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Friday, May 28, 2010

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 27-5-10

शाम 5:30 बजे गाने सुहाने कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का जाना-पहचाना सबसे पुराना कार्यक्रम जयमाला। अंतर केवल इतना है कि पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर गाने की फ़रमाइश करते थे आजकल ई-मेल और एस एम एस भेजते है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले धुन बजाई गई ताकि विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्र विज्ञापन प्रसारित कर सकें। फिर जयमाला की ज़ोरदार संकेत (विजय) धुन बजी जो कार्यक्रम की समाप्ति पर भी बजी। संकेत धुन के बाद शुरू हुआ गीतों का सिलसिला। फरमाइश में से हर दशक से गीत चुने गए। इस तरह नए पुराने सभी समय के गीत सुनने को मिले।

शुक्रवार को फरमाइश में से रोमांटिक गीत सुनवाए इन फिल्मो से - गुमराह, सड़क, जहर, रब ने बना दी जोडी, अजब प्रेम की गजब कहानी फिल्मो के गीत और मुझे कुछ कहना हैं फिल्म का शीर्षक गीत।

रविवार को मुझसे शादी करोगी, धर्मात्मा, बंटी और बबली का कजरारे गीत और यादे फिल्म का वह गीत भी सुनवाया जिसके संगीत का एक अंश सखि-सहेली कार्यक्रम की संकेत धुन का अंश हैं।

सोमवार को मोहरा, अमर अकबर एंथोनी, राम लखन फिल्मो के गीतों के साथ नई फिल्मो के गीत भी शामिल थे जिनमे मुझे कुछ कहना हैं फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया गया, यही गीत दो दिन पहले शुक्रवार को भी सुनवाया गया था। एक ही गीत उसी कार्यक्रम में सुनवाने के लिए कम से कम एक सप्ताह का अंतराल तो होना चाहिए।

मंगलवार को बार्डर फिल्म के देश भक्ति गीत से शुरूवात हुई, फिर सुनवाए गए आशिकी, देवदास और रेफ्यूजी फिल्म के गीत और आनंद फिल्म का यह गीत भी शामिल था -

कही दूर जब दिन ढल जाए

बुधवार को शुरूवात हुई बाजीगर के काली-काली आँखे गीत से, प्रेम रोग, धड़कन, माँ तुझे सलाम फिल्मो के साथ करमा का देश भक्ति गीत भी सुनवाया गया।

गुरूवार को गाइड, साजन, 3 इडियट्स, जानम समझा करो, मेरी जंग फिल्मो के गीतों के साथ तेज़ाब फिल्म का एक दो तीन वाला गीत फ़ौजी भाइयो की फरमाइश पर शुरू से आखिर तक पूरा सुनवाया गया।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया गया ख्यात चरित्र अभिनेता, शोले के साम्भा मैक मोहन की याद में। उनके द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम की रिकार्डिंग संग्रहालय से चुन कर सुनवाई गई। शुरूवात में शोले का वह सीन सुनवाया गया जिसमे साम्भा द्वारा बोला गया एकलौता संवाद हैं। मैक मोहन ने अपनी पारिवारिक फ़ौजी पृष्ठभूमि की जानकारी दी। अपनी पहली फिल्म हकीक़त सहित अपनी फिल्मो के गीत सुनवाए - हंसते जख्म, शोले, दूसरो की फिल्मो से भी गीत सुनवाए - दो रास्ते, कुछ निजी बाते की और फिल्मी अनुभव बताए जैसे आखिरी ख़त फिल्म के लिए चेतन आनंद से मुलाक़ात, इस फिल्म का गीत भी सुनवाया, सुन मेरे बंधु रे गीत सुनना अच्छा लगा और सबसे अच्छा लगा अनहोनी फिल्म का यह गीत सुनना जो संजीव कुमार की बेहतरीन चुनिन्दा फिल्मो में से एक हैं जिसका यह गीत बहुत दिन बाद सुनने को मिला -

