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Tuesday, December 30, 2008

रेडियोनामा: भूले बिसरे गीत या जाने पहचाने गीत?

रेडियोनामा: भूले बिसरे गीत या जाने पहचाने गीत?

वैसे श्रोता लोग में भी हर श्रोता की सोच एक दूसरे से कुछ: मिलतेरे और कुछ: अलग सी होती है, और इसी तरह के कई पत्र विविध भारती के पत्रावली कार्यक्रममें लोग लिख़ते ही रहते है । जब हम इस ब्लोग के गीने चूने लेख़क या कुछ: टिपणी लेख़क की राय पूरी तरह एक नहीं होती तो विविध भारती को इस कार्यक्रम के लिये अपनी नीति तय करना या उसी को ही हर हमेंश कायम रख़ना कितना मुश्कील होगा । इसी लिये कोई समय-कालमें इस कार्यक्रममें लोकप्रिय पूराने गाने आते है तो कुछ: समय कालमें पूराने पर नये गाने आते है । या कभी कभी सब प्रकारके श्रोताके बीच संतुलन रख़ कर विविध भारती दोनों प्रकार गाने प्रस्तूत करती है । क्योंकी इसी पसंद पर आधारीत है, विज्ञापन से होने वाली आय । पर एक बात है कि गाने कितने भी अच्छे हो, साहितीक या संगीत या गायिकी के अलग या सभी रूपो से पर बार बार सुनने पर हमारा ध्यान स्वाभाविक रूपसे उसकी और चिंचाना थोड़ा सा कम तो होगा ही होगा चाहे वे सायगल साहब के सुमधूर गाने भी क्यों न हो । इसी दोनो तरफ की बातको मध्य नज़र रखते हुए मेरा यह सुचन था कि कार्यक्रम का नाम बदल कर कुछ: इस तरह का रख़ा जाये जिसमें पूराने या उसका समानार्थी शब्द शामिल हो पर भूले बिसरे या सदा बहार शब्द नहीं हो और समय समय पर दोनों प्रकार के गीत बजते रहे । अन्नपूर्णाजी से खास कहता हूँ, कि विविध भारती पर भी कई गाने ऐसे आये जिसको मैनें पहली सुना पर इसमें एक बात सामने आयी कि ऐसे गानो में से कुछ: थोडेसे गानो को छोड ज्यादा तर गाने 1961 से 1970 तक की फिल्मो के लगते है और कुछ: गाने 1960 से पहेले के शायद है, जब कि रेडियो श्री लंका पर इसी दिनोंमें हर बुधवार पूरानी फिल्मों के गीतो के कार्यक्रममें भूले बिसरे गीत आते है जो मेरे लिये आज भी कुछ: पहली बार सुनाई पड़ने वाले भी होते है वे 1960 से पहेले के और वे भी तीनों दसक के भी होते है । यहाँ एक बात मैं पहेले कहीं किसी पोस्ट में लिख़ी भी होगी की रेडियो श्रीलंका से इस प्रकार के उनके संग्रहमें होने पर भी कभी प्रसारित नहीं हो सके ऐसे गानो को ले कर जब श्री मनोहर महाजन साहब रेडियो सिलिन पर थे तब उन्होंनें ही शुरू किया था जो आज श्रीमती ज्योति परमारजीने जारी रख़ा है । आकाशवाणी का एक प्रादेशिक केन्द्र इसी प्रकार का एक माहवार कार्यक्रम इस प्रकार के संग्राहको को आमंत्रीत कर के करता है उसका एक नमूना सुनने के लिये जल्द ही आनेवाली मेरी अगली पोस्ट का इंतेझार किजीये । तब तक के लिये सभी पाठकों को आने वाले नये साल की सुभ: कामना और विविध भारती के मूख़्या श्री महेन्द्र मोदी साहब और उनके अभियंता श्री अजय श्रीवास्तव साहब तथा पूरे विविध भारती दल को भी नये साल की शुभ: कामनाएं ।

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत-395001

बाबुल की गलियाँ फ़िल्म का अनोखा गीत

बहुत दिनों से विविध भारती पर नहीं सुनवाए गए गीतों की श्रृंखला में आज मैं याद दिला रही हूँ बाबुल की गलियाँ फ़िल्म का गीत। यह शायद एक ही फ़िल्म है जिसमें हेमामालिनी और संजय (ख़ान) ने एक साथ काम किया। यह युगल गीत है जिसमें आवाज़ें किशोर कुमार (या शायद रफ़ी साहब) और आशा भोंसलें की है। संवादों से सजा यह गीत पहले विविध भारती, रेडियो सिलोन और क्षेत्रीय केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था। अब तो बरसों हो गए नहीं सुने (रेडियो से)

वर्ष 1972-73 के आस-पास रिलीज़ इस फ़िल्म के इस गीत के बोल है -

एक चीज़ माँगते है हम तुमसे पहली बार (किशोर)
एक चीज़ माँगते है

अच्छी सी फ़रमाइश करना (आशा)
सुनने से पहले क्या डरना (किशोर)
माँगो बाबा कुछ भी माँगो (आशा)
माँगू (किशोर)
हाँ हाँ (आशा)
दिल पर रख कर हाथ करो पहले हमसे इक़रार (किशोर)
एक चीज़ माँगते है

(यहाँ भी शायद कुछ बोल है)

रात को खिड़की खोल के रखना (किशोर)
हाय राम, कौन सी (आशा)
हाँ हाँ हाँ रात को खिड़की खोल के रखना (किशोर)
दो नयनों से बोल के रखना
आगे बोलो (आशा)
यही, आए मेरे सपने तो फिर करना ना इंकार (किशोर)
एक चीज़ माँगते है हम तुमसे पहली बार

एक चीज़ माँगते है हम तुमसे पहली बार (आशा)
अब जो मिलना
अच्छा जी (किशोर)
अब जो मिलना बाँध के सेहरा ही मिलना सरकार (आशा)
तो अगले इतवार (किशोर)
जी सरकार (आशा)
अच्छा है त्यौहार हा… हा… हा… (दोनों)

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Monday, December 29, 2008

भूले बिसरे गीत या जाने पहचाने गीत?

रेडियोनामा में कई महीनों बाद लिख रहा हूँ।
पिछले कई महीनों से देख (आइ मीन सुन रहा हूँ) रहा हूँ भूले बिसरे गीत कार्यक्रम में जो गाने सुनवाये जा रहे हैं, वे भूले बिसरे ना होकर जाने जाने पहचाने होते हैं। अभी परसों ही अनाउंसर महोदय ने चुन चुन जाने पहचाने गीत सुनाये, मसलन राजहठ फिल्म का आये बहार बन कर लुभा कर चले गये.... अब यह गीत किस संगीत प्रेमी के लिये अन्जाना होगा।
अनाउंसर महोदय ने साथ में बताया भी कि ये सारे गाने अत्यन्त लोकप्रिय हुए थे।
महोदय जो गाने अत्यन्त लोकप्रिय हुए थे वे तो हम कहीं भी सुन लेंगे/लेते हैं। कम से कम भूले बिसरे गीतों के कार्यक्रम में तो वास्तव में भूले बिसरे या वे गीत सुनायें जो मधुर तो थे परन्तु ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुए
एक और भी शिकायत है जो मैं रेडियोनामा के जन्म के समय से करना चाह रहा हूँ पर मैं आलस का मारा आज तक कर नहीं पाया, इस कार्यक्रम के अन्त में बरसों से स्व. के एल सहगल के गीत ही सुनाये जाते हैं। यहाँ तक कि किसी अन्य कलाकार के विशेष अंक में भी, जैसे सुरैया स्पेशल के दिन भी अन्तिम गाना तो सहगल साहब का ही रहा, सुरैया का नहीं।
भई क्या भूले बिसरे गीत सिर्फ सहगल साहब के होते हैं? कम से कम इस कार्यक्रम को नियमित सुनने वाले के लिये तो सहगल साहब के गीत दुर्लभ या अन्जाने हो ही नहीं सकते। फिर क्यों जबरन इस प्रणाली को चालू रखा हुआ है, अन्य गायकों के दुर्लभ गीत भी सुनवाये जा सकते हैं, जैसे सुप्रसिद्ध निर्देशक राज खोसला के गाये हुए गीत!!!! हां जी राज खोसला ने गीत भी गाये हैं; और तो और राजकपूर ने भी!
स्व. मदन मोहन का गाया हुआ गीत माई री मैं कासे कहूं, नूरजहां, मास्टर मदन के गीत... आदि जैसे गीत क्यों सुनवाये नहीं जाते। सहगल साहब के गीत को ही अन्तिम स्थान पर क्यों? उन्हें अगले क्रम में भी रखा जा सकता है, और निचले/अन्तिम क्रम में कोई और गीत भी सुनाये जा सकते हैं।
आप क्या कहते हैं रेडियोप्रेमी दोस्तों?

Sunday, December 28, 2008

श्री गोपाल शर्माजी- 100 साल तक बोलते रहीए । जन्म दिन की बधाई

आज मशहूर उद्दघोषक श्री गोपाल शर्माजी की साल गिराह है तो इस मोके पर हम सब की और रेडियोनामा की और से उनके स्वथ और लम्बे आयुष्य के लिये शुभ: कामनाएं । कल मुम्बईमें श्री सुमन चोरसिया के पुस्तक की रिलीझ के उपलक्षमें हमारे साथी श्री युनूसजी की कम्पेरिंगमें एक कार्यक्रम का आयोजन तय था, जिसमें श्री गोपाल शर्माजी मूख़्य मेहमान के रूपमें थे और उनको लाने और वापस घर पहोंचाने का जिम्मा भी युनूसजीने ही लिया था तो युनूसजी को इनका अच्चा खासा सानिध्य प्राप्त हुआमेरी मुम्बई यात्रा के उपलक्षमें एक हप्तेमें श्री गोपाल शर्माजी के घर पर की गई मेरी मुलाकात पर एक पोस्ट जारी की थी, जिसमें मेरी उनके साथ ख़िंचाई हुई तसवीर भी किखाई थी । तो इसका पुन: प्रकासन टालते हुए इस बार श्री अमीन सायानी साहब द्वारा विविध भारती पर प्रस्तूत स्वर्ण-जयंती विषेष प्रसारण का हिस्सा बनी हुई श्रृँहला का एक अंश यहाँ प्रस्तूत किया है, जिसमॆं श्री अमीन सायानी साहब श्री गोपाल शर्माजी के लिये क्या कहते है और साथमें गोपाल शर्माजी की रेडियो प्रस्तूती सुनिये ।


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कल रेडियो श्त्री लंकासे निवृत पर क्रेझ्यूल उद्दधोषिका ने भी उनको आज के दिन की बधाई देतेइषेष रूओ हुए चार साल पहेले की शर्माजी की श्री लंका यात्रा के समय उनके द्वारा विषेष् रूपसे प्रस्तूत किये गये पूरानी फिल्मो के संगीत को पुन: प्रसारित किया था ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.

Friday, December 26, 2008

साप्ताहिकी 25-12-08

क्रिसमस पर्व से यह सप्ताह ख़ास रहा।

सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद पुराणों से कथन के अलावा जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं, विदेशी कवि यीट्स के विचार बताए गए। क्रिसमस के दिन ईसा के नाम से तो नहीं पर संबंधित संदेश सुनाया गया। वन्दनवार में बहुत दिन बाद सुना हरिओम शरण जी के स्वर में यह भक्ति गीत -

दुःख हरण प्रभु नारायण हे
त्रिलोकपति दाता सुखनाम
स्वीकारो मेरे परणाम

क्रिसमस के भक्ति गीत भी सुनवाए गए। सप्ताह भर अंत में सुनवाए गए देशगान भी अच्छे रहे जैसे -

ये भूमि हमारी वीरों की
हम हिन्दों की संतान है
हम भारत माँ की शान है

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम रविवार को संगीतकार वसंत देसाई और गुरूवार को संगीतकार नौशाद को समर्पित किया गया। वसन्त देसाई के कुछ भूले बिसरे गीत है पर नौशाद के अधिकतर गीत लोकप्रिय है। अन्य दिनों में भी एकाध लोकप्रिय गीत के साथ भूले बिसरे गीत बजते रहे। हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा। शुक्रवार को सुनवाया गया प्रेसीडेंट फ़िल्म का बच्चों की कहानी कहता यह गीत मुझे बहुत पसन्द है -

एक राजे का बेटा लेकर उड़ने वाला घोड़ा

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला गंधार गुंजन के पहले खण्ड में राग पीलू की चर्चा करते हुए ख़्यात कलाकार पंडित शरद साठे जी ने भजन प्रस्तुत किया - रघुवर तुमको मेरी लाज। यही भजन इस राग को सीखते समय हमें स्कूल में सिखाया गया था। इसके बाद राग काफ़ी की चर्चा के साथ पहला खण्ड समाप्त हुआ।

रविवार से गंधार गुंजन का दूसरा खंड शुरू हुआ जिसे प्रस्तुत कर रहीं हैं ख्यात गायिका कुमुदिनी काड़पड़े जी। इसमें ऐसे रागों की जानकारी दी जा रही है जिसमे शुद्ध गंधार स्वर लगते है। शुरूवात हुई राग भैरव से फिर बिलावल राग पर चर्चा हुई। इन सुबह गाए जाने वाले रागों के बाद दोपहर बाद गाए जाने वाले रागो में राग हिंडोल, कठिन राग गौरी की चर्चा की गई, बहुत प्रचलित राग यमन की भी चर्चा हुई और इसके लिए सहगल साहब का गीत सुनवाया गया - दो नैना मतवारे। साथ ही हर राग पर बंदिशे भी प्रस्तुत की गई।

7:45 को त्रिवेणी में लोरी की भी चर्चा हुई, घर बनाने की भी बातें हुई। क्रिसमस पर प्रस्तुत अंक बहुत अच्छा रहा। आलेख, प्रस्तुति, गीतों का चुनाव, सुनवाने का क्रम सभी बढिया रहा।

दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आईं सलमा जी, फ़िल्में रही आखिर क्यों, जीने की राह, हमराज़, हीर रांझा, लोफ़र, नाइट इन लन्दन, हसीना मान जाएगी जैसी साठ से अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार को बसन्त बहार, ये रात फिर न आएगी, मेरे हुज़ूर, आँखें, फिर वही दिल लाया हूँ, एक बार मुस्कुरा दो, शंकर हुसैन, जैसी पचास साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं शहनाज़ (अख़्तरी) जी। रविवार को दिलीप कुमार जी की फ़िल्में चुनी गई जैसे गोपी, लीडर, कर्मा, राम और श्याम, विधाता। मंगलवार को आईं शहनाज़ (अख़्तरी) जी फ़िल्में रही अर्पण, राजा, संघर्ष, आए दिन बहार के, राजा हिन्दुस्तानी, दिल से, गंगा की लहरें जैसी नई पुरानी
फ़िल्में। इस तरह पूरे सप्ताह पचास के दशक से लेकर नई फ़िल्मों तक के गीत श्रोताओं के संदेशों के आधार पर सुनने को मिले।

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में माशूका एलबम से कुमार शानू और अलका याज्ञिक का गाया समीर का लिखा गीत अच्छा रहा -

होते होते होते होते प्यार हो गया
एक चेहरे से मुझे प्यार हो गया

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में आदमी और इंसान, दीवार, राजा हिन्दुस्तानी जैसी साठ के दशक से अब तक की फ़िल्मों के गीत श्रोताओं के अनुरोध पर सुनवाए गए। कुछ ऐसे गीत सुनवाए गए जो बहुत दिनों से नहीं सुनवाए गए जैसे अहमद वसी साहब का लिखा ऊषा मंगेषकर और सुरेश वाडेकर का गाया फ़िल्म कानून और मुजरिम का यह गीत -

शाम रंगीन हुई है तेरे आँचल की तरह

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। कर्नाटक की एक सहेली अश्विनी ने लगता है शरारत की, बैंग्लोर से फोन किया, कुछ कुछ होता है फ़िल्म का गीत पसन्द किया पर बातचीत कन्नड़ भाषा में की। जब शहनाज़ जी ने हिन्दी में पूछा तो कहने लगी हिन्दी समझ नहीं पाती फिर अंग्रेज़ी में पूछे जाने पर जवाब दिया कि घरेलु महिला है और फ़िल्में देखती है और कार्यक्रम सुनती है। जो बिल्कुल भी हिन्दी न समझे उसे कैसे पता कि हैलो सहेली के लिए कब कैसे फोन करना है ? और भी ऐसे कई सवाल है, ख़ैर… सब ड्रामा है, कभी कभी ऐसा भी होना चाहिए। इस तरह की नई चीज़ों से भी ताज़गी रहती है, मज़ा आता है। इस बार घरेलु महिलाओं के साथ कुछ छात्राओं और काम करने वाली महिलाओं ने भी फोन किए। उनकी पसन्द के गीत सुनवाए गए जिनमें से नए गाने अधिक थे।

मंगलवार को सखि सहेली कार्यक्रम में करिअर बनाने के लिए दी जाने वाली जानकारी में विदेशो में पाठ्यक्रमो में प्रवेश की तैयारी की जानकारी दी गई। सखियों की पसन्द पर पूरे सप्ताह नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए।

शनिवार को क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद से तेलुगु में पर्यावरण से संबंधित प्रायोजित कार्यक्रम सुना - कोशिश सुनहरे कल की जिसका तेलुगु में शीर्षक है - पसीडी रेपटी प्रयत्नम

रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार गीत सुनवाए गए जैसे जानी मेरा नाम फ़िल्म का यह गीत -

पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले
झूठा ही सही

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में संस्कृत नाटककार भास द्वारा रचित नाटक स्वप्न वासवदत्ता का हिन्दी रेडियो नाट्य रूपान्तर सुनवाया गया जो कृष्णकान्त दुबे द्वारा किया गया जिसके निर्देशक है स्वतंत्र कुमार ओझा

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में आस पास की बातो के स्तम्भ में पानी पर एक श्रोता का लिखा लेख पढ़ कर सुनवाया गया। दुनिया देखो में मेघालय की संस्क्रृति खेती बाडी संबंधी लेख रेणु जी ने पढ़ कर सुनाया। किताबो की दुनिया में नोबुल पुरस्कार प्राप्त लुई के बारे में वार्ता प्रसारित हुई। विभिन्न कोर्सो में प्रवेश की जानकारी दी गई।

पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में पधारे पाकशास्त्री संजीव कपूर जी और साथ लेकर आए क्रिसमस के पकवानों की विधि। बातचीत की ममता (सिंह) जी ने। पारम्परिक क्रिसमस पुडिंग के बारे में जानना अच्छा लगा। वैसे क्रिसमस के अधिकतर व्यंजन ऐसे होते है जिसे ओवन में बनाया जाता है और निरामिश या माँसाहारी (नाँन वेज) होते है। इस बात का ख़्याल रखा ममता जी ने और आग्रह कर ऐसे व्यंजनों की विधि भी पूछी जो ओवन में न बना कर सामान्य रूप से बनाए जा सकते है।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में मौसमी चटर्जी से बातचीत सुनवाई गई। अपनी पहली ही हिन्दी फ़िल्म अनुराग से लोकप्रिय हुई इस अभिनेत्री का इस फ़िल्म का गीत भी शामिल रहा। अच्छी बातचीत रही। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए सभी से हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे। एक बात समझ में नहीं आती कि आजकल सेल फोन पर एफ़ एम पर विविध भारती सुनना आसान है। फोन इन कार्यक्रमों के लिए फोन करना इस तरह से बहुत आसान हो गया है। इसके बावजूद भी महानगरों से फोनकाल नहीं आते।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में सभी गीत सामान्य ही रहे।

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया गीतकार जलीस शेरवानी ने। पहली बार यह कहते सुना गया कि फ़ौजी भाइयों को नमस्कार और फ़ौजी भाइयों के साथ कुछ फ़ौजी बहनें भी काम करती होगी उन्हें भी नमस्कार। सच… यह सुनना बहुत अच्छा लगा, शुक्रिया जलीस साहब और धन्यवाद शकुन्तला (पंडित) जी। आशा है अभिवादन का यह क्रम टूटेगा नहीं। जलीस साहब ने खुद की फ़िल्मों के बारे में भी बताया और इधर उधर की बातें की और अंतिम गीत हकीकत फ़िल्म का सुनवाया और सभी नए गाने सुनवाए।

7:45 पर शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी के साथ पधारे महेन्द्र मोदी जी। इस बार भी कार्यक्रमों की तारीफ़ थी और कुछ सुझाव। एक श्रोता का भेजा गया सुझाव मुझे अच्छा लगा कि सेहतनामा कार्यक्रम को रात में दुबारा प्रसारित किया जाए। महेन्द्र मोदी जी ने कहा कि रात में गुलदस्ता, छाया गीत जैसे लोकप्रिय कार्यक्रमों के चलते शायद संभव नहीं होगा। पर यहाँ मेरा एक सुझाव है - रात मे जयमाला के बाद 7:45 पर सप्ताह में दो बार राग अनुराग कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है, जिसे सप्ताह में एक ही बार रखकर एक बार सेहतनामा प्रसारित किया जा सकता है। कुल सेहतनामा कार्यक्रम एक घण्टे का होता है जिसमें फ़िल्मी गीत भी शामिल होते है। इन गीतों को हटाने पर कार्यक्रम लगभग 45 मिनट का हो जाएगा जिसे तीन अंकों में तीन सप्ताह तक 7:45 पर 15 मिनट के लिए सुनवाया जा सकता है। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में गैर फिल्मी क़व्वालियाँ सुनवाई गई। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में मुंबई में प्राध्यापक, पक्षी निरीक्षक परवेश पांड्या जी से बातचीत सुनवाई गई। बहुत पहले पक्षी विशेषज्ञ सलीम अली जी के लेख पढ कर ज्ञान बढता था, फिर यह क्रम टूट सा गया था। अब लगता है विविध भारती ने इस विषय को गंभीरता से लेना शुरू किया है, इसके लिए हम धन्यवाद देगें महेन्द्र मोदी जी को। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने।

8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकियाँ दरबारी लाल (रचना संजय श्रीवस्तव निर्देशक कुमुद भटनागर) अटरिया पे चोर (रचना आशा मिश्रा निर्देशक कमल सक्सेना) भूत कौन (निर्देशिका अचला नागर), प्यारे लाल की शादी।

9 बजे गुलदस्ता में गीत और ग़ज़लें इस बार भी अच्छी सुनवाई गई। इस कार्यक्रम में ग़ज़ले अक्सर लंबी-लंबी सुनवाई जाती है।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में ख़ाकी, अभिलाषा जैसी नई पुरानी फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अभिनेत्री माला सिन्हा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। माला सिन्हा ने इस कडी में बी आर चोपडा को याद किया, बातें हुई गुमराह, धूल का फूल फिल्मो की। माला जी ने बिल्कुल ठीक कहा उस समय चोपडा साहब ने उन फिल्मो में जो दिखाया वो आज हो रहा है, समाज पर उनकी कितनी पकड़ थी कि आने वाले दिनों की समस्याओं को समझ कर फिल्मो में उतारते गए। गुमराह फ़िल्म का शशिकला के साथ प्रभावशाली सीन भी सुनवाया गया।

10 बजे छाया गीत में अपनी आदत के अनुसार युनूस जी अनमोल गीत ले आए। इस बार ऐसे गीत जो पहले बहुत लोकप्रिय रहे फिर बजना कम हो गए, इन्हें अब फिर से याद किया गया। यहाँ मुझे लगता है एक चूक हुई, दूसरा जो गीत सुनवाया गया वो भूला बिसरा गीत ही है, लोकप्रिय उतना नहीं है जबकि इस फ़िल्म के अन्य गीत अधिक लोकप्रिय है, इन लोकप्रिय गीतों के इस समय बोल याद नहीं आ रहे, याद आने पर लिखूँगी, फ़िल्म का नाम शायद… प्यार किए जा

Tuesday, December 23, 2008

बँधे हाथ फ़िल्म का शीर्षक गीत

पिछले दिनों साप्ताहिकी में चर्चा चली उन गीतों की जो बहुत दिनों से विविध भारती से नहीं सुनवाए गए, हालाँकि पहले बहुत सुनवाए जाते थे। लगता है इन गीतों को एक पोटली में बाँधकर विविध भारती में एक कोने में रख दिया गया है कि न धूप लगे न हवा।

पिछली साप्ताहिकी में मैनें मंजोत भुल्लार जी के कहने पर ऐसे गीतों के बोल लिखकर याद दिलाने का सिलसिला शुरू किया था। मुझे लग रहा है कि इस सिलसिले को साप्ताहिकी में जारी रखने के बजाए एक अलग चिट्ठे में जारी रखा जा सकता है। यही सोच कर मैं इस चिट्ठे से सिलसिले की शुरूवात कर रही हूँ।

आज बँधे हाथ फ़िल्म का शीर्षक गीत याद दिलाना चाहते है। यह फ़िल्म 1975-76 के आस-पास रिलीज़ हुई थी। किशोर कुमार के गाए इस गीत के बोल है -

क्या जानूँ मै हूँ कौन मारा हुआ ज़िन्दगी का
मुझको तो महफ़िल में लाया है प्यार किसी का
लग के गले से फिर भी सँभल न सकूँ मैं
देखो ये मेरे बँधे हाथ

कैसे मिलूँ तुमसे चाहूँ तो मिल न सकूँ मैं
देखो ये मेरे बँधे हाथ

बोल मुझे जितने याद थे, मैनें लिख दिए। एक बात बता दूँ कि यह गीत किशोर कुमार के इन गीतों की श्रेणी का है -

मेरा जीवन कोरा काग़ज़ कोरा ही रह गया (फ़िल्म कोरा काग़ज़)
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं (चोर मचाए शोर)

यह एक ही फ़िल्म है जिसमें अमिताभ बच्चन और मुमताज़ ने साथ काम किया। वैसे फ़िल्म सफल नहीं थी।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Sunday, December 21, 2008

21वी डिसम्बर, श्री अमीन सायानी साहब को रेडियोनामा की और से जन्म दिन की बधाई ।

21वी दिसम्बर , श्री अमीन सायानी साहब को रेडियोनामा की और से जन्म दिन की बधाई देते हुए इस मौके पर पिछले सोमवार को प्रसारित पत्रावली कार्यक्रम का एक छोटा सा अंश सुनिये जो श्री अमीन सायानी साहब के बारेमें ही है ।


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मेरे साथ उनसे की गयी बातचीत का दृष्यांकन आप इस लिंक पर http://radionamaa.blogspot.com/2008/03/blog-post_2082.html देख और् सुन सकते है । जो आप रेडियोनामा पर ही पहेले देख चुके हैं। पर रेडियोनामा के नए श्रोताओं के लिए ये लिंक दिया जा रहा है.

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।

Friday, December 19, 2008

साप्ताहिकी 18-12-08

सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद बाल गंगाधर तिलक, जवाहर लाल नेहरू, विनोबा भावे, बंगला भाषी साहित्यकार और विदेशी चिंतकों के साथ उपनिषदों से भी कथन बताए गए। मंगलवार को वन्दनवार की शुरूवात ऐसे नए भक्ति गीत से हुई जिसकी धुन मोहरा फ़िल्म के गीत तू चीज़ बड़ी है मस्त-मस्त की है। इस शिव भक्ति गीत के बोल कुछ इस तरह है -

भोले का पावन धाम, तू जप ले यह नाम

इस तरह के भक्ति गीत शहरों में गणेश ऊत्सव में अच्छे लगते है पर आजकल के संगीत के अनुसार ऐसे पैरोडीनुमा भक्ति गीत वन्दनवार में भी चल ही जाते है। सप्ताह भर अंत में सुनवाए गए देशगान भी अच्छे रहे जैसे - जननी जन्मभूमि है अपनी

एकाध बार विवरण भी बताया गया।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम रविवार को गीतकार शैलेन्द्र को समर्पित किया गया। शैलेन्द्र के बहुत लोकप्रिय गीत है पर इस कार्यक्रम में उनके भूले बिसरे गीतों को सुनवाया गया, गायक कलाकारों में भी भूले बिसरे नाम रहे जैसे सविता बैनर्जी, बिजाँय मुखर्जी। अन्य दिनों में भी एकाध लोकप्रिय गीत के साथ भूले बिसरे गीत बजते रहे। बहुत दिन बाद सुना यह गीत -

हम भी नए तुम भी नए देखो सँभलना

हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा।

बहुत दिन हुए सी एच आत्मा का गाया कोई गीत नहीं सुना।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला गंधार गुंजन जारी रही। इसके पहले खण्ड को जारी रखते हुए ख़्यात कलाकार पंडित शरद साठे जी ने शुद्ध और कोमल गंधार स्वर के रागों की श्रृंखला में पहले प्रातःकालीन फिर शाम में गाए जाने वाले रागों जैसे राग भैरव बहार, देव गंधार, हंसकेलि, जोल, जोल कौंस जो राग जोल और चन्द्र कौंस से मिलकर बना है, संपूर्ण यानि सातों सुरों वाले राग जयजयवन्ती की चर्चा की और बंदिशे तथा फ़िल्मी गीत भी सुनवाए। बहुत ही कम चर्चित राग जोगिया की भी जानकारी दी, यह राग इतना क्म चर्चित है कि इस पर आधारित फ़िल्मी गीत ढूँढने पड़ते है।

7:45 को त्रिवेणी में जीवन में पैसे को अनावश्यक महत्व देने की, ईर्ष्या नफ़रत की बात हुई और सोमवार को यातायात जैसे गंभीर विषय को भी रोचकता से प्रस्तुत किया गया और मज़ेदार गीत सुनवाए गए जैसे चलती का नाम गाड़ी का यह गीत -

बाबू समझो इशारे…
यहाँ चलती को गाड़ी कहते है
पोम पोम बाजू…

दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को पचास साठ के दशक की बेहतरीन फ़िल्में लेकर आईं रेणु (बंसल) जी, आम्रपाली, ज़िद्दी, शागिर्द, शिकार, लव इन टोकियो, तुमसा नहीं देखा, जाल और इन फ़िल्मों के बेहतरीन गानों के लिए एस एम एस आए। शनिवार को नींद हमारी ख़्वाब तुम्हारे, हमराज़, सूरज, सावन की घटा, यह रात फिर न आएगी जैसी लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं सलमा जी। सोमवार को कमल (शर्मा) जी लाए साथी, दुल्हन एक रात की, बहारों के सपने, पूजा के फूल जैसी पचास साठ के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में पर यह कार्यक्रम हमने 12:15 बजे से सुना क्योंकि 12 बजे से क्षेत्रीय भाषा तेलुगु में प्रायोजित कार्यक्रम का प्रसारण हुआ आकाशम मन दी (आकाश हमारा है) शीर्षक से। मंगलवार को आईं सलमा जी फ़िल्में रही हमराज़, किशन कन्हैय्या, दिलवाले, हीरो, दयावान, बेटा, इश्क, करण अर्जुन, हम दिल दे चुके सनम, बोल राधा बोल जैसी नई और कुछ समय पुरानी फ़िल्में। बुधवार को तूफ़ानी नग़में लेकर आए युनूस जी फ़िल्में रही शान, नसीब, खून पसीना, लावारिस जैसी अस्सी नब्बे के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को आए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी फ़िल्में रही प्रतीज्ञा, राम और श्याम, जानी मेरा नाम, रेशमा और शेरा, सीता और गीता, हम दोनों, मेला जैसी साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में।

हर गाने के लिए संदेश भेजने वालों के नाम और शहर का नाम बताया जाता रहा। इस कार्यक्रम को विजय दीपक (छिब्बर) जी प्रस्तुत कर रहे है।

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में दर्दे रब रब एलबम से दलेर मेहदी का गाया गीत बहुर मस्त-मस्त रहा -

दिल सोणी सोणी करता है
पर प्यार करन को डरता है
रब ख़ैर करे

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में साठ के दशक से अब तक की जैसे दो रास्ते, पवित्र पापी, ज़माने को दिखाना है, राजू बन गया जैंटलमैन, तेरे नाम फ़िल्मों के गीत श्रोताओं के अनुरोध पर सुनवाए गए।

क्षेत्रीय केन्द्र के ऐसे ही तेलुगु गीतों के कार्यक्रम जनरंजनी के संबंध में एक नई बात हुई। यह कार्यक्रम विभिन्न समयों पर होता है, दोपहर 2:30 से 3 बजे तक भी होता। इस दोपहर के कार्यक्रम की जानकारी 1 बजे झरोखा में देते समय शहरों के नाम बताए गए और कहा गया कि इन क्षेत्रों के श्रोताओं के फ़रमाइशी गीत सुनिए जनरंजनी कार्यक्रम में। ऐसा मैने पहली बार सुना और सुन कर अच्छा भी लगा, मेरे ख़्याल से ऐसे नए प्रयोग होते रहने चाहिए जिससे ताज़गी बनी रहती है।

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। श्रोता सखियों से हल्की फुल्की बातचीत हुई जिससे यह जानकारी मिली कि यह सखियाँ विविध भारती के और कौन से कार्यक्रम सुनती है। अधिकतर कम शिक्षित सखियों के फोन आए जिनमें से अधिकांश घरेलु महिलाएँ थी। उनकी पसन्द के गीत सुनवाए गए जिनमें से नए गाने अधिक थे।

फोन इन कार्यक्रमों में चाहे हैलो सहेली हो या हैलो फ़रमाइश, छोटी उमर के श्रोता अक्सर पुराने गाने पसन्द करते है और बड़ी उमर के श्रोता नए गाने पसन्द करते जैसे दिल तेरा आशिक। विविध भारती के श्रोताओं का भी जवाब नहीं।

