Wednesday, December 26, 2007

फ़िज़ाओं में खोते कुछ गीत

आजकल भूले-बिसरे गीत में पचास के दशक के गीत बहुत बज रहे है। इससे पहले के गीत बहुत ही कम सुनाई दे रहे है।

लगभग वर्ष 2002 तक पचास के दशक के पहले के गीत बहुत सुनवाए जाते थे। लगभग सभी गीत अच्छे होते थे लेकिन कुछ गीत बहुत अच्छे लगते थे।

ऐसा ही एक गीत है सुधा मल्होत्रा की आवाज़ में जो हास्य गीत है जिसका मुखड़ा है -

भाभी आई

इसमें कुछ संवाद भी है जैसे भाभी रेलवे स्टेशन से बाहर निकलीं और उन्होनें रिक्शा बुलाया पर रिक्शा वाले ने उन्हें बैठाने से इंकार किया। शायद भाभी बहुत मोटी है। अंतिम पक्तियां है -

ठुमक ठुमक ठुमक पैदल आई
भाभी आई

एक युगल गीत है जिसमें आवाज़ शायद पहाड़ी सान्याल की है। इसमें भी कुछ संवाद है -

अनुराधा तुम बीच रास्ते में क्यों खड़ी हो

गीत के बोल मुझे याद नहीं आ रहे।

फ़िल्म कवि कालिदास का भी एक गीत जिसमें तीन आवाज़ें है - एक गायक और दो गायिकाएं जिसके बोल भी मुझे याद नहीं आ रहे।

ये गीत सुने बहुत समय बीत गया -

मैं बन की चिड़िया बन बन डोलूं रे

चल चल रे नौजवान

कानन देवी के फ़िल्म जवाब के गीत और दूसरी फ़िल्मों के भी कुछ गीत।

सरस्वती देवी और बुलोसी रानी के स्वरबद्ध किए गीत।

अमीरी बाई कर्नाटकी, केसी डे, पंकज मलिक के गाए गीत।

एक लंबी सूची है ऐसे गीतों की जिन्हें सुने अर्सा हो गया।

8 comments:

  1. गलत के खिलाफ जिरह जारी नहीं रही, चुप्पियां ताकतवर होती गयीं, तो जितना भी कुछ अच्छा दिख रहा है, यूं ही गायब होता चला जाएगा...चाहे वे फिल्मी गाने हों या बेहतर दुनिया देखने के सपने....देखते जाइए...ये सांस्कृतिक घटाटोप है, अभी और घना होगा

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  2. चलिये अन्नपूर्णाजी आपकी फरमाईश जल्दी ही पूरी कर देते हैं।

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  3. सागर जी आपने ये नहीं बताया कि फ़रमाईश पूरी करेगें कैसे।

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  4. अन्नपूर्णा जी, आप के ये पोस्ट पढ़ कर मुझे कितनी खुशी हुयी है कह नहीं सकता. एक वैसा ही नायाब सा गीत अपने ब्लॉग "किस से कहें ?" पर अभी अभी पोस्ट किया है .... सुन कर देखें .....

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  5. अन्नपूर्णा जी भाभी आई वाला गाना तो हम लोग खूब गाते थे और भाभियों को चिढ़ाते थे। ये लाइनें गाकर

    भाभी ने बुलाया टाँगा ,उसने एक रुपइया माँगा
    भाभी का दिल था छोटा ,और टाँगे का पहिया टूटा
    ठुमक-ठुमक ठुमक पैदल आई।
    भाभी आई।


    क्यूंकि उस समय टाँगा यातायात का एक प्रमुख साधन होता था।

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  6. जेपी नारायण जी, कोशिश एक आशा की किरण दिखा ही देती है...
    अन्नपूर्णा जी .... एक गीत तो आपके लिए अभी पोस्ट करती हूँ... .... उषा मंगेशर का गाया हुआ...भाभी आई

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  7. bhai ji old is gold hai.gold kabhi selver nahi ho saktaan hai
    jo baat tujh me hai. wo new getoo me kahann.
    dhll
    canada

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  8. मुझे अच्छा लगा कि जो पसन्द मेरी है वो और भी लोगों की पसन्द है।

    मुझे ख़ुशी है कि मेरा ये चिट्ठा लिखना सफल रहा।

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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।