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Friday, December 5, 2008

साप्ताहिकी 4-12-08

इस सप्ताह विविध भारती पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के निधन के शोक में डूबी रही। नियमित सभी कार्यक्रमों का प्रसारण नहीं हुआ। कार्यक्रमों के अंतराल में संजीदा धुन बजती रही। उदघोषकों की प्रस्तुति भी गंभीर और संयत रही।

पूरे सप्ताह सवेरे मंगल ध्वनि के स्थान पर संजीदा धुन ही बजती रही। 6 बजे समाचार के बाद चाण्क्य, प्रेमचन्द, स्वामी विवेकानन्द, आचार्य रजनीश के विचार बताए गए। वन्दनवार में पुराने भजन भी शामिल रहे और श्रीमदभगवतगीता का पाठ भी सुनवाया गया और गुरूवाणी भी सुनवाई गई। अंत में सुनवाए गए देशगान भी अच्छे रहे, एकाध बार विवरण भी बताया गया।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के बजाय चित्रपट संगीत में संजीदा फ़िल्मी गीत सुनवाए गए, इस तरह यह पुराने गीतों तक ही सीमित नहीं रहा और दूसरे गीत भी सुनवाए गए जैसे -

मेरा जीवन कोरा काग़ज़ कोरा ही रह गया (फ़िल्म कोरा काग़ज़)

पर सोमवार से भूले बिसरे गीत कार्यक्रम प्रसारित हुआ, संजीदा गीत बजते रहे पर पारम्परिक रूप से समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गाने से नहीं हुआ और मंगलवार से यह कार्यक्रम अपने पारम्परिक रूप में प्रस्तुत हुआ। अधिकतर भूले बिसरे गीत ही बजे।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला नाद निनाद जारी रही जिसे प्रस्तुत कर रहे है ख़्यात बांसुरीवादक और संगीतकार विजय राघव राव। संगीत की प्रवृतियों को बताते हुए हिन्दुस्तानी और कर्नाटक दोनों शैलियों में गायन भी प्रस्तुत किया जा रहा है। कर्नाटक या दक्षिण भारतीय शैली में त्यागराज गायन (तेलुगु भाषा के भक्तकवि त्यागराज की भक्ति रचनाओं की शास्त्रीय शैली में प्रस्तुति) और भक्ति सुनवाए गए। इस श्रृंखला से भारतीय संगीत के आरंभिक स्वरूप की जानकारी मिल रही है। बताया जा रहा है कि पहले नाद फिर निनाद जिसके बाद एक ही सुर था फिर दो सुर आए, अब वेदों का पठन होने लगा, इस तरह हर स्वरूप को गाकर बताया गया। इस तरह बढते हुए सप्तम से थाट उत्पन्न हुए और थाटों से राग। नृत्य शैली जुड़ने से तिल्लाना बना। भक्ति संगीत की शुरूवात हुई। फिर दरबारी संगीत की जिसके बाद जनमानस के लिए कोने-कोने तक पहुँचा लोक संगीत। जब बात हो संगीत की, विषेषकर नाद की, तो नटराज की चर्चा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता, चर्चा नटराज की भी हुई और उस विशेष संगीत की भी। यह भी बताया गया कि महात्मा गाँधी ने किसी अवसर पर अपने भाषण में कहा था कि संगीत से संगति है। आमतौर पर इस तरह से भाषण के अंश नहीं बताए जाते, इसलिए सुनना अच्छा लगा। बहुत बढिया जानकारी। इस श्रृंखला के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद छाया (गांगुली) जी और इसे फिर से प्रसारण की अनुमति देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद महेन्द्र मोदी जी। आपसे यह भी अनुरोध है कि आगे भी अंतराल से इस श्रृंखला का प्रसारण करते रहिए ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुँच सकें।

7:45 की त्रिवेणी अपने मूल रूप में रही और शोक के इस अवसर पर इसमें परिवर्तन की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि यह कार्यक्रम मूल रूप से गंभीर ही है। प्रार्थनाएँ सुनवाई गई जैसे -

अल्ला तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम

और गंभीर बातें हुई जैसे जीवन में समय का महत्व तथा छोटी-छोटी बातों को भी रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया जैसे खिलौनों के बारे में प्रस्तुति रही।

दोपहर 12 बजे चित्रपट संगीत में संजीदा गीत सुनवाए गए जैसे आदमी फ़िल्म का रफ़ी साहब का गाया यह गीत -

आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज़ न दे

सोमवार से प्रसारित हुआ कार्यक्रम एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने पर माहौल संजीदा ही रहा। फ़िल्में रही सीमा, ज्वैलथीफ़, शागिर्द, पारसमणि, मुनीमजी। मंगलवार को पुरानी और बहुत पुरानी फ़िल्में रही फूल बने अंगारे, अगर तुम न होते, तराना, सिलसिला, अनारकली, रानी रूपमती। बुधवार की फ़िल्में रही इज्ज़त, आप आए बहार आई, मि नटवरलाल, खिलौना, कभी-कभी, लव स्टोरी, जैसी साठ से अस्सी के दशक तक की फ़िल्में। गुरूवार की नई फ़िल्में रही जैसे दिल न माने, मेरे बाप पहले आप, वाह क्या लाइफ़ है, झंकार बीटस, जाँनशीन।