सोमवार को मटर का हलुआ और मीठा पनीर पराठा बनाना बताया गया। मटर का हलुआ तो ठीक है क्योंकि यह सामान्य जानकारी नहीं है पर मीठा पनीर पराठा… मैं तो समझती थी पराठा तो पराठा है, नमक डालकर बनाए या शक्कर, किसी भी चीज़ का बना ले तरीका तो वही होता है। मुझे नहीं पता था कि हर पराठे की विधि बताई जानी चाहिए ख़ैर हमें प्रतीक्षा है अगली कड़ियों में चाय बनाना, दूध गरम करना, आलू उबालना, अण्डे उबालना जानने की… बाद में टिप्स बताए गए जिनमें से अधिकतर पुराने थे उसके बाद सूची पढकर सुनाई गई विभिन्न राज्यों के व्यंजनों के नामों की। मंगलवार को करिअर बनाने के लिए एनिमेशन फ़िल्म बनाने के क्षेत्र की जानकारी दी गई साथ-साथ नए फ़िल्मी गीत सुनवाए गए। बुधवार को सौन्दर्य में इस बार भी वही खीरे, पपीते, संतरे, बर्फ़ से त्वचा की देखभाल विशेष कर फलों का रस त्वचा पर लगाने का नुस्का बताया गया। शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने मुहावरा भी पुराना ही बताया An Apple par day keeps the Doctor away अरे भई… रोज़ एक सेप खाकर स्वस्थ रहने की बात अब पुरानी हो गई है। नए शोधों से पता चलता है बहुत अधिक पोषक तत्व अमरूद फल में होते है, इसके अलावा और भी फल है जो सेप से ज्यादा पौष्टिक है। इस दिन एक ही बात अच्छी लगी कि सुनवाए गए गीतों में सत्तर के दशक की फ़िल्म इम्तिहान का लता जी का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुना -

रोज़ शाम आती थी मगर ऐसी न थी
रोज़ रोज़ घटा छाती थी मगर ऐसी न थी

गुरूवार को सफल महिलाओं की जानकारी देते हुए झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के बारे में बताया गया। सखियों के फ़रमाइशी नई पुरानी फ़िल्मों जैसे तारे ज़मीन पर, बीस साल बाद के गाने सुनवाए गए।

शनिवार और रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार गीत सुनवाए गए।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में इस बार भी बौद्धिक स्तर का नाटक सुनवाया गया।
पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में चूल्हा चौका कार्यक्रम फिर एक बार प्रसारित किया गया जिसमें रेणु (बंसल) जी ने ऐसे विशेषज्ञ से बातचीत की जो ऐसे व्यंजन बनाना जानते है जो पूरी दुनिया में खाए जाते है। यह समझने वाली बात है कि ऐसे व्यंजनों की चर्चा दिसम्बर में ही कर सकते है जो क्रिसमस का महीना है। व्यंजन बताए गए कुकीस, विशेष तरह की ब्रेड बनाना। हम पहले भी लिख चुके है और आज फिर अनुरोध कर रहे है कि रेणु जी द्वारा प्रस्तुत पहले प्रसारित किया जा चुका कार्यक्रम चूल्हा चौका एक बेहतरीन कार्यक्रम है इसी के अंश सोमवार को सखि सहेली में सुनवाए जाए तो अच्छा लगेगा और उपयोगी भी रहेगा।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में डा विकास गुप्ते से निम्मी (मिश्रा) जी ने बातचीत की। विषय रहा स्लिप डिस्क। बहुत अच्छी और विस्तृत जानकारी रही। डाक्टर साह्ब ने यह भी बताया कि स्लिप डिस्क कहते किसे है। यह समस्या होने पर कमर में फिर पैरों में दर्द होता है। इस दिशा में गुप्ते जी ने सफल आपरेशन भी किए है। अपने काम की तरह डाक्टर साहब की फ़िल्मी गानों की पसन्द भी सुलझी हुई है जैसे मधुमती फ़िल्म का यह गीत सुनवाया -

सुहाना सफ़र और ये मौसम हँसी

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में गायक कुमार शानू से रेणु (बंसल) जी की बातचीत सुनवाई गई। अच्छी बातचीत रही।

हैलो फ़रमाइश में शनिवार को मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए सभी से हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में सुनवाया गया गीत - क्रेज़ी किया रे। यह गीत तो फ़रमाइशी कार्यक्रमों में भी सुनवाया जाता है। फ़िल्मी हंगामा में बिल्कुल ही नए गाने सुनवाए जाए तो ठीक रहेगा जिससे श्रोता नए गानों से परिचित हो सकेगें।

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। फ़िल्म सपनों का सौदागर से लता जी का गाया यह गीत बहुत दिनों बाद सुना -

नादाँ की दोस्ती जी की जलन
जाने न बालमा प्रीत की लगन

लोफ़र फ़िल्म के गाने का विवरण बताते समय फिर गड़बड़ हुई, यह गीत आशा भोंसले ने गाया है -

मोतियों की लड़ी हूँ मैं

जबकि लताजी का गाया बताया गया। यहाँ एक बात बताना चाहते है कि रविवार को भी जयमाला कार्यक्रम अन्य दिनों की तरह ही प्रसारित हो रहा है पर अब भी क्षेत्रीय केन्द्र से झरोखा में जयमाला संदेश बताया जाता है। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया अभिनेता यशपाल शर्मा ने। खुद के बारे में कम बताया और इधर उधर की बातें की पर गाने नए पुराने दोनों अच्छे सुनवाए।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में लता जी और साथियों का गाया मराठी लोक गीत सुनवाया गया जिसे सुनकर मुझे बचपन की याद आई जब हमने स्कूल में मछुआरों का एक गीत प्रस्तुत किया था, बोल कुछ ऐसे ही थे। लेकिन पता नही यह गीत मछुआरों का ही था या कोई और, क्योंकि इन गीतों से विषय पकड़ना थोड़ा मुश्किल होता है। इसके अलावा प्रेमलता लांबा से नेपाली गीत भी सुना। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में रेणु (बंसल) जी के साथ पधारे कमल (शर्मा) जी। इस बार पत्र विविध शिकायतों के थे जैसे तकनीकी समस्या कि एफ़ एम पर विविध भारती सुनाई नहीं देती, क्षेत्रीय केन्द्रों के प्रसारण से होने वाला व्यवधान जिसके समाधान में कोशिश करने का आश्वासन दिया गया। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में धर्मा और ताजमहल फ़िल्म की क़व्वालियाँ सुनवाई गई। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान के परियोजना अधिकारी जगदीश जी से बातचीत की अगली कड़ी सुनवाई गई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने, गुरूवार को छाया (गांगुली) जी की आवाज़ में गमन फ़िल्म की ग़ज़ल अच्छी लगी - आपकी याद आती रही रात भर

8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकियाँ और दाँत उखड़ गए, विचित्र मित्र ( रचना एम ए लतीफ़ निर्देशक गंगा प्रसाद माथुर), एक और सच (निर्देशिका अनुराधा शर्मा) बहुत दिन बाद विविध भारती से अनुराधा शर्मा का नाम गूँजा, वैसे आवाज़ सुने बरसों हो गए।

9 बजे गुलदस्ता में सप्ताह भर में सबसे अच्छा लगा ग़ुलाम अली की आवाज़ में बहादुर शाह ज़फ़र का यह कलाम सुनना -

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

यह कलाम किसी की भी आवाज़ में कभी भी सुने, ताज़ा ही लगता है। मैनें पहली बार यह कलाम बहुत साल पहले रूना लैला की आवाज़ में सुना था दूरदर्शन के आरोही कार्यक्रम में।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में सप्ताह भर कुछ अच्छे गीत सुनने को नहीं मिले, ठीक-ठाक गीत ही सुनवाए गए। अंधा कानून, झूठा कहीं का, घराना, जिस्म, दो झूठ फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अभिनेत्री माला सिन्हा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। माला सिन्हा ने बताया कि वो बचपन से ही दिलीप कुमार जी की फैन रही। चार साल की उमर में देखी थी उनकी फ़िल्म नदिया के पार, जिसका गीत भी बड़ी मधुरता से गुनगुना कर सुनाया पर व्यस्तता के कारण उनके साथ काम करने का अवसर ही नहीं मिला। अब हम भी सोचने लगे है कि माला सिन्हा और दिलीप कुमार को साथ-साथ देखना कैसा लगता ? शायद बहुत अच्छा… मधुबाला को भी याद किया।

10 बजे छाया गीत में कुछ-कुछ नया-नया सा, तो था। प्रेम कहानियाँ कहते गीत सुनवाए गए -

एक था गुल और एक थी बुलबुल (फ़िल्म - जब जब फूल खिले)
प्रेम कहानी में एक लड़का होता है एक लड़की होती है (फ़िल्म - प्रेम कहानी)

इस बार भी अशोक जी अच्छे गीत चुन कर लाए बिल्कुल रजनीगन्धा के फूलों की तरह महकते हुए।

चलते चलते मंजोत भुल्लार जी की फ़रमाइश पूरी कर देते है। मंजोत जी ने पिछली साप्ताहिकी पर टिप्पणी की कि मैनें विविध भारती पर बहुत दिनों से नहीं सुने गए जिन गीतों की चर्चा की, उनके बोल बताऊँ। चलिए, हम हर साप्ताहिकी में ऐसा एक गीत याद दिलाएगें। इस बार यह गीत, साठ के दशक की शम्मी कपूर अभिनीत फ़िल्म लाट साहब, आवाज़ रफ़ी साहब की, संगीत शंकर जय किशन का, बोल है -

जाने मेरा दिल किसे ढूँढ रहा है इन
हरी भरी वादियों में

इस गीत के संगीत में घोड़े की चापों (पैरों की आवाज़) का बहुत सुन्दर प्रयोग हुआ है।

Saturday, December 13, 2008

एक फिमी धून : फ़िल्म कलाकार : कलाकार : जयंती (गोसर) और हनी (सातमकर)-एलेक्ट्रीक स्पेनिश ग़िटार

कुछ: हप्ते पहेले विविध भारती से नौ साझों के वादक कलाकार श्री जयंती (गोसर) से रेणूजी द्वारा की गयी बात चीत प्रसारित हुई थी । उस पर रेडियोनामा में एक पोस्ट मैनें लिखी थी । पर उनकी बजाई धून सुनवा नहीं पाया था । तो आज वह कमी पूरी कर रहा हूँ ।
तो सुनिये उनके केसेट और एल्पी तथा सी डी तीनों रूपमें प्रकाशित आल्बम 'हीट्स ओफ 85'जो विविध भारती की केन्द्रीय सेवा भी समय समय पर एक दफ़ा एक फनकार के दो पहर एक बजे वाले सोमवारीय कार्यक्रममें और बादमें व्यापारीक अंतराल के बीच प्रस्तूत करती आयी है । गाना तो इतना जाना पहचाना है कि बोल बताने की जरूरत नहीं है । यह धून सुन कर आप भी मनमें बोल उठेंगे कि ओह यह धून तो सुनी हुई है, काहे आधी ही सही । पर यहाँ तो पूरी सुन पायेंगे । मेरे पास यह धून इलेक्ट्रीक हवाईन गिटार पर सुनिल गाँगुली, काझी अनिरूध और गौतम दासगुप्ता की अलग अलग बजाई हुई भी है ।



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Friday, December 12, 2008

साप्ताहिकी 11-12-08

सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद शेख़ मोहम्मद काज़ी, बाबा साहब अंबेडकर, सुभाषचन्द्र, प्रेमचन्द के विचार बताए गए, पर मंगलवार को विदेशी लेखक जार्ज बर्नाड शाँ के विचारों के बजाय मोहम्मद पैग़म्बर साहब या शेख़ काज़ी का ही कोई कथन सुनाते तो बकरीद के दिन प्रसारण की शुरूवात अच्छी लगती, वैसे वन्दनवार की शुरूवात और अंत के भक्ति गीत बकरीद से संबंधित ही रहे। बुधवार को नए भजन सुनवाए गए। गुरूवार को पुराने भजन सुनवाए गए जिसमें शुरूवात हुई कबीर की इस रचना से -

पोथी पढी पढी जग मुआ पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम के पढे सो पंडित होय

इसके बाद सिलसिला चला तुलसी, मीरा। सप्ताह भर अंत में सुनवाए गए देशगान भी अच्छे रहे।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम बुधवार को अशोक कुमार की पुण्य तिथि पर उन्हें समर्पित किया गया। उनका लीला चिटनीस के साथ गाया यह गीत भी सुनवाया गया जिसे बंधन फ़िल्म के लिए सरस्वती देवी और रामपाल ने संगीतबद्ध किया -

चल चल रे नौजवान

इसके अलावा कुछ लोकप्रिय गीत और अधिकतर भूले बिसरे गीत सुनवाए गए, भूले बिसरे कलाकारों को भी सुना और हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला नाद निनाद इस सप्ताह समाप्त हुई जिसे प्रस्तुत कर रहे थे ख़्यात बांसुरीवादक और संगीतकार विजय राघव राव। इसमें विभिन्न तालवाद्य सुनवाए गए, कविता और नृत्य शैली को संगीत में उतारने की चर्चा चली और सुनवाया गया यह गीत -

झनक झनक पायल बाजे

त्यौहारों के गीतों की भी चर्चा की गई और सुनवाया गया यह गीत -

होली के नट नन्दलाल बिरज में

ग़ज़ल भी सुनवाई गई और लोरी भी। समापन कड़ी में स्वाधीनता संग्राम से जुड़े वृत्त चित्र से एक संगीत का टुकड़ा सुनवाया गया जिसमें संघर्ष की झलक थी, रघुपति राघव राजा राम की धुन भी थी। इस तरह भावों विचारों को प्रस्तुत करने की संगीत की प्रवृतियों का अच्छा ज्ञान मिला।

गुरूवार से मंगेश (सांगले) जी और वीणा (राय सिंघानी) जी के सहयोग से कांचन (प्रकाश संगीत) जी द्वारा तैयार नई श्रृंखला आरंभ हुई - गंधार गुंजन। शीर्षक बहुत आकर्षक है, वैसे सभी श्रृंखलाओं के शीर्षक अच्छे ही होते है। यह श्रृंखला चार खण्डों में बँटी है। पहले खण्ड की शुरूवात हुई जिसे प्रस्तुत कर रहे है ख़्यात कलाकार पंडित शरद साठे। इस खण्ड में ऐसे रागों की जानकारी दी जा रही है जिसमें शुद्ध और कोमल गंधार स्वर लगते है, शुरूवात की गई पुराने राग श्रीपद भैरवी से। कार्यक्रम की परम्परा के अनुसार राग की पूरी जानकारी दी गई और इस पर आधारित फ़िल्मी गीत भी सुनवाया गया। लगता है यह श्रृंखला एकदम नई तैयार की गई है।

7:45 को त्रिवेणी में जीवन में अंधकार और रोशनी की, सुख-दुःख की बातें हुई, आदमी को इंसान बनाने की बात हुई और संबंधित गीत सुनवाए गए जैसे पैग़ाम फ़िल्म का यह गीत -

इंसान बनो कर लो भलाई का कोई काम
इंसान बनो

पर मंगलवार को भी जीवन में हँसी ख़ुशी दुःख की बातें सुनना अटपटा लगा, इस दिन बकरीद को ध्यान में रखकर क़ुर्बानी, बलिदान, त्याग की बातें की जाती और ऐसे ही गीत सुनवाए जाते तो ठीक रहता।

दोपहर 12 बजे कार्यक्रम एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने में शुक्रवार को पधारे कमल (शर्मा) जी फ़िल्में रही हरजाई, मेरे जीवन साथी, झुक गया आसमान, अभिलाषा, चोरी चोरी जैसी साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार को बिग ब्रदर, रंग दे बसंती, आशिक बनाया आपने, रेस, जन्नत, ओम शान्ति ओम, जब वी मेट जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं सलमा जी। रविवार को बैजूबावरा, अनारकली, हलाकू, जहाँआरा, पाकीज़ा जैसी पचास साठ के दशक की क्लासिक फ़िल्में रही। सोमवार को यह कार्यक्रम अभिनेता धर्मेन्द्र के नाम रहा, उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ देने युनूस जी लाए साठ सत्तर के दशक की धर्मेन्द्र की बेहतरीन फ़िल्में जैसे आया सावन झूम के, आए दिन बहार के, धरम वीर, कर्तव्य पर यह कार्यक्रम हमने 12:30 बजे से सुना क्योंकि 12 बजे से क्षेत्रीय भाषा तेलुगु में प्रायोजित कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। मंगलवार को फ़िल्में रही कुर्बानी, धूम 2, इश्क विश्क, अनमोल। बुधवार को आईं सलमा (सय्यद) जी फ़िल्में रही शोला और शबनम, मोहरा, जुड़वां जैसी अस्सी नब्बे के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को फ़िल्में रही काली टोपी लाल रूमाल, मेरे हमदम मेरे दोस्त, आदमी, हम दोनों, सरस्वती चन्द्र, संघर्ष, गाइड, शोला और शबनम, झुक गया आसमान जैसी साठ के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में।

हर गाने के लिए संदेश भेजने वालों के नाम और शहर का नाम बताया जाता रहा। इस कार्यक्रम को विजय दीपक (छिब्बर) जी प्रस्तुत कर रहे है और प्रस्तुति सहयोग रहा सुभाष भावसार, स्वाति भण्डारकर, निखिल धामापुरकर जी का।

इस कार्यक्रम में यह गीत बहुत दिनों बाद विविध भारती पर सुना -

लागी छूटे ना अब तो सनम (फ़िल्म काली टोपी लाल रूमाल)

पहले भूले बिसरे गीत कार्यक्रम में यह गीत बहुत सुना करते थे।

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में शुभा मुदगल का लिखा और गाया एलबम अली मेरे अँगना से यह भक्ति रस में डूबा गीत बहुत अच्छा रहा -

अली मेरे आँगना दरस दिखा
झुन झुन बोले पायलिया मोरी
इश्क मे तोरे जोगन बन गई
दिल मेरा डोले

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में मेरे हमसफ़र फ़िल्म का मोहम्मद रफ़ी और बलबीर का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुना -

मौसम है बहारों का फूलों को खिलना है
वो जल्दी चल गडिये मैनू यार से मिलना है

साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में जैसे कश्मीर की कली, सीता और गीता के गीत भी शामिल रहे और नए गीत भी सुनवाए गए।

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। पहला फोन नागालैण्ड से आया और वहाँ की संस्कृति और जनजीवन के बारे जानकारी मिली। थोड़ी और गहराई से बात होती तो और अच्छी जानकारी मिल सकती थी। इसके अलावा कुछ गृहणियों और छात्राओं के फोन आए और उनके पसंदीदा नए पुराने गाने सुनवाए गए।

सोमवार को पौष्टिक खजूर की खीर और अचार बनाना बताया गया। खजूर का अचार मैंनें पहली बार सुना, कुछ अजीब सा लगा पर इसके बाद सुनवाया गया गीत खजूर की तरह मीठा और गीत संगीत के पौष्टिक गुणों से सराबोर रहा, नूरजहाँ और सुरेन्द्र का गाया अनमोल घड़ी का यह बेहतरीन सदाबहार गीत -
आवाज़ दे कहाँ है

बुधवार को सौन्दर्य में वही खीरे आटे से त्वचा की देखभाल की बातें की गई और स्वास्थ्य के लिए भी वही पुरानी बात बताई गई कि तनाव नहीं लेना और पूरी नींद लेना। गुरूवार को सफल महिलाओं की जानकारी देते हुए बताया गया कि पहली महिला पायलट सरला ठकुराल ने पति पायलट शर्मा के कहने पर प्रशिक्षण लिया और 1931 में पहली बार साड़ी पहन कर ज़हाज़ उड़ाया। सामान्य जानकारी में 10 दिसम्बर मानव अधिकार दिवस होने से, इस बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई।

शनिवार को क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद से तेलुगु में पर्यावरण से संबंधित प्रायोजित कार्यक्रम सुना - कोशिश सुनहरे कल की जिसका तेलुगु में शीर्षक है - पसीडी रेपटी प्रयत्नम जिसमें रेपटी शब्द का अर्थ है आने वाला कल। रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में हमेशा की तरह लोकप्रिय फ़िल्मों के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सुना नाटक चूम के बैल। इस मूल कन्नड़ नाटक के लेखक है नवरत्न राम जिसका हिन्दी अनुवाद किया है एच एस पार्वती ने जिसके निर्देशक है विजय नन्दन प्रसाद। यह दरभंगा केन्द्र की प्रस्तुति थी। बहुत संवेदनशील नाटक था। किसान को अपने बैलों के साथ मालिक की ज़मीन पर काम नहीं मिलता। इस तरह ग़रीबी और तनाव से वह नशा करने लगता है। कैसे एक निर्धन परिवार को सुखमय जीवन से वंचित किया जाता है, इसकी झलक मिली।

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस की चाल इस बार भी धीमी रही। किताबों की दुनिया में ज्ञानपीठ पुरस्कार और हाल ही में घोषित इस पुरस्कार के लिए हिन्दी कवि कुँवर नारायण से संबंधित जानकारी दी गई। कंप्यूटर के माउस के अविष्कार के चालीस वर्ष पूरे होने पर इससे संबंधित जानकारी दी गई। युनूस जी और महेन्द्र मोदी जी से अनुरोध है कि कृपया इस कार्यक्रम को नया रूप रंग दीजिए, यह कुछ भा नहीं रहा है।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में डा चारूलता से राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने नाड़ी संस्थान पर बातचीत की। तनाव आदि से मस्तिष्क से नियंत्रण बिगड़ने से होने वाले रोगों की विस्तार से जानकारी दी गई। बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में आयशा ज़ुल्का फ़िल्म अभिनेत्री से कमल (शर्मा) जी की बातचीत सुनवाई गई। अच्छी बातचीत रही। पता नहीं था कि यह अभिनेत्री बचपन से ही शास्त्रीय नृत्य में प्रशिक्षित है।

हैलो फ़रमाइश में शनिवार को एक छोटी सी शायद 12-13 साल की लड़की प्रीति से अमरकान्त जी की बातचीत अच्छी लगी। वैसे उसने कोई ख़ास बात नहीं बताई, उसने अपने परिवार के सभी सदस्यों के नाम और कुछ उनके बारे में बताया पर उसका बात करने का अंदाज़ भा गया। गाना तो उसने पुराना उड़न खटोला फ़िल्म का पसन्द किया। मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए जिसमें कम शिक्षित कामकाजी श्रोता भी थे, सभी से हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में सितमगर फ़िल्म के श्रेया घोषाल और सोनू निगम के गाए निखिल विनय के संगीतबद्ध किए कुछ इस तरह के बोलों का गीत सुना - प्यार तो हमने तुमसे ही किया दिल भी तुमको ही दिया, हालांकि बोलों और संगीत संयोजन में कोई नयापन नहीं था फिर भी अच्छा ही लगा। अन्य सभी गीत भी सामान्य ही रहे।

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। गुरूवार को बहुत दिन बाद सुना हमराही फ़िल्म का रफ़ी साहब और मुबारक बेगम का गाया यह गीत -

मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया अभिनेता अखिलेन्द्र मिश्रा ने। कुछ खुद के बारे में बताया और कुछ इधर उधर की बातें की। गाने नए पुराने दोनों सुनवाए। कुल मिलाकर प्रस्तुति अच्छी रही।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में ख़ासी और कश्मीरी लोक गीत सुनवाए गए। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी के साथ पधारे कमल (शर्मा) जी। जयमाला संदेश, मंथन जैसे कार्यक्रमों के बन्द किए जाने पर प्राप्त पत्रों के उत्तर में बताया कि संदेशों के पत्र कम प्राप्त हो रहे थे और कुछ श्रोता ही बार-बार अपने विचार बता रहे थे। गीतों के विवरण में कभी-कभार होने वाली ग़लतियों के विभिन्न कारण बताए जैसे टाइपिंग की ग़लती, सीडी में उपलब्ध ग़लत विवरण आदि यानि कुल मिला कर ग़लतियाँ स्वीकारी भी गई और कारण भी स्पष्ट हुए। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में बकरीद के अवसर पर ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ प्रस्तुत की गई। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान के परियोजना अधिकारी जगदीश जी से बातचीत सुनवाई गई। परिचय में कहा गया कि मुंबई में कहीं साँप निकलते है तो कभी कभार चीता भी नज़र आया। कुछ ही समय पहले शायद विविध भारती के कार्यालय में या पास में यानि बोरिवेली में साँप निकला और तुरन्त वहीं स्थित इस कार्यलय से जगदीश जी को बुलाया गया और वो अपने साथ एक बड़ी बड़नी लाए जिसके ढक्कन के छेद से उन्होनें इस बड़े से साँप को बड़नी में उतार लिया। यहाँ तक सुनते सुनते रोमाँच हो आया था पर जैसे ही उनसे बातचीत शुरू हुई पारम्परिक अंदाज़ में पहला प्रश्न किया गया कि आप इस क्षेत्र में कैसे आए तो सारा रोमाँच समाप्त हो गया और बातचीत का फ़्लो खत्म हो गया जबकि इसे बनाए रखते हुए पहला सवाल होना चाहिए था कि जिस अंदाज़ से उहोनें आसानी से बड़ा सा साँप पकड़ा उसका प्रशिक्षण कब और कैसे लिया और इसी के बाद चीते जैसे बड़े प्राणियों को पकड़ने की बात पूछी जाती तथा इसी क्रम में बातचीत आगे बढाते हुए अंत में आवश्यक होने पर उनके इस क्षेत्र में आने की व्यक्तिगत बात की जाती तो पूरा कार्यक्रम रोमाँचक हो जाता और बार-बार इस उपयोगी बातचीत को सुनने का मन भी करता। कार्यक्रम अधिकारी से अनुरोध है कि कभी-कभी परम्परा से हट कर कार्यक्रम को शेप देना ज्यादा अच्छा होता है। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग झिंझोटी पर आधारित फ़िल्म चौदहवीं का चाँद का आशा भोंसले का गाया गीत।

8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकियाँ सुधार (रचना अजगर सिंह निर्देशक लोकेन्द्र शर्मा), मंगल में जंगल (रचना राजकुमार दाग़ निर्देशक दीनानाथ)

9 बजे गुलदस्ता में ग़ज़लें कुछ अधिक ही सुनवाई जाती है। एक गीत सुन कर अच्छा लगा, कुछ इस तरह के बोल है - मैं क्या से क्या हो गई।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में गीत गाता चल, मौसम, फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। सोमवार को अभिनेता धर्मेन्द्र के जन्मदिन के अवसर को ध्यान में रख कर समाधि फ़िल्म का चुनाव किया गया।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अभिनेत्री माला सिन्हा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। इसमें गायकों पर बात हुई। किशोर कुमार जी के बारे में भी बताया गया पर ज्यादा बात की रफ़ी साहब के बारे जो उनके पड़ोसी थे। बहुत ही आत्मीयता से माला सिन्हा जी ने बातें की।

10 बजे छाया गीत में रात की बातें होती रही। अपनी आदत के अनुसार युनूस जी अनमोल गीत ले आए, फ़िल्म दो बूँद पानी का आशा भोंसले का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुना -

जा री पवनिया पिया के देश जा

युनूस जी कहने लगे ऐसे कई अच्छे गीत है जो बहुत ही कम सुनने को मिलते है, तो मैं यहाँ कहना चाहूँगी कि इसके लिए युनूस जी आप भी तो कुछ हद तक ज़िम्मेदार है। यह मानी हुई बात है कि फ़िल्मी गानों की लोकप्रियता में विविध भारती की बहुत बड़ी भूमिका है। फ़रमाइशी गीत तो ख़ैर जो श्रोता फ़रमाइश करें वही सुनवाए जाते है पर ग़ैर फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में तो अच्छे गाने सुनवाए जा सकते है न ! आज भी फ़िल्मी गानों की ऐसी सूची मैं दे सकती हूँ जो बहुत दिन हुआ सुनने को नहीं मिले हालाँकि विविध भारती पर कभी भी सुनवाए जा सकते है।

Tuesday, December 9, 2008

एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने : चलती गाड्डीमें चढ़ जाना ?

विविध भारती की केन्द्रीय सेवा का एक रूप से यह बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम है । मेरे कई दोस्तों ( जिनमें से एक बडौदा के श्री जयंतीभाई पटेल भी है )ने आग्रह किया कि मूझे भी इस कार्यक्रममें हिस्सा लेना काहिए । पर मेरा मानना था कि हल्लो फ़रमाईश की तराह अलभ्य गानों की फरमाईश की इस कार्यक्रममें गुंजाईश नहीं है । (सालों से हल्लो फरमाईश के तथा भूतकालीन कर दिये गये हल्लो आप के अनुरोध पर कार्यक्रम के नियमीत श्रोता रहे पाठकोने मेरी फ़रमाईशो को शायद याद रख़ा हो सकता है ।) इस लिये मैं कहाँ तक टालता रहा था । पर एक दिन इसी कार्यक्रम में श्री अमरकांतजीने कहा की श्रोता जाहिर की गयी फिल्मों की सूची कए अलावा भी अपनी पसंद भेज सकते है, तब मैनें बिना आशा रख़े ही एक गाना पियानो और सोलोवोक्ष वादक तथा संगीतकार स्व. श्री केरशी मिस्त्री साहब के संगीत निर्देषन वाला फिल्म वीर बालक का गाना जो स्व गीता दत्तजी के साथ बी कम्लेशकूमारी (सही नाम जालू भेसानिया ) ने गाया है जो करीब 10 साल पहेले दो पहर को आने वाले यादों के झरोखोसे कार्यक्रममें अंतीम बार प्रस्तूत हूआ था, जिसे सुनने की असफ़ल कोशीश मैंनें दो बार हल्लो फरमाईश में की थी । (एक बार अमर कांतजी के साथ बात के वक्त श्री रमेश सेठी साहबने मेरी दूसरी वैकल्पीक पसंस सुनाई थी और एक बार करीब 8 महिने के अंतराल के बाद श्री कमल शर्माजी से बहोत सुन्दर बात होने के बावजूद और इस गाने के अलावा वैकल्पीक पसंद की बात होने पर तथा इस लम्बे अंतराल का जिक्र भी उस बात के दौरान करने पर भी भी डो उषा गुजराती और श्री रमेश गोखलेने निर्दयी बन कर् मेरे फोन कोल को निकम्मा कर दिया था । यह देढ साल पहेले की बात है और इसके बाद आज तक नम्बर नहीं लगा और इसकी शिकायत फेक्स और ई मेईल से भेजने पर भी पत्रावलीमें स्थान प्राप्त नहीं हुआ था । इस का खेद उस घटना के बाद कभी भी निरंतर कोशिश के बावजूद फोन नहीं लगने पर या कभी तक़निकी कारणो के हिसाब से रेकोर्डिंग देरी से शुरू होने के कारण फोन तकनिकी प्रतिनिधी द्वारा उठाये जाने पर इस कार्यक्रम का हिस्सा उस घटना के बाद कभी नहीं बन पाया, जिसका गुस्सा उन कार्यक्रम निर्माता और संकलन कार के प्रति सफ़ल कोशीश होने तक मनमें रहेगा ही रहेगा ।) (इसके लिये युनूसजी के छाया गीत में भी एक लम्बे समय के पहेल्रे लिखा था । ) क्या इस गाने को आप की फरमाईसमें मेरे लधू संदेश को तबदील करके स्थान मिल सकता है ? मानता हूँ कि यह गाना सब गानों से बेहतरीन नहीं होगा पर सबसे बूरा भी नहीं है यह पक्का है ।
दूसरा एस एम एस तराना के गाने नैन मिले नैन हूए बावरे के लिये किया था वह इस लिये की सिने में सुलगते है अरमां गाना कई बार बजता है मेरी फरमाईश के मुकाअबले ज्यादा । पर मूझे विश्वास था कि वह ज्यादा बजने वाला गाना ही बजेगा और होशियार श्रोता चलती सवारी पर सवार हो ही जाते है ।
इस लिये अगर फोन हल्लो फरमाईशमें लगता है और कार्यक्रम निर्माता और संपादक शोख़ीन होते है और लायब्रेरीयन का साथ होता है तो मूझे हल्लो फरमाईश कार्यक्रममें फरमाईश करना ज्यादा आनंद देता है ।

Friday, December 5, 2008

साप्ताहिकी 4-12-08

इस सप्ताह विविध भारती पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के निधन के शोक में डूबी रही। नियमित सभी कार्यक्रमों का प्रसारण नहीं हुआ। कार्यक्रमों के अंतराल में संजीदा धुन बजती रही। उदघोषकों की प्रस्तुति भी गंभीर और संयत रही।

पूरे सप्ताह सवेरे मंगल ध्वनि के स्थान पर संजीदा धुन ही बजती रही। 6 बजे समाचार के बाद चाण्क्य, प्रेमचन्द, स्वामी विवेकानन्द, आचार्य रजनीश के विचार बताए गए। वन्दनवार में पुराने भजन भी शामिल रहे और श्रीमदभगवतगीता का पाठ भी सुनवाया गया और गुरूवाणी भी सुनवाई गई। अंत में सुनवाए गए देशगान भी अच्छे रहे, एकाध बार विवरण भी बताया गया।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के बजाय चित्रपट संगीत में संजीदा फ़िल्मी गीत सुनवाए गए, इस तरह यह पुराने गीतों तक ही सीमित नहीं रहा और दूसरे गीत भी सुनवाए गए जैसे -

मेरा जीवन कोरा काग़ज़ कोरा ही रह गया (फ़िल्म कोरा काग़ज़)

पर सोमवार से भूले बिसरे गीत कार्यक्रम प्रसारित हुआ, संजीदा गीत बजते रहे पर पारम्परिक रूप से समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गाने से नहीं हुआ और मंगलवार से यह कार्यक्रम अपने पारम्परिक रूप में प्रस्तुत हुआ। अधिकतर भूले बिसरे गीत ही बजे।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला नाद निनाद जारी रही जिसे प्रस्तुत कर रहे है ख़्यात बांसुरीवादक और संगीतकार विजय राघव राव। संगीत की प्रवृतियों को बताते हुए हिन्दुस्तानी और कर्नाटक दोनों शैलियों में गायन भी प्रस्तुत किया जा रहा है। कर्नाटक या दक्षिण भारतीय शैली में त्यागराज गायन (तेलुगु भाषा के भक्तकवि त्यागराज की भक्ति रचनाओं की शास्त्रीय शैली में प्रस्तुति) और भक्ति सुनवाए गए। इस श्रृंखला से भारतीय संगीत के आरंभिक स्वरूप की जानकारी मिल रही है। बताया जा रहा है कि पहले नाद फिर निनाद जिसके बाद एक ही सुर था फिर दो सुर आए, अब वेदों का पठन होने लगा, इस तरह हर स्वरूप को गाकर बताया गया। इस तरह बढते हुए सप्तम से थाट उत्पन्न हुए और थाटों से राग। नृत्य शैली जुड़ने से तिल्लाना बना। भक्ति संगीत की शुरूवात हुई। फिर दरबारी संगीत की जिसके बाद जनमानस के लिए कोने-कोने तक पहुँचा लोक संगीत। जब बात हो संगीत की, विषेषकर नाद की, तो नटराज की चर्चा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता, चर्चा नटराज की भी हुई और उस विशेष संगीत की भी। यह भी बताया गया कि महात्मा गाँधी ने किसी अवसर पर अपने भाषण में कहा था कि संगीत से संगति है। आमतौर पर इस तरह से भाषण के अंश नहीं बताए जाते, इसलिए सुनना अच्छा लगा। बहुत बढिया जानकारी। इस श्रृंखला के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद छाया (गांगुली) जी और इसे फिर से प्रसारण की अनुमति देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद महेन्द्र मोदी जी। आपसे यह भी अनुरोध है कि आगे भी अंतराल से इस श्रृंखला का प्रसारण करते रहिए ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुँच सकें।

