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Thursday, April 10, 2008

गाने निःसंदेह अतीतके किसी रेफ्रेन्स-प्वाईंट की तरह ही तो होते हैं !

कल यूनुस भाई की रेडियोवाणी की सालगिरह का जो जश्न उन के ब्लॉग पर चल रहा था..उस में शिरकत करने का मौका मिला। वहां एक लाइन ऐसा पढ़ ली जिसे मैं भी पिछले कईं वर्षों से कहना तो चाहता था लेकिन समझ में ही नहीं आता था कि अपने इन भावों का शब्दों का जामा कैसे पहनाऊं। लेकिन यूनुस भाई की कल की पोस्ट पर लिखी इस लाइन ने मेरी तो वर्षों की तलाश ही खत्म कर डाली। उस में उन्होंने एक जगह लिखा था .....गाने जिंदगी में अतीत के किसी रिफरेन्स-पाईंट की तरह होते हैं।

कितनी सही बात उन्होंने कह डाली है। कल से ही दिमाग में वही बात घूम रही है। तो,इस समय एक ऐसे ही रेफ्रेन्स-प्वाईंट की तरह एक गाने की याद आ गई......फिल्म धर्म-कर्म और इस गाने को फिल्माया गया था राज कपूर पर....यह फिल्म मैंने आठवीं कक्षा में अमृतसर के एनम थियेटर में देखी थी....और मजे की बात तो यह कि यह गाना हमें इतना कुछ सिखा रहा है और यह इतना पापुलर हुया था कि सालों तक रेडियो और लाउड-स्पीकरों पर बार बार बजता रहता था। मुझे यह बेहद पसंद है।

लेकिन ये रेफ्रेन्स-प्वाईंट के बारे में जितने उम्दा तरीके से यूनुस भाई ने अपनी यादों के झरोखों में से झांक के लिखा....मेरे में इतनी काबलियत नहीं है.....कभी फिर कोई दूसरा रैफ्रेन्स-प्वाईंट पकड़ कर कोशिश करूंगा।

4 comments:

Neeraj Rohilla said...

ये गीत मुझे बडा अजीज है, सुनकर मजा आ गया ।

Anonymous said...

क्या ये पोस्ट यहाँ के लिए उपयुक्त है.

Dr Parveen Chopra said...

@ अजीत जी, यह ध्यान तो मुझे भी आया था...इसलिये इसे अपनी स्लेट पर पब्लिश कर रहा था, लेकिन जैसे ही पब्लिश वाला बटन दबाने लगा तो ध्यान आया कि जिस शख्स की वजह से यह पोस्ट तैयार हुई , जिस की किसी ब्लाग का कल सालगिरह थी....यानि कि यूनुस भाई...तो उस समय बस यही सोचा कि चलो उसी सालगिरह की खुशी में इस यूनुस के ही द्वारा लगाये गये दूसरे पौधे रूपी ब्लाग पर ही , नियमों की थोड़ी उल्लंघना करते हुये, भेज दिया जाये। आशा है कि मैंने आप के प्रशन का जवाब दे दिया है।

Alpana Verma said...

सच में गीत अतीत के किसी रेफरेंस पॉइंट की तरह ही तो होते हैं-
धन्यवाद.

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