Tuesday, August 2, 2011

आज़ादी की लड़ाई और निजी रेडियो स्‍टेशन

जुलाई-अगस्‍त के महीने रेडियो की दुनिया के लिहाज से बेहद महत्‍वपूर्ण रहा है। 23 जुलाई 1927 को भारत में रेडियो प्रसारण की शुरूआत हुई थी। दरअसल भारत में 1927 में एक साथ कई प्राईवेट रेडियो क्‍लब शुरू हो चुके थे। अंग्रेज़ सरकार ने भारत में रेडियो प्रसारण की संस्‍था को ‘इंडियन स्‍टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेस’ का नाम दिया था। जिसे पहले श्रम मंत्रालय के अधीन रखा गया था और बाद में इसके लिए अलग से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय बना दिया गया था।

आज़ादी के दीवानों के लिए रेडियो की असली हलचल दूसरे विश्‍व-युद्ध के बाद से शुरू होती है। यहां एक बात स्‍पष्‍ट कर देना ज़रूरी है कि रेडियो प्रसारण की शुरूआत ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की भलाई के उद्देश्‍य से कतई नहीं की थी। उन्‍हें शुरूआत से ही रेडियो प्रोपोगंडा फैलाने और अपनी महानता को महिमा-मंडित करने का बेहद सशक्‍त माध्‍यम लगा था। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने भारत के अलग अलग शहरों में रेडियो स्‍टेशन शुरू करने का फैसला किया था। ताकि ये ख़बरें फैलाई जा सकें कि ब्रिटिश भारतीयों का कितना भला चाहते हैं। आज़ादी के दीवानों की कोशिशों की ख़बरें रेडियो से लगातार नदारद रहती थीं। क्‍योंकि अंग्रेज़ों को लगता था कि इससे भारतीय जनता का गुस्‍सा भड़केगा और उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।

बहरहाल दूसरे विश्‍व युद्ध की शुरूआत के बाद ब्रिटिश-सरकार ने एक तानाशाही भरा फैसला किया और सभीउषा मेहता रेडियो-लाइसेन्‍स रद्द कर दिये गए। इसका मतलब भारत में एक भी रेडियो स्‍टेशन नहीं चलाया जा सकता था। ब्रिटिशों का आदेश ये था कि सारे लाइसेन्‍स रद्द कर दिए गए हैं और ट्रान्‍समीटरों को सरकार के पास जमा कर दिया जाए। मुंबई के एक पारसी व्‍यक्ति नारीमन प्रिंटर उस समय भायखला के बॉम्‍बे टेक्‍निकल इंस्‍टीट्यूट के प्रिंसिपल थे। वे रेडियो इंजीनियरिंग के जानकार थे। उन्‍होंने जैसे ही ट्रान्‍समीटर ज़ब्‍त होने की ख़बर सुनी तो अपने ट्रांस्‍मीटर को बचाने का जुगाड़ लगाया। उन्‍होंने उसे पूरा खोल लिया और पुरज़े-पुरज़े अलग करके अलग-अलग जगहों पर छिपा दिये।

द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान ही भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा। महात्‍मा गांधी ने आज़ादी की आखिरी लड़ाई के रूप में भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल छेड़ा। सारा देश गांधीजी के पीछे आज़ादी के लिए आखिरी बड़ी कोशिश करने चल पड़ा। 9 अगस्‍त 1942 को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। प्रेस पर पाबंदी तो लगनी ही थी, सो वो भी लग गयी। कॉन्‍ग्रेस के नेताओं के अनुरोध पर नारीमन प्रिंटर ने ट्रान्‍समीटर के पुर्जे जमा किये और रेडियो-प्रसारण के लिए उन्‍हें तैयार कर दिया। रिकॉर्ड्स बताते हैं कि तब मुंबई के मशहूर ‘शिकागो रेडियो’ के मालिक नानक मोटवानी से माइक्रोफोन जुटाया गया। और सुप्रसिद्ध चौपाटी इलाक़े की ‘सी-व्‍यू‘ नामक इमारत से 27 अगस्‍त 1942 से भारतीय राष्‍ट्रीय कॉन्‍ग्रेस का रेडियो प्रसारण शुरू हो गया। कॉन्‍ग्रेस की ओर से पहला प्रसारण प्रसिद्ध गांधीवादी नेता उषा मेहता ने किया। अपने पहले प्रसारण में उन्‍होंने कहा—41.78 मीटर पर एक अनजान जगह से ये नेशनल कॉन्‍ग्रेस का रेडियो है।