7:45 की त्रिवेणी अपने मूल रूप में रही और शोक के इस अवसर पर इसमें परिवर्तन की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि यह कार्यक्रम मूल रूप से गंभीर ही है। प्रार्थनाएँ सुनवाई गई जैसे -

अल्ला तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम

और गंभीर बातें हुई जैसे जीवन में समय का महत्व तथा छोटी-छोटी बातों को भी रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया जैसे खिलौनों के बारे में प्रस्तुति रही।

दोपहर 12 बजे चित्रपट संगीत में संजीदा गीत सुनवाए गए जैसे आदमी फ़िल्म का रफ़ी साहब का गाया यह गीत -

आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज़ न दे

सोमवार से प्रसारित हुआ कार्यक्रम एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने पर माहौल संजीदा ही रहा। फ़िल्में रही सीमा, ज्वैलथीफ़, शागिर्द, पारसमणि, मुनीमजी। मंगलवार को पुरानी और बहुत पुरानी फ़िल्में रही फूल बने अंगारे, अगर तुम न होते, तराना, सिलसिला, अनारकली, रानी रूपमती। बुधवार की फ़िल्में रही इज्ज़त, आप आए बहार आई, मि नटवरलाल, खिलौना, कभी-कभी, लव स्टोरी, जैसी साठ से अस्सी के दशक तक की फ़िल्में। गुरूवार की नई फ़िल्में रही जैसे दिल न माने, मेरे बाप पहले आप, वाह क्या लाइफ़ है, झंकार बीटस, जाँनशीन।

1 बजे के बाद भी शुक्रवार को चित्रपट संगीत जारी रहा जिसमें संजीदा फ़िल्मी गीत सुनवाए गए जैसे माया फ़िल्म का गीत -

ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल

1:00 बजे से शनिवार को फ़िल्मी भक्ति गीत सुनवाए गए जिसमें पुरानी फ़िल्म आलमआरा का गीत भी सुनवाया गया -

मोहम्मद के जलवों से रोशन है सीना
मोहब्बत से दिल बन गया है मदीना

सोमवार से म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम प्रसारित हुआ पर गीत संजीदा ही रहे जैसे शान की आवाज़ में यह शान्त प्रकृति का गीत -

अक्सर दिल ही दिल में

1:30 बजे भी फ़िल्मों के संजीदा गीत ही सुनवाए जाते रहे। मन चाहे गीत कार्यक्रम का प्रसारण सोमवार से शुरू हुआ पर गाने संजीदा ही चुने गए।

3 बजे से नए पुराने देशभक्ति गीत सुनवाए गए जैसे रफ़ी की आवाज़ में धूल का फूल फ़िल्म का यह गीत -

तू हिन्दु बनेगा न मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा

और हरिहरन का गाया यह गीत -

भारत हमको जान से भी प्यारा है

सखि सहेली में मंगलवार को पुरूषों का क्षेत्र माने जाने वाले आटोमोबाईल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महिलाओं को करिअर बनाने के लिए जानकारी दी गई साथ-साथ नए फ़िल्मी गीत सुनवाए गए। बुधवार को त्वचा की चमक को बनाए रखने के लिए नुस्ख़े बताए गए जैसे आँख़ों पर खीरे के टुकड़ों के बजाए खीरे को कद्दूकस कर रखना, क्रीम से मसाज, फेस पैक बनाना भी बताया गया। एक बात पर मैं ध्यान दिलाना चाहूँगी इस नुस्ख़े पर कि पानी बहुत पीना चाहिए, यह बहुत पुराना नुस्ख़ा है जब पानी अमृत की तरह होता था एक्दम साफ़। आजकल पानी ज्यादा पीने से भी कुछ इंफ़ेक्शन आदि का ख़तरा है। इसीलिए कृपया पुराने नुस्ख़े बताते समय आजकल की स्थितियों का भी जायज़ा ले तो ठीक रहेगा। सामान्य जानकारी में अंतरिक्ष विज्ञान के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई जिसमें चन्द्रयान की बात बताई गई।

शनिवार को क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद से तेलुगु में पर्यावरण से संबंधित प्रायोजित कार्यक्रम सुना - कोशिश सुनहरे कल की।

4 बजे से भी चित्रपट संगीत में संजीदा फ़िल्मी गीतों का प्रसारण जारी रहा।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में रंगमंच, टी वी और फ़िल्म अभिनेता सचिन खंडेकर से की गई बातचीत सुनवाई गई। इसमें रंगमंच की बातें सुनना अच्छा लगा।

7 बजे जयमाला में भी संजीदा गीत ही जारी रहे, फ़ौजी भाइयों के फ़रमाइशी गीत नहीं सुनवाए गए। मंगलवार से फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत के बजाय फ़िल्म उमरावजान की ग़ज़ल और रज़िया सुल्तान में कब्बन मिर्ज़ा का गाया कलाम सुनवाया गया। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पत्र सामान्य ही रहे। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ सुनी। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में जादूगरनि मंदाकिनी मेहता से ममता (सिंह) जी की बातचीत अच्छी लगी बचपन में मदारी के खेल देखकर इस ओर झुकाव होना और बाद में इस क्षेत्र में आगे बढने की बातें बताई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने।

8 बजे हवामहल के बजाय फ़िल्मी भक्ति रचनाएँ सुनवाई गई और चित्रपट संगीत में भी संजीदा गीत सुनवाए गए। बुधवार से हवामहल की झलकियाँ प्रसारित होने लगी।

9 बजे गुलदस्ता 9:30 को एक ही फ़िल्म से और 10 बजे छाया गीत कार्यक्रमों के स्थान पर चित्रपट संगीत में संजीदा गीत जारी रहे पर सोमवार से गुलदस्ता कार्यक्रम प्रसारित हुआ जिसमें शान्त गंभीर ग़ज़लें सुनवाई गई जैसे ग़ुलाम अली की आवाज़ में ग़ज़ल।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में मंगलवार को दो बदन और उसके बाद के दिनों में हकीकत, कलाकार फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

10 बजे रविवार से छाया गीत गंभीर गीतों के साथ प्रस्तुत किया गया।

Friday, November 28, 2008

साप्ताहिकी 27-11-08

सप्ताह की समाप्ति पर पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के निधन के समाचार से शोक की लहर उठी और गुरूवार रात में छाया गीत की जगह संजीदा गीत सुनवाए गए।

पूरे सप्ताह सवेरे 6 बजे समाचार के बाद प्रेमचन्द, टाँलसटाय, महात्मा गाँधी जैसे विद्वानों के विचार और स्वामी विवेकानन्द की युवा शक्ति को आह्वान करने की बातें चिन्तन में बताई गई। वन्दनवार में भजन भी सप्ताह भर अच्छे सुनवाए गए। अंत में देशगान भी अच्छे रहे पर विवरण नहीं बताया गया। हालांकि ऐसे गीत सुनवाए गए जो प्रसिद्ध कवियों की रचनाएँ है जैसे -

भारतमाता ग्राम वासिनी - सुमित्रानन्दन पंत का लोकप्रिय गीत है
यही है मेरा देश मेरा देश मेरा देश - बालकवि बैरागी की रचना है

कम से कम रचयिता का नाम तो बताया जा सकता था।

7 बजे भूले-बिसरे गीत में अधिकतर भूले बिसरे गीत ही बजे जैसे -

औरत तो है ज़हर की पुड़िया
बन्दूक से नहीं गोली से नही
प्यार से मर्द को बना रखा है ग़ुलाम

पर कुछ लोकप्रिय गीत भी सुनवाए गए जैसे मीना कपूर का गाया यह गीत -

मोरी अटरिया पे कागा बोले
मोरा जिया डोले कोई आ रहा है

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला कौंस के प्रकार समाप्त हुई जिसे प्रस्तुत कर रही थी प्रसिद्ध गायिका अश्विनी भेड़े देशपाण्डेय। कौंस के विभिन्न रागों पर आधारित इस श्रृंखला में हर राग को गाकर समझाया गया जिसमें हारमोनियम पर संगत की सीमा शिरोडकर और तबले पर संगत की विश्वनाथ शिरोडकर ने। राग चन्द्र कौंस की जानकारी दी गई, बताया गया कि मालकौंस में दो स्वर कम कर राग चन्द्र कौंस तैयार किया गया। इस तरह तैयार यह राग 50-80 वर्ष पुराना ही है। इसमें गायन भी सुनवाया गया। इसी तरह राग मधुवन्ती से जन्म हुआ राग मधु कौंस का। इसकी जानकारी देते हुए राग मधुवन्ती पर आधारित ग़ज़ल सुनवाई गई -

रस्में उल्फ़त को निभाए तो निभाए कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाए कैसे

और एक गीत सुनवाया गया जिसमें राग मधुवन्ती और मधुकौंस दोनों की झलक थी पर अच्छा होता अगर ऐसा गीत सुनवाया जाता जो केवल मधुकौंस पर आधारित होता। राग सम्पूर्ण मालकौंस की जानकारी देते हुए बंदिशे सुनवाई गई। बताया गया कि संपूर्ण मालकौंस में कोई फ़िल्मी गीत ध्यान में नहीं आ रहा है और मराठी लोक गीत सुनवाया गया। बताया गया कि राग चारूकौंस कर्नाटक शैली के राग चारूकेशी से निकला है, जानकारी देने के बाद इस राग में भी गायन सुनवाया गया और साथ में प्यार का मौसम फ़िल्म का यह गीत -

तुम बिन जाऊँ कहाँ

कुल 7 कड़ियों की छोटी सी इस श्रृंखला की अंतिम कड़ी में बागेश्री कौंस और पंचम मालकौंस की जानकारी दी। यह बताते हुए श्रृंखला समाप्त की गई कि कौंस के कई प्रकार है जैसे हरि कौंस, श्याम कौंस आदि। बातचीत की अशोक (सोनावने) जी ने। धन्यवाद कांचन (प्रकाश संगीत) जी इस जानकारीपूर्ण कार्यक्रम को तैयार कर प्रस्तुत करने के लिए।

एक और श्रृंखला आरंभ हुई - नाद निनाद जिसे प्रस्तुत कर रहे है ख़्यात बांसुरीवादक विजय राघव राव। इसमें संगीत की प्रवृतियों को बताया जा रहा है। एक बहुत अच्छी बात से शुरूवात की गई कि गीत वाद्य और नृत्य की त्रिवेणी है हमारा संगीत। यह श्रृंखला छाया (गांगुली) जी द्वारा 1992 में तैयार की गई।

7:45 पर त्रिवेणी में शुक्रवार को क्रोध विषय पर बातें हुई पर गीत सुनवाए गए भूल विषय पर, पहला गीत ऐसी स्थिति का है कि जहाँ नायक से एक घर के मुखिया का एक्सीडेंट हो जाता है जिससे वह घर तहस-नहस हो जाता है, यह नायक की भूल है या अपरिपक्वता, यह फ़िल्म है राजश्री प्रोडक्शनस की शिक्षा इसमें क्रोध है ही नहीं, कृपया गानों के चुनाव ध्यान से करें। इसके अलावा वैज्ञानिक उन्नति की और किसी भी तरह का भेदभाव न करने की बातें हुई। मंगलवार को विषय स्पष्ट नहीं हुआ, पहले कहा गया हर एक में प्राकृतिक गुण और वर्जनाएँ होती है फिर प्रकृति की बात हुई फिर कुछ और…

दोपहर 12 बजे हर दिन प्रसारित हुआ कार्यक्रम एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने। शुक्रवार को पधारी निम्मी (मिश्रा) जी फ़िल्में रही काँटे, ताल, ज़ख़्म, अपने, अक्सर, सिंह इज़ किंग, चमेली, लगान जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्में। आरंभिक काव्यात्मक उदघोषणा अच्छी लगी। शनिवार को दुश्मन, हरे राम हरे कृष्ण, आए दिन बहार के, तेरे घर के सामने, तेरे मेरे सपने, मेरा गाँव मेरा देश जैसी पचास से सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आए अमरकान्त जी। रविवार को जब जब फूल खिले, त्रिशूल, कन्यादान, मेहदी लगी मेरे हाथ, हसीना मान जाएगी जैसी साठ से अस्सी के दशक की अभिनेता शशिकपूर की लोकप्रिय फ़िल्में रही। सोमवार को दिल है कि मानता नहीं, राम लखन, पेज 3, जब वी मेट, मैनें प्यार क्यों किया, पुकार जैसी नई फ़िल्में लेकर आईं रेणु (बंसल) जी। मंगलवार को आए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी, फ़िल्में रही वीर ज़ारा, सलाम नमस्ते, गुरू, जानेमन जैसी नई फ़िल्में। बुधवार को आए कमल (शर्मा) जी फ़िल्में रही याराना, जवानी दीवानी, पराया धन, कारवाँ, अपना देश, टूटे खिलौने, खट्टा मीठा जैसी सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को आए कमल (शर्मा) जी और फ़िल्में रही सुजाता, बन्दिनी, दुलारी, बरसात, दिल दिया दर्द लिया, बरसात की रात, ग़ज़ल जैसी पचास साठ के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में।

ऐसे गीत भी सुने जो बहुत लम्बे समय से नहीं बजे जैसे अपना देश फ़िल्म का यह गीत -

कजरा लगाके गजरा सजाके बिजली गिराके जय्यो न

समझ में नहीं आया श्रोताओं ने इस फ़िल्म में आशा भोंसलें और आर डी बर्मन के अपने विशेष अंदाज़ में गाए इस गीत के लिए एस एम एस क्यों नहीं भेजा -

दुनिया में लोगों को धोखा कभी हो जाता है

यह गीत अपने समय का बहुत-बहुत लोकप्रिय गीत है।

हर गाने के लिए संदेश भेजने वालों के नाम और शहर का नाम बताया जाता रहा। इस कार्यक्रम को विजय दीपक (छिब्बर) जी प्रस्तुत कर रहे है और प्रस्तुति सहयोग रहा निखिल धामापुरकर जी, मंगेश सांगले, सुभाष भावसार, स्वाति भण्डारकर और दिलीप (कुलकर्णी) जी का।

1 बजे म्यूज़िक मसाला में मन के मंजीरे एलबम से शुभा मुदगल की आवाज़ में राजस्थानी गीत सुना -

पधारो म्हारे देश

केवल भाषा सुन कर ही लग रहा था कि यह राजस्थानी गीत है, न तो गायकी और न ही अंदाज़ राजस्थानी था, आवाज़ भी काँप रही थी, लगा जैसे ज़बरदस्ती राजस्थानी गीत उनसे गवाया गया।

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में नए पुराने गीत सुनवाए गए। प्रिंस फ़िल्म का यह गीत बहुत दिन बाद सुना -

बदन पे सितारे लपेटे हुए ऐ जाने तमन्ना किधर जा रही हो

3 बजे शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। गृहणियों के, छात्राओं के, शिक्षित और कम पढी लिखी महिलाओं से बातचीत हुई। अक्सर फोन गाँव ज़िले से ही आते है पर इस बार एक फोन दिल्ली शहर से भी था। अधिकतर नए गाने ही पसन्द किए गए।

सोमवार को सूखे मेवे की चक्की और मूँगफली की बर्फ़ी बनाना बताया गया। इस दिन सांस्कृतिक एकता दिवस होने से संबंधित बातें भी बताई गई। साथ ही राजनैतिक क्षेत्र में विभिन्न क्षेत्रों से आई प्रथम महिलाओं से संबंधित जानकारी दी गई। मंगलवार को पर्यटन में मार्किंटिंग, कैटिरिन, टिकेटिंग जैसे पर्यटन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में करिअर बनाने के लिए कोर्स करने की जानकारी दी गई। गाने नए सुनवाए गए। बुधवार को सर्दियों में त्वचा की देखभाल के लिए घरेलु नुस्ख़े बताए गए जिसमें कहा गया कि सब्जियों और फलों के रस जैसे आलू, गोभी आदि साथ ही शहद और खाने का तेल आदि लगाने से त्वचा अच्छी रहती है। गुरूवार को सखियों की इस शिकायत पर कि उनके पत्र शामिल नहीं किए जा रहे, सखियों के पत्र ही पढे गए। एक पत्र उड़ीसा से आया था जिसमें अच्छी जानकारी दी गई कि मानव की रसोई का आरंभ कैसे हुआ जैसे आदि मानव ने कैसे कच्चे मांस से पका हुआ भोजन खाना और नमक मिला खाना शुरू किया। पर दोनों सखियों (निम्मी जी और चंचल जी) ने इसे मानव का विकास कहा जबकि यह सभ्यता का विकास कहलाता है और यह समाज शास्त्र का विषय है जबकि मानव का विकास विज्ञान की बातें है जिसमें मनुष्य के शारीरिक और मानसिक विकास की बातें की जाती है।

3 बजे शनिवार को क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद से तेलुगु में पर्यावरण से संबंधित प्रायोजित कार्यक्रम सुना - कोशिश सुनहरे कल की। रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में हमेशा की तरह लोकप्रिय फ़िल्मों के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए।

शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सुना नाटक सात कदम आसमान में इस मूल गुजराती नाटक के लेखक है कुन्दनिका कपाड़िया जिसका हिन्दी रेडियो नाट्य रूपान्तर किया है प्रशान्त पाण्डेय ने जिसके निर्देशिक है सुदर्शन कुमार। यह नाटक आधुनिक होती महिलाओं पर केन्द्रित था कि कैसे उन्हें घर और समाज में हर स्तर पर दिक्कतें होती है क्योंकि जिस तरह महिलाएँ अपने विचार बदल रही है उसी तरह पुरूष और समाज नहीं बदल रहा।

रविवार को शाम 4 बजे यूथ एक्सप्रेस इस सप्ताह भी छुक-छुक करती रही। गानों के लिए समय कुछ अधिक ही रहा। किताबों की दुनिया में विदेशी चिंतक सुकरात पर जानकारी दी चित्रा कुमार ने। संगीतकार भप्पी लहरी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ दी गई और उनके गीत सुनवाए गए। एक श्रोता की भेजी सचिन तेंदुलकर के करिअर संबंधी जानकारी पढकर सुनाई गई जिसका औचित्य मुझे समझ में नहीं आया क्या युवा सचिन के बारे में नहीं जानते ?

