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Monday, May 30, 2016

पीपल पात सरिस मन डोला (पत्‍ता पत्‍ता बूटा बूटा आठवीं कड़ी)


और सब पेड़ों को उगते-बढ़ते देखकर हम हर्षित होते हैं लेकिन न जाने क्या बात है कि पीपल को
पनपते देख हम सिहर जाते हैं। पीपल के फल खाकर चिड़ियाँ बड़ी अजीब-अजीब जगहों पर बीट कर देती हैं और पीपल भी ऐसा ढीठ कि उस बीट से ही उग आता है। और तो और, उसे उगने के लिए समतल भूमि, उपजाऊ मिट्टी और खाद-पानी की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। दीवारों के बीच की दरारों में, नाली के मोखे पर, छत की मुँडेर के नीचे, कहीं भी जड़ जमा लेता है। उसे उखाड़ने को कहिये तो ज़्यादातर लोग कानों को हाथ लगा लेते हैं कि भैया, हमें माफ़ करो। हमसे यह काम नहीं होगा।

ग्रेटर नोएडा में मैं जहाँ रहती हूँ उसकी सबसे ऊँची मंज़िल पर सिर्फ़ एक आग-बुझावन टंकी है और लिफ्ट का अंतिम छोर। पानी की टंकी देखने सोसाइटी का प्लंबर श्रीकांत या लिफ़्ट की मशीन चेक करने इलेक्ट्रीशियन दीपक वहाँ जाते हैं। मैंने उन्हें दिखाया कि उस मंज़िल पर कई जगह पीपल उग रहे हैं और अगर उन्हें निकाला न गया तो वे दीवार और टंकी को नुकसान पहुँचा सकते हैं। दोनों ने मेरी बात पर सहमति व्यक्त की लेकिन पीपल उखाड़ने की हिम्मत दोनों में से किसी ने नहीं की। कई बार याद दिलाने के बाद बोले - "ऐसा करते हैं
, माली को आपके पास भेज देते हैं, आप उससे कह दीजियेगा।"

माली साहब बोले - "अरे मैडम
, ये हाथ से थोड़ो निकलेगा। किसी दिन फावड़ा लेकर आता हूँ तो निकाल दूँगा।"
इस बात को छह महीने बीत चुके हैं। उन्हें अब तक फावड़ा नहीं मिला है और पीपल के पत्ते अब भी वहाँ से मुझे मुँह चिढ़ा रहे हैं।

ऐसा क्यों है? खर-पतवार की तरह उग आये किसी और पौधे को उखाड़ने में तो हमें कोई झिझक नहीं होती, फिर पीपल का ऐसा ख़ौफ़ क्यों है?


नौकरी से रिटायर होने का एक फ़ायदा ये है कि इस तरह की बातों के बारे में सोचने-समझने और पढ़ने का समय मिल जाता है। तो मैंने भी थोड़ा विचार-मंथन किया। दो बातें ध्यान में आयीं। एक तो यह कि बचपन के तमाम किस्सों-कहानियों में पीपल के पेड़ पर भूत-प्रेत-पिशाचों का डेरा बताया जाता था। रात को पीपल के नीचे से गुज़रते हुए हनुमान चालीसा दोहराने की हिदायत हमने अपने बड़ों से पायी थी और अपने बच्चों को दी है। अगर आप वैज्ञानिक सोच के तहत इसे ख़ारिज करते हैं तो कर दीजिये। लेकिन तब मैं आप ही से अनुरोध करूंगी कि कृपया मेरी छत से उन अनचाहे पीपल के पौधों को उखड़वाने की व्यवस्था भी कर दीजिये।


