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Tuesday, April 15, 2008

सलून, फोन टाइम और दुनिया भर की बातें


हर्षवर्धन त्रिपाठी पत्रकार हैं । और बतंगड़ नामक अपना ब्‍लॉग भी चलाते हैं । कल दोपहर को उन्‍होंने रेडियोनामा के लिए अपना ये आलेख भेजा था । हर्ष इलाहाबाद के रहने वाले हैं और अपने 'घर' छुट्टियां मनाने लौटे हैं । वहां उन्‍हें रेडियो की दुनिया के कुछ अनुभव हुए हैं । आईए उनके अनुभवों से गुज़रें ।
आपको बता दें कि हर्ष ने ये आलेख कल ही अपने ब्‍लॉग बतंगड़ पर छाप दिया है । पर उनके अनुरोध पर इसे रेडियोनामा पर भी प्रस्‍तुत किया जा रहा है ।----यूनुस

ये विविध भारती की विज्ञापन प्रसारण सेवा का इलाहाबाद केंद्र है

एफएम ने लोगों के रेडियो सुनने का अंदाज बदल दिया है। तेज, हाजिर जवाब रेडियों जॉकी- फोन नंबरों पर जवाब देकर इनाम जीतते श्रोता। मेरे शहर इलाहाबाद में भी एफएम के दो एफएम रेडियो शुरू हो गए हैं जो, शहर में युवाओं के मिजाज से मेल भी खूब खा रहा है। लेकिन, इन सबके बीच विविध भारती प्रसारण की बात ही कुछ निराली है। इलाहाबाद में मेरे मोहल्ले दारागंज में एक नया जेंट्स ब्यूटी पार्लर खुला है। छोटे भाई के साथ मैं आज जब दाढ़ी बनवाने पहुंचा तो, एसी की ठंडी हवा में मैंने मसाज करने को भी बोल दिया। और, दाढ़ी बनवाते-बनवाते विविध भारती का फोन टाइम कार्यक्रम शुरू हो चुका था। ये कार्यक्रम इतना दिलचस्प था कि मैं इसे आप सबसे बांट रहा हूं।

फोन की घंटी बजी और प्रस्तोता ने कार्यक्रम शुरू किया। फोन टाइम में आपका स्वागत है, मैं हूं अविनाश श्रीवास्तव।

जी, बताइए क्या नाम है आपका।

जी, गीतांजलि।

आप किस क्लास में पढ़ती हैं।

क्लास 8 में

हां, आपकी आवाज से लगा कि आप अभी बहुत छोटी हैं। क्या सुनेंगी आप

जी देशप्रेमी फिल्म का गीत लेकिन, पहले मेरी दोस्त कानाम मैं ले लूं

जी बिल्कुल

फिर अवाज आई देशप्रेमी फिल्म का गाना हमारे पास नहीं है। इसलिए हम आपको फना फिल्म का गीत सुनाते हैं। उम्मीद है आपको पसंद आएगा

देश रंगीला रंगीला ...

फोन की घंटी के साथ दूसरे श्रोता लाइन पर थे।

जी बताइए कौन बोल रहे हैं।

राजेंद्र बोल रहा हूं

हां, राजेंद्रजी बताइए। क्या सुनना चाहते हैं

राजेंद्र ने गाना सुनने से पहले एक दूसरा सवाल पूछना चाहा

राजेंद्र ने पूछा- ये बताइए क्या भी जो हमारी बात हो रही है वो, रिकॉर्ड हो रही है

जी, हां बिल्कुल रिकॉर्ड हो रही है

लेकिन, हम बहुत दिन से फोन लगा रहे थे, घंटी जाती है लेकिन, फोन ही नहीं उठता

नहीं, ऐसा नहीं है। आप फोन करेंगे तो, बिल्कुल उठेगा। देखिए ना आखिर हमारी-आपकी बात हो रही है ना।

नहीं लेकिन, हम दो साल से फोन लगा रहे हैं और आपका फोन नहीं उठता। इ समझिए कि दो साल से लगातार हम फोन लगा रहे हैं।

नहीं आप फोन लगाएंगे तो, बिल्कुल लगेगा हो सकता है फोन व्यस्त रहा हो जैसे देखिए अभी आपसे बात हो रही है तो, दूसरे का फोन कैसे मिल पाएगा। बताइए क्या सुनेंगे

