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Thursday, October 11, 2007
मेरा विविध भारती पर इन्टर्व्यू
मेरा विविध भारती पर स्वर्ण स्मृति कार्यक्रम में दिनांक . २८-०४-२००७ के दिन प्रस्तूत इन्टर्व्यू (भेट कर्ता : श्रीमती कांचन प्रकाश संगीत)
Wednesday, October 10, 2007
इन्स्पेक्टर इगल
अन्नपूर्णाजी,
नमस्कार । इन्स्पेक्टर इगल कार्यक्रमकी तराह के बारेंमें आपने जिस तरह बयान किया वह सही है, पर सिर्फ़ एक पर महत्व का सुधार मेरी और से कि, इन्स्पेक्टर इगल बनते थे स्व. श्री विनोद शर्मा, जिन्हों ने विविध भारती की वि.प्र. सेवा के किये दूसरा प्रस्तूत सप्ताहिक प्रायोजित कार्यक्रम कोहिनूर गीत गुंजार (प्रायोजक : कोहिनूर मिल्स-मुम्बई, निर्माता अजीत शेठ और उनकी पत्नी श्रीमती निरूपमा शेठ)प्रस्तूत किया था ।
इस प्रायोजित कार्यक्रम अन्तर्गत कोहिनूर मिल्स के उत्पादनों के जो जिन्गल्स कूकडे की आवाझ के साथ आते थे, उसमें साथ जूडी हुई आवाझ ब्रिज भूषणजी की थी । इस के साथ यह भी बता दूँ कि प्रथम प्रस्तूत प्रायोजित ( उन दिनों प्रयोजित की जगह वि. प्र. सेवा के उद्दधोषकों प्रेषित शब्द बोलते थे ।)कार्यक्रम ’रोस’ द्वारा प्रायोजित और श्री अमीन सायानी साहब द्वारा प्रस्तूत ’सेरिडोन के साथी’ था, जिसमें कोई भी पिल्मी हस्ती अपने तीन व्यावसायिक साथीयोँ के बारेमें बताते थे । रेडियो श्री लंका पर सेरिडोन का विज्ञापन १९६७ के पहेले श्री अमीन सायानी साहब ही करते थे । जो उनके भी पहेले श्री नक्वी रझवी नाम के उस जमाने के बहोत ही मशहूर आवाझी जादूगर प्रस्तूत करते थे, जो बादमें इस व्यायसाय को छोड अमेरिका चले गये थे ऐसा जब में ४.५ साल पहेले स्व. श्री बाल गोविन्द श्रीवास्तवजी और श्रीमती कमल बारोटजी को एक साथ मुम्बईमें मिला था तब मेरे पूछने पर उन लोगोने बताया था । अन्य विज्ञापन कर्ता और प्रायोजित कार्यक्रमों के प्रस्तूत कर्ता रेडियो श्रीलंका से धीर्ते धीरे नाता तोड कर विविघ भारतीसे जूडे, तब स्व. श्री विनोद शर्माजीने विविध भारती के अपने इस कोहिनूर गीत गुन्जार के बाद एक कार्यक्रम कोई अगरबत्ती के निर्माता के लिये रेडियो श्री लंकासे ( हर रविवार सुबह ९.१५ पर) प्रस्तूत किया था और बादमें उनके साथ साथ श्री अमीन सायानी साहब भी जूडे थे।} आपकी पिछली एक पोस्ट पर मेरी एक से ज्यादा टिपणी पढी होगी ।
नमस्कार । इन्स्पेक्टर इगल कार्यक्रमकी तराह के बारेंमें आपने जिस तरह बयान किया वह सही है, पर सिर्फ़ एक पर महत्व का सुधार मेरी और से कि, इन्स्पेक्टर इगल बनते थे स्व. श्री विनोद शर्मा, जिन्हों ने विविध भारती की वि.प्र. सेवा के किये दूसरा प्रस्तूत सप्ताहिक प्रायोजित कार्यक्रम कोहिनूर गीत गुंजार (प्रायोजक : कोहिनूर मिल्स-मुम्बई, निर्माता अजीत शेठ और उनकी पत्नी श्रीमती निरूपमा शेठ)प्रस्तूत किया था ।
