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Friday, July 9, 2010

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 8-7-10

शाम 5:30 बजे गाने सुहाने कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का जाना-पहचाना सबसे पुराना कार्यक्रम जयमाला। अंतर केवल इतना है कि पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर गाने की फ़रमाइश करते थे आजकल ई-मेल और एस एम एस भेजते है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले धुन बजाई गई ताकि विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्र विज्ञापन प्रसारित कर सकें। फिर जयमाला की ज़ोरदार संकेत (विजय) धुन बजी जो कार्यक्रम की समाप्ति पर भी बजी। संकेत धुन के बाद शुरू हुआ गीतों का सिलसिला। फरमाइश में से हर दशक से गीत चुने गए। इस तरह नए पुराने सभी समय के गीत सुनने को मिले।

शुक्रवार को फरमाइश में से अलग-अलग मूड के गीत सुनवाए - पुरानी फिल्म आवारा से घर आया मेरा परदेसी, कुछ पुरानी फिल्म लाखों में एक से -

चन्दा ओ चन्दा किसने चुराई तेरी मेरी निंदिया

दिल, कहो न प्यार हैं, राम अवतार फिल्मो के गीत और तेरे नाम फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया। शेफाली (कपूर) जी ने शायराना अंदाज में गीत सुनवाए।

रविवार को संगीता (श्रीवास्तव) जी ने सुनवाए अलग-अलग मूड के गीत शायराना अंदाज में - दिलवाले दुल्हनिया ले जाएगे से मेहंदी लगा के रखना, हीरो फिल्म से रेशमा का गाया लम्बी जुदाई, अर्पण, दिलवाले, दिल का क्या कसूर फिल्म का शीर्षक गीत, फिल्म तीन देवियाँ का गीत सुनवाते समय शायद सीडी में गड़बड़ी हुई, मुखड़े के बाद कुछ हिस्सा ठीक से नही सुन पाए, बाद में गीत ठीक बजा।

सोमवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने शुरूवात नई फिल्म से की - दे दना दन फिर मिलेजुले गीत सुनवाए गए - शहीद फिल्म से देश भक्ति गीत, विवाह फिल्म से शादी का गीत, अंदाज, जिद्दी और दिल ही तो हैं फिल्म से यह गीत जो कम ही सुनवाया जाता हैं, अच्छा लगा कि फ़ौजी भाइयो ने इस गीत की फरमाइश की -

चुरा ले न तुमको ये मौसम सुहाना खुली वादियों में अकेली न जाना
लुभाता हैं मुझको ये मौसम सुहाना मैं जाऊँगी तुम मेरे पीछे न आना

मंगलवार को राजुल (अशोक) जी ने शुरूवात की शोले फिल्म के गीत से, फिर हीरो नंबर 1, बीस साल बाद, हाउज फुल के नए पुराने गीतों के साथ देशप्रेमी फिल्म का देश भक्ति गीत और प्रेम रोग फिल्म का यह गीत भी शामिल था -

अब हम तो भए परदेसी

बुधवार को अशोक जी ने शुरूवात की जब जब फूल खिले फिल्म के इस बेहतरीन नगमे से -

एक था गुल और एक थी बुलबुल

जिसके बाद सोल्जर, दीवार, मेरा नाम जोकर फिल्मो के गीतों के साथ सनम तेरी क़सम फिल्म का शीर्षक गीत भी शामिल था।

गुरूवार को रेणु (बंसल) जी ने घायल फिल्म के गीत से शुरूवात की। हम दिल दे चुके सनम जैसी नई फिल्मो के गीत शामिल थे और यह गीत भी सुनवाया गया -