4 बजे पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत बाईस्कोप की बातें कार्यक्रम में चाचाचा फ़िल्म की बातें बताई गई। इस फ़िल्म के बहुत से तार हैदराबाद से आन्ध्रप्रदेश से जुड़े है। यह फ़िल्म मैंनें देखी है। इस कार्यक्रम में लोकेन्द्र शर्मा जी ने इतनी अच्छी तरह से इस फ़िल्म की बातें बताई कि बहुत दिन पहले देखी गई इस फ़िल्म के सीन नज़रों के सामने आ गए ख़ासकर मन्दिर में जन्माष्टमी के समय गाया जाने वाला गीत - लल्ली सज धज कर चली, बालों में गजरा…

इस सीन में साड़ी पहने सिर पर पल्लू लिए हाथ में पूजा की थाली लिए पारम्परिक भारतीय छवि में हेलन बेहद ख़ूबसूरत लगी। बातें सुनते गए तो सीन याद आते गए, हेलन का बेजोड़ अभिनय जिसमें भरी हुई आँखों से बैसाखियों की ओर देखना फिर गाना सुन कर बैसाखियाँ घिसटते हुए दौड़ना सभी याद आने लगे। अच्छे संवाद संपादित कर सुनवाए गए। इतनी अच्छी प्रस्तुति रही कि पाश्चात्य नृत्य चाचाचा को लेकर बनाई गई नायक चन्द्रशेखर की इस फ़िल्म का श्रोता पूरा आनन्द ले सकें।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में आयुर्वेद चिकित्सक कन्हैया लाल शाह से कांचन (प्रकाश संगीत) जी ने गठिया रोग पर बातचीत की। बढती उमर में होने वाला जोड़ो का दर्द उसके कारण पर विस्तार से जानकारी दी गई। एक बात अच्छी बताई गई कि अन्य देशों में मौसम के कारण स्वास्थ्य के लिए कुछ सीमा तक मदिरापान किया जाता है पर भारत के मौसम के अनुसार इसकी आवश्यकता ही नहीं है। बुधवार को आज के मेहमान में लेखक, निर्माता, अभिनेता सचिन से ममता (सिंह) जी की बातचीत सुनवाई गई। बालकलाकार से शुरू करिअर की अच्छी जानकारी दी। चंदा और बिजली जैसी फ़िल्म को भी याद किया और बालिका वधू की भी बातें हुई।

हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए जिसमें कम शिक्षित कामकाजी श्रोता भी थे, सभी से हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में सभी गीत नए सामान्य रहे।

7 बजे जयमाला में रोज़ फ़ौजी भाइयों के फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए जिसमें नए गाने ज्यादा थे, कभी-कभार पुराने गीत भी सुनवाए गए जिसमें रविवार को बहुत अच्छे गीत शामिल रहे और स्वामी फ़िल्म का लता जी का गाया यह गीत तो बहुत दिन बाद सुना -

पल भर में यह क्या हो गया
लो मैं गई वो मन गया
चुनरी कहे सुन री पवन
सावन लाया अब के सजन

बहुत अच्छे बोल अमित खन्ना के और बहुत ही मधुर गीत।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया शायर और गीतकार नुसरत बदरू ने। प्रस्तुति काफी शायराना रही पर गीत ऐसे सुनवाए जो जाने-पहचाने नहीं थे, अंतिम दो गीत तो ग़ैर फ़िल्मी थे ही पर पूरा कार्यक्रम सुन कर लग रहा था जैसे ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं का गुलदस्ता कार्यक्रम सुन रहे है।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में मराठी, पूर्वी गीत सुनवाए गए जिसमें इन्द्राणी पाटिल का मराठी लोकगीत अच्छा लगा। पत्रावली में दोनों दिन, शनिवार और सोमवार को कुछ ऐसे श्रोताओं के पत्र शामिल रहे जो बरसों से रेडियो सुन रहे है। कुछ अच्छे कार्यक्रम बंद होने की शिकायतें भी हुई और सुझाव भी दिए गए। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ सुनी। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में गायिका जसविन्दर नरूला से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनवाई गई। गायिका ने आध्यात्मिक अनुभूति की बात की, जब कमल जी ने संघर्ष के बारे में पूछा तो भाग्य की बात बता दी। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे पाकीज़ा फ़िल्म का गीत।

8 बजे हवामहल में हास्य झलकियाँ सुनी -चक्कर बहस का (निर्देशक - एम एस बेग), तलाश एक वकील की (रचना - नदीम अजमेरी और निर्देशक - जटाशंकर शर्मा), शान्ति (रचना गंगा प्रसाद माथुर निर्देशिका लता गुप्ता) , अंगूर खट्टे है (निर्देशक कमल दत्त और रचना वी एस आनन्द)

रात 9 बजे गुलदस्ता में गीत कुछ कम ही रहे और ग़ज़लों की संख़्या अधिक रही। अच्छा लगा अहमद वसी का कलाम ख़ैय्याम के संगीत निर्देशन में आशा भोंसले की आवाज़ में सुनना।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में पगला कहीं का, तेजाब, पहेली, दौलत जैसी साठ से अस्सी के दशक तक की लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अभिनेत्री माला सिन्हा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की पहली कड़ी सुनी। अच्छी शुरूवात हुई। यह नई बात पता चली कि माला सिन्हा बचपन में गायिका थी, शिक्षा भी ली थी पर बन गई अभिनेत्री जिसकी शुरूवात हुई बंगला फ़िल्मों से, यह भी नई बात पता चली कि बम्बईया हिन्दी फ़िल्मों की तरह रोने-धोने के सीन के लिए कलकत्ता में ग्लिसरीन नहीं लगाई जाती बल्कि सचमुच रोना पड़ता है और रोना न आने पर निर्माता थप्पड़ मार कर रूलाते है। हर बात उन्होनें दिल से बताई और खुल कर बातें की। हिमालय की गोद में फ़िल्म का सीन सुनवाया गया और अनपढ फ़िल्म के साथ दिल तेरा दीवाना जैसी अन्य फ़िल्मों के गीत भी सुनवाए गए।

10 बजे शुक्रवार को कमल (शर्मा) जी द्वारा प्रस्तुत छाया गीत मज़ेदार रहा जो फ़िल्मों में प्रेतात्माओं पर आधारित था। सच बताया कि फ़िल्मों में भूत-प्रेत विशेषकर चुड़ैलें (महिला भूत) बहुत ग्लैमरस होती है जबकि वास्तव में भूत-प्रेत-चुड़ैलों को भयानक माना जाता है। संबंधित गाने भी अच्छे चुने गए। अमरकांत जी ने अपना वही पुराना कार्यक्रम दुबारा, तिबारा, जाने कितनी बार प्रसारित, को फिर से सुनवाया।

राष्ट्रीय शोक,आकाशवाणी और एफ़एम चैनल्स.

पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथप्रताप सिंह के निधन के कारण भारत सरकार ने राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है. आज सुबह आकाशवाणी का स्थानीय क्षेत्रीय चैनल ट्यून किया तो गीता-पाठ सुनाई दिया. विविध भारती पर भी पूरी संजीदगी थी. हाँ प्रसारण की शुरूआत में बजने वाली शहनाई की मंगल ध्वनि भी नहीं थी उसकी जगह बिना तबले की सारंगी से दिन शुरू हुआ. उदघोषक के स्वर में भी एक सहज गंभीरता थी. इधर विविध भारती को ट्यून करने में रोज़ ही ख़ासी मशक्क़त करनी पड़ती है क्योंकि हैवी ट्रांसमीटर्स से एफ़एम चैनल्स (मेरे शहर इन्दौर में रेडियो मिर्ची,माय एफ़एम,बिग एफ़एम. और एस.एफ़एम हैं) ऐसा अतिक्रमण कर बैठे हैं कि विविध भारती को वाक़ई ढूंढना ही पड़ता है. बहरहाल बरास्ता एफ़एम.चैनल्स जब विविध भारती तक पहुँचा तो लाज़मी है इन नये ज़माने के चैनल्स के प्रसारणों पर भी कान चला गया. जब से इन एफ़एम चैनल्स को पता पड़ा है कि विविध भारती के पास सुबह भक्ति संगीत के स्लॉट वंदनवार या रीजनल प्रसारण के वंदना को अधिकतम श्रोता मिलते हैं तो ये चैनल्स भी कोई सुबह पाँच बजे या साढ़े पाँच बजे भकितमय हो जाते हैं .शोक के पल में भक्ति संगीत भी किस क्वालिटी का हो ये देखने वाला इन नये-नकोरे चैनल्स पर कोई नहीं होता.कोई माता रानी के गीत बजा रहा है तो कोई विष्णु सहस्त्रनाम,कोई गायत्री मंत्र बजा रहा था तो कोई श्री गणेश अथर्वशीर्ष.यानी राष्ट्रीय शोक के समय में भक्ति संगीत भी किस मूड हो ये देखने की किसे फ़ुरसत है. सात बजे के बाद तो वही शोर मचाते रेडियो जॉकीज़ नमूदार हो गए,वही उनका खिलंदड़ अंदाज़ , वही वायब्रेंसी और एनर्जी लेवल बढ़ाती धमाल.रीजनल स्टेशन पर शुभलक्ष्मी,शंकर-शंभू,
और दीगर कई स्थानीय कलाकारों की आवाज़ों में निबध्द ऐसी रचनाएँ थीं जो संकेत दे रहीं थीं की ये राष्टीय शोक की बेला में बजने वाला भक्ति संगीत है.

एफ़एम चैनल्स के साथ प्रसार भारती क्या अपने अनुबंध में इन राष्ट्रीय महत्व के प्रसारणों के लिये कोई विशेष नियमों का खुलासा नहीं करती.जब चार-चार चैनल्स पर नये गीतों के तड़क भड़क वाले गीत बज रहे हों तब आकाशवाणी और विविध भारती का सोग भरा प्रसारण गुम हो जाता सा प्रतीत होता है.

याद है मुझे जब डाँ.ज़ाकिर हुसैन,फ़क़रूद्दीन अली अहमद,डॉ.शंकरदयाल शर्मा,इंदिरा गाँधी,राजीव गाँधी,जयप्रकाश नारायण,वी.वी.गिरि,ज्ञानी ज़ैलसिंह जैसी राष्ट्रीय हस्तियों के दिवंगत होने पर आकाशवाणी और दूरदशन के ह्र्दयस्पर्शी प्रसारणों से घर-परिवार में भी ऐसा वातावरण बन जाता था जैसे परिवार में ही कोई ग़मी हो गई हो. जसदेवसिंह,मैलविन डिमेलो,सुरजीत सेन और कमलेश्वरजी की खनकती आवाज़ों की वे सारी धीर-गंभीर कमेंट्री दिवंगत शख़्सियतों को हमारी आँखों के सामने ला खड़ा करती थी.
आज एन एफ़एम चैनल्स के पास टैक्नीक है,पैसा है,स्पॉंसरशिप्स है,एंडोर्समेंट्स हैं और है बेताहाशा शोर जो मनुष्य की समवेदना को की थाह नहीं ले पा रहा है.

Thursday, November 27, 2008

शौकिया रेडियो ऑपरेटर को HAM क्यों कहा जाता है?

आईये रेडियोनामा पर बी.एस. पाबला का स्‍वागत करें । उनका अपना ब्‍लॉग है 'जिंदगी के मेले' । इस ब्‍लॉग पर जब उन्‍होंने हैम रेडियो पर ये पोस्‍ट लिखी तो हमने उनसे रेडियोनामा पर जुड़ने का आग्रह किया । जिसे उन्‍होंने सहर्ष स्‍वीकार कर लिया । हैम रेडियो से पाबला जी का बड़ा जुड़ाव है ज़ाहिर है कि उनकी इस श्रृंखला के ज़रिए रेडियोनामा पर एक नया आयाम जुड़ेगा ।

- यूनूस ख़ान ।

HAM रेडियो की तुलना इंटरनेट से नही की जा सकती। किसी प्राकृतिक विपत्ति में जब सब साधन नष्ट हो जायें तो यही है जिससे शेष विश्व से संपर्क हो सकता है। आज से 30-35 साल पहले के मुकाबले शौकिया रेडियो ऑपरेटर बनने व आनंद उठाने की प्रक्रिया में ज़्यादा अन्तर नहीं आ पाया है। जैसा कि कहा जाता है 'विचारधारा कभी नहीं बदलती, मात्र व्यवस्था बदल जाती है' आज समय के साथ चलते हुए, शौकिया रेडियो ऑपरेटर की सहायता के रूप में कई software भी आ गए हैं।

एक शौकिया रेडियो ऑपरेटर को HAM कहे जाने का कोई विशेष कारण ज्ञात नहीं है। कुछ व्यक्ति, इस तीन अक्षरों के शब्द HAM का सम्बन्ध, तीन महान रेडियो प्रयोगधर्मियों के नाम से जोड़ते हैं। वे हैं, हर्ट्ज (Hertz), जिन्होंने व्यवहारिक रूप में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का प्रदर्शन, 1988 में किया था, आर्मस्ट्रांग (Armstrong) जिन्होंने रेडियो तरंगों के लिए आवश्यक resonant oscillator circuit विकसित किया था और मारकोनी (Marconi) जिन्होंने वर्ष 1901 में अटलाण्टिक महासागर के आर-पार, पहला रेडियो संपर्क स्थापित किया था और वे वर्ष 1909 में भौतिकी के नोबल पुरस्कार विजेता भी रहे।

दूसरों के अपने संस्करण है, उन के अनुसार रेडियो संचार के शुरूआती दिनों के दौरान, सरकार ने शौकिया रेडियो ऑपरेटरों को कुछ निश्चित फ्रीक्वेंसियों का उपयोग करने की अनुमति दी। शौकिया रेडियो स्टेशनों की frequency की स्थिति, उस समय बाक़ी फ्रीक्वेंसियों (की सारिणी) के बीच एक तरह से sandwich जैसी थी। फैशन में था हैम सैंडविच (जैसे आजकल हैम बर्गर है) और इतना ही काफी था शौकिया रेडियो ऑपरेटर HAM को कहा जाने के लिए।

एक और अटकल लगाई जाती है कि इस शब्द HAM का अभिप्राय है Help All Mankind, जो कि प्राकृतिक आपदाओं में संकटग्रस्त व्यक्तियों, नागरिक आपात परिस्थितियों के दौरान सहायता देने के लिए इसकी सेवा के रूप को दर्शाता है।

वैसे शब्द, HAM का उपयोग 1908 में पहले शौकिया वायरलेस स्टेशन के हार्वर्ड रेडियो क्लब के कुछ शौकीनों द्वारा उपयोग किया गया था। ये व्यक्ति थे Albert S. Hyman, Bob Almy तथा Poogie Murray. उन्होंने अपने पहले स्टेशन को HYMAN-ALMY-MURRAY का नाम दिया। जैसा कि होता ही है, इस तरह का एक लंबा नाम, मोर्स कोड (Morse code) के द्वारा भेजा जाना, जल्द ही थकाऊ महसूस किया गया और एक संशोधन की गुहार हुयी। फिर प्रत्येक व्यक्ति के नाम के पहले दो अक्षरों का उपयोग किया गया और हो गया HY-AL-MY। इसी बीच कुछ भ्रम की स्थिति पैदा होने लगी, जब एक शौकिया रेडियो स्टेशन HY-ALMU से और HYALMO नामक एक मैक्सिकन जहाज से संकेत प्राप्त होने लगे। फिर उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति के नाम का प्रथमाक्षर उपयोग करने का निर्णय लिया और बन गया HAM!

