आज दिनांक 17.03.2010 को ऑल इण्डिया रेडियो की ऊर्दू सर्विस पर श्रोताओ को अच्छा बेवकूफ़ बनाया गया। फोन इन प्रोग्राम - आपकी पसन्द में श्रोताओं की पसन्द के गीत सुनाने की जगह कई गीतों के तो मात्र मुखड़े ही सुना दिये, कुछेक के एक पैरा सुनाए। पूरे गीत तो एक भी नहीं!
भला यह क्या बात हुई कि आप ज्यादा श्रोताओं के फोन सुनवाने के नाम पर ऐसा मजाक करें, भई थोड़ी कम कॉल्स भी रिसीव की जा सकती थी। गाना सुनते समय जैसे ही मूड बनने लगता है और नईम अख्तर साहब बीच गाने को रोक कर बीच में बोलने लगते कि अब अगली फरमाईश सुनवाते हैं। भई कम से कम एक पसन्द तो ढ़ंग से सुनवा देते।
श्री सागरभाई,
ReplyDeleteइस ब्लोग केजनम दाता जैसे लगता था, कि अपने क्रिएसन को छोड़ गये है या सिर्फ दूर से देख़ते रहे थे । आज आपका हम से भी ज्यादा आपके अपने घरमें स्वागत है ।
रही बात आपके आज के विषय की तो किसी भी सार्वजनिक प्रसार माध्यम में जितनी जवाब देही उनके प्रस्तूत कर्ता उद्दघोषकोकी है, तो कुछ हद तक श्रोता लोगो की भी है । मैनें आपका सुना हुआ कार्यक्रम उस दिनका तो नहीं सुना है , पर मेरी एक राय अन्य विविध भारती के और स्थानिय फोन इन फरमाईशी कार्यक्रम सुनते हुए आज कुछ सालोंसे ऐसीराय बनी हुई है, कि ज्यादा तर श्रोता अपने नाम और अपनी आवाझ रेडियो पर खुद: सुनने और सभी को सुनाने के ही इच्छूक रहे है, और रोज बार बार सुंनाई पड़ते घीसे-पीटे गानो की फरमाईश स्थानिय एवं राष्ट्रीय प्रसारणोमें बार बार करते है, और कभी कभी प्रसारको का काम आसान होने के कारण ऐसे श्रोताको प्रोत्साहीत भी किया जाता है और रेर गानोकी फरमाईश करनेवाले हतोस्ताह हो जाय ऐसी भी परिस्थीती भी ख़ड़ी की जाती भी है । मेरी रेर फरमाईशो को कुछ उद्दघोषकोने बिरदा कर सुनाया भी है, जब कि कुछ लोगोने (खास कर स्थानिय और कभी राष्ट्रीय)बदलवाया भी है तब निराशा भी हुई है । अब जब इतनेकम समयमें ज़्यादा फोन करनेवालों को खुश करना है, तो स्थिती आपके बयान के मूताबीक ही होगी यह कोई अचरज की बात नहीं है, सिर्फ़ श्रोता लोग (फोन कर्ता नहीं) को यह गलत लगे वो अपने रूपमें सही है ।
पियुष महेता ।
सुरत।