इस प्रायोजित कार्यक्रम अन्तर्गत कोहिनूर मिल्स के उत्पादनों के जो जिन्गल्स कूकडे की आवाझ के साथ आते थे, उसमें साथ जूडी हुई आवाझ ब्रिज भूषणजी की थी । इस के साथ यह भी बता दूँ कि प्रथम प्रस्तूत प्रायोजित ( उन दिनों प्रयोजित की जगह वि. प्र. सेवा के उद्दधोषकों प्रेषित शब्द बोलते थे ।)कार्यक्रम ’रोस’ द्वारा प्रायोजित और श्री अमीन सायानी साहब द्वारा प्रस्तूत ’सेरिडोन के साथी’ था, जिसमें कोई भी पिल्मी हस्ती अपने तीन व्यावसायिक साथीयोँ के बारेमें बताते थे । रेडियो श्री लंका पर सेरिडोन का विज्ञापन १९६७ के पहेले श्री अमीन सायानी साहब ही करते थे । जो उनके भी पहेले श्री नक्वी रझवी नाम के उस जमाने के बहोत ही मशहूर आवाझी जादूगर प्रस्तूत करते थे, जो बादमें इस व्यायसाय को छोड अमेरिका चले गये थे ऐसा जब में ४.५ साल पहेले स्व. श्री बाल गोविन्द श्रीवास्तवजी और श्रीमती कमल बारोटजी को एक साथ मुम्बईमें मिला था तब मेरे पूछने पर उन लोगोने बताया था । अन्य विज्ञापन कर्ता और प्रायोजित कार्यक्रमों के प्रस्तूत कर्ता रेडियो श्रीलंका से धीर्ते धीरे नाता तोड कर विविघ भारतीसे जूडे, तब स्व. श्री विनोद शर्माजीने विविध भारती के अपने इस कोहिनूर गीत गुन्जार के बाद एक कार्यक्रम कोई अगरबत्ती के निर्माता के लिये रेडियो श्री लंकासे ( हर रविवार सुबह ९.१५ पर) प्रस्तूत किया था और बादमें उनके साथ साथ श्री अमीन सायानी साहब भी जूडे थे।} आपकी पिछली एक पोस्ट पर मेरी एक से ज्यादा टिपणी पढी होगी ।
Friday, September 28, 2007
मेरे महबूब न जा....आधी रात न जा..
मेरे महबूब न जा...आधी रात न जा...होने वाली है सहर...थोड़ी देर और ठहर....आज भी जब इस गीत को सुनता हूं तो बरसों पुरानी यादों में खो जाता हूं। विविध भारती का एक कार्यक्रम बेला के फूल...रात 11 से 11.30 बजे आने वाला यह कार्यक्रम शायद ही कोई दिन था, जब मैं नहीं सुनता था। जिसका अब साथ नहीं है। राजस्थान जहां मैं पला और बढ़ा हर मौसम में रात में घर की छत पर रेडियो लेकर जाता और छायागीत एवं बेला के फूल जरुर सुनता। बेला के फूल कार्यक्रम का आखिरी गीत बरसों पहले लगभग यही होता था....मेरे महबूब न जा...आधी रात न जा...। वाकई उस समय मन करता की यह महूबब कहीं ना जाए...इतना बढि़या कार्यक्रम और अब यह तो जाने की बात करने लगे। इस गाने की धुन के साथ ही समझ में आ जाता था कि विविध भारती की आखिर सभा समाप्त होने को है और अपने सोने की सभा शुरू होने वाली है।
गाना समाप्त और आवाज आती विविध भारती की यह अंतिम सभा अब समाप्त होती है। सुबह फिर आप से मुलाकात होगी। स्कूल, कॉलेज और यूनिविर्सिटी के दिनों में बेला के फूल कार्यक्रम के बाद सोने का वक्त हो जाता लेकिन अब महानगरों में मची भागमभाग कोई वक्त तय नहीं करती। बेला के फूल कार्यक्रम में सुने गए कई गाने आज भी मुझे याद आते हैं। लेकिन मैंने जिक्र केवल एक गाने का किया है यह बताने के लिए कि यह महबूब अब ना जाने कहां चला गया।
