Wednesday, October 24, 2007

अपना घर

आज हम ऐसे कार्यक्रम की बात करेंगे जिसे फ़ुरसत में सुना जाता था। जी हां ! आप में से कुछ लोग तो ज़रूर समझ गए होंगें मैं बात कर रही हूं अपना घर कार्यक्रम की जो हर रविवार विविध भारती से दोपहर २ बजे से २:३० बजे तक प्रसारित होता था।

यह एक मैगज़ीन प्रोग्राम था जिसमें अलग-अलग तरह के तीन-चार कार्यक्रम होते थे जैसे गीत, नाटक - प्रहसन और रोचक वार्ता आदि।

कुछ कार्यक्रम बहुत लोकप्रिय हो जाते तब अपना घर में दुबारा सुनवाए जाते थे जैसे हवामहल में प्रसारित झलकियां ज़मीं के लोग और बेसन के लड्डू अपना घर में दुबारा सुनवाई गई।

अपना घर में सुना गया एक हास्य गीत मुझे अच्छी तरह से याद है। गीत का शीर्षक है - कुंवारों का गीत और गीत का मुखड़ा है -

चाहे गोरी दें या काली दें
भगवान तू एक घरवाली दें

पूरे गीत में यही कहा गया है कि चाहे जैसी भी हो, कितने भी अवगुण, अपगुण क्यों न हों, हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता, बस भगवान तू एक घरवाली हमें दे दो।

यह गीत युगल स्वर में था पर दोनों पुरूष स्वर थे। हार्मोनियम पर गाए इस गीत में तबले की संगत थी और अधिक साज़ नहीं थे। गीत लिखने वाले, धुन बनाने वाले और गायकों के नाम याद नहीं आ रहे।

अपना घर कार्यक्रम का संचालन भी बड़े रोचक अंदाज़ में होता था। मौजीरामजी प्रस्तुत करते थे साथ में और भी आवाज़ें होती थी। कभी कहा जाता था यह छाया जी, माया जी और रफ़िया जी की आवाज़े है। पता नहीं चल पाया कि ये नाम सच थे या मौजीराम की तरह ही नकली नाम थे। पर कार्यक्रम जब तक चला इसकी रोचकता बनी रही।

1 comment:

  1. भई अन्‍नपूर्णा जी आपकी ये पोस्‍ट बस अभी पढ़ी । जहां तक मेरी जानकारी है मौजीराम का किरदार निभाया बृजेन्‍द्र मोहन ने । उनकी आवाज़ आपने चित्रशाला में बहुत सुनी होगी व्‍यंग्‍य वार्ताओं में ।

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