज मुझे याद नही आ रही। बहुत मधुर, रोमांटिक, श्रृंगारिक गीत हैं यह। बहुत दिन से नही सुना, अब तो इसका एक भी बोल याद नही आ रहा।


पता नही विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत...

Sunday, May 8, 2011

1. एस एल बी सी की पद्दमिनी परेराजी-जनम दिन मुबारक 2. रेडियो सिटी की मनमानी

आदरणिय पाठक गण,

आज रेडियो श्रीलंका (सिलोन)-हिन्दी सेवा की निवृत और इन दिनो केझ्यूअल श्री पद्दमिनी परेरा की जनम तारीख़ है । तो इस गुजराती अवसर पर रेडियोनामा और रेडियो श्रीलंका हिन्दी सेवा की तरफ़ से उनको लम्बे और स्वस्थ आयु की शुभ: कामना प्रस्तूत है ।
इन दिनों वे भारते के दौरे पर है ।
पिछ्ली दि. 1 मे, 2011 के दिन रविवार होने के कारण सुबह 11 बजे और रात्री 9 बजे पुन: प्रसारण के साथ रेडियो सिटी 91.1 मेगा हट्झ पर इस चेनल के तय किये हुए सभी शहरोमें श्री अमीन सायानी साहब के कार्यक्रम संगीत के सितारों की मेहफ़ील अंतर्गत स्व. संगीत कार वसंत देसाई पर किस्त आनी थी । पर उस दिन सुरत और पूना जैसे शहरोमें इसके स्थान पर इन राज्यों के स्थापना दिन की सेलिब्रेसन के अंतर्गत स्थानिय प्रस्तूती अंतर्गत क्षेत्रीय भाषा के कार्यक्रम पूरे दिन प्रस्तूत हुए तो इस वसंत देसाई वाले कार्यक्रम के बारेमें जब श्री अमीन सायानी साहब के सुपुत्र श्री राजीलजी को बताया गया तो उन्होंनें चेनल की हेड ओफीस से पूछताछ करके बताया कि इस कार्यक्रमको आज यानि 7 तारीख़ के दिन प्रस्तूत किया जायेगा पर आज रेडियो लगाया तो पिछली 1 तारीख़ के दिन जहाँ इस कार्यक्रम अपने नियत समय पत्रक अनुसार प्रस्तूत हुआ था, उन केन्दों की तरह आज भप्पी लहरी जी का कार्यक्रम आया । तो क्या सुरत और पूणे के लोगो को वसंत देसाई साहब वाला कार्यक्रम गँवाना ही रहेगा ? आज एक फेशन हो गई है कि सरकारी रेडियो और टीवी की ही गलतियाँ हाईलाईट करने की तो निज़ी चेनल का इस प्रकार का प्रसारण क्या सराहनिय है । क्षेत्रीय सेलिब्रेसन के दौरान दो घंटे बाहर से पाये गये कार्यक्रम के लिये सोच नही सकता था %
पियुश महेता
सुरत-395001.

Thursday, May 5, 2011

महिला और युवा वर्ग के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 5-5-11

महिला और युवा वर्ग का एक-एक कार्यक्रम हैं - सखि-सहेली और जिज्ञासा महिला वर्ग के कार्यक्रम में एक कड़ी युवा सखियों के लिए होती हैं जो युवको के लिए भी उपयोगी हैं। आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -


सप्ताह में पांच दिन एक घंटे के लिए दोपहर 3 बजे से प्रसारित होने वाले महिलाओं के कार्यक्रम सखि-सहेली में शुक्रवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम हैलो सहेली। फोन पर सखियों से बातचीत की ममता (सिंह) जी ने। 8 फोन कॉल थे। अधिकतर कॉल छात्राओं के थे। एक छात्रा की बातचीत से पता चला कि उसके गाँव में अधिक सुविधाएं नही हैं इसीलिए वह बी ए की पढाई के बाद बीएड के लिए पास के शहर जाना चाहती हैं। दो-तीन सखियों ने कोई बात ही नही की सिर्फ अपने शहर का नाम बताया और गीत की फरमाइश की। कुछ से विस्तार से बातचीत हुई, एक सखि ने बताया कि लड़के और लड़की में भेद नही करना चाहिए, दोनों को समान सुविधाएं मिलनी चाहिए। लड़कियों को चाहिए कि वे आवश्यक हो तो पढाई के लिए अपने गाँव-शहर से बाहर भी जाए। एक सखि ने इलाहाबाद से बात की और बताया कि वहां लोकनाथ और घंटाघर में खाने-पीने की बढ़िया चीजे मिलती हैं। एक बात पहली बार हुई, बातचीत के दौरान एक सखि ने क्षेत्रीय व्यंजन बनाने की विधि बता दी। सखियों की पसंद पर अस्सी नब्बे के दशक के गीत सुनवाए गए - साजन जैसी फिल्मो से और एक फरमाइश सत्तर के दशक की फिल्म कच्चे धागे के एक गीत के लिए हुई। इस गीत की फरमाइश बहुत दिन बाद हुई, सुनना अच्छा लगा - हाय हाय एक लड़का मुझको ख़त लिखता हैं। विभिन्न क्षेत्रो से शहर, गाँव, जिलो से फोन आए। एक सखि ने विविध भारती के कार्यक्रमों को पसंद करने की बात कही। कार्यक्रम के समापन पर बताया गया कि इस कार्यक्रम के लिए हर बुधवार दिन में 11 बजे से फोन कॉल रिकार्ड किए जाते हैं जिसके लिए फोन नंबर भी बताए - 28692709 मुम्बई का एस टी डी कोड 022 और यह अनुरोध भी किया गया कि यह कार्यक्रम सखियों का हैं, इसीलिए कृपया पुरूष श्रोता फोन न करे। शुरू और अंत में संकेत धुन सुनवाई गई जिसमे शीर्षक के साथ उपशीर्षक भी कहा जाता हैं - सखियों के दिल की जुबां - हैलो सहेली ! इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कमलेश (पाठक) जी ने स्वाती (भंडारकर) जी के सहयोग से।


अन्य चार दिनों में सखि-सहेली कार्यक्रम में हर दिन दो प्रस्तोता सखियाँ आपस में बतियाते हुए कार्यक्रम को आगे बढाती हैं। हर दिन के लिए एक विषय निर्धारित हैं -सोमवार - रसोई, मंगलवार - करिअर, बुधवार - स्वास्थ्य और सौन्दर्य, गुरूवार - सफल महिलाओं की गाथा। सोमवार, मंगलवार और गुरूवार को प्रस्तोता रही ममता (सिंह) जी और शहनाज (अख्तरी) जी। सोमवार को बताया कि पिछले सप्ताह विचार मंच का विषय था - इंतज़ार। इस विषय पर बहुत से पत्र आए इसीलिए इस दिन भी सिलसिला जारी रखा गया। लगभग 18 पत्र पढ़े गए। एकाध पत्र अच्छा रहा, एक सखि ने लिखा कि उसके पिता उसकी पढाई के विरूद्ध थे। जब पिता नौकरी के लिए दूसरे शहर गए तब उनकी अनुमति के बिना पढाई की। उनके आने के बाद पढाई छूट गई फिर भाई की सहायता से चार साल के इन्तेजार के बाद पढाई शुरू हुई। तत्कालिक स्थिति से सम्बंधित पत्र नही थे जैसे स्कूल की अंतिम परीक्षा दी और नतीजे का इन्तेजार हैं क्योंकि कॉलेज जाना हैं, इसी तरह पढाई ख़त्म हुई और नौकरी का इन्तेजार हैं वगैरह। अधिकाँश पत्र ऐसे थे जिनमे इन्तेजार के बारे में लिखा गया जैसे माँ को आने वाले बच्चे का इन्तेजार हैं, रोगी को अच्छा होने का इन्तेजार हैं आदि। कुछ पत्रों में ऐसा एकाध वाक्य ही लिखा था फिर भी ये पत्र पढ़े गए। यह उचित हैं कि इस कार्यक्रम के माध्यम से महिलाओं को अपनी बात कहने का अवसर दिया जा रहा हैं। लेकिन यहाँ एक बात स्पष्ट हैं कि यह कार्यक्रम दूरदराज के क्षेत्रो की महिलाएं अधिक सुनती हैं जिनमे से अधिकाँश महिलाएं कम पढी लिखी और संकोची भी होती हैं। ऎसी कई महिलाएं हैलो सहेली में फोन करती हैं, कुछ भी बात नही कर पाती केवल फरमाइशी गीत बता देती हैं। स्थिति यहाँ तक ठीक हैं कि फोन पर बात करने में संकोच होता हैं पर फोन तो किया पर यही स्थिति पत्रों में हो तो ठीक नही लगता। ऐसा लगता हैं प्रसारण समय का उचित उपयोग नही किया गया। बीस-पच्चीस पत्रों को पढ़े इससे अच्छा हैं चार पत्र पढ़े। सखियों ने पत्रों के साथ इसी विषय से सम्बंधित गीतों की फरमाइश की जो नए और कुछ पुराने थे - काइट्स, शराबी, फ़िदा फिल्मो के गीत। मैं हूँ न फिल्म का शीर्षक गीत और कृष्णा कॉटेज फिल्म का यह गीत - सूना सूना लम्हा लम्हा, मेरी राहे तन्हा तन्हा