ये तो सच हैं के भगवान हैं

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया ख्यात गजल गायक और संगीतकार जगजीत सिंह ने। शुरूवात में उन्ही के गाए गीतों की झलक सुनवाई गई। पूरा कार्यक्रम गीतों का महकता गुलदस्ता रहा। अच्छे गीत चुनकर सुनवाए मैंने प्यार किया, त्रिदेव फिल्मो से। अपने पुराने दिन याद करते हुए रूस्तम सोहराब का गीत सुनवाया। साथ-साथ फिल्म का गीत सुनवाते हुए संगीतकार कुलदीप सिंह को याद किया। चित्रा सिंह का गीत और खुद का गाया पंजाबी गीत भी सुनवाया। शास्त्रीय संगीत में ढला रजिया सुलतान फिल्म से ऐ दिले नादाँ सुनवाया और वो गजल भी शामिल थी जिससे उन्हें लोकप्रियता मिली -

सरकती जाए रूख से नकाब आहिस्ता आहिस्ता

संग्रहालय से अच्छी रही प्रस्तुति। संयोजन कल्पना (शेट्टी) जी का रहा।

7:45 को गुलदस्ता कार्यक्रम में शुक्रवार को शुरूवात हुई अहमद वसी के कलाम से -

जाने क्या हाल हो इस दिल का अगर तू आए
न तो जज्बात पे न तो खुद पे काबू आए

आवाज आशा भोंसले की रही।

इसके बाद छाया गांगुली की आवाज में असअद भोपाली का कलाम सुनवाया गया -

तुझे बेकरार करके तेरी नींद भी उड़ा दूं
अगर आऊं अपनी जिद पे तुझे क्या से क्या बना दूं

समापन बढ़िया रहा, गुलाम अलि की आवाज में अहमद फराज के कलाम से -

तेरी बाते ही सुनाने आए दोस्त दिल ही दुखाने आए

रविवार को भी कुछ आवाजे और शायर शुक्रवार के ही रहे। शुरूवात हुई छाया गांगुली की आवाज में अहमद वसी के इस कलाम से -

मेरी आँखों में ढूँढता क्या हैं आंसूं के सिवाय बचा क्या हैं

फिर गुलाम अली की गाई गजल सुनवाई गई, शायर का नाम ठीक से समझ में नहीं आया। बोल रहे -

कल रात बज्म में जो मिला गुलबदन सा था
खुशबू से उसके लफ्ज थे चेहरा चमन सा था

महफ़िल एकतेदाम को पहुंची फैज अहमद फैज के कलाम से, आवाज आबिदा परवीन की -

नही निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही
नही हैं साथ मयस्सर तो आरजू ही सही

मंगलवार को महफ़िल का आगाज बशीर बद्र के कलाम से हुआ -

रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनू आए
हम हवाओं की तरह जाके उसे छू आए

आवाज जगजीत सिंह की। इसके बाद सुना हरिहरन की आवाज में ताहिर फराज का कलाम -

अक्स चहरे पे आफताब का हैं
किस इलाके में घर जनाब का हैं

मजा आ गया सुन कर। आखिर में चंदनदास की आवाज में इब्राहम अश्क को सुना -

जब मेरी हकीक़त जा जाकर सुनाई लोगो ने
कुछ सच भी कहा कुछ झूठ भी कहा कुछ बाते भी बनाई लोगो ने

इस तरह इस सप्ताह गुलदस्ता खूब महका। इस उम्दा पेशकश के लिए शुक्रिया !

शनिवार को सुना सामान्य ज्ञान का कार्यक्रम जिज्ञासा। टाइपराइटर का इतिहास बताया गया। अंत में बताया अब इसका चलन समाप्ति पर हैं और इसी की देन हैं आज मोबाइल पर एस एम एस। यहाँ इस गीत की झलक सुनवाई जो बहुत ही उचित लगी -

कभी तनहाइयों में हमारी याद आएगी

खेल जगत में साइना नेहवाल के हाल ही के खेल पर चर्चा हुई। नए आयाम में विज्ञान की चर्चा में आने वाले दिनों में रोशनी से चलने वाले कंप्यूटर और आई आई टी द्वारा गाँवों में भेजी जा रही ग्रीन ऊर्जा की बाते हुई। फिटनेस मंत्रा में मानसून से होने वाले बुखार की चर्चा हुई। बीच में एक बार सीडी रानी ने नखरे दिखाए, युनूस जी का कहा एक ही शब्द बारबार लगातार सुना गया। शोध और आलेख युनूस (खान) जी का रहा। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक (छिब्बर) जी ने।

सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और कमल (शर्मा) जी। इस बार पत्रावली सुन कर बड़ा अजीब लगा। हर पत्र में कार्यक्रमों की तारीफ़ थी। इस तरह सभी पत्र पढ़ते-पढ़ते लगभग सभी कार्यक्रमों की तारीफ़ हो गई। एक श्रोता ने त्रिवेणी का समय बढाने के लिए कहा जिसके लिए मना किया गया। एकाध श्रोता ने पत्र शामिल न होने की शिकायत की, बस हो गई पत्रावली। लगता हैं श्रोता ध्यान से कार्यक्रम नही सुनते या शिकायती पत्र शामिल नही किए गए।

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में पार्श्व गायक अनवर से निम्मी (मिश्रा) जी की फोन पर हुई सुरीली बातचीत सुनवाई गई। संगीत की शिक्षा, संघर्ष जैसे औपचारिक मुद्दों से दूर सहज स्वाभाविक बातचीत रही। जानकारी मिली कि पहली गजल मेरे गरीब नवाज फिल्म के लिए गाई। आजकल स्टेज शो करते हैं, एलबम निकाल रहे हैं और बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। यह भी बताया कि रफी साहब से आवाज मिलने से फ़ायदा भी हुआ और नुकसान भी। गुलाम अली और मेहदी हसन को पसंदीदा गायक बताया और बड़े गुलाम अली खाँ की गाई ठुमरी - का करूं सजनी गुनगुना कर सुनाई। खुद के गाए बहुत से गीत गुनगुनाए और निम्मी जी की इस बात से मैं भी सहमत हूँ कि उनके गुनगुनाए इन गीतों में और रिकार्ड किए गए गीतों में अंतर नहीं दिख रहा।

टेलीफोन पर बात हुई पर बहुत स्पष्ट रही आवाज। रिकार्डिंग इंजीनियर रहे सुनील (भुजबल) जी और प्रस्तुति वीणा (राय सिंघानी) जी की रही।

गुरूवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। विभिन्न रागों पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए गए, शुरूवात बढ़िया रही, मीरा फिल्म से वाणी जयराम की गाई मीरा की एक ऎसी रचना सुनवाई गई जो कम प्रचलित हैं -

राग मल्हार - बादल देख डरी ओ श्याम

इसके अलावा यह गीत सुनवाए गए -

राग जौनपुरी - गुजरे हैं आज इश्क में हम उस मुकाम से (फिल्म दिल दिया दर्द लिया)
राग भीम पलास - ओ बेकरार दिल (कोहरा)
राग किरवानी - सुनो बजर क्या गाए (बाजी)

8 बजे का समय है हवामहल का जिसकी शुरूवात हुई गुदगुदाती धुन से जो बरसों से सुनते आ रहे है। यही धुन अंत में भी सुनवाई जाती है। शुक्रवार को मजा आ गया। वी एम आनंद की लिखी झलकी सुनी - वजन घटाओ। कुछ बाते पहली बार सुनी जैसे बरात आई, दुल्हन मोटे दूल्हे को देख कर बेहोश हो गई, नतीजा तुरंत वजन घटाने दूल्हा डाक्टर की क्लीनिक में पहुंचा। डाक्टर कहते हैं जितना गुड डालोगे उतनी मिठास, जितना पैसा उतनी जल्दी वजन कम, एक अन्य लड़की का पिता हिसाब लगा रहा हैं 25 तारीख तक वजन कम होगा, तो कार्ड छपवाए जा सकते हैं। दिल्ली केंद्र की इस झलकी के निर्देशक हैं कमल दत्त।