रेडियो के बेहद पुराने श्रोता पीयूष मेहता के साथ इंटरनेट पर चैट करते समय मैंने उन्हें भी कार्यक्रम के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि बेला के फूल विविध भारती की केंद्रीय सेवा में अब नहीं है , पर यह सिर्फ़ मुंबई, पुणे और नागपुर के स्थानीय विज्ञापन सेवा वाले विविध भारती केंद्रों से 11 से 11.30 रात्रि में आ रहा है और ये भी तीनों केंद्र अलग अलग है पर अब सूरत में मुंबई सीबीएस हर समय पकड़ में नहीं आता इसलिए अगर हाल ही में कुछ परिवर्तन उन केंद्रों पर हुआ होगा तो पता नहीं है। लेकिन आज रात इस कार्यक्रम के बारे में रेडियो सुनकर जरुर बताऊंगा। आप भी जोडि़ए जानकारी बेला के फूल कार्यक्रम पर.........।
गाना समाप्त और आवाज आती विविध भारती की यह अंतिम सभा अब समाप्त होती है। सुबह फिर आप से मुलाकात होगी। स्कूल, कॉलेज और यूनिविर्सिटी के दिनों में बेला के फूल कार्यक्रम के बाद सोने का वक्त हो जाता लेकिन अब महानगरों में मची भागमभाग कोई वक्त तय नहीं करती। बेला के फूल कार्यक्रम में सुने गए कई गाने आज भी मुझे याद आते हैं। लेकिन मैंने जिक्र केवल एक गाने का किया है यह बताने के लिए कि यह महबूब अब ना जाने कहां चला गया।
रेडियो के बेहद पुराने श्रोता पीयूष मेहता के साथ इंटरनेट पर चैट करते समय मैंने उन्हें भी कार्यक्रम के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि बेला के फूल विविध भारती की केंद्रीय सेवा में अब नहीं है , पर यह सिर्फ़ मुंबई, पुणे और नागपुर के स्थानीय विज्ञापन सेवा वाले विविध भारती केंद्रों से 11 से 11.30 रात्रि में आ रहा है और ये भी तीनों केंद्र अलग अलग है पर अब सूरत में मुंबई सीबीएस हर समय पकड़ में नहीं आता इसलिए अगर हाल ही में कुछ परिवर्तन उन केंद्रों पर हुआ होगा तो पता नहीं है। लेकिन आज रात इस कार्यक्रम के बारे में रेडियो सुनकर जरुर बताऊंगा। आप भी जोडि़ए जानकारी बेला के फूल कार्यक्रम पर.........।
Wednesday, September 26, 2007
रेडियो मेरी सांस में बसा है -२ : पियूष मेहता
इस रेडियो श्रवण यात्रा के दोरान मूझे सुरत से जो दो व्यक्तियो से स्थानिक कक्षासे बढावा मिला उसमें एक सुरत के ही जानेमाने फ़िल्म-इतिहास संशोधक, जिन्होंने मुकेश गीतकोष और गुजराती फ़िल्मी गीत कोष का संकलन किया तथा जब दिल ही टूट गया नामक के. एल. सायगल गीत कोष के श्री हरमंदिर सिंह ’हमराझ’ (कानपूर निवासी) के साथ सह सम्पादक रहे और सुरतमें और मुम्बईमें भी कई लोगोसे मेरे हुए परिचय के निमीत्त बने उनको कैसे भूल सकता हूँ ?