मंगलवार का दिन करिअर का होता है। इस दिन वकील - क्रिमिनल लॉयर बनने के लिए जानकारी दी गई। करिअर संबंधी जानकारी का आलेख उन्नति (वोहरा) जी ने तैयार किया था। इस तरह यह अंक केवल लड़कियां ही नही लड़को के लिए भी उपयोगी रहा। यह दिन युवा सखियों के लिए हैं इसीलिए इस दिन सखियों की पसंद पर नए गाने ही सुनवाए गए। तनु वेड्स मनु, बैंड बाजा बारात, सिंग इज किंग, लव आजकल, जब वी मेट फिल्मो के गीत सुनवाए गए और पटियाला हाउज फिल्म से तुम्बा तुम्बा गीत भी शामिल था। बुधवार को प्रस्तोता रही ममता (सिंह) जी और रेणु (बंसल) जी। इस दिन स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। सखियों के भेजे गए पत्रों से कुछ जाने-पहचाने घरेलु नुस्के बताए गए। कोई नई जानकारी नही थी। इस दिन दो बाते अच्छी हुई, पहली बात, पहले किसी कार्यक्रम में गोदना (टैटू) के बारे में बताया गया था, इसके सम्बन्ध में एक सखि ने पत्र भेजा कि यह शरीर के लिए हानिकारक भी हो सकता हैं। इससे संक्रमण हो सकता हैं। इसीलिए इसका प्रचार भी नही किया जाना चाहिए। दूसरी बात - एक सहेली ने एक अशोभनीय चुटकुला लिख कर भेजा जिसे पढ़ कर सुनाया गया और साथ ही प्रस्तोता सखियों ने ये कहा कि यह पत्र शामिल नही भी किया जा सकता था पर शामिल किया और चुटकुला भेजने वाली सखि को खूब लताड़ा। सखियों की फरमाइश पर नए-पुराने गीत सुनवाए गए - जीत, फर्ज, उपहार, मस्त फिल्मो से और फूल और कांटे फिल्म से यह गीत भी शामिल था - मैंने प्यार तुम्ही से किया हैं। गुरूवार को सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस दिन मालती बेटेकर के बारे में बताया। लड़कियों की शिक्षा के विरूद्ध माहौल में शिक्षा ली। बाद में आदिवासियों को बढाया और अच्छी लेखिका बन कर उभरी। इस जानकारी का आलेख उन्नति (वोहरा) जी ने तैयार किया था। सखियों के अनुरोध पर कुछ ही पहले के समय की फिल्मो के लोकप्रिय गीत सुनवाए - दोस्ती, थोड़ी सी बेबफाई, आनंद, चितचोर, दुल्हन वही जो पिया मन भाए, साजन बिना सुहागन फिल्मो से और सौदागर फिल्म से यह गीत भी सुनवाया - सजना हैं मुझे सजना के लिए, हरजाई फिल्म का गीत अंत में सुनवाया, बहुत थोड़ा सा, समय कम था, इस गीत को रोका जा सकता था।


हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। सखियों ने सलाह दी कि उम्र रहते शादी कर ले, उम्र रहते बच्चो को जन्म दे। शोर से बचे। अपने आपको कमतर न समझे। आशावादी बने। एक पत्र ऐसा भी था जिसमे सखि ने कुछ लिख भेजा जिसे पढ़ा भी गया पर समझ में नही आया कि क्या लिखा हैं। इस पत्र को पढ़ा गया और सखियों से यह कहा गया कि वे जो भी कहना चाहते हैं, स्पष्ट लिखे। प्रस्तोता सखियों ने भी आपस में बतियाते हुए बहुत सी बाते बताई जैसे करिअर के मामले में अभिभावक अपने विचार बच्चो पर न थोपे, पार्टी का आयोजन कैसे किया जाए। चारो दिन प्रसारण सुन कर ऐसा लगा कि इसके स्वरूप में परिवर्तन करना उचित रहेगा। हमारा अनुरोध हैं चार दिनों में से किसी एक दिन पत्रों के माध्यम से विभिन्न विषयो की चर्चा ठीक रहेगी, शेष दिन प्रस्तुति का अंदाज बदल दीजिए। हर दिन का विषय जैसे रसोई, करिअर आदि जारी रखते हुए (या इन्हें हटाया भी जा सकता हैं), फरमाइशी गीत सुनवाते हुए, एक या दो दिन साहित्य की चुनी हुई रचनाओं का पठन किया जा सकता हैं और साथ ही कुछ और स्तम्भ भी जोड़े जा सकते हैं या प्रसारण की अवधि को समेटते हुए एक-दो ही दिन रख दीजिए। कार्यक्रम के शुरू और अंत में सखि-सहेली की संकेत धुन सुनवाई गई। चारो दिन इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कमलेश (पाठक) जी ने।


