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Friday, April 29, 2011

विविध भारती के नाटक - साप्ताहिकी 28-4-11

नाटकों के दो कार्यक्रम हैं हवामहल और नाट्य तरंग हवामहल रात के प्रसारण का पुराना दैनिक कार्यक्रम हैं और नाट्य तरंग सप्ताहांत यानि शनिवार और रविवार को दोपहर बाद प्रसारित होता हैं। आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

हवामहल रात में 8 बजे से 8:15 बजे तक प्रसारित होता हैं। इस सप्ताह धारावाहिक नाटक प्रसारित किया गया -उजड़ी हुई बस्ती में जिसकी लेखिका हैं विभा देवसरे। शुक्रवार को इसकी दूसरी कड़ी प्रसारित हुई। लेकिन सिलसिला मिलाने के लिए पहली कड़ी की जानकारी दी गई जिससे पूरे कथानक का शुरू से पता चल गया। नायक चेतन एक ऎसी बस्ती में पहुँच जाता हैं जो उजड़ चुकी हैं। यहाँ उसकी मुलाक़ात एक बुजुर्गवार से होती हैं। यह बुजुर्ग बाबा उसे बताते हैं कि जागरूकता न होने से, आबादी बहुत बढ़ने से, जीवन निर्वाह कठिन होने से यह बस्ती उजड़ गई। एक-एक खँडहर मकान के बारे बताते रहे कि यह परिवार कैसे उजड़ा। एक मकान में सुधा नाम की एक ग्राम सेविका रहती थी जो घर-घर जाकर समाज सुधार की बाते बताती पर उसके अपने ही माता-पिता को लड़का न होने का दुःख हैं। उसका विवाह एक ऐसे विधुर माधो से तय कर दिया जाता हैं जिसके बच्चे सुधा की उम्र के हैं। वह विवाह नही करना चाहती थी और यही बात समझाने बाबा उसके घर जाते हैं पर उसके पिता नही मानते फिर रातो रात सुधा और माधो के परिवार घर छोड़ कही चले जाते हैं। नायक अब भी यह कल्पना करता हैं कि सुधा यह संघर्ष जीत गई होगी। एक परिवार था मंगरू और संतो का। मंगरू आलसी हैं, उनका बेटा लंगडा और बेटी नेत्रहीन हैं। संतो बेटे का ऑपरेशन कराने बच्चो के साथ सरकारी अस्पताल जाती हैं, बस खाई में गिर जाती हैं, मंगरू वहां आता और अंधी बेटी उसकी आवाज पहचान जाती हैं पर वह उसे अपने साथ नही लाता। यहाँ बाबा के अलावा सुखिया भी हैं जो गाकर इस बस्ती के बारे में बताता हैं। बाबा इस सुखिया के बारे में बताते हैं कि यह पहले वाकई सुखी था। इसका एक दोस्त था शोभाराम। तारा शोभाराम की पत्नी और उनके चार बच्चे थे और वह पांचवी बार माँ बनने वाली थी। सुखिया के बहुत समझाने पर वह समझते हैं पर तब तक देर हो चुकी होती हैं, ग्राम सेविका कोई मदद नही कर पाती और पांचवे बच्चे को जन्म देते समय वह चल बसती हैं। उसकी मौसी चारो बच्चो को लेकर गाँव चली जाती हैं। एक दिन गाँव से मौसी के गुजरने की खबर आती हैं। वह बच्चो को लेने गाँव गया पर कभी नही लौटा। सुखिया के बेटे की तबियत बिगड़ जाती हैं पर डाक्टर पार्टी छोड़ कर आने के लिए तैयार नही। बस्ती में और डाक्टर, अस्पताल नहीं हैं। समय पर इलाज न होने से उसका निधन हो जाता हैं। एक महिला के ऑपरेशन के मामले में डाक्टर से ग्राम सेविका का विवाद होता हैं। बाद में डाक्टर का ह्रदय परिवर्तन होता हैं। मंगलवार को अंतिम कड़ी प्रसारित हुई। इसमे रज्जो के परिवार के उजड़ने की कहानी याद की गई। उसकी पत्नी सास के पोते की चाह में पांचवी बार गर्भवती हैं जिससे उसका शरीर भी कमजोर हो गया हैं। रज्जो बाहर दोस्तों के साथ ताश खेल रहा हैं, उसे लगता हैं फिर से लड़की हुई तो अम्मा बिगड़ेगी। पत्नी उससे मिलना चाहती हैं। सुखिया के कहने पर भी वह नही जाता। प्रसव घर पर दाई की सहायता से किया जाना हैं। ग्राम सेविका अस्पताल की गाड़ी लाती हैं फिर भी अस्पताल नही जाना चाहते। प्रसव के दौरान उसकी पत्नी दम तोड़ देती हैं। समाज का यथार्थ बताता बढ़िया धारावाहिक। जितना अच्छा लेखन उतनी अच्छी प्रस्तुति। बस, एक बात अखर गई, कलाकारों के नाम नही बताए गए। दिल्ली केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं कमल दत्त।