दूसरी बात यह ध्यान में आयी कि गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है -  पर्वतों में मैं हिमालय हूँ, नदियों में गंगा हूँ और वृक्षों में अश्वत्थ यानी पीपल हूँ। तो इससे साबित हुआ कि जन मानस में यह भावना बहुत गहरे तक पैठ गयी है कि हिमालय, गंगा और पीपल में स्वयं भगवान का वास है और उनका कतई कोई अहित नहीं करना चाहिये।
गीता के पन्द्रहवें अध्याय का पहला श्लोक "ऊर्ध्वमूल अधःशाख अश्वत्थ" की चर्चा करता है, यानी एक ऐसा पीपल का पेड़ जिसकी जड़ तो ऊपर की ओर है और टहनियाँ नीचे की ओर। टीकाकारों का मानना है कि यह पीपल यह दृश्य जगत है जिसकी जड़ परमात्मा हैं। नीचे फैली टहनियाँ प्राणियों की विभिन्न योनियाँ हैं। जब तक व्यक्ति इस रहस्य को नहीं समझता तब तक इन्हीं शाखाओं में भटकता रहता है लेकिन जब वह ऊर्ध्व-मूल को पहचान लेता है तब उसे भव-बंधन से मुक्ति मिल जाती है।

यहाँ मुझे एक और व्यक्ति का ध्यान आया, जिसने ऐसे ही एक पीपल के नीचे बैठकर सांसारिक दुःखों से मुक्ति का मार्ग पा लिया था - सम्यक सम्बोधि प्राप्त की थी और पूरे संसार में भगवान बुद्ध के नाम से प्रसिद्धि पायी थी।
बोध गया में उस बोधि वृक्ष के दर्शन मैंने किये हैं। कहा जाता है कि ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक के पुत्र महिन्द और पुत्री संघमित्रा मूल बोधि वृक्ष के तले उगने वाले पौधे को लेकर श्रीलंका गये थे। बौद्ध धर्म के शत्रुओं ने जब बोधिवृक्ष को नष्ट कर दिया था तब श्रीलंका से उसी के अंश को लाकर यहाँ लगाया गया था। तब से आज तक वह वृक्ष, बुद्ध और उनके उपदेशों का प्रतीक बन वहीँ खड़ा है।

बुद्ध के समय से भी बहुत पहले, ईसा से दो हज़ार वर्ष पूर्व, सिंधु घाटी की सभ्यता में पीपल के मौजूद होने के सबूत मिलते हैं। हड़प्पा कालीन मिटटी के बर्तनों और मुहरों पर पीपल के पत्ते उकेरे हुए हैं।


बच्चे के जन्म के समय गाये जाने वाले सोहर गीतों में "पिपरी पिसाने" का ज़िक्र यह साबित करता है कि पीपल पिछले चार हज़ार सालों से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है।
पीपल के पेड़ की एक और ख़ास बात है। उसके पत्ते टहनी से इस तरह जुड़े होते हैं कि हर पत्ता पूरा 360 डिग्री घूम सकता है। हवा चलने पर यों तो सभी पेड़-पौधों के पत्ते हिलते हैं लेकिन कोई भी पीपल के पत्ते सरीखा नहीं घूमता। बल्कि हवा न भी हो तो भी पीपल के पत्ते हिलते-डुलते से लगते हैं। शायद इसीलिये तुलसीदास जी ने चलायमान चित्त की उपमा पीपल के पत्ते से दी है - पीपल पात सरिस मन डोला।


और पैसे कमाने के लिये परदेस गया पति जब नयी ब्याहता पत्नी के पास घर लौट रहा होता है तो उसके मन का हाल भी तो पीपल के पत्ते सरीखा ही होता है न?










पत्‍ता-पत्‍ता बूटा बूटा की सभी कडियां यहां क्लिक करके पढिए।

2 comments:

Sujoy Chatterjee said...

bahut sundar

Shubhra Sharma said...

Mithai Lal said :
बहुत ही सुंदर मैम ,
सच में आज भी लोग पीपल को भगवान मानते हैं और वह भगवान का ही रूप है ।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद मैम इतनी महत्वपूर्ण जानकारी हेतु ।

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