विविध भारती का आरम्भ तीन अक्तूबर 1957 को हुआ था।
सभी जानते हैं कि पंडित नरेंद्र शर्मा विविध-भारती की स्थापना के मुख्य-आधार बने।
विविध-भारती पर जो पहला गीत बजा, वो कोई फिल्मी गाना नहीं था। उसे इस अवसर के लिए पंडित जी ने स्वयं लिखा था। बाद में एच.एम.वी. ने इसे अपने अलबम वर्षा-ऋतु का हिस्सा भी बनाया। एक बहुत संदर गीत है ये। राग है मियां की मल्हार।
मन्नादा इन दिनों बैंगलोर में रहते हैं। मई में मैंने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी तो वो बड़े प्रसन्न हुए। तभी इस गाने का जिक्र भी चला। इसलिए उन्हीं दिनों दोबारा फोन करके मैंने अपने मोबाइल फोन पर मन्ना दा को रिकॉर्ड किया। मक़सद था ये जानना कि इस गाने की रिकॉर्डिंग से जुड़ी कौन सी यादें हैं उनकी।
ये रही इस रिकॉर्डिंग की ऑडियो फाइल। ये बातचीत केवल पांच मिनिट की है।
इस बातचीत को सुनकर इसका शब्दांकन किया है हमारे मित्र सागर नाहर ने।
यूनुस खान: दादा ये जो गाना है नाच रे मयूरा, इसके बारे में आपको क्या बातें याद आती है?
मन्ना डे: अनिल दा, अनिल बिस्वास साहब, उन दिनों में अनिल बिस्वास का नाम बहुत ज्यादा था और मेरे ख्याल से वो एक एसे म्युजिक डिरेक्टर थे जिनके लिए हर म्युजिक डिरेक्टर के दिल में एक बहुत बड़ी जगह होती थी। तो अनिल दा ना जाने क्यूं मुझसे बहुत- बहुत खुश थे, मेरे गाने की जो स्टाइल है उससे और अनिल दा बोला (बोले ) कि जब अच्छी चीज बनेगी तब मैं तेरे को मैं बोलूंगा। और definitely उन दिनों में अगर अनिल बिस्वास कहें कि " आओ मेरे गाने के लिए आओ; it is to be an event...definitely सो, अनिलदा जब वो गाना बनाया और रिहर्सल करने के लिए मैं उनके घर पर गया, नरेन्द्र जी वहां बैठे थे। नरेन्द्र शर्मा जी।
एक छोटा कद का आदमी बहुत ही.. यानि बहुत ही क्या बताएं जैसे कि educated atmosphere was there and उन्होंने कहा...नरेन्द्रजी बोले.. मन्नाजी पहली मर्तबा आप गा रहे हैं मेरे गाने...मैं कोशिश करूंगा आपको खुश करने के लिए... मैने कहा आप क्या खुश करेंगे, आप तो बुजुर्ग लोग हैं, और आप अनिल दा के साथ काम कर रहे हैं। ये मेरे लिए बहुत है कि अनिल दा (ने) मुझे चुना। इस गाने के लिए। तब गाना.......नरेन्द्र शर्मा जी vividh bharati में I think he was very powerful person in vividh bharati........so that was the occasion. तो गाना रिकॉर्ड किया, विविध-भारती के लिए। and that songs became talking subject in the industry also.
