संगीत सरिता में विभिन्न रागों की बारीकियाँ बताई जाती है। वाद्यों के बारे में समझाया जाता है। यह सब सुन कर शास्त्रीय संगीत का अच्छा ज्ञान होने लगता है।
इसके साथ-साथ मेरी संगीत यात्रा श्रृंखला में संगीतज्ञों की पूरी यात्रा उन्हीं की ज़ुबानी सुनाई जाती है जिससे उनकी शिक्षा, उनके कार्यक्रम, पुरस्कार सम्मान आदि के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है।
पर कभी किसी कार्यक्रम में यह नहीं सुना कि आज अमुक कलाकार का जन्मदिन है, पुण्यतिथि है, उन्हें अमुक सम्मान मिला है। यहाँ तक कि हर साल गणतंत्र दिवस पर विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए सरकार पद्म पुरस्कार प्रदान करती है। इस सिलसिले में शास्त्रीय संगीत के कई कलाकार सम्मानित हुए। इतना ही नहीं विदेशों में भी भारतीय कलाकार सम्मानित होते है पर कभी विविध भारती ने इसकी चर्चा नहीं की।
कई बार विभिन्न कार्यक्रमों में सुनने को मिलता है कि आज अमुक गायक कलाकार या संगीतकार या गीतकार या निर्माता-निर्देशक का जन्मदिन या पुण्य तिथि है या उन्हें अमुक सम्मान मिला है और शुरू हो जाता है उनके गीतों का सिलसिला।
यह सिलसिला भूले-बिसरे गीतों से शुरू होता है। सुहाना सफ़र में, मन चाहे गीत में गीत बजते है। यहाँ तक कि अक्सर एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम भी समर्पित हो जाता है।
फ़िल्मी दुनिया के अलावा कुछ और हस्तियों को भी याद किया जाता है जैसे सखि-सहेली में कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स। और तो और जब भारत की क्रिकेट टीम कहीं मैच जीतती है तब मन चाहे गीत में भी उन्हें बधाई दे दी जाती है। पर खेद है कि संगीत सरिता में ऐसा कभी कुछ नहीं होता।
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कई कलाकार हमारे साथ है जो अब भी शास्त्रीय संगीत की परम्परा बनाए रखे है। कुछ हमसे बिछुड़ गए। आख़िर यह हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है इतनी महत्वपूर्ण फ़िल्में तो नहीं।
मानते है कि विविध भारती के कार्यक्रम फ़िल्मों से ही अधिक जुड़े है पर संगीत सरिता जैसे कार्यक्रमों का अपना महत्व है जिनका अपनी संस्कृति को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान है। रोज़ संगीत सरिता सुनने पर भी पता ही नहीं चलता कि किस महान संगीतज्ञ का जन्मदिन, पुण्यतिथि कब है। किसे, कब, क्या सम्मान मिला है।
आशा है इस कार्यक्रम में कलाकारों के योगदान को भी उचित समय पर उचित रूप में याद कर इस कार्यक्रम को कलाकारों के लिए समर्पित किया जाएगा। किसी महान संगीतज्ञ के जन्मदिन या पुण्यतिथि या उन्हें सम्मान मिलने पर संगीत सरिता में उनका गायन वादन प्रस्तुत कर उनकी शैली की चर्चा की जएगी।
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Tuesday, May 27, 2008
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4 comments:
आपकी बात से सहमत हूँ अन्नपूर्णाजी. शायद विविध भारती की विविशता यह है कि वह अपने आपको ’मास मीडियम’ मानता है और शास्त्रीय संगीत ’क्लास’से जुड़ा माना गया है. आपने उचित ही कहा कि सम्मानित होने की बेला,जन्मदिन , पुण्यतिथि या निधन पर विविध भारती शास्त्रीय संगीत के नामचीन हस्ताक्षरों को क्यों याद नहीं करती. जैसे अभी तबले के महाराजा..पं.किशन महाराज चले गए..उन्हें पर एक संगीत-सरिता तो समर्पित तो की ही जा सकती थी जिसमें थोड़ा उनका सोलो बज जाता और पं.शिव शर्मा,पं.हरिप्रसाद चौरसिया,उस्ताद ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ाँ,विदूषी सितारा देवी(जिनके साथ न जाने कितनी बार पंडितजी ने संगति दी)के वक्तव्य प्रसारित किये जा सकते थे. ऐसा इसलिये नहीं हो पाता अन्नपूर्णाजी क्योंकि विविध भारती निर्मात्री संस्था के रोल में कभी कभी ही होती है.जैसे अभी स्वर्ण जयंति प्रसंग पर कार्यक्रम बन रहे हैं मुम्बई में...लेकिन अधिकांशत: तो विविध भारती का फ़ॉरमेट ऐसा है कि वह पूर्व निर्मित चीज़ों का ही इस्तेमाल करती है. पिटारा , बाइस्कोप की बातें,यूथ एक्सप्रेस या ज़्यादा से ज़्यादा संगीत सरिता वहीं विविध भारती के स्टुडियोज़ में ही बनते हैं .शेष काम फ़िल्मी नग़मों से चलता है . और हाँ विविध भारती के पास बाक़ायदा कोई स्टाफ़ संगीत प्रोड्यूसर भी नहीं होता ...प्रोजेक्ट्वाइज़ कभी कभी ये काम आउटसोर्स करवा लिया जाता है. ये तो सुरीले एनाउंसर्स का करिश्मा कहिये अन्नपूर्णा जी जो अपना खून-पसीना बहाकर विविध भारती को जीवित रखे हैं..हाँ बिला शक शास्त्रीय संगीत के साथ सौतेला व्यवहार होता है..और ताज़ा ख़बर ये है कि रीजनल स्टेशन पर तो और भी बुरा हाल है...बिसमिल्ला मरें या किशन महाराज या विजय तेंडुलकर किसी स्टेशन के पर(मुम्बई पुणे के बारे में मैं कुछ कह नहीं सकता)याद नहीं किये गए...मुझे याद बेग़म अख़्तर और अमीर ख़ा साहब के इंतेकाल पर आकाशवाणी इन्दौर ने एक एक घंटे के श्रध्दांजली कार्यक्रम किये थे और गुणीजनों को बुलवा कर या ओ.बी.(स्टेशन से बाहर जाकर रेकॉर्डिंग करना)रेकॉर्डिंग कर वक्तव्य प्रसारित किये थे...तब आकाशवाणी एक जुनूनी संस्था हुआ करती थी अब वह पूरी की पूरी रस्मी संस्था बन गई है.और बुरे दौर की प्रतीक्षा है.
वर्तनी की कुछ त्रुटियों के लिये माफ़ी चाहता हूँ जो ऑनलाइन टायपिंग (जो ज़रा ज़्यादा ही भावुक होकर की गई है)क्षमा करें
कमाल है संजय भाई ।
आपकी बातों से लगा जैसे ये विविध भारती की अपनी बातें हैं ।
मैने कभी कहा था न युनूस भाई ..माँ ने तो जन्म दिया है बोलना विविध भारती ने सिखाया.इस लिहाज़ से वह मेरी मौसी हुई.मौसी के आँचल की ख़ुशबू हर वक़्त स्पंदित करती रहती है.बस सशरीर वहाँ नहीं रह पाता ...रूह तो विविध भारती के पास आकर ही तसल्ली पाती है.
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।