साहित्य में थोड़ी-बहुत भी रूचि जिन्हें है वे ज़रूर जानते है शरतचन्द्र की परिणीता को। शरतचन्द्र के इस मूल बंगला उपन्यास परिणीता का हिन्दी सहित कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। सभी ने इसे पसन्द किया ख़ासकर परिणीता यानि ललिता को।
इस उपन्यास पर विविध भारती ने हवामहल के लिए श्रृंखला भी तैयार की। रेडियो में भी अच्छी लगी ललिता और शेखर की प्रेमकहानी।
अब बात करें फ़िल्मों की, सबसे पहले परिणीता नाम से ही फ़िल्म बनी जिसमें अशोक कुमार और मीनाकुमारी थे। पिछले दिनों इसी फ़िल्म को नए अंदाज़ में बनाया गया सैफ़ अली और विद्या बालन के साथ। विशेष भूमिका में संजय दत्त भी थे। नामों में कभी बदलाव नहीं किया गया। फ़िल्म बनी तो परिणीता नाम से रेडियो नाटक बना तो भी परिणीता नाम से पर सत्तर के दशक में यही फ़िल्म संकोच नाम से बनी।
केवल परिणीता नाम बदल कर संकोच रखा गया बाकी सब वैसा ही रहा। ललिता की भूमिका में सुलक्षणा पंडित और शेखर की भूमिका में जितेन्द्र। इस फ़िल्म के गीत सुलक्षणा पंडित ने ही गाए। एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। पहले रेडियो से बहुत सुनवाया जाता था फिर बजना बन्द हो गया। इस गीत के कुछ-कुछ याद आ रहे बोल है -
बाँधी री काहे प्रीत पिया के संग अनजाने में
बाली उमर में मैं न समझी क्या है प्रीत की रीत
पास हुए तो मैं न समझी
दूर हुए तो जाना
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क्या है प्रीत की रीत
आश्चर्य हुआ कि सुलक्षणा पंडित और विजेता पंडित द्वारा प्रस्तुत विशेष जयमाला में भी सुलक्षणा जी ने अपने इस प्यारे से गीत को शामिल नहीं किया।
पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…
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