यहां आपको बता दिया जाए कि इसी रेडियो स्‍टेशन से महात्‍मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन का संदेश प्रसारित किया गया। मेरठ में तीन सौ सैनिकों के मारे जाने की ख़बर भी इस रेडियो स्‍टेशन ने प्रसारित की। ये सभी ख़बरें वो थीं, जिन्‍हें ब्रिटिश सरकार ने अपने प्रसारणों में सेन्‍सर कर दिया था। नारीमन जी ने इस रेडियो-ट्रान्‍समीटर को इतना पोर्टेबल बनाया था कि रोज़ाना इसके प्रसारण की जगह बदल दी जाती थी, ताकि अंग्रेज़ अधिकारी उसे पकड़ ना सकें। इस खुफिया रेडियो को डा. राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन सहित कई प्रमुख नेताओं ने सहयोग दिया। रेडियो पर महात्मा गांधी सहित देश के प्रमुख नेताओं के रिकार्ड किए गए संदेश बजाए जाते थे। तीन माह तक प्रसारण के बाद अंतत: अंग्रेज सरकार ने उषा मेहता और उनके सहयोगियों को पकड़ा लिया और उन्हें जेल की सजा दी गई। सीक्रेट कांग्रेस रेडियो चलाने के कारण उन्हें चार साल की जेल हुई। जेल में उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बाद में उषा मेहता को सन 1946 में रिहा किया गया।

कॉन्‍ग्रेस के इस गुप्‍त रेडियो के बारे में एक दिलचस्‍प बात ये है कि इसका पहला ट्रांसमीटर 10 किलोवाट का था जिसे शीघ्र ही नरीमन प्रिंटर ने और पुरज़े जोडकर सौ किलोवाट का कर दिया। अंग्रेज़ पुलिस की नज़र से बचने के लिए ट्रांसमीटर को तीन महीने के भीतर ही सात अलग अलग स्थानों पर ले जाया गया। और प्रसारणों को अंजाम दिया गया। 12 नवंबर 1942 को नारीमन प्रिंटर और उषा मेहता दोनों को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और नेशनल कॉन्‍ग्रेस रेडियो समाप्‍त हो गया। वैसे आपको बता दें कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ‘आज़ाद हिंद फौज’ भी अपना रेडियो स्‍टेशन चलाती थी। सन 1942 में ‘आज़ाद हिंद फौज’ ने अपना रेडियो-स्‍टेशन शुरू कर दिया था। इसे पहले जर्मनी से चलाया गया। उसके बाद सिंगापुर और रंगून से भी ‘आज़ाद हिंद रेडियो’ के ज़रिए भारतीय जनता के लिए समाचार प्रसारित किये जाते रहे।

‘आज़ाद हिंद रेडियो’ का कई मायनों में बड़ा महत्‍व रहा है। नवंबर 1941 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी के रेडियो स्‍टेशन से भारतीयों के नाम अपने संदेश का प्रसारण किया और उसमें कहा—‘तुम मुझे ख़ून दो मैं तुम्‍हें आज़ादी दूंगा’। ये नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अमर-कथन बन गया। आपको बता दें कि महान क्रांतिकारी कप्‍तान राम सिंह ठाकुर आज़ाद हिंद फौज के संस्‍थापक सदस्‍य थे। आज़ाद हिंद फौज के ज्‍यादातर गानों की धुन उन्‍हीं ने तैयार की। वो आज़ाद हिंद फौज के रेडियो के सिंगापुर और रंगून स्‍टेशनों में संगीत निर्देशक भी रहे। कहते हैं कि भारत के राष्‍ट्रगान की धुन उन्‍हीं ने तैयार की थी। आजा़द हिंद फौज के कौमी-तरोन ‘कदम कदम बढ़ाए जा’ और संपूर्ण राष्‍ट्र गान ‘शुभ सुख चैन की बरखा-बरसे भारत भाग्य है जागा’.की धुन उन्‍हीं की है। जी हां इसी गीत के अंशों को राष्‍ट्र गान का रूप दिया गया है।

15 अगस्त 1947 के दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने और ऐतिहासिक लाल किले पर राष्ट्रीय झंडा फहराने लगे तो उनके आग्रह पर राम सिंह ठाकुर ने आईएनए आर्केस्ट्रा के कलाकारों के साथ आज़ाद हिंद फौज के कौमी तराने की धुन सुनाई। उसकी ये पंक्तियां आज भी जोश पैदा कर देती हैं—‘शेर-ए-हिन्द आगे बढ़, मरने से फिर कभी ना डर, उड़ाके दुश्मनों का सर, जोशे-वतन बढ़ाये जा, कदम कदम बढ़ाये जा’।

capt_ramsingh_thakur02871सन 1945 में खींची गयी तस्‍वीर। जिसमें कप्‍तान रामसिंह ठाकुर राष्‍ट्रगान बजा रहे हैं। और महात्‍मा गांधी सुन रहे हैं।


चूंकि पाक्षिक बुधवारीय श्रृंखला 'अग्रज पीढ़ी' की पोस्‍ट का ज़रूरी हिस्‍सा होता है एक ऑडियो। इसलिए परंपरा को निभाते हुए प्रसंगवश हम आपको सुनवा रहे हैं वो क़ौमी-तराना जो आज़ाद हिंद फौज के रेडियो से अकसर बजा करता था। इसे सुनकर बहुत रोमांच होता है। आपको बता दें कि स्‍वर कलकत्‍ता यूथ कॉयर का है।