तब तक श्रोता का उत्साह बढ़ चुका था। राजेंद्र ने कहा- अभी दो नए एफएम खुले हैं लेकिन, हमें विविध भारती के अलावा कोई सुनना पसंद नहीं है। हम दूसरे एफएम एकदम नहीं सुनते।

राजेंद्रजी ऐसी बात नहीं है सभी रेडियो अच्छे हैं। सबकी पसंद अलग-अलग हो सकती है।

नहीं सर, विविध भारती की बात ही अलग ही है।

अब तक राजेंद्र गाना नहीं बता पाए थे

अविनाश श्रीवास्तव ने फिर गाना सुनाने के बारे में पूछा तो, राजेंद्र ने कहा हम अपने दोस्तों का नाम ले लें

जी बिल्कुल

फिर राजेंद्र ने एक लाइन से अपनी कई दोस्तियां, रिश्तेदारियां निभाते हुए उन सबके नाम विविध भारती के फोनटाइम में सुना दिए

प्रस्तोता ने फिर टोंका तो, राजेंद्र ने ये गाना सुनाने की फरमाइश की

तू जो हंस हंस के सनम मुझसे बात करती है सारी दुनिया को यही बात बुरी लगती है

गाना खत्म होने के बाद तीसरे श्रोता लाइन पर थे संदीप सरोज

जी, संदीप क्या करते हैं आप जी, हाईस्कूल का एग्जाम खत्म हुआ है

अच्छा तो, आप खाली होकर फोन टाइम में फोन कर रहे हैं

जी

और, क्या कर रहे हैं कंप्यूटर कोर्स भी कर रहा हूं

संदीप, लगता है आपने रेडियो बहुत तेज कर रखा है

जी, अभी तक तेज सुन रहा था अब धीमा कर दिया है

आपके बगल में कौन हंस रहा है

जी, मेरी बहन है। बहुत दिन से फोन नहीं लग रहा था। मेरी बहन भी हमेशा विविध भारती सुनती है।

पीछे से लगातार संदीप की बहन के हंसने की आवाज आ रही थी

अविनाश ने फिर पूछा कौन सा गाना सुनेंगे

सदीप ने भी अपने जान-पहचान के सारे नाम गिनाए जिससे, उसकी अच्छी छनती रही होगी और एक और गाना पेश

एक छोटे से ब्रेक के बाद चौथा श्रोता हाजिर था

मैं फोन टाइम से अविनाश बोल रहा हूं, आप कौन

जी, मैं मिर्जापुर के गांव से सुजाता बोल रही हूं

जी, सुजाता बताइए क्या करती हैं आप

जी घर का काम करती हूं

पढ़ाई कितनी हुई है आप

हंसते-खिलखिलाते सुजाता ने बताया कि पढ़ी-लिखी नहीं है

फिर प्रस्तोता ने कहा- पढ़ाई क्यों नहीं की, पढ़ाई तो बहुत जरूरी है

सुजाता ने कहा- जी, पिताजी हमारे नहीं थे, मां ने पाला-पोसा, कम उमर में शादी भी हो गई

तो, फिर अब पढ़ाई कीजिए।

ठीक है हम अपने घर जाएंगे तो, अम्मा से कहेंगे

अपनी सास से भी तो कह सकती हैं

तब तक बीच में ही वो बोल पड़ी अच्छा हम सबका नाम ले लें

जी, जरूर

फिर सुजाता ने अपनी ननद, सास, चाचा सबका नाम ले लिया

फिर थोड़ा शरमाते-सकुचाते-हंसते बोली हम अपने पति का नाम बताएं

जी, बताइए

हमारे पति का नाम है- कंपोटर

प्रस्तोता भी उसको पढ़ाने के अपने अभियान पर अडिग था। फिर बोला तो, अपने पति से कहिए पढ़ाने के लिए। वैसे कौन सा गाना सुनना चाहती हैं

