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Friday, May 2, 2008

कल विविध भारती पर होगा फिल्‍मों पर केंद्रित व्‍यंग्‍य सम्‍मेलन ' फिल्‍में आह फिल्‍में वाह' । आलोक पुराणिक भी इसमें शामिल हैं ।

मित्रो जैसा कि आप जानते हैं विविध भारती का ये स्‍वर्ण जयंती वर्ष है । और पूरे साल हर महीने की तीन तारीख़ को विविध भारती पर विशेष आयोजन किये जा रहे हैं । ये सिलसिला अक्‍तूबर में शुरू हुआ था और देखते देखते हम तीन मई तक आ पहुंचे हैं । मैंने सोचा तो ये था कि कल सुबह-सुबह इस आयोजन का विवरण देता, लेकिन फिर लगा कि अगर आज से बता दिया जाए तो लोगबाग अपना शेड्यूल व्‍यवस्थित कर लेंगे । जगह बना लेंगे विविध भारती के लिए अपने व्‍यस्‍त दिन में ।

हां तो तीन मई का विविध भारती का विशेष आयोजन है ‘फिल्‍में आह फिल्‍में वाह’ । ये फिल्‍मों पर केंद्रित एक व्‍यंग्‍य सम्‍मेलन है । इस व्‍यंग्‍य सम्‍मेलन में हिस्‍सा लेंगे कुछ मशहूर व्‍यंग्‍यकार । ज़रा फेहरिस्‍त जांचिए-

भोपाल से ज्ञान चतुर्वेदी, जिनकी पुस्‍तक बारामासी पर्याप्‍त चर्चित है । नया ज्ञानोदय में आप इनका नियमित कॉलम भी पढ़ते हैं ।

जयपुर से आए यशवंत व्‍यास । जो 'अहा! जिंदगी' के संपादक भी हैं । इनकी पुस्‍तक 'कॉमरेड गोडसे' भी महाचर्चित और पुरस्‍कृत हो चुकी है ।

ग़ाजियाबाद से आए आलोक पुराणिक ब्रह्माण्ड के सबसे धांसू रचनाकार हैं । ब्‍लॉगिंग की दुनिया में सक्रिय लोगों तक आलोक का आलोक ना पहुंचा हो ऐसा कैसे हो सकता है ।

इंदौर से आए 'प्रभात किरण' के संपादक और बेहतरीन व्‍यंग्‍यकार प्रकाश पुरोहित । जिनकी बीस कम पचास और अटकल पंजे बारह जैसी पुस्‍तकें चर्चित हैं ।

मुंबई के यज्ञ शर्मा जो नवभारत टाइम्‍स मुंबई में खाली पीली नामक और दिल्‍ली संस्‍करण में निंदक नियरे नामक कॉलम लिखते हैं ।

इन दिग्‍गजों के बीच इस कार्यक्रम का संचालन आपके इस दोस्‍त यूनुस ख़ान और मेरे वरिष्‍ठ सहयोगी कमल शर्मा ने किया है ।

अब ज़रा समय भी नोट कर लीजिए ।

शनिवार को दिन में ढाई बजे से लेकर शाम साढ़े पांच बजे तक ।

भाई रवि रतलामी इस कार्यक्रम के लिए रेडियोनामा पर संभवत: वही करेंगे जो उन्‍होंने पिछली बार किया था ।

तो ज़रूर सुनिए विविध भारती का बंपर व्‍यंग्‍य सम्‍मलेन -' फिल्‍में आह- फिल्‍में वाह'

Saturday, October 13, 2007

विविध भारती के नाम एक मुख़्तसर लेकिन प्यार भरी चिट्ठी

मेरे एक अज़ीज़ दोस्त हैं सुबोध होलकर। संगीत,साहित्य,कविता और उर्दू शायरी के क़द्रदाँ।
३ अक्टूबर को विविध भारती की पचासवीं सालगिरह के मौक़े पर मैने अपने कई मित्रों को एस एम एस कर सूचित किया कि आज हमारे सबसे प्रिय रेडियो चैनल अपनी स्थापना का पचासवाँ वर्ष पूर्ण कर रहा है।जितना भी मुमकिन हो सके आज विविध भारती ज़रूर ट्यून करके रखें।कई मित्रों ने मेरे एस एम एस का जवाब एस एम एस से ही दिया और कईयों ने फ़ोन कर शुक्रिया अदा किया मेरी सूचना के लिये।

सुबोध भाई ज़रा निराले ही हैं
उन्होने न फ़ोन किया न एस एम एस
उन्होने मुझे एक प्यार भरी चिट्ठी लिखी
मज़मून कुछ इतना प्यारा था कि लगा रेडियोनामा के ज़रिये उसे आप तक पहुँचाऊँ
इसकी भी ख़ास वजह थी
वह यह कि एक संजीदा इंसान विविध भारती जैसी प्रतिष्ठित प्रसारण संस्था को किस नज़रिये
देखता है वह वाक़ई आनंददायक अनुभूति है

इस चिट्ठी को जस का तस यहाँ लिख रहा हूँ।

अक्टूबर/५/०७

प्रिय संजय भैया...
तुम ज़िन्दगी में नहीं होते
तो ये जीवन अधूरा सा रह जाता

अब कैसा भरा भरा सा लगता है

परसों सुबह की मानिंद तुम्हारा एस एम एस मिला
दिन धन्य हो गया

दिन भर विवध भारती सुनता -देखता रहा
काम जो थे वो सेकेन्ड्री थे, सो वैसे ही निपटते रहे

एक बात फ़िर शिद्दत से महसूस हुई कि
विविध भारती सिर्फ़ संगीत नहीं
साहित्य भी है
कविता है
दिल है
दर्द है
आंसू है

बाबूजी (सुबोध का इशारा संगीतकार सुधीर फ़ड़के की ओर है)
के एक गाने पर तो आँसुओं से कहीं आगे चली गई बात

रोऊँ तो समंदर हूँ
चुप हूँ तो सहरा

सुबोध


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