बसन्त का सुहावना मौसम आ गया है। साल भर में यह एक ही ॠतु है जो मनभावन होती है। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से दिन में धूप तेज़ हो जाती है पर अक्सर हल्की धूप और ठंडी-ठंडी हवा के झोकों के साथ झड़ते पत्तों की सरसराहट खुशनुमा होती है।
पेड़ों के पत्ते झड़ रहे है तो नए पत्ते भी आ रहे है। आम के वृक्षों में बौर आ गया है। पौधों में फूल खिले है और इन पर मंडरा रही है रंग-बिरंगी तितलियाँ जिन्हें देखकर मुझे याद आ रहा है शारदा का गाया एक गीत।
शारदा ने कुछ फ़िल्मों में संगीत भी दिया है और कुछ गीत भी गाए है पर इस गीत से ही शारदा को अपार लोकप्रियता मिली। शायद यह उनका गाया पहला गीत है।
यह गीत है फ़िल्म सूरज का। साठ के दशक की इस फ़िल्म में यह गीत मुमताज़ गाती है और यह गीत मुमताज़ और वैजन्ती माला पर फ़िल्माया गया है। नायिका वैजन्ती माला है। दोनों बग्घी में जा रहे है। घोड़े की लगाम मुमताज़ के हाथ में है और फ़िज़ाओं में गूँज रही है शारदा की आवाज़।
शारदा की गूँजती आवाज़ में यह गीत इतना अच्छा लगता है कि मैं तो किसी और आवाज़ में इस गीत की कल्पना भी नहीं कर सकती। पहले रेडियो पर बहुत सुना करते थे यह गीत। अब बहुत सालों से नहीं सुना है जिससे गीत याद रहने के बावजूद भी बोल ठीक से याद नहीं आ रहे। संगीत शायद शंकर जयकिशन का है पर बोल किसने लिखे मुझे याद नहीं -
तितली उड़ी उड़ जो चली
फूल ने कहा आ जा मेरे पास
तितली कहे मैं चली आकाश
डाली जैसा तन मेरा फूलों जैसे अंग
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तितली ने कहा मेरा सारा आकाश
पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…
आपकी फरमाईश जरूर पूरी होनी चाहिए ये गीत मेरी बेटी को भी बहुत पसंद है
ReplyDeleteशारदा की वह खनकती आवाज़ आज भी कानों में मिश्री घोल देती है.
ReplyDeleteसही है....बहुत सुंदर..;
ReplyDeleteannapurna ji,thanks for this nice infornmation
ReplyDeletefm ke shor me geet km ad jyada hote hain vanhi sukhad vividh bharti ki yaad chali aayi...blog bhut sundar laga
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