श्री मोदी साहब और निम्मीजी,
नमस्कार । ता. 23-02-09 के पत्रावली कार्यक्रममें मेरे सुचन के सिर्फ़ शुरूआती अंश को पढ़ा गया । पर मैने 15 मिनिट के स्थान पर अगर न हो पाये तो सिर्फ 5 मिनिट के रोज़ाना या 30 मिनिट के हप्तावार फिल्मी धूनों के कार्यक्रम के लिये वैकल्पीक सुचन किये ही थे, जो आप के बार बार गीनी चुनी धूनों के रिपीटेशन ख़तरे को कम करेगा । वैसे भी आप के पास वो पूरानी धूनों का हकीकतमें इतना ज़बरजस्त संग्रह है कि अगर 15 मिनिट के दैनिक कार्यक्रममें भी अगर आप एक ओर से शुरू करे तो शायद ही कोई धून एक सालमें भी पुन: बजा पाये । और हम जैसे श्रोता लोग वैसी पूराने गानो की पूरानी धूनों को सुनने तरस रहे है । और वही बात उस पत्रावलि को सुन कर राजकोट के भूपेन्द्र सोनी जी ने मूझे फोन करके बताई थी । उदाहरण के तोर पर श्री एनोक डेनियेल्स की बजाई फिल्म मिलन के गीत हम तूम युग युग से ये गीत मिलन के वाले गीत की धून को प्रस्तूत हुए 35 साल हुए । हाँ शम्मी रूबीन की एलेक्ट्रीक ओरगन (ट्रीब्यूट टू मूकेश) पर और चरणजीत सिंह की ट्रांसीकोर्ड पर (वन मेन शॉ) समय समय पर प्रस्तूत होती है । इस तरह के असंख्य उदाहरण है ।
अन्य सुचन फ़िर कभी ।
पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।
PIYUSH MEHTA-NANPURA-SURAT
आजकल कार्यक्रमों के अंतराल में फ़िल्मों की अच्छी धुनें बज रही जिन्हें सुनकर पूरी धुन सुनने का मन करता है। मैं पीयूष जी से सहमत हूँ।
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