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Thursday, January 6, 2011

गैर फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 6-1-11

इस समय विविध भारती से गैर फरमाइशी फिल्मी गीतों के तीन कार्यक्रम हैदराबाद में सुने जाते हैं भूले-बिसरे गीत, गाने सुहाने और सदाबहार नगमें जिनमे से भूले-बिसरे गीत सुबह के पहले प्रसारण का और गाने सुहाने शाम में प्रसारित होने वाला दैनिक कार्यक्रम हैं तथा सदाबहार नगमें सप्ताहांत यानि शनिवार और रविवार को दोपहर बाद में प्रसारित होने वाला कार्यक्रम हैं।

आइए इस सप्ताह प्रसारित इन तीनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

सुबह 7 बजे से 7:30 बजे तक प्रसारित भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में शुक्रवार को ऐसे गीत सुनवाए गए जो अपने समय में तो बहुत लोकप्रिय थे और आज भी लोकप्रिय हैं पर समय के साथ भुला दिए गए और जैसे ही सुनाई देते हैं हमें याद आ जाते हैं और हम गुनगुना उठते हैं। शुरूवात हुई इस गीत से -

जवां हैं मोहब्बत हसीं हैं समां

जिसके बाद सुनवाया - ख्यालो में किसी के इस तरह आया नही करते

मुकेश के गाए गीत सुनवाए गए जिसमे से एक दूल्हा-दुल्हन फिल्म का गीत था। दुश्मन फिल्म से सहगल साहब का गाया गीत सुना - करूं क्या आस निरास भई

आह फिल्म का गीत भी सुनवाया। समापन किया कठपुतली फिल्म के लताजी के गाए शीर्षक गीत से। प्रस्तोता रहे अशोक हमराही जी।

शनिवार को नए साल का पहला फिल्मी गीतों का कार्यक्रम अच्छा रहा। शुरूवात की एक राज फिल्म के इस नगमे से -

अगर सुन ले तो एक नगमा हुजुर-ए-यार लाया हूँ

उसके बाद का भी चुनाव बढ़िया रहा, अलबेला फिल्म से - शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के जिसके बाद सुनवाई गई क़व्वाली -

मेरी तस्वीर लेकर क्या करोगे

बारात, हम सब उस्ताद हैं फिल्मो के गीत भी सुनवाए। अच्छी विविधता रही चुनाव में।

रविवार को शमशाद बेगम, सुमन कल्याणपुर, सुधा मल्होत्रा के गीत सुनना अच्छा लगा। एक सपेरा एक लुटेरा, श्रीमती 420, रिंगारो, सपेरा, तस्वीर फिल्मो के गीत सुनवाए। कम सुने जाने गीत भी शामिल थे -

प्यार का नजराना लिए आई हूँ दूर से
दिल न जलाओ दूर दूर से

अक्सर सुने जाने वाले गीत भी शामिल थे - ये शहर बड़ा अलबेला .... सिंगापुर

सोमवार को संयोजन अच्छा रहा। शुरूवात की इस गीत से जो अक्सर सुनवाया जाता हैं -

बेचेन नजर बेताब जिगर ये दिल हैं किसी का दीवाना

ऐसे ही नमस्तेजी फिल्म के गीत से समापन किया। बीच में ऐसे गीत सुनवाए जो बहुत ही कम सुनवाए जाते हैं यानि वाकई भुला-बिसरे दिए गीत -

सिंहल द्वीप की सुन्दरी फिल्म से - खामोश हुई मेरी रागिनी

मुलजिम फिल्म से - संग संग रहेगे तुम्हारे जी हुजूर, चन्दा से चकोर भला रहे कैसे दूर

मैंने जीना सीख लिया फिल्म का गीत भी शामिल था। प्रस्तोता रहे नन्द किशोर पाण्डेय जी।

मंगलवार को भी अच्छा चुनाव रहा, कुछ गीत ऐसे रहे जो बहुत सुनवाए जाते हैं और कुछ गीत ऐसे रहे जो बहुत ही कम सुनवाए जाते हैं। चाँद मेरे आ जा, बहार, आन फिल्मो के गीत - सैंय्या दिल में आना रे आके फिर न जाना रे

नाचो हमारे साथ रे छम छम

अमरदीप, देवदास और चार दिल चार राहे फिल्म का यह गीत जो कम सुनवाया जाता हैं -

कोई माने या न माने मगर जानेमन कुछ तुम्हे चाहिए कुछ हमें चाहिए

पुरानी आवाजों में तलत महमूद और शमशाद बेगम को सुना।

बुधवार को भी मिले-जुले गीत सुनवाए गए यानि जो अक्सर सुनवाए जाते हैं जैसे माय सिस्टर फिल्म से कुंदनलाल सहगल का गाया गीत, अपने हुए पराए फिल्म का शीर्षक गीत, एक फूल चार कांटे और फरार फिल्मो के गीत। कम सुनवाए जाने वाले गीत भी सुनने को मिले जैसे आवारा बादल फिल्म से यह गीत - मोहे कुछ न हुआ

पुरानी आवाज में कमल बारोट को सुना।

आज शुरूवात की इस गीत से जिसे मैंने शायद पहली ही बार सुना हैं, बालयोगी फिल्म का यह गीत हैं -

दुनिया के अन्यायियों अन्याय की होती खैर नही

अन्य गीत भी ऐसे ही रहे - दिल्लगी, देवकन्या, फैसला फिल्मो से। चंगेज खान फिल्म का गीत भी शामिल था, यह गीत बहुत सुना-सुनाया रहा -

