आज यानि 24 मार्चके दिन भारतिय फिल्म जगतके सुप्रसिद्ध वादक-कलाकार, जो हारमोनियम, पियानो, पियानो-एकोर्डियन, युनिवोक्स, इलेक्ट्रीक ओर्गन, मेलोडिका, सिन्थेसाईझर और मेन्डोलिन बजाते थे,वैसे स्व. वी. बालसाराजी को उनकी पूण्यतिथी के अवसर पर नीचे उनकी पियानो पर बजाई हुई फिल्म मेरा नाम जोकर के गीत जीना यहाँ, मरना यहाँ की धून प्रस्तूत है, जिसका वाद्यवृंद संचालन, निर्देषन और संयोजन , प्रसिद्ध वायोलिन वादक श्री दिलीप रॉय ने किया है । साथमें वी. बालसाराजी के संगीत वाली फिल्म विद्यापती और मदमस्त (स्व.महेन्द्र कपूर की बतोर पार्श्व गायक प्रथम फिल्म)की भी मैं पाठको को याद दिलाना चाहता हूँ । नीचे जो धून मैंनें रखी है वह जिस म्यूझी केसेट से मूझे मिली है, उसके लिये मैं मेरे दोस्त मूकेश गीतकोष, गुजराती फिल्मी गीत कोष, सयगल गीत कोष (संयूग्त रूपसे हरमंदिरजी के साथ ) तथा गुजराती किताब इन्हें ना भूलाना के संकलनकार सुरत के श्री हरीश रघूवंशी जी का शुक्रगुज़ार हूँ, जो अपनी कलकत्ता यात्रा के दौरान वहाँ के बाझार से खास मूझे याद करके इसे ख़रीद लाये थे, जो पूरी पियानो पर ही है बालसाराजी की ही बजाई हुई । तो सुनिये धून:
पियुष महेता
नानपूरा, सुरत-395001.
बहुमुखी प्रतिभा के धनी बलसाराजी की स्मृति को प्रणाम । क्या वे वलसाड़ के थे?
ReplyDeleteनमस्ते श्री पियुषजी, आपने रेडियोनामामें श्री बलसाराकी धून भेजी, बहुत पहेले ईन्स्ट्रुमेन्टल सुनता था,याद करनेके लीये आभार.
ReplyDeleteकांतिलाल परमार
हीचीन
प्रीय पीयुशजी, बलसारा जी को याद करवाने के लीये धन्यवाद. आपने हरीशभाई रघुवंशी से मीली धुने रखकर उनके चाहको को उनकी याद दीला दी. आभार एवं शुभकामनाएं.
ReplyDeleteनरेश कापडीआ, सुरत
श्री अफ़्लातूनजी,
ReplyDeleteवैसे पारसी लोगोमें तथा और भी लोगोमें कहीं कहीं अपने गाव या शहर के नामों को अपने सरनेईम बनानेका चाल है और वलसाडमें पारसी लोगों की आबादी तो है ही अभी भी पर वलसाडसे शायद उनका अपना सम्बंध शायद सीधे तौर से नहीं जारी रहा होगा पर इतना तो तय होगा ही की उनके पिता या दादाश्री बलसाड से ही रोज़गारी के सिलसीलेमें मुम्बई जा कर बस गये होगे ।
आपका श्री कान्तीभाई का तथा मेरे सुरतवासी मित्र श्री नरेश कापडिया का भी इस ब्लोग पर पहला कोमेन्ट लिख़नेके लिये धन्यवाद ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.