एक नाम हाल आकाशवाणी अहमदाबाद पर केन्द्र निर्देषक के रूपमें कार्यरत वैसे श्री भगीरथ पंड्या साहब को अगर याद नहीं किया जाय तो वह गुस्ताखी ही होगी । वे पहेले आकाशवाणी सुरत (जब आकाशवाणी सुरत सिर्फ स्थानिक स्वरूप का खंड समय वाला केन्द्र था )पर कार्यक्रम अधिकारी के तौर से आये थे और उसी रूपमें केन्द्र इन चार्ज बने और थोडे समय के बाद यहाँ ही सहायक केन्द्र निर्देषक बने और फ़िर थोडे साल अन्य केन्द्रो पर हो कर फिर सुरत केन्द्र निर्देषक बन कर आये । उनका आम श्रोता प्रति एक सकारत्मक अभिगम ऐसा था कि श्रोताओमें से भी वे आकाशवाणी कार्यक्रमोमें बारी बारी से कार्यक्रमके लिये उपयूक्त लोगो को कार्यक्रममें मेहमान के तौर पर आमंत्रित करते थे ।
इस तरह रेडियो पर बोलने की हिचकिचाहट मेरी दूर हुई ।और नामोमें रेडियो श्री लंका के आज मुम्बईमें सक्रिय श्री मनोहर महाजन साहब, जिनके साथ मेरा फोटो आल्बम पर है, स्व.श्री दलवीर सिन्ह परमार,उनकी बेटी श्रीमती ज्योति परमार श्रीमती पद्दमिनी परेरा, विविध भारती के श्री ब्रिज भूषण साहनी, उनकी श्रीमती आशा साहनी श्री लल्लूलाल मीना, श्री मौजीरामजी (असली नाम याद नहीं है ), भारती व्यास, अर्विन्दा दवे, मेरी यादमें है । पियानो वादक श्री केरशी मिस्त्री, मेन्डलिन वादक श्री महेन्द्र भावसार भी मेरे चहिते रहे और उनसे पहचान भी रही । यह सब असल लेखमें इस लिये नहीं है क्यों कि, मुद्रीत माध्यम का एक जरूरी अंग सेन्टीमीटर में नापना अलग विषयो को न्याय देने के लिये रहा है ।
यह लेख के असल प्रेरणा स्त्रोत रहे विविध भारती के तूर्त शायरी करने वाले श्रोता श्री यश कूमार वर्माजी जिन्होंने मूझ पर दबाव डल डल कर अपनी बिन व्यवसायिक पत्रिका यशबाबू रेडियो क्लब जो वे सिर्फ ओर सिर्फ श्रोताओ को जोडने के लिये ही शुरू किया है, के लिये लिखवाया था । उस समय क्या पता था यह इस तरह नेट पर स्थान पायेगा ? नसीब की गत को कौन जान सकता है ? यह तो लेख से भी लम्बा हो गया ।
धन्यवाद ।
पियुष महेता
सुरत-३९५००१.
फोन : (०२६१)२४६२७८९मोबाईल : ०९८९८०७६६०६.
एक नाम हाल आकाशवाणी अहमदाबाद पर केन्द्र निर्देषक के रूपमें कार्यरत वैसे श्री भगीरथ पंड्या साहब को अगर याद नहीं किया जाय तो वह गुस्ताखी ही होगी । वे पहेले आकाशवाणी सुरत (जब आकाशवाणी सुरत सिर्फ स्थानिक स्वरूप का खंड समय वाला केन्द्र था )पर कार्यक्रम अधिकारी के तौर से आये थे और उसी रूपमें केन्द्र इन चार्ज बने और थोडे समय के बाद यहाँ ही सहायक केन्द्र निर्देषक बने और फ़िर थोडे साल अन्य केन्द्रो पर हो कर फिर सुरत केन्द्र निर्देषक बन कर आये । उनका आम श्रोता प्रति एक सकारत्मक अभिगम ऐसा था कि श्रोताओमें से भी वे आकाशवाणी कार्यक्रमोमें बारी बारी से कार्यक्रमके लिये उपयूक्त लोगो को कार्यक्रममें मेहमान के तौर पर आमंत्रित करते थे ।
इस तरह रेडियो पर बोलने की हिचकिचाहट मेरी दूर हुई ।और नामोमें रेडियो श्री लंका के आज मुम्बईमें सक्रिय श्री मनोहर महाजन साहब, जिनके साथ मेरा फोटो आल्बम पर है, स्व.श्री दलवीर सिन्ह परमार,उनकी बेटी श्रीमती ज्योति परमार श्रीमती पद्दमिनी परेरा, विविध भारती के श्री ब्रिज भूषण साहनी, उनकी श्रीमती आशा साहनी श्री लल्लूलाल मीना, श्री मौजीरामजी (असली नाम याद नहीं है ), भारती व्यास, अर्विन्दा दवे, मेरी यादमें है । पियानो वादक श्री केरशी मिस्त्री, मेन्डलिन वादक श्री महेन्द्र भावसार भी मेरे चहिते रहे और उनसे पहचान भी रही । यह सब असल लेखमें इस लिये नहीं है क्यों कि, मुद्रीत माध्यम का एक जरूरी अंग सेन्टीमीटर में नापना अलग विषयो को न्याय देने के लिये रहा है ।
यह लेख के असल प्रेरणा स्त्रोत रहे विविध भारती के तूर्त शायरी करने वाले श्रोता श्री यश कूमार वर्माजी जिन्होंने मूझ पर दबाव डल डल कर अपनी बिन व्यवसायिक पत्रिका यशबाबू रेडियो क्लब जो वे सिर्फ ओर सिर्फ श्रोताओ को जोडने के लिये ही शुरू किया है, के लिये लिखवाया था । उस समय क्या पता था यह इस तरह नेट पर स्थान पायेगा ? नसीब की गत को कौन जान सकता है ? यह तो लेख से भी लम्बा हो गया ।
धन्यवाद ।
पियुष महेता
सुरत-३९५००१.
