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Saturday, January 12, 2019

लखनऊ आकाशवाणी में उच्चारण की शुद्धता (तलफ़्फ़ुज़) पर हुई वर्कशाप

लखनऊ के आकाशवाणी केन्द्र में वहां काम करने वाले उद्घोषकों और विभिन्न रेडियो प्रोग्राम पेश करने वाले एन्कर्ज़ के लिए "किश्वरी कनेक्ट तलफ़्फ़ुज़ वर्कशाप" का आयोजन किया गया। आकाशवाणी व तल्हा सोसाइटी की ओर से उच्चारण की शुद्धता विषय पर चार दिवसीय कार्यशाला पिछले दिनों संपन्न हुई। इस प्रोग्राम के को-आर्डीनेटर थे --श्री प्रतुल जोशी, सीनियर प्रोग्राम एग्ज़ीक्यूटिव, आकाशवाणी लखनऊ।
मो. क़मर ख़ां उर्दू के हुरूफ़ से जान-पहचान करवाते हुए...
इस कार्यशाला के पहले दिन मो. क़मर ख़ां साहब ने उर्दू के हुरूफ़ के बारे में बताना शुरू किया, आसान अल्फ़ाज़ में ज़बान की बारीकियां समझाई ... वर्कशाप में शिरकत करने वाले आकाशवाणी लखनऊ के उद्घोषक और एंकर्ज़ की रूचि को देखते हुए ... ख़ां साहब का उर्दू के हुरुफ़ पढ़ाने का सिलसिला वर्कशाप के चारों दिन चलता रहा। इन चार दिनों में उन्होंने सभी हर्फ़ों की बनावट और बुनावट के बारे में जानकारी दी। उन्होंने भी विशेष तौर पर सही उच्चारण की अहमियत पर प्रकाश डाला। 


किस तरह से एक नुक्ता की वजह से बहुत बार लफ़्ज ही बदल जाता है ...उर्दू में   "स", "ज़" और  "त" के लिए कईं हर्फ़ हैं जिन के बारे में बारीकी से उन्होंने बताया ...क/ क़, फ/फ़ के इस्तेमाल के बारे में जानकारी दी...और हर हर्फ़ को लिखने और पहचान की पूरी जानकारी दी। 

यहां यह बताना मुनासिब होगा कि मो. क़मर ख़ां साहब को उन के अनूठे एवं प्रभावशाली ढंग के लिए प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उन के चार दिनों के सेशन को देख कर यही लगा कि जैसे उन्होंने समंदर को कूज़े में समो दिया हो। 
पहले दिन के समापन के मौके पर ..
वर्कशाप के दूसरे दिन मिसिज़ आयशा सिद्दिकी तशरीफ़ लाईं। वे एक मशहूर अफ़सानानिगार हैं। उन्होंने बहुत ही आत्मीयता से वर्कशाप के शिरका को सही तलफ़्फ़ुज़ के बारे में बताया। 
मिसिज़ ऑयशा सिद्दिकी, मशहूर अफ़सानानिगार ने भी तलफ़्फ़ुज़ के बारे में बहुत अहम्  बातें बताईं 
उन्होंने मीडिया में इस्तेमाल होने वाले दर्जनों ग़लत अल्फ़ाज़ की तरफ़ ध्यान दिलाया। जाने माने उर्दूदां के अशआर के ज़रिए सिद्दिकी साहिबा ने सही तलफ़्फ़ुज की अहमियत से वाक़िफ़ करवाया। आकाशवाणी के कर्मचारियों की तलफ़्फ़ुज़ से जुड़ी दिक़्क़तों को भी उन्होंने हल किया। 

मैडम सिद्दिकी साहिबा ने इस पर ज़ोर दिया कि जब भी रेडियो पर बोल रहे हैं तो लहजा लत़ीफ़ हो, नरम हो, जो बात कहें साफ़ हो, सुथरी हो, मिशरी की डली हो। और यह तभी संभव है जब बोलने वाले का तलफ़्फ़ुज़ दुरुस्त है। 
वर्कशाप के दूसरे दिन के समापन के अवसर पर
वर्कशाप के तीसरे दिन लखनऊ विश्वविद्यालय की रूसी भाषा विभाग की भूतपूर्व प्रोफेसर डॉ. साबरा हबीब ने कहा कि आज उर्दू के बहुत से शब्दों का गलत उच्चारण किया जाता है। जैसे- उर्दू में ख़वातीनों शब्द का इस्तेमाल बहुत लोग करते हैं जबकि सही शब्द ख़वातीन है जो ख़ातून का बहुवचन है। इसी तरह अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल किया जाता है जबकि सही शब्द अल्फ़ाज़ है जो लफ़्ज़ का बहुवचन है। 
डॉ साबरा हबीब का स्वागत करते हुए श्री प्रतुल जोशी, सीनियर प्रोग्राम एग्ज़ीक्यूटिव 
मिसेज कुलसुम तल्हा प्रोग्राम में शिरकत करने वालों को "तलफ़्फ़ुज़ और हम" मिशन के बारे में बताते हुए ...
डॉ. साबरा कुछ स्क्रिप्ट्स लिख कर लाईं थीं जिन्हें बारी बारी से वर्कशाप में शिरकत करने वाले उद्घोषकों ने पढ़ा। कर्मचारियों ने इस हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग में बड़े उत्साह से भाग लिया। 
 और वर्कशाप का तीसरा दिन भी सम्पन्न हुआ 
इस वर्कशाप के आख़िरी दिन जनाब शन्नै नक़वी ने फ़ैज़, ख़ुमार बाराबंकवी और फ़िराक़ गोरखपुरी की ग़ज़लें सुनाईं .. 
जनाब शन्नै नक़वी ने गज़लों से समां बांध दिया 

जनाब शन्नै नक़वी, श्री प्रतुल जोशी, सुश्री नूतन वशिष्ठ और सुश्री कुलसुम तल्हा  
डॉ साबरा हबीब ने कुछ शायरी और कुछ किस्सों के ज़रिए तलफ़्फ़ुज के बारे में फ़रमाया ...
तल्हा सोसाइटी की संयोजक कुलसुम तल्हा ने कहा कि लखनऊवासियों को गर्व है कि हम दुनिया में अपनी मीठी ज़बान की वजह से पहचाने जाते हैं। आकाशवाणी लखनऊ के सीनियर प्रोग्राम एग्ज़ीक्यूटिव श्री प्रतुल जोशी ने हिन्दी शब्दों के सही उच्चारण पर जानकारी दी। और नागार्जुन जी की रचना "बादल को घिरते देखा है" का पाठ किया, जिसे सभी ने बहुत सराहा।  वर्कशाप के समापन के दौरान भी उन्होंने इस आयोजन की प्रेरणा का पूर्ण श्रेष्य आकाशवाणी लखनऊ के निदेशक, श्री पृथ्वीराज चौहान साहब को दिया।  
श्री प्रतुल जोशी ...नागार्जुन जी की रचना "बादल को घिरते देखा है" का पाठ  करते हुए ..
आकाशवाणी लखनऊ की सुश्री दीप्ति जोशी ने भी अपने डाक्टर पति द्वारा रची एक गज़ल सुनाई 
आकाशवाणी लखनऊ के जनाब मज़हर जमाल ने भी अपनी एक गज़ल सुनाई  
और ऐसे ही इस वर्कशाप के समापन का वक़्त भी आ पहुंचा 

इस वर्कशाप को विभिन्न अख़बारों में भी जगह दी गई। 

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