किसी ने जादू किया मैं करूं क्या मेरा मन मोह लिया

इस कार्यक्रम में एक बात दुविधाजनक लगती हैं, इस आधे घंटे के कार्यक्रम में, एक ही समय में हम हिन्दी सिने जगत में सत्तर के दशक से आई आवाजो को छोड़ कर सभी गायक कलाकारों को सुनते हैं यानि एक ही साथ कुंदनलाल सहगल साहब, नूरजहाँ और आशा भोंसले की आवाजे हम सुनते हैं। यही स्थिति गीतकारो और संगीतकारों की भी हैं। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ ए आर खुरैशी जैसे पुराने संगीतकारों को भी सुनवाया जाता हैं। सहगल साहब, नूरजहाँ, और ए आर खुरैशी के साथ एक युग जुडा हैं जबकि आशाजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के गीत कुछ समय पहले तक की फिल्मो में भी रहे। समय के साथ-साथ इस कार्यक्रम में साठ के दशक में देरी से आए गीत भी शामिल हो रहे हैं तब इनके साथ पचास के दशक के शुरूवाती गीतों को सुनना कुछ अजीब सा लगता हैं। क्या यह संभव नही कि बहुत पुराने गीतों का कार्यक्रम ही अलग हो जिसमे पचास के दशक के पहले के गीत भी शामिल हो सके और जिससे उस पूरे युग के संगीत का हम आनंद ले सके।

शाम 5 बजे दिल्ली से प्रसारित होने वाले समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद 5:05 बजे से 5:30 तक प्रसारित हुआ कार्यक्रम गाने सुहाने जिसमे अस्सी के दशक और उसके बाद के लगभग सभी ऐसे गीत सुनवाए गए जो लोकप्रिय हैं। इसमे एक अलग युग के सिने संगीत का आनंद मिल रहा हैं जिसमे अभिजीत, अलका याज्ञिक, जतिन-ललित, इरशाद कामिल जैसे नाम शामिल हैं।

शुक्रवार को शुरूवात की इस गीत से - शाम हैं धुँआ धुँआ जिसके बाद बागबान का गीत सुना - चली इश्क की हवा चली। यह गीत भी शामिल था -

कह दो न कह दो न यूं आर माई सोनियो

शनिवार को शुरूवात की आपके साथ फिल्म के नए साल के स्वागत गीत से। कुछ तो हैं फिल्म का गीत और यह गीत भी -

मेरी यह मखनी ... बिंदास

और धूम फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया। नए साल की पहली शाम के लिए अच्छा चुनाव रहा।

रविवार को रोमांटिक युगल गीत सुनवाए गए। शुरूवात की आशिकी फिल्म के गीत से जिसके बाद नरसिम्हा, कुछ कुछ होता हैं फिल्मो के गीत सुनवाए गए। यह गीत भी सुना -

हमें जब से मोहब्बत हो गई हैं ये दुनिया ख़ूबसूरत हो गई हैं

प्रस्तोता रही राजुल अशोक जी।

सोमवार को सुनवाए ये गीत - चलो चले मितवा

ऐसा गीत भी सुनवाया जो बहुत लोकप्रिय नही हैं - देखा तुझपे हो गई दीवानी मारूं तुझे तो मर न जाऊं कहीं

मंगलवार को करीब, दिलजले फिल्मो के गीतों के साथ ये गीत भी सुनवाए -

मैं कोई ऐसा गीत गाऊँ आरजू जगाऊँ अगर तुम मिलो

इश्क हुआ कैसे हुआ

बुधवार को खिलाड़ी, ये तेरा घर ये मेरा घर फिल्मो के गीतों के साथ दिल मांगे मोर फिल्म का यह गीत भी शामिल था -

ऐसा दीवाना हुआ हैं यह दिल आपके प्यार में

आज क़यामत से क़यामत तक, दिलवाले फिल्मो के गीत और यह गीत सुनवाया गया -

जादू सा छाने लगा --- ये दिल क्या करे

और समापन किया चोरी चोरी चुपके चुपके फिल्म के शीर्षक गीत से।

शुरू और अंत में संकेत धुन सुनवाई गई, जो विभिन्न फिल्मी गीतों के संगीत के अंशो को जोड़ कर तैयार की गई हैं जिसके साथ कार्यक्रम का शीर्षक, उपशीर्षक के साथ बताया गया - दिलकश धुनों से सजे दिलकश तराने - गाने सुहाने। शीर्षक और उप शीर्षक दोनों अच्छे हैं।

शनिवार और रविवार को आधे घंटे के लिए दोपहर 3 बजे से 3:30 तक प्रसारित होता हैं कार्यक्रम सदाबहार नगमे जिसमे पचास-साठ के दशक के लोकप्रिय फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं।

शनिवार को जब हम केन्द्रीय सेवा से जुड़े तब आप आए बहार आई फिल्म का शीर्षक गीत चल रहा था। इसके बाद अलग-अलग मूड के गाने सुनवाए गए - संगम, हमराज, लव इन टोकियो फिल्मो से रोमांटिक गीत।

आबेहयात फिल्म से यह गीत - मैं गरीबो का दिल हूँ वतन की जुबां

वक़्त फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया। इस तरह महेंद्र कपूर, हेमंत कुमार, मुकेश, रफी साहब, लताजी और आशाजी की आवाजों में सुने इन गीतों में अच्छी विविधता नजर आई। प्रस्तोता रही ममता (सिंह) जी।

रविवार को क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम के कारण यह कार्यक्रम रिले नही हुआ।

तीनो कार्यक्रमों के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजको के विज्ञापन भी प्रसारित हुए। नए साल के स्वागत में पहली जनवरी को शाम के प्रसारण में पिटारा के अंतर्गत प्रसारित होने वाले सुदेश भोंसले द्वारा प्रस्तुत कौन बनेगा रोडपति कार्यक्रम की भी सूचना दी गई।

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