फोन : (०२६१)२४६२७८९मोबाईल : ०९८९८०७६६०६.
Friday, September 21, 2007
रेडियो मेरी सांस में बसा है : पियूष मेहता
पंडित स्व. नरेंद्र शर्मा के निर्देशन में आकाशवाणी की विविध भारती सेवा शुरू हुई थी, जो आज के हिसाब से बहुत कम समयावधि के लिए ही प्रसारण कर रही थी। ज्यादा रेडियो मनोरंजन रेडियो सिलोन ही परोसता था। जहां से गोपाल शर्मा (जिनसे मैंने अब तक दो बार मुलाकात की), उन्हीं जैसी समान आवाज वाले कुमार कांत, चेतन खेरा कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे और रेडियो सिलोन के व्यापारी प्रतिनिधि के रूप में भारत के मुंबई और चेन्नई में रेडियो एडवरटाइजिंग सर्विसेस के बाल गोविंद श्रीवास्तव (जिनसे मैंने तीन साल पहले अमीन सायानी के सौजन्य से मुंबई में पहली और आखिरी मुलाकात की थी) आवाज की दुनिया के सरताज अमीन सायानी (जिनसे पांच बार मिला हूं), ब्रज भूषण (संगीतकार व गायक भी) जिन्हें अमीन सायानी ने इस क्षेत्र में प्रवेश करवाया, अमीन सायानी के बड़े भाई और गुरु स्व. हमीद सायानी (अंग्रेजी कार्यक्रमों और विज्ञापन के लिए), नकवी रिजवी श्रीमती कमल बारोट (जो हिंदी व गुजराती फिल्मों की पार्श्व गायिका भी रही), शिव कुमार, मुरली मनोहर स्वरुप संगीतकार वगैरह कार्यरत थे।
रेडियो पाकिस्तान भी हर रोज आधे घंटे का हिंदी फिल्मों गीतों का कार्यक्रम पेश करता था, जो 1965 में बंद हो गया। साथ में आकाशवाणी अहमदाबाद के गुजराती भाषी प्रवक्ता लेम्यूल हैरी की आवाज का भी मैं दिवाना था, जो कुछ समय के लिए दिल्ली से अखिल भारतीय गुजराती समाचार भी पढ़ते थे। उसके अतिरिक्त रजनी शास्त्री की आवाज भी सुंदर थी, जो गीतों भरी कहानी गीत गाथा के नाम से पेश करते थे। साथ में आकाशवाणी राजकोट के उदघोषक भरत याज्ञिक भी रविवारीय जय भारती कार्यक्रम से लोगों के चहेते हुए।
रेडियो पर क्रिकेट कामैंट्री में सभी अंग्रेजी भाषा के कामेंट्रटरों में विजय मर्चेंट, डिकी रत्नाकार, देवराज पुरी डॉ. नरोत्तम पुरी के पिता, कोलकाता से सरदेंदू सन्याल, चेन्नई से पी. आनंद राव और वीएम चक्रपाणि जो आकाशवाणी के समाचार प्रभाग के अंग्रेजी भाषा के समाचार वाचक भी थे और बाद में रेडियो आस्ट्रेलिया मेल्बार्न चले गए थे और वहां से हिंदी गानों के 15 मिनट के साप्ताहिक कार्यक्रम अंग्रेजी उदघोषणा के साथ गाने पेश करते थे, जो मैंने सुने थे एवं बेरी सबसे अधिक उल्लेखनीय है। हिंदी कामेंट्री की शुरूआत काफी सालों के बाद जसदेव सिंह ने की। बाद में सुशील दोशी और रवि चतुर्वेदी भी मुख्य थे। आकाशवाणी इंदौर से नरेन्द्र पंडित की हर गुरुवार के दिन दोपहर साढ़े बारह बजे पर फिल्म संगीत के विशेष साप्ताहिक कार्यक्रम की प्रस्तुति आज तक मुझे याद है, जो भोपाल से शॉर्ट वेव 41 मीटर बैंड पर सूरत में सुनाई पड़ता था। आकाशवाणी दिल्ली-ए पर गुलशन मधुर की आवाज भी याद रही, जो सालों बाद वायस ऑफ अमरीका हिंदी सेवा से सुनने को मिली।
