आप सबको ईद मुबारक !
ईद के माहौल में याद आ रही है क़व्वालियाँ, ग़ज़लें। आज याद करेगें लाल पत्थर फ़िल्म की रफ़ी साहब की गाई ग़ज़ल। यह फ़िल्म 1972 के आस-पास रिलीज़ हुई थी। फ़िल्म में एक कलाकार यह ग़ज़ल गाते है और राजकुमार को तबले पर संगत करते हुए बताया गया है। इस फ़िल्म के अन्य कलाकार है हेमामालिनी, राखी और विनोद मेहरा।
रेडियो से पहले यह ग़ज़ल बहुत सुनते थे ख़ासकर उर्दू सर्विस से श्रोताओं की फ़रमाइश पर बहुत सुनवाई जाती थी। अब बहुत दिनों से नही सुनवाई गई। ग़ज़ल के बोल है -
उनके ख़्याल आए तो आते चले गए
दीवाना आदमी को बनाते चले गए
उनके ख़्याल
जो साँस आ रहा है किसी का पयाम है
तन्हाइयों को और बढाते चले गए
उनके ख़्याल
होशोसवास पे मेरे बिजली सी गिर पड़ी
मस्ती भरी नज़र से पिलाते चले गए
उनके ख़्याल
इस दिल से आ रही है किसी यार की सदा
बेताबी ------------------
पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…
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