कार्यक्रम के दौरान एक सूचना भी दी कि हर महीने के अंतिम सोमवार के लिए एक विषय निर्धारित किया जाता हैं और उस पर सखियों के विचार आमंत्रित किए जाते हैं। सखियों के पत्रों को पढ़ कर सुनाया जाता हैं और साथ ही उनकी फरमाइश के गीत भी सुनवाए जाते हैं। इस बार का विषय हैं - गर्मियों की छुट्टियों का सदुपयोग कैसे करे।


शनिवार को रात 7:45 पर सुना सामान्य ज्ञान का साप्ताहिक कार्यक्रम जिज्ञासा। 15 मिनट के इस कार्यक्रम के विभिन्न खंड हैं। हर खंड के बाद जानकारी से सम्बंधित फिल्मी गीत की झलक सुनवाई जाती हैं। पहला खंड हैं - समय यात्री - टाइम मशीन जिसके अंतर्गत जानकारी दी गई कि टाइपराइटर बनाना बंद कर दिया गया हैं। यहाँ इससे सम्बंधित सामान्य जानकारी भी दी और यह भी बताया कि एक लोकप्रिय लेखक के पास सोने का टाइपराइटर था। दूसरी जानकारी भारतीय मूल के चिकित्सक सिद्धार्थ मुखर्जी की लिखी पुस्तक कैंसर से सम्बंधित थी जिस पर अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। तीसरी जानकारी रोचक रही कि एक ऐसे आभासी (vartual ) विश्व विद्यालय को तैयार करने की योजना बनाई जा रही हैं जिससे छात्र इंटरनेट से ही पढाई कर सकेंगे। खोज शीर्षक के अंतर्गत बताया कि बाज गायब हो रहे हैं, बाज का भोजन रही घरेलु चिड़िया भी लुप्त होने की कगार पर हैं जिसका कारण पर्यावरण में एक तरह के रसायन का बढ़ना हैं जो इनके लिए जहर के समान हैं। इसके अलावा तम्बाकू का सेवन न करने के लिए जानकारी देने वाली वेबसाईट की भी जानकारी दी। बीच-बीच में सम्बंधित गीतों की झलकियाँ सुनवाई गई। कुछ गीत ऐसे थे जिन्हें मैंने पहली बार सुना - टाइपराइटर टिक टिक करता हैं जिन्दगी की हर कहानी लिखता हैं और लोकप्रिय गीतों की भी झलकियाँ सुनवाई गई - जिन्दगी का सफ़र हैं ये कैसा सफ़र। पूरे कार्यक्रम को सुन कर लगा कि कुछ और स्तम्भ जोड़ कर इसे अधिक उपयोगी बनाया जा सकता हैं। शोध, आलेख और स्वर युनूस (खान) जी का रहा। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने।


ये दोनों ही कार्यक्रम आधुनिक विविध भारती की देन हैं यानि पहले इस तरह से महिलाओं और युवाओं के लिए अलग से कार्यक्रम तैयार नही किए जाते थे। वास्तव में नब्बे के दशक में कुछ कार्यक्रमों से महिला कार्यक्रमों की शुरूवात हुई फिर ये दो नियमित कार्यक्रम प्रसारित होने लगे। इन दोनों कार्यक्रमों को सुनकर ऐसा लगता हैं जब विविध भारती महिला और युवा वर्ग के लिए अलग कार्यक्रम तैयार कर ही रही हैं तब बच्चो के लिए भी कोई कार्यक्रम तैयार किया जा सकता हैं। बाल श्रोताओं के लिए भी विविध भारती में जगह होनी चाहिए।



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