सत्तर के दशक मे जब पहली बार हमने रेडियो पर गिटार बजाया था वो दिन आज तक नही भूला है। उस समय युववाणी कार्यक्रम जो की आज भी आता है उसमे शास्त्रीय संगीत बजाने के लिए गिटार क्लास की हम ४-५ लड़कियां अपने मास्साब के साथ तय समय पर यानी ठीक ग्यारह बजे रेडियो स्टेशन पहुंच गयी थी। और हम सभी लड़कियां जितनी उत्साहित थी उतनी ही डरी हुई भी थी। उत्साह इस बात का की हमें बहुत सारे लोग सुनेंगे और डर इस बात का था की कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाये। आख़िर पहला-पहला मौका जो था रेडियो पर बजाने का।
अपने गिटार बजाने से ज्यादा डर इस बात का था की कहीं तबले पर संगत करने वाले ने ठीक से नही संगत की तो मुश्किल हो जायेगी। क्यूंकि वहाँ बाहर के कलाकार नही बल्कि रेडियो स्टेशन के तबला वादक ही सबके साथ संगत करते थे।इस बात का भी डर था की अगर कहीं सम गड़बड़ हुआ तो रेडियो वाले तबला वादक पता नही सम मिलाएँगे भी या नही क्यूंकि क्लास मे तो हम लोगों के तबला मास्टर अगर हम लोग इधर-उधर हो जाते थे तो सम मिला लेते थे।
खैर जब रेकॉर्डिंग के लिए हम रेकॉर्डिंग रूम मे गए और हमने यमन कल्याण बजाना शुरू किया तो उसके बाद हमे याद नही कि कहीं सम छूटा भी था क्यूंकि उन तबला वादक ने बहुत ही अच्छी संगत की थी। और तब समझ मे आया की हम नाहक ही डर रहे थे।
आपके पहले कार्यक्रम का अनुभव पढना अच्छा लगा। मैं भी अपने पहले कार्यक्रम का अनुभव बांटूगी एक चिट्ठे पर।
ReplyDeleteआपने कौन सा गिटार बजाया था? हवाइयन या स्पैनिश? वैसे मै भी आकाशवाणी के किसलय मे कम्पीयर था फिर बाल कलाकार के रूप मे भी कई नाटक किये। बडा ही रोचक अनुभव है आकाशवाणी का। बाल कलाकार के रूप मे बडा सम्मान मिला सभी बडो से। आपने पुरानी यादे ताजा कर दी। कुछ सालो पहले युनुस जी ने मेरे द्वारा खोजे गये प्लास्टिक खाने वाले कीडे के विषय मे एक कार्यक्रम पेश किया रेडियो मे। मै खाना खा रहा था और इससे विषय मे जानकारी नही थी। मेरे माता-पिता सभी रेडियो से चिपक गये और मेरे बारे मे सुनकर गर्वांवित होने लगे। ऐसे है रेडियोवाले और रेडियो जगत।
ReplyDeleteश्री ममताजी,
ReplyDeleteक्या आपकी इस तरह्की रेकोर्डिंग इधर प्रस्तूत कर सकती है ?
पियुष महेता (सुरत)
पियुष जी फिलहाल तो हमारे पास रिकार्डिंग नही है।
ReplyDeleteपंकज जी हम हवाइयन गिटार बजाते थे।
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