1 बजे के बाद भी शुक्रवार को चित्रपट संगीत जारी रहा जिसमें संजीदा फ़िल्मी गीत सुनवाए गए जैसे माया फ़िल्म का गीत -

ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल

1:00 बजे से शनिवार को फ़िल्मी भक्ति गीत सुनवाए गए जिसमें पुरानी फ़िल्म आलमआरा का गीत भी सुनवाया गया -

मोहम्मद के जलवों से रोशन है सीना
मोहब्बत से दिल बन गया है मदीना

सोमवार से म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम प्रसारित हुआ पर गीत संजीदा ही रहे जैसे शान की आवाज़ में यह शान्त प्रकृति का गीत -

अक्सर दिल ही दिल में

1:30 बजे भी फ़िल्मों के संजीदा गीत ही सुनवाए जाते रहे। मन चाहे गीत कार्यक्रम का प्रसारण सोमवार से शुरू हुआ पर गाने संजीदा ही चुने गए।

3 बजे से नए पुराने देशभक्ति गीत सुनवाए गए जैसे रफ़ी की आवाज़ में धूल का फूल फ़िल्म का यह गीत -

तू हिन्दु बनेगा न मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा

और हरिहरन का गाया यह गीत -

भारत हमको जान से भी प्यारा है

सखि सहेली में मंगलवार को पुरूषों का क्षेत्र माने जाने वाले आटोमोबाईल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महिलाओं को करिअर बनाने के लिए जानकारी दी गई साथ-साथ नए फ़िल्मी गीत सुनवाए गए। बुधवार को त्वचा की चमक को बनाए रखने के लिए नुस्ख़े बताए गए जैसे आँख़ों पर खीरे के टुकड़ों के बजाए खीरे को कद्दूकस कर रखना, क्रीम से मसाज, फेस पैक बनाना भी बताया गया। एक बात पर मैं ध्यान दिलाना चाहूँगी इस नुस्ख़े पर कि पानी बहुत पीना चाहिए, यह बहुत पुराना नुस्ख़ा है जब पानी अमृत की तरह होता था एक्दम साफ़। आजकल पानी ज्यादा पीने से भी कुछ इंफ़ेक्शन आदि का ख़तरा है। इसीलिए कृपया पुराने नुस्ख़े बताते समय आजकल की स्थितियों का भी जायज़ा ले तो ठीक रहेगा। सामान्य जानकारी में अंतरिक्ष विज्ञान के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई जिसमें चन्द्रयान की बात बताई गई।

शनिवार को क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद से तेलुगु में पर्यावरण से संबंधित प्रायोजित कार्यक्रम सुना - कोशिश सुनहरे कल की।

4 बजे से भी चित्रपट संगीत में संजीदा फ़िल्मी गीतों का प्रसारण जारी रहा।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में रंगमंच, टी वी और फ़िल्म अभिनेता सचिन खंडेकर से की गई बातचीत सुनवाई गई। इसमें रंगमंच की बातें सुनना अच्छा लगा।

7 बजे जयमाला में भी संजीदा गीत ही जारी रहे, फ़ौजी भाइयों के फ़रमाइशी गीत नहीं सुनवाए गए। मंगलवार से फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत के बजाय फ़िल्म उमरावजान की ग़ज़ल और रज़िया सुल्तान में कब्बन मिर्ज़ा का गाया कलाम सुनवाया गया। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पत्र सामान्य ही रहे। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ सुनी। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में जादूगरनि मंदाकिनी मेहता से ममता (सिंह) जी की बातचीत अच्छी लगी बचपन में मदारी के खेल देखकर इस ओर झुकाव होना और बाद में इस क्षेत्र में आगे बढने की बातें बताई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने।

8 बजे हवामहल के बजाय फ़िल्मी भक्ति रचनाएँ सुनवाई गई और चित्रपट संगीत में भी संजीदा गीत सुनवाए गए। बुधवार से हवामहल की झलकियाँ प्रसारित होने लगी।

9 बजे गुलदस्ता 9:30 को एक ही फ़िल्म से और 10 बजे छाया गीत कार्यक्रमों के स्थान पर चित्रपट संगीत में संजीदा गीत जारी रहे पर सोमवार से गुलदस्ता कार्यक्रम प्रसारित हुआ जिसमें शान्त गंभीर ग़ज़लें सुनवाई गई जैसे ग़ुलाम अली की आवाज़ में ग़ज़ल।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में मंगलवार को दो बदन और उसके बाद के दिनों में हकीकत, कलाकार फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

10 बजे रविवार से छाया गीत गंभीर गीतों के साथ प्रस्तुत किया गया।

1 comment:

Yunus Khan said...

सही है जी । जितना आप रेडियो सुनती हैं और नोट्स लेती हैं, उतना तो शायद हम सभी नहीं सुनते ।

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