शुरूआती दिनों में जब किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं हुया करता था, शौकिया रेडियो ऑपरेटर अपनी मर्जी से कोई भी frequency चुन लेते थे। कई बार तो उनका प्रसारण व्यवसायिक रेडियो स्टेशनों के मुकाबले ज़्यादा स्पष्ट होता था। परिणाम स्वरूप अमेरिकी कांग्रेस का ध्यान शौकिया रेडियो गतिविधि को सीमित करने के लिए की ओर गया। 1911 में, Albert Hyman ने, हार्वर्ड में शोध के लिए, विवादास्पद Wireless Regulation विधेयक को चुना। उनके प्रशिक्षक ने शोध की एक प्रतिलिपि, सेनेटर डेविड एल वॉल्श, जो इस विधेयक की सुनवाई समिति के एक सदस्य थे, को भेजे जाने पर जोर दिया। इस सेनेटर इस शोध से इतना प्रभावित हुए कि उन्हें समिति के सामने हाजिर होने को कहा गया।

अल्बर्ट ने अपना पक्ष रखा और बताया कि कैसे ये छोटे से स्टेशन बनाए गए। वह खचाखच भरे समिति के कमरे में यह बताते हुए रो ही पड़े कि यदि यह विधेयक पास हो गया तो ये शौकिया रेडियो स्टेशन बंद हो जायेंगे क्योंकि वे लाइसेंस शुल्क और अन्य सभी आवश्यकताओं का खर्च नहीं उठा सकते। अमेरिकी कांग्रेस की Wireless Regulation विधेयक पर बहस शुरू हुई और देखते ही देखते यह छोटा सा शौकिया स्टेशन HAM, देश के उन सभी छोटे शौकिया स्टेशनों के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गया, जिन्हें बड़े वाणिज्यिक स्टेशन अपने लालच के चलते, खतरा मानते थे व अपने आसपास भी उनकी उपस्थिति नहीं चाहते थे। अंत में यह विधेयक अमेरिकी कांग्रेस के सभापटल पर आ ही गया, उस समय लगभग हर वक्ता की जुबान पर था ".... बेचारा नन्हा सा HAM"

बस उसी दिन से शौकिया रेडियो ऑपरेटरों को HAM कह कर पुकारा जाने लगा और शायद रेडियो समयकाल के अंत तक पुकारा जाएगा।

Friday, November 21, 2008

साप्ताहिकी 20-11-08

इस सप्ताह दो दिन विशेष रहे, पहला दिन - बालदिवस और बुधवार को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी का जन्मदिन जिस दिन से शुरू हुआ क़ौमी एकता सप्ताह।

सवेरे 6 बजे समाचार के बाद चिंतन से प्रसारण की शुरूवात हुई जिसमें जवाहरलाल नेहरू के विचार बताए गए लेकिन उसके बाद वन्दनवार में हम प्रतीक्षा करते रह गए पर एक भी भजन बालगोपाल का नहीं बजा। वैसे देशगान हल्का सा नेहरू के आदर्शों को छूने वाला था। अन्य दिनों में गाँधी, सुभाष चन्द्र बोस, प्रेमचन्द जैसे विद्वानों के विचार चिन्तन में बताए गए पर अच्छा होता अगर बुधवार को संबंधित बात बताई जाती। वन्दनवार में भजन भी सप्ताह भर अच्छे ही सुनवाए गए जैसे -

मैं काँवड़ियाँ मैं भोले का पुजारी
भोले बसे है मेरे मन में

7 बजे भूले-बिसरे गीत में भी यही हाल रहा। एक भी गीत बच्चों के लिए नहीं सुनवाया गया और न ही बुधवार को कोई संबंधित गीत सुनवाया गया। अन्य दिनों में कुछ वाकई भूले बिसरे गीत सुनवाए गए तो कुछ लोकप्रिय गीत भी बजे जैसे सुरैया का गाया गजरे फ़िल्म का भूला बिसरा गीत सुनवाया गया और शमा फ़िल्म का यह लोकप्रिय गीत -

धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला रागों में भक्ति संगीत की धारा इस सप्ताह समाप्त हुई जिसे प्रस्तुत कर रहे थे गायक और संगीतकार शेखर सेन। इस सप्ताह विभिन्न रागों में ग़ैर फ़िल्मी लोकप्रिय भजन सुनवाए गए जैसे -

राग भैरवी में दुर्गा सप्तशती के अंश अनुराधा पौडवाल की आवाज़ में

राग जोड़ कौंस में लता मंगेशकर की आवाज़ में सूरदास की भक्ति रचना -
निसदिन बरसत नैन हमारे
फिर इसी राग में ज़रीन दारूवाला का सरोद वादन और आरती अंगलीकर का गायन

कबीर की भक्ति रचनाएँ जुतिका राय की आवाज़ में -

घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगें

राग देस में अनूप जलोटा के स्वर में - झीनी चदरिया

राग मिश्र ख़माज में अनुराधा पौडवाल का गाया भजन और यह लोकपिय भक्ति पद -

मोको कहाँ ढूँढे रे बन्दे मै तो तेरे पास

एक नई श्रृंखला आरंभ हुई - कौंस के प्रकार जिसे प्रस्तुत कर रही है प्रसिद्ध गायिका अश्विनी (भेड़े) देशपाण्डेय, इसे तैयार किया है कांचन (प्रकाश संगीत) जी ने। लगता है यह पहली बार प्रसारित हो रही है क्योंकि याद नहीं आ रहा कि इसे पहले कभी सुना था। जैसे कि शीर्षक से ही समझा जा सकता है कि यह कौंस के विभिन्न रागों पर आधारित है। शुरूवात की गई राग मालकौंस से जिसमें बैजू बावरा फ़िल्म का प्रसिद्ध गीत गायन रूप में प्रस्तुत किया गया -

मन तड़पत हरि दर्शन को आज

जिसके बाद नवरंग फ़िल्म का गीत सुनवाया गया -

तू छुपी है कहाँ मैं तड़पता यहाँ

बातचीत कर रहे है अशोक (सोनावने) जी। कौंस की प्राचीनता के बारे में बताते हुए विभिन्न रागों की पूरी जानकारी दी जा रही है जैसे राग मालकौंस शांत प्रकृति का राग और रात में गाया बजाया जाता है।

7:45 पर त्रिवेणी में शुक्रवार को पुराना अंक प्रसारित हुआ जिसमें जीवन में हर स्तर पर मिलावट की बात कही गई, क्या ही अच्छा होता अगर इस दिन त्रिवेणी बच्चों के नाम होती। इसी तरह बुधवार को भी संबंधित विषय नहीं उठाया गया। अन्य दिनों में भी बहुत ही उच्च स्तरीय बातें हुई। वैसे भी संगीत सरिता में भक्ति रचनाएँ चलती रही उसके बाद त्रिवेणी में भी लगभग यही माहौल कुछ ठीक नहीं लगा। एक दिन बताया गया कि दुनिया भर के झगड़े ज़मीन को लेकर है और संबंधित गाने सुनवाए गए जैसे फ़िल्म ताजमहल का गीत -

ख़ुदाए बरकत तेरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यों है

भई त्रिवेणी के इस अंक को सुनने के बाद हमने फ़्लैट ख़रीदने का इरादा छोड़ दिया है… :):):) अरे भई ऐसी भी सीख न दो कि सुनने वाले दुनियादारी छोड़ कर सन्यासी हो जाए।

दोपहर 12 बजे हर दिन प्रसारित हुआ कार्यक्रम एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने।

शुक्रवार को कटी पतंग, किस्मत, आई मिलन की बेला, मेरे जीवन साथी, काला बाज़ार, ललकार जैसी साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर पधारी मंजू (द्विवेदी) जी। शनिवार को वारिस, अनमोल मोती, गीत गाया पत्थरों ने, अनोखी अदा, फ़र्ज़, सुहाग रात, गहरी चाल, मवाली जैसी साठ से अस्सी के दशक की जितेन्द्र की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आए अशोक (सोनावने) जी। जितेन्द्र के बारे में हल्की-फुल्की बातें भी बताई। सोमवार को पार्टनर, मर्डर, टैक्सी नं नौ दो ग्यारह, ताल, बंटी और बबली जैसी नई फ़िल्में लेकर आए अमरकान्त जी पर पहली बार ऐसा हुआ कि टेलीफोन लाइन की गड़बड़ी के कारण एसएमएस मिल ही नहीं रहे थे और बिना संदेशों के ही गाने सुनवाए गए। मंगलवार को आए कमल (शर्मा) जी, फ़िल्में रही दामिनी, कयामत से कयामत तक, धड़कन, नो एन्ट्री, नील एंड निक्की, झूम बराबर झूम जैसी अस्सी के दशक से अब तक की फ़िल्में। बुधवार को पधारीं सलमा (सय्यैद) जी और फ़िल्में रही जानी मेरा नाम, आँखें, कहो न प्यार है जैसी साठ के दशक से अब तक की लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को पधारीं शहनाज़ (अख़्तरी) जी और फ़िल्में रही समाधि, माया, नूरी, टशन, आरज़ू, मेरे हमदम मेरे दोस्त, किस्मत कनेक्शन, रेस जैसी साठ के दशक से अब तक की लोकप्रिय फ़िल्में। लेकिन बीच में 12:30 बजे से 15 मिनट के लिए कार्यक्रम को काट कर क्षेत्रीय (तेलुगु) समाचार बुलेटिन का प्रसारण किया गया।

इसमें कुछ ऐसे गीत भी सुने जो बहुत लम्बे समय से नहीं बजे जैसे -

हैय्या ओ गंगा मय्या (फ़िल्म सुहाग रात)

हर गाने के लिए संदेश भेजने वालों के नाम और शहर का नाम बताया जाता रहा। इस कार्यक्रम को विजय दीपक (छिब्बर) जी प्रस्तुत कर रहे है और प्रस्तुति सहयोग रहा निखिल धामापुरकर जी और दिलीप (कुलकर्णी) जी का।

1 बजे म्यूज़िक मसाला में तुम याद आए एलबम का अलका याज्ञिक का गाया जावेद अख़्तर का लिखा और राजू सिंह का स्वरबद्ध किया यह गीत बहुत बहुत बार सुन चुके है फिर भी बजता ही रहता है -

सारे सपने कहीं खो गए
हाय हम क्या से क्या हो गए

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में शुक्रवार को अमरकान्त जी ने इस गाने से शुरूवात कर जता दिया कि विविध भारती पर बालदिवस भी मनाया जाता है -

जिंगल बेल जिंगल बेल
आओ तुम्हें चाँद पे ले जाए

पर बुधवार को प्रस्तुत किया रेणु (बंसल) जी ने और फ़रमाइशी गीतों में से एक भी गीत ऐसा नहीं चुना जो महिलाओं या क़ौमी एकता पर आधारित हो।

3 बजे शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। आते ही बताया कि आज बालदिवस है पर न तो पहला फोनकाल इससे संबंधित था और न ही गीत, इस गीत से शुरूवात हुई -

हमारी शादी में अभी बाकी है हफ़्ते चार
पूनम ओ जानम ओ

स्कूल की लड़कियों के फोनकाल आए, बातचीत तो अच्छी हुई, उनकी उमर के शौक पता चले पर बच्चों के गाने पसन्द नहीं किए गए।

सोमवार को रसोई की बातें होती है जिसमें विटामिन सी से भरपूर आँवले की चटनी बनाना बताया गया जो एक सखि ने भेजा था। साथ ही बताया गया ख़ाना परोसना भी। इस दिन पचास साठ के दशक की फ़िल्मों के अच्छे गीत सुनवाए गए जैसे आम्रपाली का गीत -

तुम्हें याद करते करते जाएगी रैन सारी
तुम ले गए हो अपने संग नींद भी हमारी

मंगलवार को करिअर की बातें की जाती है जिसके अंतर्गत जानकारी दी गई कि एयर होस्टेस कैसे बनें। क्योंकि बातें करिअर की होती है इस दिन यानि युवाओं की इसीलिए गाने नए सुनवाए जाते है। बुधवार को सुबह से ही लग रहा था कि इस दिन की ख़ासियत शायद विविध भारती भूल गई है पर सखि-सहेली में क़ौमी एकता (एकता संभाव) दिवस की बात जोर-शोर से हुई और ज़ोरदार ग़ैर फ़िल्मी गीत सुनवाया गया -

मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा

और विशेष रूप से इस दिन लोक गीत गायिका अनुराधा श्रीवास्तव और प्रभा सिंह से कांचन (प्रकाश संगीत) जी की बातचीत अच्छी लगी। विभिन्न अवसरों के लोक गीत भी गाकर सुनवाए जैसे जनेऊ पर गाया जाने वाला गीत और बच्चों को पहले स्माल पाँक्स निकला करता था जिसे लोक भाषा में कहा जाता था कि माताजी ने दर्शन दिए, इस अवसर पर गाया जाने वाला गीत। एक अच्छे अंक के लिए धन्यवाद कमलेश (पाठक) जी !

बुधवार होने से सर्दियों में सेहत की देखभाल की बातें बताई गई। गुरूवार को सफल महिला सावित्री बाई फूले के बारे में बताया गया जो भारत की प्रथम अध्यापिका और समाज सेविका थी।

3 बजे शनिवार को क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद से पर्यावरण से संबंधित प्रायोजित कार्यक्रम सुना - कोशिश सुनहरे कल की जो तेलुगु में सुनवाया गया। रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में हमेशा की तरह लोकप्रिय फ़िल्मों के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए।

शनिवार को नाट्य तरंग में सुना समीर गांगुली का लिखा नाटक डबल बेल जिसके निर्देशिक है अनूप सेठी। यह बम्बई की बस यात्रा है जिसमें तरह-तरह के यात्री है। यात्री शहर की बस से गाँव की बस की तुलना करते है। लगा यह नाटक पुराना है क्योंकि कडंकटर से पाँच पैसे छुट्टे माँगे गए। रविवार को जयदेव शर्मा कमल के निर्देशन में स्वामी जी पर आधारित प्रबुद्ध स्तर का नाटक सुना।

रविवार को शाम 4 बजे यूथ एक्सप्रेस न तो एक्सप्रेस थी और न ही लोकल ट्रेन की तरह भीड़-भाड़ थी, बस छुक-छुक करती गाड़ी घिसट रही थी। विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश की सूचना दी गई। एक जानकारी नई थी कि कैसे कप्यूटर पर काम करते हुए कलाई का दर्द होता है। नए गाने सुनवाए गए। गानों के लिए कुछ अधिक समय रहा। किताबों की दुनिया में विदेशी लेखक थे।

4 बजे पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत सरगम के सितारे कार्यक्रम में संगीतकार एस एन त्रिपाठी के बारे मे जानकारी दी गई। बहुत अधिक जानकारी तो नहीं मिल पाई पर गाने अच्छे सुनवाए गए जैसे -

ओ पवन वेग से उड़ने वाले घोड़े

न किसी की आँख का नूर हूँ

वैसे भी इस संगीतकार के सभी गीत अच्छे है।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में हृदय रोग विशेषज्ञ डा देव पहलाज़नी (शायद नाम लिखने में ग़लती हो) से निम्मी (मिश्रा) जी ने बातचीत की। बच्चों में हृदय रोग शरीर में नसों से विषैला पदार्थ फैलने से होता है जिसे रूमाटिक रोग कहते है और बड़ों में तनाव, रक्तचाप आदि से होता है। इस तरह हृदय रोग के बारे विस्तृत जानकारी दी गई। बुधवार को आज के मेहमान में फ़िल्म समीक्षक प्रह्लाद अग्रवाल से युनूस (ख़ान) जी की बातचीत सुनवाई गई। दोनों का संबंध जबलपुर से है इसीलिए बातचीत अधिक आत्मीय लगी।

हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में सभी गीत नए सामान्य गीतों की तरह रहे जैसे आवारापन फ़िल्म से यह गीत -

प्यार यार यार यार

7 बजे जयमाला में रोज़ फ़ौजी भाइयों के फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए जिसमें नए गाने ज्यादा थे, कभी-कभार पुराने गीत भी सुनवाए गए जैसे फ़िल्म चोरी-चोरी का यह गीत -

जहाँ भी मैं जाती हूँ वहीं चले आते हो
ये तो बताओ के तुम मेरे कौन हो

पर बड़ा अजीब लगा जब बालदिवस यानि नेहरू जी के जन्मदिन पर उपकार फ़िल्म का मेरे देश की धरती सोना उगले जैसा गीत सुनवाया गया, ख़ैर… पसन्द फ़ौजी भाइयों की…

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया गायक और संगीतकार जगजीत सिंह ने। खुद के बारे में बहुत ही कम बताया, गाने नए पुराने सभी सुनवाए जिसमें पंजाबी गीत भी शामिल रहा और इधर-उधर की बातें की।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में कच्छी और बृज गीत सुनवाए गए। पत्रावली में स्वर्ण जयन्ति के कार्यक्रमों की तारीफ़ का सिलसिला थमा नहीं है, दोनों दिन, शनिवार और सोमवार को इससे संबंधित पत्रों के साथ ईमेल भी शामिल रहे। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में फ़िल्मी क़व्वालियाँ सुनी जैसे अमर अकबर एंथोनी फ़िल्म की क़व्वाली। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में गायिका जसमिन्दर नरूला से कमल (शर्मा) जी ने बातचीत की। अच्छी जानकारी मिली। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग पहाड़ी पर आधारित नवरंग फ़िल्म का गीत -

अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूँघट
पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे
मुझे न समझो न तुम भोली भाली रे