विविध भारती सेवा मुंबई से शॉर्ट वेव के अलावा मीडियम वेव पर भी प्रसारित होती थी, जिसमें 1965 से देश के हर भाग में जो स्थानीय मीडियम वेव विविध भारती केंद्रों की जो शुरूआत हुई, इस नीति के अंतर्गत 1967 से मुंबई से प्रसारित विविध भारती सेवा के प्रसारण से अलग मीडियम वेव के प्रसारण को विज्ञापन प्रसारण सेवा के अंतर्गत अलग स्टूडियो से कार्यरत किया गया, जो पुणे और नागपुर से भी जारी हुआ। केंद्रीय विविध भारती सेवा हर राज्य के मुख्य विविध भारती केंद्र को करीब दो महीने पहले अपने सभी कार्यक्रमों को स्पूल टेप पर ध्वनि मु्द्रित करके भेज देता थी। विज्ञापन की बुकिंग हर राज्य के मुख्य विविध भारती केंद्र पर ही अपने लिए और उस राज्य के बाकी सभी विविध भारती केंद्रों के लिए करीब एक साथ प्रसारण सेवा के सभी राज्यों के मुख्य केंद्रों केंद्रीय विविध भारती सेवा द्धारा भेजे गए कार्यक्रमों को अपने विज्ञापन की बुकिंग के अनुसार संपादित करके हर कार्यक्रमों की सम्पादित करके हर कार्यक्रमों की सम्पादित टेप्स राज्य के बाकी विविध भारती के विज्ञापन प्रसारण सेवा के केंद्रों को भेजती थी। यह व्यवस्था एक लंबे समय के बाद हर सीबीएस केंद्र की स्थानीय बुकिंग पर परिवर्तित हुई।
आकाशवाणी की एफएम सेवा भी करीब 26 साल के पहले आरंभ हुई और करीब 16 साल पहले बहुस्तरीय हुई, जिसका पहला स्तर मेट्रो एम एम स्टीरियो था, जिसमें निजी प्रसारकों को समय स्लोट बेचे गए। बाद में जिला स्तरीय शहरों में स्थानीय खडं समयावधि वाले एफ एम मोनो प्रसारण वाले केंद्रों की शुरूआत हुई। जिसके अंतर्गत सूरत में 30 मार्च 1993 के दिन तीन घंटे के स्थानीय प्रसारण वाला केंद्र शुरू हुआ, जो मेरी अपनी व्याख्या अनुसार पूर्व प्राथमिक केंद्र था। बाद में विविध भारती के स्थानीय मध्यम तरंग केंद्रों को एफएम स्टीरियो में परिवर्तित करने की शुरूआत हुई। कुछ बड़े शहरों के स्थानीय खंड समय वाले एफएम केंद्रों को विविध भारती के विज्ञापन सेवा केंद्र के रुप में तबदील किया गया, जिसमें सूरत भी अगस्त 2002 से पूरे समय वाले विविध भारती के विज्ञापन प्रसारण सेवा के केंद्र में परिवर्तित हुआ, जो बाद में स्टीरियो भी हुआ।
