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Tuesday, May 27, 2008

रेडियोनामा: एक सुर बेसुरा सा…

रेडियोनामा: एक सुर बेसुरा सा…
श्री अन्नपूर्णाजी,

आपकी चाह सही है । पर संगीत सरिता के निर्माण और प्रसारण की जो तराह बनी है उसमें इस बातका होना ज्यादा हद तक ना मुमकीन बना हुआ है ।

एक तो पूर्व ध्वनिआंकित कार्यक्रम और श्रंखला बद्ध प्रसारण और कार्यक्रम निर्माण पूरा होने के बाद प्रसारण तारीखे तय होना । अगर इस तरह की श्रद्धांजलिया~ संगीत सरितामें कोई श्रंखला की कोई किस्त का प्रसारण कोई कोई दिन आने वाले दूसरे दिन पर तय करके इस तरह के विषेष श्रद्धांजलि कार्यक्रम प्रस्तूत किये जाये तो इस कि कोई गेरन्टी नहीं कि आने वाले दूसरे दिन भी कोई इस तरह के शास्त्रीय संगीत से जूडे़ कलाकार की जन्म तिथी या पूण्य तिथी नहीं आयेगी । तो इस प्रकार की श्रंखलाओं के समाप्ति तक कितने दिनों के अन्तराल आयेंगे । कहीं आपको ऐसा तो नहीं लगेगा कि युनूसजी और महेन्द्र मोदी साहब का काम मैं कर रहा हू~ । वैसए श्री एनोक डेनियेल्स और श्री अमीन सयानि साहब के विडियो वाले पोस्ट पर प्रतिक्रिया की अपेक्षा रख़ने का मूल उदेश्य ज्यादा लोगो की खुशी की बातोंको उन तक पहोंचाना था, क्यों कि लोगो की चाह उम्रके इस पडाव पर उन जैसे लोगो के जीवन की ताक़त और जीने की चाह बनती है । वैसे यह बात किसी भी व्यक्ति के लिये सहज है । आशा है आप और अन्य पाठ़क मूझसे सहमत होगे ।
पियुष महेता ।

2 comments:

Anonymous said...

पीयूष जी मैं आपसे सहमत नहीं हूँ। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में इतनी ढेर सारी हस्तियाँ नहीं है कि हर दिन किसी न किसी का जन्मदिन और पुण्यतिथि आ जाए। फ़िल्मी हस्तियों की तुलना में शायद ये कलाकार 10% ही होगें जबकि फ़िल्मी हस्तियों के लिए भी ऐसे कार्यक्रम रोज़ नहीं होते।

यह भी ज़रूरी नहीं है जिस दिन निधन हुआ है उसके तुरन्त द्सरे दिन ही कार्यक्रम प्रसारित हो 2-4दिन में भी किए जा सकते है।

26 जनवरी के अवसर पर दिए जाने वाले पद्म पुरस्कारों की जानकारी तो नहुत पहले ही समाचारों में आ जाती है। इसी तरह जन्मतिथि की जानकारी भी पहले से ही होती है।

खेद तो इस बात का है कि ऐसी एक भी कड़ी प्रसारित नहीं हुई।

मैं जानती हूँ कि आप सुधी श्रोता है यूनुस जी की तरह आपका विविध भारती से संबंध नहीं है।

वैसे आपके सभी चिट्ठे मुझे अच्छे और सही लगते है। आज के मेरे चिट्ठे को आप दुबारा पढिए आप मेरी इस टिप्पणी से सहमत होंगें।

अन्नपूर्णा

Anonymous said...

इसमें आपसे मूलभूत रूपसे असहमती की कोई बात ही नहीं है । पर मेरे हिसाबसे अगर शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम का स्वरूप अगर अनुरंजनी जैसा हो तो आपके सूचन का अमल कुछ: हद तक सरल हो जायेगा इतना ही कहना है ।
पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१.

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