बात उन दिनों की है जब दिल्ली मे रेडियो एफ.एम.शुरू हुआ था और जिसने रेडियो को एक अलग ही तरह का बना दिया था. हर उदघोषक श्रोताओं से बात करता सा लगता था। तब के एफ.एम.और आज के एफ.एम मे बहुत कुछ बदल सा गया है. पहले एफ.एम मे लोग बातें तो करते थे पर गीत भी सुनवाते थे पर आजकल तो बातें ही बातें होती है। गीत तो आधे-अधूरे ही सुनवाते है।
ये गीत जब कोई बात बिगड़ जाये ,जब कोई मुश्किल पड़ जाये एफ.एम पर नियमित रुप से बजने वाला गीत था।
वैसे ये गीत बहुत पुराना नही है नब्बे के दशक की फिल्म जुर्म का है ।जुर्म फिल्म तो कोई खास नही चली थी पर ये गीत बहुत चला था।ये गाना हमे भी बहुत पसंद है ।पहले तो हम इसेरेडियो पर सुनते थे पर आज हम इसका विडियो यहां लगा रहे है। उम्मीद है आपको भी पसंद आएगा।
शुरू-शुरू मे एफ.एम.मे दिन भर मे कम से कम तीन से चार बार ये गीत जरुर बजता था पर अब ये गीत कम ही सुनाई देता है। हर उद्घोषक वो चाहे हेलो एफ.एम.का हो या हेलो फरमाइश का हो या आपके ख़त का हो इस गाने को जरुर बजवाता था। और ये गाना भी ऐसा है की हर situation पर बिल्कुल फिट बैठता था। कैसे तो वो ऐसे।
आपके ख़त कार्यक्रम मे अक्सर लोग (लड़के-लड़कियां)पूछते थे की उनके दोस्त नाराज हो गए है या किसी की गर्ल फ्रेंड रूठ गयी है और उससे बात नही कर रही है। और वो उसे कैसे मनाएं। तो उदघोषिका उन्हें गर्ल फ्रेंड को मनाने के उपाय बताती थी और ये गाना भी सुनवाती थी।और साथ ही ये कहती की इस गाने को सुनकर नाराज लोग जरुर मान जायेंगे। बॉस नाराज है तो भी ये गीत चल जाता था । कई बार लोग आपनी परेशानियाँ भी बताते थे तो भी उदघोषक ये गीत बजवाते थे।
अब पता नही उन लोगों की समस्या हल होती थी या नही पर ये गाना लोगों को खूब सुनने को मिलता था।
ममता जी मुझे भी यह ग़ज़ल बहुत पसन्द है। मैं अक्सर मन चाहे गीत और जयमाला में यह ग़ज़ल सुनती रहती हूं।
ReplyDeleteममता जी, वैसे भी एफएम का उत्साह जो आज से 10-12साल पहले होता था, वह कुछ कुछ कम होता जा रहा है। कुछ एफएम चैनलों पर तो इतनी फूह़ड़ता परोसी जा रही है, स्टाइल मारे जाते हैं कि लगता ही नहीं कि हम अपने देश के ही किसी रोडियो को सुन रहे हैं. बस यूं ही ही ..ही ...ही ...ही....ही...ही.....इसलिए अब कुछेक को छोड़ कर किसी को सुनने की इच्छा सी ही नहीं होती।
ReplyDeleteअच्छा है, आप ने एफएम के गोल्डन युग की यादें थोड़ी ताज़ा तो करवा दीं।