Friday, November 23, 2007

पियुष महेता द्वारा जारी संगीत पहेली क्रमांक १

पियुष महेता द्वारा जारी संगीत पहेली क्रमांक १

आज इरफानजी से क्षमा मांग कर मैं बी थोडा सा उनके नक्शे कदम पर चलने का दिखावा कर रहा हूँ

इधर एक गाने का शुरूआती संगीत प्रस्तूत कर रहा हूँ । जो रवि साहब के संगीतमें हमारी सबकी ग्रेट आशाजीने (यह शब्द श्री ब्रिज भूषणजी ने एक बार सी. रामचन्द्र के एक प्रायोजीत कार्यक्रममें लिया था, उसमें सी. रामचंदजीने नवरंग फिल्म मुजरा गीत आ दिल से दिल मिला ले के बारेमें बात करते हुए प्रयोजे थे ।} गाया है, इतना क्ल्यू शायद सही रहेगा ।


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घन्यवाद ।

4 comments:

  1. पीयूष जी कृपया ये मत कहें कि पाठकों ने आपके संगीत पहेली को नजरंदाज़ किया है. मैं कल से ही इस पर अपना दिमाग भिडा रहा हूँ पर गाना है कि पकड़ में ही नहीं आता. लगता है कि पेट में है पर जबान पर नहीं आ रहा है. आप ऐसा कहें कि आपकी संगीत पहेली ने सचमुच सभी को उलझा दिया है....

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  2. अच्छा हुआ जो ये मुझसे प्ले नहीं हुआ वरना अजित जी की तरह मुझे भी हाथ खड़े कर देने होते.

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  3. इरफानजी और डो. अजीत साहब,

    यह गाना एक बहोत ही कम बजनेवाला गाना है तो यह तो होना ही था कि हल मुशकिलसे मिले और मैं भी यह पुरा गाना पाठको को सुनाने के लिये मन से तो बतोत बेक़रार हो रहा है, पर इस पहेली पर कुछ और टिपणी का इन्तेजार रहा है । एक बात मैं बता दूँ, कि यह गीत विविध भारती के छाया गीत कार्यक्रममें कभी कभी ही आता था । तो इस को याद रख कर मैंने लम्बे अरसे से नहीं सुन पाने पर रेणूजी द्वारा प्रस्तूत हल्लो फरमाईश कार्यक्रममें इसको सुनने के लिये फरमाईश की थी और इस्के भी कई साल हो गये । तो मैं इस पूरी बात के साथ यह गीत आपको दो तीन दिनसे एक हप्ते के अंदर सुनवाउँगा ही । और मूझे विस्वास है कि आप लोगो को भी जरूर पसंद आयेगा ही ।
    पियुष महेता

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  4. पीयूष जी मैनें भी बहुत कोशिश की लेकिन शब्द पकड़ में नहीं आ रहे, धुन तो जानी पहचानी लग रही है। यह वाकई पहेली है।

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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।