कल विविध भारती पर जुबली झंकार में विशेष मन चाहे गीत सुने जिसमें श्रोताओं ने ऐसे गीतों की फ़रमाइश की जो उनके जीवन में ख़ास महत्व रखते है।
मेरे लिए तो पूरा मन चाहे गीत कार्यक्रम ख़ास महत्व रखता है और मेरे कार्यालय के लोगों के अनुसार ये कार्यक्रम मेरे जीवन में बहुत ही ख़ास है। कैसे ? बता रही हूं -
कार्यालय मे चाय का समय 2:30 है। मुझे हमेशा से ही कार्यालय में रेडियो सुनने की आदत है। पहले मेरे पास ट्रांज़िस्टर था। मन चाहे गीत सुनने के बाद मैं चाय पीने जाती थी। आजकल सेल फोन पर ही एफ़ एम आ जाने से फोन से ही विविध भारती सुनती हूं मगर आदत के अनुसार गाने सुन कर ही चाय पीने जाती हूं।
चाय के समय गपशप होती है। चुटकियां ली जाती है। मज़ाक के दौर चलते है। जब मुझे निशाना बनाया जाता है तो बात कुछ यूं चलती है -
कहते है पुराने ज़माने में जब किसी का आख़िरी समय आ जाता था और सांसे अटक जाती थी तब बच्चों के बारे मे कुछ सच या झूठ बता दिया जाता था जैसे बेटी की शादी तय हो गई है, लड़के सब साथ मिलकर रहेंगें वग़ैरह वग़ैरह या नाती-पोतों को दिखाया जाता या संदूक, पेटी सिरहाने रख कर बताया जाता कि तुम्हारी ज़िन्दगी भर की कमाई सुरक्षित है। इससे आराम से दम निकलता था।
जब अन्नपूर्णा का अंतिम समय आएगा तब न बच्चों के बारे में झूठ बोलने की ज़रूरत न नाती-पोतों को दिखाने की ज़रूरत और न ही जायदाद की पोटली सिरहाने रखने की ज़रूरत, बस रेडियो सिरहाने रख दो, उसमें से जैसे ही मन चाहे गीत बजने लगेंगे अन्नपूर्णा की आखें धीरे-धीरे बंद हो जाएगी और आत्मा शरीर से निकल कर सीधे स्वर्ग में पहुंच जाएगी।
अन्नपूर्णा जी देरी से टिप्पणी के लिए माफ़ी चाहते है। अब तो नही पर पहले हम लोग भी अपनी दूसरे नंबर वाली दीदी (वैसे हम चार बहने है )को ऐसे ही चिढ़ाते थे क्यूंकि वो भी बहुत रेडियो सुनती थी। यहां तक की पढाई करते समय भी उनका रेडियो चलता रहता था।
ReplyDeleteSorry, No Hindi as box is not available to write Hindi.
ReplyDeleteMamata jee achhaa laga jaan kar ki mere jaise aur log bhi hai.
apni Didi ka naam to bataiye.