बलमा हमार मोटर कार लेकर आयो रे

अच्छी रही प्रस्तुति। संयोजन कल्पना (शेट्टी) जी का रहा।

7:45 को गुलदस्ता कार्यक्रम में शुक्रवार को गुलोकार रहे जगजीत सिंह। शुरूवात हुई बशीर बद्र के कलाम से -

सुन ली जो खुदा ने दुआ तुम तो नही हो

यह गजल तुम तो नही हो एलबम से रही। इसके बाद एलबम टू गेदर से अजीज कैजी का कलाम सुनवाया गया -

आपको देख कर देखता रह गया
क्या कहूं और कहने को क्या रह गया

समापन हुआ इब्राहिम अश्क के कलाम से - मुस्कुरा कर मिला करो लोगो से

रविवार की महफ़िल ज्यादा अच्छी रही। गुलोकार रहे अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन जिनकी शास्त्रीय पद्धति में पगी गायकी सुन कर आनंद आ गया। आगाज हुआ दिनेश ठाकुर की गजल से -

आईने से कब तक तुम अपना दिल बहलाओगे
आएगे जब जब अँधेरे खुद को तनहा पाओगे

महफ़िल एकतेदाम को पहुंची मोहम्मद उस्मान आरिफ नक्शबंदी के कलाम से -

प्यार का जज्बा नया रंग दिखा देता हैं
अजनबी चेहरे को महबूब बना देता हैं

मंगलवार को फिल्मी गजले सुनवाई गई। शुरूवात हुई नूरजहाँ की गाई विलेज गर्ल फिल्म की गजल से - इस तरह भूलेगा दिल

तलत महमूद की दो गजले सुनवाई गई, फुटपाथ फिल्म से - शामे गम की क़सम

आशियाना फिल्म से - मैं पागल मेरा मनवा पागल

रफी साहब की आवाज में वल्लाह क्या बात हैं फिल्म की गजल - खुदाया काश मैं दीवाना होता

नूरजहाँ की गजल कभी-कभार और अन्य गजले अक्सर विभिन्न कार्यक्रमों में हम सुनते रहते हैं, यहाँ सुनवाने का कोई औचित्य नही लगा। अच्छा होता अन्य दो दिनों की तरह इस दिन भी गैर फिल्मी गजले सुनवाई जाती तो सप्ताह भर गुलदस्ता गैर फिल्मी गजलो का शुद्ध अच्छा कार्यक्रम हो जाता।

शनिवार को सुना सामान्य ज्ञान का कार्यक्रम जिज्ञासा। प्रवासी पक्षी दिवस के अवसर पर प्रवासी पक्षियों पर जानकारी दी गई। खेल जगत में महिला टी 20 में विश्व चैम्पियन बने आस्ट्रेलिया की खबर दी गई, यह खबर मीडिया में शायद ही देखने को मिली। विज्ञान की चर्चा में अग्नि 3 मिसाइल की बाते हुई। खोजी रिपोर्टर द्वारा लाई गई पानी में जहाज की दुर्घटनाओ से सम्बंधित चर्चा हुई, यह स्तम्भ बढ़िया हैं जिसमे ई-मेल द्वारा खोजी रिपोर्ट भेजी जा सकती हैं। शोध और आलेख युनूस (खान) जी का रहा। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक (छिब्बर) जी ने।

सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और कमल (शर्मा) जी। कुछ पत्र शिकायती भी रहे जैसे गुलदस्ता का समय कम कर दिया गया हैं। कुछ श्रोताओं ने सुझाव भी दिए जिनमे से एक सुझाव यह भी रहा हैं कि हिट सुपरहिट कार्यक्रम रात में दुबारा प्रसारित न किया जाए, इससे मैं भी सहमत हूँ। दो बार कार्यक्रम सुनवाने के बजाय एक बार कोई और कार्यक्रम प्रसारित किया जा सकता हैं। चित्र भारती कार्यक्रम से सम्बंधित भी पत्र रहे जो सिने पत्रिका कार्यक्रम हैं, मेरी समझ में यह कार्यक्रम वाकई अच्छा हैं पर एक घंटा समय हो तो बोझिल हो जाता हैं, आधे घंटे तक कार्यक्रम अच्छा रहेगा। श्रोताओं ने विभिन्न कार्यक्रमों की तारीफ़ भी की जैसे सखि-सहेली, आज के फनकार, उजाले उनकी यादो के कार्यक्रम।

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में पार्श्व गायिका हेमा सरदेसाई से युनूस (खान) जी की फोन पर हुई बातचीत सुनवाई गई। शुरू में कुछ बाते अपने बचपन की कही, फिर फिल्मो में प्रवेश की, संगीतकार ऐ आर रहमान द्वारा, गीत गुनगुना कर भी सुनाया। तेजी से बदलते संगीत के दौर में आजकल के कुछ गीतों को भी पसंद किया, हालांकि यह सवाल मुझे बेमानी लगा क्योंकि हेमाजी बहुत पुराने दौर की नही हैं।

हेमाजी ने बताया कि वो अंतर्राष्ट्रीय महिला संगठन के कार्यक्रमों के लिए गीत देती हैं। बालिका शिशु के लिए काम करना चाहती हैं। इस तरह संगीत से समाज सेवा को जोड़ कर काम कर रही हैं और आगे भी करना चाहती हैं।

टेलीफोन पर बात हुई पर बहुत स्पष्ट रही आवाज। रिकार्डिंग इंजीनियर रहे विनायक (तलवलकर) जी और प्रस्तुति वीणा (राय सिंघानी) जी की रही।

गुरूवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। इस बार एक ही राग पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए गए, राग चारुकेशी -

कृष्ण कन्हैय्या बंसी बजैय्या (फिल्म संत ज्ञानेश्वर)

उसके खेल निराले वही जाने अल्ला जाने (नूरी)

अकेल हैं चले आओ (राज)

गीतों के चुनाव में विविधता नही थी। दो भक्ति गीतों में से कोई एक किसी और मूड और भाव का गीत होता तब अच्छा लगता था।

8 बजे का समय है हवामहल का जिसकी शुरूवात हुई गुदगुदाती धुन से जो बरसों से सुनते आ रहे है। यही धुन अंत में भी सुनवाई जाती है। शुक्रवार को आमंत्रित श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत झलकी सुनवाई गई - चोरो को आना चाहिए। बसंत सबनिस के लिखे मूल मराठी नाटक का हिन्दी अनुवाद किया वसंत देव ने। पति ने गहनों का बीमा करवा लिया। वह रात में दरवाजे खुले रखता हैं और चाहता हैं चोर आकर गहने चुरा ले जाए ताकि उसे बीमे के पैसे मिले। पर चोर नही आते और उसे बीमे की अगली किस्त भी देनी पड़ती हैं। झलकी के प्रस्तुतकर्ता हैं गंगा प्रसाद माथुर। झलकी सुन कर लगा यह झलकी तब लिखी गई जब सोने का भाव 2000 रूपए था।

शनिवार को के पी सक्सेना की लिखी झलकी सुनी - और लालटेन जल चुकी हैं। आँखों के डाक्टर के पास चश्मा लगवाने जाते हैं, डाक्टर और मरीज दोनों को ठीक से नही दीखता। मजेदार रही। विविध भारती से यह गंगा प्रसाद माथुर की प्रस्तुति रही।

रविवार को शंकर सुल्तानपुरी की लिखी झलकी सुनी - मकान खाली हैं। पेशगी में बड़ी रक़म लेकर मकान किराए पर देना चाहता हैं। बहुतो को नही मिलता मकान पर एक दूर की रिश्तेदारी में साला बता कर जीजी को पटा कर मकान ले लेता हैं। निर्देशक हैं सतीश माथुर। यह लखनऊ केंद्र की प्रस्तुति रही।

