tag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post7638144960365506411..comments2024-01-30T13:46:01.722+05:30Comments on रेडियोनामा: साफ़ आवाज़ की महंगी तकनीकRadionamahttp://www.blogger.com/profile/01219194757101118288noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-1845988858919220052008-02-25T11:54:00.000+05:302008-02-25T11:54:00.000+05:30राजेन्द्र जी सिलोन पूरी तरह से व्यावसायिक ही रहा ह...राजेन्द्र जी सिलोन पूरी तरह से व्यावसायिक ही रहा है। इसीलिए इस तरह की बातें हुई। मगर इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि फ़िल्मों, फ़िल्मी गानों और कई उत्पादों को घर-घर पहुँचाया सिलोन ने ही।<BR/><BR/>जो सिलोन ने किया वह विविध भारती कभी नहीं कर सकती क्योंकि आकाशवाणी की व्यवस्था ही ऐसी है कि यहां हर प्रसारण की एक मर्यादा है जिसके रहते विविध भारती शुद्ध व्यावसायिक कभी नहीं हो सकती। इसीलिए सिलोन की कमी खलती है।<BR/><BR/>अगर आज टेलीविजन नहीं होता तो सिलोन की ये स्थिति कभी न होती।annapurnahttps://www.blogger.com/profile/05503119475056620777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-80940664240343204112008-02-24T11:22:00.000+05:302008-02-24T11:22:00.000+05:30रेडियो सीलोन की बात चली है तो पुराने श्रोताओं को य...रेडियो सीलोन की बात चली है तो पुराने श्रोताओं को याद होगा कि कैसे लोकप्रिय हिस्दुस्तानी फिल्मों के संगीत के प्रसारण का इस रेडियो स्टेशन का एकाधिकार रहता था और उसी को तोड़ने के लिए विविध भारती का जन्म हुआ. सन् १९६५ के अंत कि बात होगी जब रेडियो सीलोन ने भारतीय देश भक्ति के गाने बजाने बंद कर दिए. जिन गानों पर ऐसा बैन लगा उनमें तत्कालीन "जौहर महमूद इन गोवा", "तू ही मेरी जिंदगी" और "शहीद" फिल्मों के गाने शामिल थे. क्यों कि रेडियो सीलोन का सारा कारोबार भारतीय फिल्मों के विज्ञापन और और दूसरे फिल्मी गानों पर आधारित प्रायोजित कार्यक्रमों पर ही निर्भर था ऐसे में फ़िल्म इंडस्ट्री कि तीखी प्रतिक्रिया हुई. तब जी पी सिप्पी इम्पा के अध्यक्ष होते थे. उन्होंने रेडियो सीलोन के बहिष्कार कि घोषणा कर दी. महीनों यह झंझट चलता रहा फिर समझौता हुआ. इम्पा के मेम्बरों का यह भी आरोप था कि रेडियो सीलोन गानों को बजाने का पूरा पैसा निर्माताओं को नही देता.Rajendrahttps://www.blogger.com/profile/01527849650038905232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-90241119075961646592008-02-23T09:26:00.000+05:302008-02-23T09:26:00.000+05:30संजय जी बहुत सटीक बात आपने कही है।जहां तक फ़िल्मी ग...संजय जी बहुत सटीक बात आपने कही है।<BR/><BR/>जहां तक फ़िल्मी गानों की लोकप्रियता की बात है, यह कुछ अलग तरीक़े से सिलोन पर भी हुआ करता था।<BR/><BR/>फ़िल्मों की रिलीज़ के पहले ही सिलोन से रेडियो प्रोग्राम द्वारा फ़िल्म का प्रचार किया जाता था जिसका फायदा भी हुआ फ़िल्मों को और उससे सिलोन को भी आय हुई।<BR/><BR/>सिर्फ़ फ़िल्में ही नहीं कई उत्पाद भी सिलोन के विज्ञापनों की वजह से ही घर-घर में जगह बना पाए और सिलोन को भी इससे आमदनी हुई।<BR/><BR/>मैं तो सिर्फ़ इतना चाहती हूं कि इसी तरह विज्ञापनों द्वारा कुछ मदद देकर सिलोन को ठीक किया जा सकता है। <BR/><BR/>हम ये कभी नहीं चाहेंगें कि रेडियो स्टेशन उद्योगपति ख़्ररीद लें। चैनलों के प्रबन्धकों को चाहिए कि कुछ सीमा तक ही मदद लें जिससे स्टेशन मर्यादा में चल सकें।<BR/><BR/>मुझे लगता है ऐसा हो सकता है। आप जैसे श्रोता जो विज्ञापनों की दुनिया से जुड़े है इस तरह की शुरूवात कर सकते है। कुछ विज्ञापनों द्वारा सिलोन को सहायता देने की ही तो बात है। लाखों का व्यापार कर स्टेशन को खरीदना नहीं है।annapurnahttps://www.blogger.com/profile/05503119475056620777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-77585072219196844012008-02-22T22:57:00.000+05:302008-02-22T22:57:00.000+05:30मै विगत पच्चीस बरसों से एडवरटाइज़िंग कारोबार से जुड़...मै विगत पच्चीस बरसों से एडवरटाइज़िंग कारोबार से जुड़ा हुआ हूँ. रेडियो सिलोन की आर्थिक मजबूरी के बारे में थोड़ा कुछ बता सकता हूँ. अस्सी के दशक के बाद एडवरटाइज़िंग बजटिंग में बड़ी जगह टीवी ने घेर ली . यही वजह है कि विविध भारती का प्राइम टाइम भी आज मुश्किल में है. नये एफ़एम स्टेशन इस मामले में ज़रा सतर्क और चतुर खिलाड़ी निकले हैं. आप यक़ीन करें या न करे लेकिन ये सचाई है कि तारे ज़मीं पर या जोधा अकबर का संगीत बाक़ायदा एफ़ एम स्टेशन को बिका है. श्रोता इस ग़लतफ़हमी में रहते हैं कि फ़लाँ स्टेशन पर साँवरिया का गीत दिन में बीस बार बज रहा है यानी वह बेहद सुरीला है ...जी नहीं निर्माता ने कुछ चंद लाख रूपये उस स्टेशन को चुकाए होते है सो उतनी बार बजना काँट्रेक्ट की अहम शर्त है. सिलोन रेडियो की ताक़त थी पुराना संगीत और बिनाका गीतमाला जैसे दीगर कई स्पाँसर्ड प्रोग्राम्स जिन्हें टीवी लील गया...सिलोन रेडियो के प्रबंधकों ने भी रेडियो मिर्ची या बिग एफ़ जिसे संस्थानों से मार्केटिंग के गुर नहीं सीखे सो बुरे दौर से गुज़रना ही था. भगवान से प्रार्थना कीजिये ये हाल विविध भारती का न हो और कोई मुकेश अंबानी उसे ख़रीद कर रेडियो मिर्ची जैसा न बना दे.<BR/>अगर ये हुआ तो चौंकियेगा मत क्योंकि यही परिस्थितियों का तक़ाज़ा है.sanjay patelhttps://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3782548319482564737.post-30396679852637331222008-02-22T11:07:00.000+05:302008-02-22T11:07:00.000+05:30जहाँ तक हमे याद है रेडियो सिलोन सुनने मे हमेशा ही...जहाँ तक हमे याद है रेडियो सिलोन सुनने मे हमेशा ही परेशानी होती थी।<BR/>पर आज के समय मे जैसा की आपने कहा है विज्ञापन से शायद इस समस्या से छुटकारा मिल जाए।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.com