इस तरह आज आकाशवाणी के सूरत, कानपुर और चंडीगढ़ तीन केंद्र शायद ऐसे हैं, जहां प्राथमिक चैनल न होते हुए, सिर्फ विविध भारती सेवा ही है। बड़ौदा में विज्ञापन प्रसारण सेवा के अलावा प्राइमरी चैनल के कार्यक्रमों का कुछ निर्माण तो होता है और कुछ कुछ प्रसारण भी होता है। लेकिन अहमदाबाद के जोडि़या केंद्र के रुप में अहमदाबाद के ट्रांसमीटर से ही है। आज सभी श्रोताओं को जानकारी है कि कुछ सालों से विविध भारती सेवा के कार्यक्रम उपग्रह के द्धारा स्थानीय विज्ञापन प्रसारण केंद्रों से एफएम बैंड पर और मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई में मध्यम तरंग पर एवं रात्रि 11.10 से सुबह 5.55 तक राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से मध्यम तरंग और डीटीएच पर 24 घंटे सुने जा सकते हैं।
कुछ साल से कुछ विशेष कार्यक्रमों एवं फोन-इन कार्यक्रमों को छोड़कर ज्यादातर कार्यक्रमों का जीवंत प्रसारण होता है और किसी व्यक्ति विशेष की आकस्मिक मृत्यु होने पर जीवंत फोन-इन श्रद्धांजलि कार्यक्रम भी होते हैं। जबकि सम्पूर्ण प्री रेकोर्डेड कार्यक्रमों की व्यवस्था अंतर्गत ऐसे जीवंत फोन इन श्रद्धांजलि कार्यक्रमों की गुंजाइश ही नहीं थे और सिर्फ पहली पुण्य तिथि पर ही कोई पूर्व प्रसारित जयमाला या एक फनकार कार्यक्रम हो सकते थे। मैं विविध भारती के फोन इन कार्यक्रमों में शामिल होने का करीब शुरु से ही भाग्यशाली रहा हूं और साल दो साल के अंतराल बाद जब भी मुंबई आना होता रहा तो विविध भारती सेवा के उदघोषकों और अन्य साथियों जैसे पूर्व निदेशक जयंत एरंडिकर, सहायक केंद्र निदेशक महेंद्र मोदी, कमल शर्मा, यूनुस जी, श्रीमती ममता, श्रीमती रेणु बंसल, श्रीमती मोना ठाकुर, अहमदवसी साहब, लोकेन्द्र शर्मा, राजेन्द्र त्रिपाठी, अशोक सोनावणे, राष्ट्रीय प्रसारण सेवा में सक्रिय कमल किशोर, अमरकांत दुबे, नागपुर में कार्यरत अशोक जाम्बूलकर सहित अनेक साथियों से मिलना होता है। 1962 से फिल्मी धुनों को सुनने का और उनके वादक कलाकार एवं साज को पहचानने का शौक लगा, जिसमें सबसे पहला आकर्षण प्रसिद्ध पियानो एकोर्डियन वादक एनोक डेनियल्स के प्रति हुआ, जिनकी धुनों को मैंने हैलो आपके अनुरोध पर कार्यक्रम में किस्तों में फरमाइश की थी।
वायस ऑफ अमरीका के दो सजीव कॊल-इन कार्यक्रम हैलो अमरीका और हैला इंडिया में तीन बार मुझे लाइव परिचर्चाओं में श्रोता के तौर पर इन विशेषज्ञों के पैनल से सवाल पूछने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया था। २८ अप्रैल 2007 को विविध भारती के स्वर्ण स्मृति कार्यक्रम में कार्यक्रम की निर्मात्री और प्रस्तुतकर्ता श्रीमती कांचन प्रकाश संगीत ने मेरा टेलिफो़निक इंटरव्यू प्रस्तुत किया था और उसमें मेरे संस्मरणों के साथ मेरी उसी बातचीत के दौरान बजाई माऊथ ओर्गन पर फ़िल्मी धुन का हिस्सा भी प्रस्तुत किया था।
श्री पीयूष भाई मेहता के रेडियो और फिल्म जगत की जानी मानी हस्तियों के साथ फोटो यहाँ देखे जा सकते हैं।
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