ऐसे गीत सुनते है तो कार्यक्रम की सार्थकता लगती है वरना तो…

8 बजे हवामहल में हास्य झलकियाँ सुनी - अब आए चक्कर में (लेखिका निर्मला अग्रवाल और निर्देशक कमल दत्त) मेहमान, चाचा मुंशी (निर्देशिका साधना भारद्वाज), लाँटरी पचास हज़ार की (निर्देशक गंगा प्रसाद माथुर), इसके अलावा पाप की गठरी (निर्देशक मक़बूल हसन), पार्थ सारथी द्वारा निर्देशित झलकी सुनी अब और नहीं।

रात 9 बजे गुलदस्ता में रूना लैला की आवाज़ में यह ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी -

रंजिशे सही दिल ही दुखाने के लिए आ

वैसे अन्य गीत और ग़ज़लें भी अच्छी रही।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में शुक्रवार को बालदिवस को ध्यान में रखकर मि इंडिया फ़िल्म के गीत सुनवाए गए। इसके अलावा कसमें वादे, जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली, दोस्ताना, किशन कन्हैया फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए जिनमें जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली फ़िल्म के गीत बहुत-बहुत दिन बाद सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक प्रकाश मेहरा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। ज़ज़ीर की बात हुई और बात हुई प्राण साहब के किरदार की। कलाकारों के भुगतान संबंधी बातों को खुल कर बताया। कलाकारों के सहयोग की भी बातें हुई जैसे हेरा फेरी की शूटिंग के दौरान सायरा बानो के साथ मिला सहयोग। यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि पहली ही फ़िल्म ज़ंजीर से अमिताभ बच्चन जैसा कलाकार और सितारा देने वाले की झोली में कोई एवार्ड नहीं।

10 बजे छाया गीत में वही रात, चाँद, तारे, यादों के गीत ही सुनवाए गए।


Sunday, November 16, 2008

प्रचार के अभाव में दम तोड़ता रेडियो संगीत सम्मेलन


शास्त्रीय संगीत को जन जन में पहुँचाने का जो ख़ास काम आकाशवाणी ने किया है वह स्तुत्य है. इसी नेक मक़सद को विस्तृत करने के उद्देश्य से रेडियो संगीत सम्मेलन की शुरूआत की गई थी. तक़रीबन पचास बरसों से ये सिलसिला चल रहा है. इस आयोजन का फ़ॉरमेट बड़ा रचनात्मक रहा है. किया यूँ जाता रहा है कि पहले देश के विभिन्न शहरों में जहाँ आकाशवाणी केन्द्र मौजूद हैं ; संगीतप्रेमी श्रोताओं की उपस्थित में संगीत सभा आयोजित की जाती है. बाक़ायदा निमंत्रण पत्र छपवा कर रसिकों को भेजे जाते थे. तस्वीर के साथ कलाकारों का परिचय अख़बारों में प्रकाशित किया जाता. इसी मजमे की रेकॉर्डिंग कर लगभग महीने भर पहले रात ९.३० बजे और इन कुछ बरसों में रात १०.०० बजे इन सभाओं का प्रसारण रेडियो संगीत सम्मेलन के रूप आकाशवाणी के सभी केन्द्रों से राष्ट्रीय प्रसारण के रूप में किया जाता था.शास्त्रीय संगीत के इस अनुष्ठान की प्रतिष्ठा का ये आलम था का मैनें ख़ुद देश के नामचीन कलाकारों के परिचय ब्रोशर में यह उल्लेख देखा है कि आपने आकाशवाणी संगीत सम्मेलन में अब तक तीन बार प्रस्तुतियाँ दी हैं. गोया इस आयोजन में शिरक़त एक बड़ा काम माना जाता रहा है. इस लिहाज़ से भी रेडियो संगीत सम्मेलन का बड़ा नाम रहा है कि इसके ज़रिये देश के कई युवा कलाकारों को न केवल देशव्यापी पहचान मिली बल्कि देश के विभिन्न अंचलों में जाकर अपना विशिष्ट श्रोतावर्ग तैयार करने में भी मदद मिली है.और हाँ साथ ही दक्षिण के संगीत को उत्तर और उत्तर के संगीत को दक्षिण मे पहुँचाने का बहुत आदरणीय सेतु रहा है आकाशवानी संगीत सम्मेलन.

भारतरत्न पं.रविशंकर,भारतरत्न पं.भीमसेन जोशी,विदूषी गंगूबाई हंगल पं.ओंकारनाथ ठाकुर,विदूषी सिध्देश्वरी देवी,गिरजा देवी,निर्मला अरूण,परवीन सुल्ताना,किशोरी अमोणकर,प्रभा अत्रे,मल्लिकार्जुन मंसूर,कुमार गंधर्व,पं.जसराज,वसंतराव देशपांडे,जितेन्द्र अभिषेकी से लेकर शुभा मुदगल,राजन साजन मिश्र,छन्नुलाल मिश्र,हरिप्रसाद चौरसिया,शिवकुमार शर्मा, विश्वमोहन भट्ट जैसे एकाधिक और नामचीन कलाकारों की शिरक़त से आकाशवांणी संगीत सम्मेलन की शान का जलवा रहा है. कैसेट और सी.डी से परे पचास से अस्सी के शुरूआती दशक तक रेडियो ही ऐसे गुणी संगीतज्ञों को घर घर में मुफ़्त में पहुँचाने का जो काम आकशावाणी ने किया वह अदभुत है. मैंने ख़ुद अपने परिवारों में और मित्रों के यहाँ देर रात तक कई लोगों को रेडियो संगीत का समवेत श्रवण करते देखा है. लेकिन अब तो यह सुरीला अनुष्ठान दम तोड़ता और रस्म पूरी करता नज़र आ रहा है. ख़ुद अपने हाथों से इस राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के आयोजन के कर्ता धर्ताओं ने अपनी किरकिरी करवा रखी है.


लेकिन अब मामला गड़बड़ हो गया है.

-रेडियो संगीत सम्मेलन में सितारा कलाकार आने से झिझकते हैं.कारण दीगर आयोजनों से मिलने वाला अधिक पारिश्रमिक और फ़ाइव स्टार मेज़बानी.

-प्रचार प्रसार का अभाव.ख़ुद आकाशवाणी अपने कार्यक्रमों में रेडियो संगीत सम्मेलन का प्रचार नहीं कर रहा है. क्या एक सुरीला प्रोमो बना कर विविध भारती के कार्यक्रमों में प्रसारित नहीं करना चाहिये.प्रचारित किया जा रहा है कि विविध भारती देश का सबसे लोकप्रिय रेडियो चैनल है तो रेडियो संगीत सम्मेलन का प्रचार तो विविध भारती को करना ही चाहिये ही. ये इसलिये भी कि तमाम संगीतप्रेमी विविध भारती के श्रोता तो हैं ही.

-आकाशवाणी की अपनी अधूरी अधूरी सी वैबसाइट पर रेडियो संगीत सम्मेलन जैसे महत्वपूर्ण आयोजन की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.

-प्रसार भारती तमाम एम.एम.चैनल्स को बाध्य कर सकता है कि वे शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से अपने चैनल्स पर आकाशवाणी संगीत सम्मेलन का प्रोमो बजाए.

-देश के समस्त समाचार पत्रों में आकाशवाणी संगीत सम्मेलन की विज्ञप्ति प्रसारित की जाए कि इस साल के आकर्षण फ़लाँ कलाकार हैं.

-बच्चों में शास्त्रीय संगीत को प्रचारित करने के लिये रेडियो संगीत सम्मेलन को स्कूल परिसरों में ले जाया जाए जहाँ अन्य संगीतप्रेमी भी निमंत्रित किये जाएँ.

-समाचार आज भी आकाशवाणी का सबसे सशक्त और विश्वसनीय प्रसारण है. उसमें उसी दिन प्रस्तुति देने वाले कलाकार का नाम दिया जाए कि आज रात रेडियो संगीत सम्मेलन में आप उस्ताद राशिद ख़ाँ या डॉ.बाळ मुरळीकृष्ण का शास्त्रीय गायन सुनेंगे.

-दूरदर्शन प्रसार भारती और आकाशवाणी की सहोदर संस्था है. उसके प्रसारणों में समय समय पर आकाशवाणी संगीत सम्मेलन का प्रोमो दिखाया जाए.या स्क्रीन पर चलने वाले स्ट्रिप पर रात को प्रसारित होने वाले कार्यक्रम का समय और कलाकार का नाम चलाया जाए.


हुज़ूर कोई कुछ करना चाहे तो अनेक है राहें.लेकिन नौकरशाहों के मकड़जाल में फ़ँसा तंत्र कुछ नया,रचनात्मक और श्रोता हित का करने का माहौल ही नहीं बनने देता. जब कार्यक्रम की लोकप्रियता में कमीं आती जाती है तो कलाकार भी उसमें रूचि क्यों लें.हो सकता है आकाशवाणी की अपनी विवशताएँ हों लेकिन मन में सुरीलेपन को संक्रामक बनाने वाली इस महान संस्था की कार्यशैली का सुनहरा दौर तो अब काल कवलित हो चुका है इसमें की शक नहीं

विविध्ग भारती की वेब साईट पर टिपणी डालने के लिये दिक्कत -वादक कलाकार जयंती गोसर- (आल्बम हिट्स ओफ़ 85-जयंती एंड हनी)

इधर मैनें एक विविध भारती की वेब साईट पर टिपणी पोस्ट करने के बाद भी 'post a massage' की सुचना स्वीकृती की सुचना के स्थान पर मिलती है, वह बताता हुआ चित्र चिपका कर भेज़ा है । तो आशा है की मोदी साहब पत्रावलि में इसका कुछ: मार्गदर्शन करेंगे ।


एक और बात की परसों यानि 9 नवम्बर, 2008 के दिन युनूसजी द्वारा आप की फ़रमाईश कार्यक्रममें मेरा और मेरे सुरत के ही मित्र जिमी वाडिया का नाम शामिल किया गया पर सुरत शहर के नाम के स्थान पर गुजरात का जिक्र किया गया ऐसा क्यों ? जब की पत्रमें सुरत (गुजरात) का जिक्र होता है ।(इस बारेमें मैं निम्मीजी की सराहना करता हूँ, कि भूत-कालीन सिने पहेली कार्यक्रममें मेरे नाम के साथ नानपूरा, सुरत का जिक्र नियमीत रूपसे करती रही थी ।) कार्यक्रम का आलेख़ लिख़ने वाले आप के साथी भविष्य में यह बात ध्यान में रखेंगे, जब की मुम्बई, दिल्ही के श्रोता के नाम के साथ विले पारले, करोल बाग जैसे जिक्र होते है ।
शायद 31अक्तूबर के दिन पिटारेमें पिटारा अन्तर्गत वादक कलाकार स्ज्री जयन्ती गोसर के साथ रेणूजी की बातचीत वादक कलाकार मनोहरी सिंह जी के बाद ऐस्री दूसरी मूलाकात थी जो सिर्फ़ और सिर्फ़ फिल्म संगीत से जूडी हुई वादक कलाकार हस्ती के की गयी थी । ( चाहे वे शास्त्रीय संगीत से परिचीत हो यह अलग बात है ।) इस बारेमें विविध भारती को किये गये मेईल की प्रत नीचे रखी है जो स्व्यं बताने वाली है, हालाकि मेरे मेईल्स एक लम्बे (शायद एक सालके) अरसे से पत्रावलि में मेरे नाम के साथ समाविष्ट नहीं हुए है ।

Producer-PATRAVALI PROGRAMME,

VIVIDH BHARTI SERVICE,

MUMBAI

DATE: 01ST November, 2008.

Respected Sir,

I enjoyed much the interview of musician of many musical instruments, Shri Jayanti Grosar. Congratulations to the Programme Producer, Shri Renuji and the whole creative team of VBS.

It is the first occasion after Shri Manohari Singh's interview by Shri Yunusji, to call a musician connected to film music basically in Vividh Bharti's Programme on national level.

I hope in future also, musicians and arrangers of old time like shri Enoch Deniels would be called.

His contact No is 9520-25659344. (Pune).

His E mail ID is enoch@vsnl.net .

Thanks,

PIYUSH MEHTA
SURAT-395001.
इस वक्त अगर लाईफ़ लोगर काम कर रहा होता मैं जयन्तीजी और हनी जी के संयूक्त आल्बम की एक धून जरूर सुनवाता, जो विविध भारती के पास भी है ।

Friday, November 14, 2008

संगीत की अमृत धारा और ग़लती के बाँध

दो सप्ताह से अस्वस्थता के कारण साप्ताहिकी नहीं लिख पाई। वैसे रेडियो में भी केवल सवेरे का ही प्रसारण सुन पाती थी। ख़ैर अब सब ठीक है, और आज साप्ताहिकी की जगह हम कुछ बात करते है केवल सवेरे के प्रसारण की…

आज भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में एक हादसा (इस स्थिति को हादसा ही कहा जा सकता है) हुआ। एक युगल गीत सुनवाया गया सुमन कल्याणपुर और मुकेश की आवाज़ों में -

अखियों का नूर है तू अखियों से दूर है तू
फिर भी पुकारे चले जाएगें तू आए न आए

बहुत ही लोकप्रिय गीत है और यही नहीं इस फिल्म के सभी गीत लोकप्रिय है और फ़िल्म भी बहुत लोकप्रिय हुई - जौहर महमूद इन गोआ जो गोआ मुक्ति आन्दोलन पर आधारित थी। बरसों से फ़रमाइशी और ग़ैर फ़रमाइशी कार्यक्रम में विविध भारती समेत कई स्टेशनों से इस फ़िल्म के गीत सुनते आए है पर पिछले एक-दो साल से विविध भारती पर इस फ़िल्म के गीत सुनवाते समय फ़िल्म का नाम बताया जा रहा है - गोआ। यह ग़लती क्यों और कैसे हो रही है यह तो समझ में नहीं आ रहा पर यह ग़लती छोटे-बड़े नए-पुराने सभी उदघोषक कर रहे है। कारण चाहे जो भी हो पर विविध भारती जैसे प्रतिष्ठित केन्द्र से इस तरह की ग़लती अक्षम्य अपराध है क्योंकि इस तरह की (ग़लत) उदघोषणा से फ़िल्म का इतिहास ही बदल रहा है। हालांकि जो पुराने उदघोषक है वे अच्छी तरह से जानते होगें (जानना चाहिए) कि फ़िल्म का नाम जौहर महमूद इन गोआ है, गोआ नहीं फिर भी ऐसी क्या मजबूरी है जो केवल गोआ नाम बताया जा रहा है। इस तरह से आने वाली पीढी तो इस फ़िल्म का नाम गोआ ही समझेगी। हमारा अनुरोध है कि कारणों की जाँच कर शीघ्र ही ग़लती को सुधारा जाए।

7:30 बजे संगीत सरिता में इन दिनों चल रही है श्रृंखला - रागों में भक्ति संगीत की धारा जिसे प्रस्तुत कर रहे है गायक और संगीतकार शेखर सेन। इस श्रृंखला को तैयार किया है छाया (गांगुली) जी ने और पहली बार 1992 में इसका प्रसारण किया गया था। वास्तव में यह श्रंखला इतनी अच्छी है कि इसे दुबारा सुनने से भी पहली बार सुनने जैसा आनन्द आ रहा है। इसमें विभिन्न रागों पर आधारित पहले फ़िल्मों से लिए गए भक्ति गीत सुनवाए गए आजकल ग़ैर फ़िल्मी भक्ति सुनवाए जा रहे है। हर दिन एक राग के बारे में बताया जा रहा है। फिर इस राग पर भक्ति गीत और गायन, वादन सुनवाया जा रहा है। राग सिन्धु भैरवी से श्रृंखला की शुरूवात की गई जिसमें मुकेश का गाया भक्ति गीत सुनवाया गया -

जोत से जोत जगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो

इसके बाद इसी राग पर निखिल बैनर्जी का सितार वादन सुनवाया गया। सुनवाए गए विभिन्न राग है -
राग चारूकेशी - गीत - श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम (फ़िल्म गीत गाता चल) ,

कम प्रचलित राग कुकुभ भिलावल में पारम्परिक आरती ॐ जय जगदीश हरे (फ़िल्म पूरब और पश्चिम) इसी राग को सुना सरोद पर वादक कलाकार बुद्ध देव दास गुप्ता,

राग यमन कल्याण - गीत - मन रे तू काहे न धीर धरे - फिर इस राग में गायन और वादन सुना,

ग़ैर फ़िल्मी भक्ति गीतों में लोकप्रिय भक्ति गीत सुने -

लता की आवाज़ में - ठुमक चलत रामचन्द्र बाजत पैजनिया

आज सुनवाए गए राग भैरवी और मिश्र भैरवी, कलाकार थे - ग़ैर फ़िल्मी भक्ति रचनाओं के शीर्ष कलाकार हरिओम शरण

कुछ समय से पत्रावली में निरन्तर श्रोता फ़िल्मी भक्ति गीतों का कार्यक्रम अर्पण, बन्द किए जाने की शिकायत कर रहे थे। यह कार्यक्रम विविध भारती पर लम्बे समय से प्रसारित हो रहा था, पहले भी ऐसा ही कार्यक्रम सान्ध्य गीत शीर्षक से प्रसारित होता था, इसमें फ़िल्मी भक्ति गीत सुनवाए जाते थे। यह श्रृंखला कुछ हद तक अर्पण की भरपाई करेगी।

शुक्रिया छाया जी इस अनमोल श्रृंखला को तैयार करने के लिए और बहुत-बहुत धन्यवाद महेन्द्र मोदी जी !

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