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Saturday, April 12, 2008

चित्रशाला

बहुत समय पहले विविध भारती से एक कार्यक्रम प्रस्तुत हुआ करता था - चित्रशाला

जहां तक मुझे याद आ रहा है यह एक पत्रिका कार्यक्रम की तरह था जिसमें कवि अपनी कविताएं, सुनाते रोचक वार्ताएं होती और किसी गीतकार के लिखे गीत प्रसारित होते। यह कार्यक्रम रात में आठ बजे से सप्ताह में एक बार प्रसारित होता था।

यह कार्यक्रम चित्रशाला ही था या कुछ और यह तो पीयूष महेता जी ही बता सकेगें शायद।

हमें तो याद आ रही है इसमें प्रसारित एक हास्य कविता जो उन दिनों साहित्य जगत और समाज में भी लोकप्रिय हुई थी। कवि थे शायद ओमप्रकाश अग्रवाल। कविता में आधुनिक विवाह बताया गया था।

विवाह की सभी रस्में आधुनिक थी। सबसे अच्छे लगे थे फेरे जहाँ दूल्हे और दुल्हिन के सामने एक-एक स्टोव रखा था। कविता की पंक्तियाँ थी -

पंडित ने मन्त्र पढा दूल्हे ने सामने स्टूल पर रखे स्टोव में पंप मारा
पंडित ने मन्त्र पढा दुल्हिन ने पंप मारा

इससे ज्यादा मुझे याद नहीं आ रहा। बाद में शायद यह कार्यक्रम ही बंद हो गया।

कुछ ही समय पहले तक चित्रशाला नाम से पाँच मिनट की लघु वार्ता प्रसारित होती थी जो सवेरे और शाम में ६:५५ पर प्रसारित होती थी। दोनों समय एक ही वार्ता प्रसारित होती थी ऐसा सुना था। यहाँ हैदराबाद में केवल सवेरे की वार्ता प्रसारित होती थी।

रोज के विषय अलग होते थे। एक दिन विज्ञान वार्ता, एक दिन काव्य पाठ होता जो कभी-कभी कवि सम्मेलनों से लिए गए अंश भी होते थे। एक दिन हरिवंश राय बच्चन का काव्य पाठ भी सुना जो कवि सम्मेलन का अंश ही था।

शनिवार या रविवार को वार्ता होती थी - मजहब नहीं सिखाता जिससे बहुत सारी भ्रान्तियाँ दूर होती थी। एक दिन नदियों के बारें में भी वार्ता होती थी। इसे मानवीकरण (परसौनिफिकेशन) कर प्रस्तुत किया जाता था जैसे वार्ताकार कहते -

मैं गोदावरी हूँ। मैं .... से निकलती हूँ.... और सारी जानकारी दी जाती जिसमें नदियों पर बनाए गए बांधों के बारे में भी उपयोगी जानकारी होती।

ऎसी वार्ताएं विभिन्न केन्द्रों से मंगाई जाती। हैदराबाद केन्द्र द्वारा तैयार आंध्र प्रदेश की नदियों की जानकारी पर वार्ताएं भी प्रसारित हुई।

इस तरह रोज एक विषय पर उपयोगी जानकारी मिलाती थी। अगर इस पाँच मिनट के कार्यक्रम को दुबारा शुरू करें तो अच्छा रहेगा। आजकल और भी नए विषय भी इससे जुड़ते जाएगें और साथ ही बहुत सी जानकारियां मिलेगी विभिन्न क्षेत्रों से जैसे अपनी परम्पराएं, सांस्क्रृतिक धरोहर , इतिहास , भूगोल ...

2 comments:

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

चित्रशाला कार्यक्रम एक निश्चित समय काल के लिये आपके बताये समय पर यानि रात्री ८ बजे जरूर था । बादमें कुछ समय काल के दौरान वह बंध कर दिया गया था, पर इस कार्यक्रममें जिस प्रकारकी रचनायें, जैसे की कवियोंकी कविताओं का उनके ही द्वारा पठ़न, लघू-वार्ताएं, किसी स्थल के बारेमें जानकारी (वर्णन-यह गुजराती शब्द है, इस वक्त हिन्दी शब्द ठीकसे मनमें आ नहीं रहा है । सागरभाई से क्षमा याचना), और प्रसंगानुरूप बातें ( जैसे भारतमें रेडियो प्रसारण के समय श्री मनोहर महाजन साहब द्वारा विषेश प्रस्तूती वगैरह को दो पहर के ३ से ३.३० तक प्रस्तूत विविध रंगी इन्द्रधनूष कार्यक्रममें शामिल किया जाने लगा। बादमें दिनमें १.१५ से १.३० दौरान जो बिते हुए पिछ़ले दिन के रात्री ७-४५ से ८ तक के कार्यक्रमके पुन: प्रसारणके स्वरूप वाला इन्द्रधनुष आया । तब चित्रशाला सुबह अर्पण के ६ से ६.४० तक के २० मिनट के कार्यक्रम के बाद फिरसे आया, जिसका पुन: प्रसारण दो पहर १.१० पर किया जाता था । बादमें शुरूमें अनुरंजनी के कारण पुन: प्रसारण गायब हुआ, और बादमें अर्पण की अवधि को ६.५५ तक करके यह चित्रशाला पूरा गायब किया गया ।

Nimmy said...

स्वर्गीय ओमप्रकाश आदित्य जी की रचना है ये। दूल्हा मारे पुमो स्टोव में, दुल्हन मारे पंप स्टोव में..

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