क़दम-क़दम बढ़ाए जा
क़दम-क़दम बढ़ाए जा
खुशी के गीत गाए जा
यह जिंदगी है कौम की
तू कौम पे लुटाए जा।
तू शेरे हिन्द आगे बढ़
मरने से फिर भी तू न डर
उड़ा के दुश्मनों का सर
जोशे-वतन बढ़ाए जा।
क़दम-क़दम...
तेरी हिम्मत बढ़ती रहे
खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे अड़े
तो खाक में मिलाए जा।
क़दम-क़दम...
चलो देहली पुकार के
क़ौमी निशाँ सँभाल के
लाल किले पे गाड़ के
लहराए जा, लहराए जा।
क़दम-क़दम...


गीत एवं संगीत रामसिंह ठाकुर

16 comments:

  1. रेडियोनामा के इतिहास में यह पोस्ट एक खास जगह रखती है यूनुस भाई. आजादी की लड़ाई के दिनों में रेडियो का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा... इतिहास की यह जानकारी आज आपके द्वारा हमारे समक्ष प्रस्तुत हुई, इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं.
    और क्या कहूँ इस जोशीले गीत के बारे में.. जब भी बजता है एक नए जोश का संचार हो जाता है मन में.

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  2. जहां तक मेरी जानकारी हैं हैदराबाद में लगभग 1935 से रेडियो रहा जिसका नाम रेडियो दक्कन था. उस समय हैदराबाद एक रियासत थी.

    अन्नपूर्णा

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  3. it's a nice information for new generation.

    Ahmed Ali Kharadi Nagaur Rajasthan.

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  4. लेख जानकारी पूर्ण और रोचक लगा....इसमें प्राइवेट क्लब और कम्पनी के नाम नहीं दिखाई पड़ रहे...नारीमन प्रिंटर साहब को हमारी तरफ से भावभीनी श्रधांजलि...किसी स्वंतंत्रता संग्राम सेनानी से कमतर नहीं हैं आपका योगदान.....दुर्लभ चित्र और देशभक्ति से ओतप्रोत गीत प्रस्तुत करने के लिए आपका आभार युनुस जी....वैसे भी राष्ट्रिय उत्सव की बेला पर इनकी गरिमा और भी बढ़ जाती हैं....जय हिंद..!

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  5. very informative article...thank you so much yunus jee

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  6. इस हफ़्ते में ही क्रांति दिवस भी आ रहा है । पूज्य ऊषा मेहता आजीवन गांधी-लोहिया से प्रेरित समाजवादी रहीं तथा जमीनी संगठनों और आन्दोलनों को मदद व आशीर्वाद देती रहीं ।

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  7. संगीत, रेडियो और ईतिहास में रूचि रखने वाले हम जैसे लोगों के लिए यह जानकारी देने के लिए बहुत आभार यूनुस जी..।

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  8. शानदार जानकारी यूनुस भाई,
    रेडीयो सुनते हैं पर इसके इतिहास के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं था। रेडियो के प्रणेताओं को नमन।
    अगली कड़ियों का इंतजार है।

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  9. दुर्लभ जानकारी , उत्तम प्रस्तुति के लिए , बधाई
    संगीतकार रामसिंह ठाकुर ,
    स्वतंत्रता सेनानी पद्मविभूषण प्राप्त सुश्री उषा मेहता जी
    व श्री नारीमन प्रिंटर साहब को याद करते हुए ,
    हम १५ अगस्त के दिन भारत माता को सदैव
    आंतरिक और बाह्य दुश्मनों से सुरक्षित रखने का प्रण करें .
    जय हिंद !
    - लावण्या

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  10. बहुत ही रोचक और पुरानी यादों को ताजा करने वाली जानकरी हैं इतिहास की इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए कोटि कोटि धन्यबाद !!

    वेबसाइट :www.airlrgv.tk

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  11. अद्भुत जानकारी ...केवल धन्यवाद कहना पर्याप्त न होगा । इसी स्तर की जानकारियाँ मिलती रहें तो रेडियोनामा राष्ट्रीय स्तर का दस्तावेज़ बन सकता है ।

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  12. During the Jaffna conflict in Sri Lanka their was a pirate station operated by the Tamils, this was again in the 40 meter band

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  13. यूनुस जी!! काफी अच्छी जानकारी मिली और यह गीत पुराने समय में जब गूँजता था तब हम एक कोने में किताब लिए बैठे रहते थे और पापा डण्डा और रेडियो लेकर. :)

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  14. उपर वाला चित्र हाल ही में देखा था। जानकारी तो अच्छी है। आता रहूंगा अब।

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