tag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post3746219622643266446..comments2024-01-30T13:46:01.722+05:30Comments on रेडियोनामा: भृंग तुपकरी जी, नागपुरवाले :Radionamahttp://www.blogger.com/profile/01219194757101118288noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-86108296772999574062007-10-29T03:20:00.000+05:302007-10-29T03:20:00.000+05:30सही पहचाना आपने सँजय भाई, "महाभारत " के लिये उनको ...सही पहचाना आपने सँजय भाई, "महाभारत " के लिये उनको पापाजी ने ही आग्रह कर के रखवाया था<BR/>और पापा जी के अचानक चले जाने के बाद भी भृँग तुपकरी जी काम करते रहे ..और "विश्वामित्र" <BR/>के लिये भी काम किया था ...<BR/>हा 'रामायन" से जुडे लेखक भी हर इतवार पापा जी के पास आते थे<BR/>और पापा उन्हेँ भी बहुत कुछ बतलाते थे .<BR/>.और कहा करते थे कि, " रामायण पूरी दुनिया देखेगी..मेरा नाम न आये तो क्या फर्क पडेगा ! :)<BR/>स स्नेह,<BR/> -- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-39005200508119426732007-10-26T00:31:00.000+05:302007-10-26T00:31:00.000+05:30कैसी सात्विक बलन के लोग थे गुज़रे ज़माने में.धारावाह...कैसी सात्विक बलन के लोग थे गुज़रे ज़माने में.धारावाहिक महाभारत या शायद रामायण में भृंग तुपकरी जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.परदे के पीछे रहकर काम करने वाले ऐसे लोगों से ही दुनिया की चमक दमक बनी हुई है.sanjay patelhttps://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-25046593406734566332007-10-25T21:06:00.000+05:302007-10-25T21:06:00.000+05:30अन्नपूर्णा जी, नमस्ते -- कल तो ये पोस्ट लिखते, लिख...अन्नपूर्णा जी, नमस्ते -- <BR/>कल तो ये पोस्ट लिखते, लिखते परेशान हो गयी थी - इसिलिये, ज्यादा त्रुटियाँ रह गयीँ हैँ <BR/>माफी चाहती हूँ -<BR/>आकाशवाणी के प्रस्तुत कर्ताओँ को पहल करनी चाहीये कि फिल्मी गीतोँ के अलावा, अन्य साहित्यिक<BR/>लोक - गीतोँ के भरपूर खजाने से हीरे - मोती चुन कर, सुननेवालोँ के लिये, खोज लाये --<BR/>खुशी हुई सुनकर कि मेरे बचपन के खेल, भारत के अलग शहरोँ मेँ दूसरे बच्चे भी खेला करते थे :)<BR/>आपने को " चंपक भूमिया " वाला वाकया सुनाया वो सुना नहीँ था , अब कोशिश करुँगी कि इसे देख पाऊँ -<BR/>आभार !<BR/>समीर भाई,<BR/>धन्यवाद -- आपके प्रोत्साहन के लिये -<BR/>डा. अजित जी, आपका भी आभार ! <BR/>स - स्नेह,<BR/>-- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-11203071036114552032007-10-25T19:21:00.000+05:302007-10-25T19:21:00.000+05:30पुरानी बातें सुनने और जानने में जो मजा है वो किसी ...पुरानी बातें सुनने और जानने में जो मजा है वो किसी चीज में और कहाँ?<BR/>धन्यवाद.डॉ. अजीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/10047691305665129243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-11976108124862399202007-10-25T16:46:00.000+05:302007-10-25T16:46:00.000+05:30यह खेल तो हमने भी बहुत खेला है. मगर हमारे यहाँ भृं...यह खेल तो हमने भी बहुत खेला है. मगर हमारे यहाँ भृंग तुपकरी का नाम नहीं होता था इसमें.<BR/><BR/>अच्छी जानकारी.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-78971851882684492712007-10-25T13:54:00.000+05:302007-10-25T13:54:00.000+05:30लेख पढ कर एक बात समझ नहीं पाई कि जो कार्यक्रम कलाक...लेख पढ कर एक बात समझ नहीं पाई कि जो कार्यक्रम कलाकारों पर ही आश्रित मान कर शुरू किया गया और वो भी पं नरेन्द्र शर्मा जी जैसे व्यक्ति से शुभारम्भ कर, आज वहां (विविध भारती पर) फ़िल्मों का ही दबदबा क्यों नज़र आता है।<BR/><BR/>लेख में बच्चों के जिस खेल की चर्चा की गई वो खेल बचपन में हमने भी बहुत खेला और इस खेल को हम टेलीफोन कहते थे।<BR/><BR/>खेल के नाम का वास्तविक होना जानकर मुझे हास्य फ़िल्म आज की ताज़ा खबर याद आ गई जहां किरण कुमार अपनी पत्नी राधा सलूजा से एक झूठा नाम बता देता है - चंपक भूमिया और यह नाम सच निकलता है और वह (यह भूमिका पेंटल ने की थी) आ धमकता है। इस फ़िल्म का रेडियो प्रोग्राम अमीन सयानी से रेडियो सिलोन पर सुनने में बहुत मज़ा आता था।annapurnahttps://www.blogger.com/profile/05503119475056620777noreply@blogger.com