जी, हम कहेंगे। नगीना फिल्म का गाना सुनाएंगे

जी, कौन सा गाना सुनना चाहती हैं

वो, मैं तेरी दुश्मन वाला

गाना शुरू हो गया मैं तेरी दुश्मन.. दुश्मन तू मेरा .. मैं नागिन तू सपेरा

अब तक चार श्रोताओं का ही फोन शामिल हो पाया था

पांचवां फोन था काशीपुर के उदयभान का

उदयभान ने फोन किया और सीधे गाना बताया कहा- मुझे गाना सुना दीजिए, तुझको ही दुल्हन बनाऊंगा, वरना कुंआरा मर जाऊंगा

अविनाश ने पूछा- क्या करते हैं

जी, पढ़ रहा हूं

बताइए कौन सा गाना सुनेंगे

तब तक बीच में ही उदयभान का दोस्त गाने के बोल बताने लगा- तुझको ही दुल्हन बनाऊंगा, वरना कुंआरा मर जाऊंगा

अविनाश ने कहा- अभी पेश करता हूं लेकिन, गाना लाइब्रेरी में नहीं था। और, खेद व्यक्त करते हुए उसकी जगह बजने लगा- एक ऊंचा लंबा कद, दूजे सोणिये तू हद

गाना खत्म फिर बजी फोन की घंटी

जी, मैं अक्षय कुमार बोल रहा हूं

अक्षयजी बताइए कौन सा गाना सुनेंगे

जी, पहले मेरे भतीजे से बात कर लीजिए

अगले ही क्षण भतीजा फोनलाइन पर था। जी, मैं बृजेश कनौजिया बोल रहा हूं

लाडला फिल्म का गीत सुनाएंगे क्या

जी, जरूर वैसे आप क्या करते हैं

बृजेश- जी मैं मुंबई से हार्डवेयर का कोर्स करता हूं। अभी छुट्टियों पर घर आया हूं

लाडला फिल्म का गाना नहीं था अविनाश ने दूसरा गाना सुना दिया

और, सोमवार, बुधवार, शुक्रवार को 10.30 से 11 बजे तक चलने वाले फोन टाइम कार्यक्रम समाप्त हुआ।

दरअसल, अभी भी देश के एक बहुत बड़े हिस्से के लिए रेडियो-टीवी पर सुनाई-दिखाई देना सबसे बड़ा रोमांच बना हुआ है। आधे घंटे के फोनटाइम में छे लोगों ने अपनी जिंदगी, पढ़ाई-लिखाई, परिवार, यार-दोस्तों या ये कहें जो, कुछ सुनने वाले को महत्व का लगता था, उसे रेडियो प्रस्तोता के साथ बंटा लिया। न तो, गाना सुनने वाले को बहुत जल्दी थी न, गाना सुनाने वाले को। लेकिन, मेरा टाइम खत्म हो रहा है क्योंकि, मेरा मसाज पूरा हो चुका है।

और, अगला कार्यक्रम पेश है लोकगीत

बोला चलै ससुराल लैके..

तब तक मैं पैसे देकर घर लौट गया।

7 comments:

अनूप शुक्ल said...

बड़ी धांसू कमेंटरी है जी।

annapurna said...

यहाँ हैदराबाद में ऐसे कार्यक्रम और मजेदार होते है. यहाँ तेलुगु भाषा में बातचीत और गाने ऐसे ही चलते रहते पर बीच में कोई श्रोता हिन्दी गाने की फरमाइश कर देता है और तेलुगु उच्चारण में हिन्दी में बात होती है और गाने भी बजते है.

mamta said...

कल भी हमने कमेंट किया था। और आज फ़िर कर रहे है।
बहुत ही दिलचस्प अंदाज मे लिखा है।

Udan Tashtari said...

बढ़िया किस्सा सुनाया गया. मजेदार.

Manas Path said...

आपका तो फ़ाण्ट ही हमारे कप्यूटर पर नही दीखता.

Alpana Verma said...

लेख रोचक लगा.ऐसा लगा कि रेडियो पर ही बातें सुन रहे हैं.
''हम बहुत दिन से फोन लगा रहे थे, घंटी जाती है लेकिन, फोन ही नहीं उठता'' ये बात अमूमन हर caller कहता होगा??

Batangad said...

शुक्रिया। आप लोगों को मेरी ये रेडियो वार्ता पसंद आई

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