बुधवार को विपिन बिहारी मिश्रा की लिखी झलकी सुनी - मास्टरजी। लखनऊ केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं जयदेव शर्मा कमल। सच्चाई भी बताई और सन्देश भी अच्छा रहा। गाँव के स्कूल में 9 कुल बच्चे हैं। मास्टरजी देर से आते हैं और बच्चो से नीम की छाँव में खेलने के लिए कहते हैं, वह सोना चाहते हैं और बच्चो से कहते हैं कुछ पूछना हो तो बाद में पूछ लो, वैसे बाद में उन्हें मीटिंग में जाना हैं। बच्चे फिल्मी गानों की अन्ताक्षरी खेलते हैं। निरीक्षक आ जाते हैं। मास्टरजी को लताड़ते हैं। कहते हैं इसीलिए सरकारी स्कूल में कम बच्चे हैं, अन्य बच्चे दूसरे स्कूलों में जाते हैं। तभी वहां विधायक आते हैं जिनके साथ मास्टरजी को चुनाव से सम्बंधित मीटिंग में जाना हैं। अंत में निरीक्षक की बातो से सबको अपनी गलती का एहसास होता हैं। इस तरह मनोरंजन भी हुआ और सन्देश भी मिला। गुरूवार को भी सुरिंदर कौर की लिखी ऎसी ही झलकी सुनी - अनमोल दौलत। रक्षा बंधन का त्यौहार हैं। पत्नी सोचती हैं कि पति की बहन अमीर घराने में ब्याही हैं उसे क्या भेंट दी जाए। जब बहन आती हैं तब लगता हैं उसके लिए स्नेह का बंधन ही अनमोल भेंट हैं। अच्छा तो लगा पर इस झलकी का प्रसारण किसी भी दृष्टि से उचित नही लगा। राखी पूनम के अवसर पर सुनवाते तो अच्छा लगता दूसरी बात दो दिन पहले ही दिल्ली केंद्र का धारावाहिक प्रसारित हुआ था, फिर से उसी केंद्र की झलकी और निर्देशक भी वही। वैसे भी गंभीर धारावाहिक के बाद एक सिर्फ मनोरंजन करने वाली झलकी की कमी महसूस हुई।

3:30 बजे से 4 बजे तक प्रसारित होने वाले नाट्य तरंग कार्यक्रम में शनिवार और रविवार को गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के लिखे मूल बंगला उपन्यास चोखेर बाली का रेडियो नाट्य रूपांतर सुनवाया गया - आँख की किरकिरी। यह उपन्यास इतना लोकप्रिय हैं कि इसका कथानक बहुत से लोग जानते हैं। नारी के दो रूप - एक सरल ह्रदय और दूसरी व्यावहारिक। पुरूष की प्रेम भावना कभी एक ओर तो कभी दूसरी ओर आकर्षित करती हैं। सरल पत्नी आशा को छोड़ महेंद्र विनोदिनी के साथ कही चला भी जाता हैं पर विधवा विनोदिनी उसे अपनाने से इन्कार कर देती हैं। रूपान्तरकार और निर्देशक हैं नंदलाल शर्मा। प्रस्तुति जयपुर केंद्र की हैं। कलाकारों के नाम नही बताए गए। गुरूदेव की 125 वी जयंति के अवसर पर यह प्रस्तुति अच्छी लगी।

यह एक अनमोल रचना और दूसरा समाज में जागरूकता का सन्देश देता धारावाहिक - दोनों उच्च स्तरीय प्रस्तुतियों के लिए हम विविध भारती के आभारी हैं।

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