I remember (गीतकार) शैलेंद्र (ने) एक मर्तबा पूछसे पूछा कि, इन दिनों अच्छा क्या गाया मन्ना दा आपने? एक गाना प्राईवेट सोंग वो विविध भारती के लिए अनिल दा ने बनाया वो मुझसे गवाया उन्होने और फिर मैने सुनाया नाच रे मयूरा, खोलकर सहस्त्र नयन, देख सघन मगन गगन देख सरस स्वप्न जो आज हुआ पूरा । तो हमारे शैलेन्द्र जी बोले " मन्ना दा क्या अनुप्रास है, 'देख सघन गगन मगन'। ये नरेन्द्र शर्मा के अलावा कौन लिख सकता है!!!! तो उन्होंने शेलेन्द्र जी मुझसे लिखवा लिया वो गाना कि आप लिख दीजिए मुझे वो गाना.. हम अपने पास रख लेंगे।
मुझे ये हुआ कि भई अनिल दा chose me and narendra sharma ji he was also happy with my singing and later on ... मेरी लड़की; बड़ी लड़की रमा जिनका नाम है जो अभी अमेरिका में है, वो कॉलेज में पढ़ती थी और उनके साथ एक लड़का पढ़ता था जिनका नाम था परितोष, परितोषजी थे नरेद्र शर्मा जी के बेटा, रमा बोला कि डैडी आपने गाया उनका गाना परितोष बोल रहा था। मैने कहा नहीं भई.. तो नरेन्द्रजी का लड़का है, उनका बेटा । तो मैने कहा क्यूं नहीं बुलाती तुम उनको। इस सिलसिले में परितोष हमारे घर आना शुरु हुआ। और परितोष एक छोटी सी पिक्चर बनाने लगा। पिक्चर में नरेन्दर जी लिख रहे थे.. द सब्जेक्ट वास नरेन्दर जी, एंड गाने भी वो लिख रहे थे। मैने तीन चार भी गाने गाए थे उसमें। नरेन्द्र जी ने लिखे थे। और नरेन्द्रजी के बारे में मैं यह कहूंगा इतना याने.. ब्यूटीफुल पर्सनालिटी थी ; इतना छॊटा सा आदमी थे लेकिन जहाँ नरेन्दर जी कभी किसी जगह भी एन्टर लिया तो बिल्कुल जैसे बल्ब जल जाता था, जो मुझे बहुत अच्छा लगता था। और उनकी जो ये है ना बात करने का तरीका इतना अच्छा इतना soft, इतना polished होता था कि उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।
यूनुस खान.. दादा बहुत बहुत शुक्रिया आपने ये बातें कीं।
ये रहा वो अनमोल गीत।
नाच रे मयूरा, नाच रे मयूरा
खोलकर सहस्र नयन, देख सघन गगन मगन
देख सरस स्वपन जो के आज हुआ पूरा
नाच रे मयूरा, नाच रे मयूरा
गूँजे दिशी\-दिशी मृदंग प्रति पल नव राग रंग
रिमझिम के सरगम पर, रिमझिम के सरगम पर
छिड़े तान पूरा
नाच रे मयूरा, नाच रे मयूरा
सम पर सम सा पर सा
aalaap
सम पर सम सा पर सा
रे प ग म रे प म प नि ध ध नि प प नि ध ध नि सा
म म रे सा नि सा रे स नि नि प म
ग म रे सा ग म रे सा ग म रे सा
सम पर सम सा पर सा
उमड़ घुमड़ घन बरसा, घन बरसा
सागर का सजल गान क्यों रहे अधूरा
नाच रे मयूरा, नाच रे मयूरा
GGShaikh said:
ReplyDeleteथैंक्स यूनुस जी,
"नाच रे मयूर" सच में अनमोल गीत है.
उनकी आवाज़ हमारी चिरपरिचित है,
तभी तो मन्ना डे हमारे प्रिय और पसंदीदा हैं,
उन्हें यहाँ सुन चित प्रसन्न हुआ...
विविध भारती का आरंभ 03.10.1953.
ReplyDeleteजिसकी स्थापना के आधार श्री नरेन्द्र शर्मा थे.
और पहला गाना मन्ना दा ने गाया..."नाच रे मयूरा".
सारी updates नई-नई हमारे लिए, जो अच्छी लगी...
आपका फोन interview मन्ना दा से...
जिक्र अनिल बिस्वास का, शैलेन्द्र जी का, नरेन्द्र शर्मा जी का...
जैसे कला-प्रेमियों की, गुणीजनों की एक प्राइवेट बैठक सी हो गई...
वाह ! यूनुस जी...
सर,क्षमा 1957 मैं होगा,1953 सही नहीं प्रतीत होता।
Deleteयूनुस भाई,
ReplyDeleteआपकी ये कोशिश काफ़ी सराहनीय रही. विविध भारती के शुरुआती गीत को हम सबों के समक्ष रखा वो भी उस महान गायक की उन अनुभूतियों के साथ, दिल खुश हो गया.
पोस्ट के लिये धन्यवाद.