शनिवार को आशा मिश्रा की लिखी झलकी सुनी - अटरिया पे चोर। शादी के माहौल में संदेह होता हैं। दूल्हा चेहरे से सेहरा नही हटा रहा। शहर में बात फैली हैं कि चोरो का गिरोह शादी-ब्याह के घर में जाकर लूट-पाट कर रहा हैं। लाईट भी चली जाती हैं, चोर पकडे जाते हैं। पता चलता हैं प्यार-मोहब्बत का चक्कर हैं। मजेदार रही। भोपाल केंद्र की इस प्रस्तुति की निर्देशिका हैं सपना सक्सेना।

रविवार को अनिल सक्सेना की लिखी नाटिका सुनी - अब क्या होगा। घरेलू नौकरों की समस्या पर अच्छी प्रस्तुति रही। मुश्किल से ब्लैक में एक नौकर मिला, बेड टी न देने पर भाग गया। अखबार में विज्ञापन दिया गया, क्योंकि रेडियो में दे नही सकते। उम्मीदवार ने खुद मालिक का इंटरव्यू लिया। बाद के उम्मीदवार से मालिक ने सभी सुविधाए देने की बात कही तो उसने मालिक को पागल समझा जबकि वो खुद पागलखाने से भाग आया था, नौकरों पर रिसर्च करते हुए पागल हो गया था। निर्देशक हैं जयदेव शर्मा कमल। यह लखनऊ केंद्र की प्रस्तुति रही।

सोमवार को मुंशी प्रेमचंद की कहानी घर जमाई का बी एल व्यास द्वारा किया गया रेडियो नाट्य रूपांतर सुनवाया गया। निर्देशिका हैं रमा बावा। प्रेमचंद को पढ़ना-सुनना हमेशा से ही अच्छा लगता हैं। समय का चाहे कोई भी दौर हो सन्देश सार्थक रहता हैं। बढ़िया प्रस्तुति संग्रहालय से।

मंगलवार को कुमुद नागर की लिखी झलकी सुनी - सस्पेंस जिसकी निर्देशिका हैं चन्द्र प्रभा भटनागर। फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी जा रही हैं। हिट होने के लिए मसाले मिलाए जा रहे हैं। संस्पेंस में हॉरर सीन, कोई कहता हैं धार्मिक सीन डाल दो। अंत में बढ़िया सस्पेंस बनता हैं। बाथरूम से शेर का बच्चा निकलता हैं जिसे इस कॉमन बाथरूम के दूसरे कमरे से एक शिकारी ने रखा हैं चिड़िया घर भेजने के लिए। अच्छा मनोरंजन हुआ। प्रस्तुति लखनऊ केंद्र की रही।

बुधवार को झलकी सुनी - बुफे सिस्टम। जैसे कि शीर्षक से ही समझा जा सकता हैं भोजन की इस पद्धति में पारंपरिक लोग जिस दुविधा में फंसते हैं उससे अच्छा खासा तमाशा बन जाता हैं और नतीजा वही कि वह दावत में भोजन नहीं कर पाता हैं और घर में पत्नी ने भोजन बनाया नहीं हैं। व्यंग्य और हास्य - दोनों अच्छे रहे। बीकानेर केंद्र की इस प्रस्तुति के लेखक रविन्द्र कुमार श्रीवास्तव हैं और निर्देशक सरोज भटनागर हैं।

गुरूवार को परिवार नियोजन पर सन्देश देती झलकी सुनवाई गई - भूख हड़ताल जिसे दिनेश भारती ने लिखा। बच्चे भूख हड़ताल करते हैं, माता-पिता से उनकी कुछ मांगे हैं। जैसे-तैसे हड़ताल समाप्त होती हैं पर हड़ताल तोड़ने के लिए नीम्बू पानी के बजाय अंगूर के रस की मांग से पिता परेशान हो जाते हैं। प्रस्तुति इलाहाबाद केंद्र की रही।

इस तरह हवामहल में विविधता रही - सन्देश भी मिला और मनोरंजन भी हुआ। साथ ही अलग-अलग केन्द्रों की प्रतिभाओं को जानने समझाने का अवसर मिला।

प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए, क्षेत्रीय विज्ञापन भी प्रसारित हुए। फ़ौजी भाइयो को एस एम एस करने का तरीका बताया गया।

रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 बजे से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

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