Monday, March 31, 2008
विविध भारती...इतना तो रहम कीजिये सहगल मुरीदों पर...
भूले बिसरे गीत कार्यक्रम पुराने संगीत का द्स्तावेज़ है.सारे संगीतप्रेमी जानते ही हैं कि इस कार्यक्रम का समापन महान कुंदनलाल सहगल के गाए गीत से होता है।जैसे ही गीत एनाउंस होता है (जैसा कि आज ३१ मार्च को हुआ) अपने ज़हन में सहगल साहब की आवाज़ और की तस्वीर बनाने लगता है.......लेकिन ये क्या.....कानों पर सुनाई दे रहा है एक इश्तेहार.....स्कूल चलें हम ! ये बिलकुल जायज़ है कि इश्तेहार के बिना रेडियो की गति नहीं...लेकिनक्या ऐसा नहीं हो सकता कि स्पॉट या जिंगल बज जाएँ उसके बाद गीत एनाउंस हो। या यूँ हो कि जब सहगल साहब गा चुकें तब इश्तेहार बजे....जो हो रहा है वह सुनने वाले के कान में एक दर्द देता है। सहगल मुरीद रेडियोनामा के मंच से इस बात पर ज़रूर ग़ौर करें....विविध भारती के इस रचनात्मक प्रयास से सहगल साहब हर सुबह घर - घर पहुँचते हैं...विविध-भारती की ये भावपूर्ण ख़िराजे-अक़ीदत सामईन पर ज़्यादती सी लगती है.
मुझे लगता है कि ये सारी कारगुजारियाँ स्थानीय केन्द्रों की होती हैं. विविध भारती तो ऐसी गलती नहीं कर सकती है.
ReplyDeleteज्यादा तो विविध भारती के हमारे उदघोषक ही बता सकते हैं.
इसमें उदघोषक से ज़्यादा कार्यसंस्कृति का हाथ होता है अजीत भाई...आज का ये प्रकरण तब हुआ जब भाई श्री कमल शर्मा ऑन एयर थे.लेकिन वे भी क्या करें जब इश्तेहारों की बुकिंग ही इस तरह से की जाती है कि फ़लाँ जगह उसे प्लेस किया जाएगा.
ReplyDeleteअगर ऐसी बात है तो ये सचमुच दु:खद है.मैंने ये बात इसलिये कही थी कि हमारे यहां पटना में कार्यक्रमों के बीच में ही उसे overelap कर विज्ञापन सुनवा दिये जाते हैं जो कार्यक्रमों को नीरस कर देते हैं.
ReplyDeleteयहाँ हैदराबाद में सहगल साहब के गाने के समय विज्ञापन नही बजा और न कभी बजता है। मुझे लगता है अजीत जी सही है यह आपके यहाँ के स्थानीय केन्द्र की ही कारगुज़ारी है।
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