Marvellous
ReplyDeleteएक दुर्लभ बातचीत है यह.कैसे कमाल के लोग थे यूनुस भाई ये लोग.पण्डित नरेन्द्र शर्मा,अनिल दा और मन्ना दा...मेरा मानना है कि शब्द प्रधान गायकी जिसे मूलत: सुगम संगीत कहा जाता है;ये गीत उसका मंगलाचरण है. क्योंकि सुगम में पहले क़व्वालियाँ,ग़ज़लें और भजन तो गाये जा रहे थे लेकिन कविता और गीत को गाने का सिलसिला आकाशवाणी द्वारा ही शुरू हुआ. फ़िल्म संगीत के बाद यह सबसे प्रभावी और महत्वपूर्ण काम है हिन्दी गीतिधारा के क्षेत्र में जिसका पुरोधा पं.नरेन्द्र शर्मा को कहना उचित होगा.इस सिलसिले को बाद में गोपालसिंह नेपाली,शैलेन्द्र,वीरेन्द्र मिश्र,पं.भवानीप्रसाद मिश्र,उध्दवकुमार,मधुकर राजस्थानी,योगेश और अंजान ने भी थामा...द्रुभाग्य यह है कि अब यह विधा तक़रीबन लुप्त हो गई है. इस काम ने जिसमें हिन्दी गीतों का काम मुकम्मिल हुआ था देश को कई नवोदित स्वर दिये जिनकी फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी हो जाएगी..
ReplyDeleteफ़िलहाल तो मन्ना दा का अनूप स्वर सुनवाने और इस गीत की रचना प्रक्तिया की जानकारी देने के लिये बहुत शुक्रिया. ...अनिल दा भी इस गीत को लेकर बहुत भावुक हो जाते थे और उन्होंने मुझ से एक लम्बी बातचीत में इस बात को रेखांकित किया था कि संगीतकारों में सी.रामचंद्र और सलिल चौधरी और गायकों में तलत साहब,मुकेशजी और मन्ना डे उन्हें सबसे ज़्यादा प्रिय हैं....
यूनुस भाई
ReplyDeleteनमस्ते जी
एक सार्थक प्रयास और आप की मेहनत और लगन से अब हम सब का चहेता
' रेडियोनामा ' एक ऐतिहासिक और स्वर - शब्द का अतुलनीय संग्रह,
रेडियो से जुडी यादों और बातों का सफल और सही दस्तावेज़ , बनता जा रहा है
जिसके लिए आप को बधाई और शाबाशी भी ..
आदरणीय मन्नादा, जुग जुग जीयें ..
पूज्य पापा जी और मेरे भाई परितोष का जिक्र भी बड़े प्यार से किया जिसे सुनकर खुशी हुई
स स्नेह
- लावण्या
अद्भुत … आभार इस पोस्ट के लिये
ReplyDeleteबोल, संगीत और गायकी का अनूठा संगम हैं यह गीत.
ReplyDeleteमन्ना दा का गाया वर्षा ऋतु का एक और गीत हैं -
सावन की रिमझिम में थिरक थिरक नाच उठे
मयूर पंखी रे सपने
इस गीत को शायद योगेश जी ने लिखा हैं और संगीत शायद सलिल चौधरी साहब का हैं. ये दोनों गीत मैंने विविध भारती से सुने... लेकिन बहुत कम.....
annpurna
Manna day sahab Ek ese kalaar jo suron ko gate hi nhi the Balki Unhe jeete the. Agar main unhe Classical ka Sartaj kahu ko Galat nhi hoga.
ReplyDeleteAdit Jha
यूनुस जी, पूरी वार्ता सुनकर बहुत अच्छा लगा। एक महान व्यक्तित्व द्वारा एक अन्य महान व्यक्तित्व के बारे में ऐसी प्रेममयी चर्चा दिल को छू गयी।
ReplyDeleteThanks yunus jee this is really an experience which i feel but cant express in words. Thsnks for your continous efforts.
ReplyDeleteyunus ji aapka bahot bahot dhanyawad ki aapne itna sundar gaana aur uski yaad hamen batayi, ye gaana maine kabhi nahi suna tha par aaj sunke achcha laga
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