सोमवार को सुनवाई गई झलकी - दिल की भड़ास जिसके लेखक है राज कुमार दाग। बॉस से डांट सुनकर पति खिन्न हैं, पत्नी सलाह देती हैं अपने मन की बात कागज़ पर लिख दो, इस तरह मनोवैज्ञानिक इलाज से मन हल्का हो जाएगा। वह बॉस के लिए अपशब्द लिख देता हैं और एक पत्रिका में रख देता हैं जिसे कार्यालय का सहकर्मी ले जाता हैं। वह बॉस के सामने डरने लगता हैं पर पत्रिका में कार्यालय के बारे में देखकर बॉस खुश हैं, पति का लिखा कागज़ तो पत्नी पहले ही निकाल चुकी। अच्छा मनोरंजन हुआ और सलाह भी मिली। साधना भारद्वाज की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं कमल दत्त।

मंगलवार को शान्ति मेहरोत्रा का लिखा प्रहसन सुना - डर मत सच कह जिसके निर्देशक हैं लोकेन्द्र शर्मा। कड़वी सच्चाई लिए रहा यह प्रहसन कि आदर्शवादी बाते व्यावहारिक जीवन में लागू करना कठिन हैं। बिना डरे वह सच कह कर अपना ही नुकसान करता हैं। प्रस्तुति विविध भारती की रही।

बुधवार को झलकी सुनी - एक कप चाय। घर में पत्नी से नोक-झोक जिससे चाय नही मिलती, शहर बंद होने से कार्यालय में चाय नही मिलती, दोस्त के घर में ताला लगा हैं सो वहां भी चाय नही, पड़ोसी के पास चाय की पत्ती ख़त्म हो गई सो वह ठन्डे के लिए पूछती हैं, अंत में घर आने पर पत्नी कहती हैं चाय की पत्ती नही लाए तो चाय कैसे मिलेगी। अच्छा तो रहा पर मजा नही आया। जोधपुर केंद्र की इस प्रस्तुति के लेखक और निर्देशक अनिल कुमार राम हैं।

गुरूवार को विजय अमरेश की लिखी झलकी सुनी - प्रेमालय। प्रेमालय के खुलने पर तरह-तरह के लोग आते हैं, फोन आते हैं। अंत में पुलिस पकड़ कर ले जाती हैं। मोबाइल फोन की चर्चा से लगा झलकी नई हैं। कुछ ख़ास नही लगी...

इस तरह हवामहल में विविधता रही - सन्देश भी मिला और मनोरंजन भी हुआ।

प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए, एकाध बार क्षेत्रीय विज्ञापन भी प्रसारित हुए। फ़ौजी भाइयो को एस एम एस करने का तरीका बताया गया।

इस प्रसारण को युनूस (खान) जी, कमल (शर्मा) जी, शेफाली (कपूर) जी, ने हम तक पहुँचाया पर हम तक पहुंचाने में और भी लोग जुटे जिनके नाम नही बताए गए।

रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 बजे से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

Tuesday, May 25, 2010

कॉमेडी फिल्म जौहर महमूद इन हौंग कौंग के कॉमेडी गीत

जौहर महमूद इन गोवा या गोवा फिल्म की सफलता के बाद एक कॉमेडी फिल्म बनाई गई - जौहर महमूद इन हौंग कौंग

इस फिल्म के गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए थे और रेडियो के सभी केन्द्रों से बहुत सुनवाए जाते थे। आज जो गीत मुझे याद आ रहा हैं उसकी पहली पंक्ति हैं -

नथनिया हाले तो बड़ा मजा होए

अंतरे की एक-दो पंक्तियाँ हैं -

लखपति दूल्हे की मैं तो लखपति दुल्हनिया
पैजनिया बाजे तो बड़ा मजा होए

यह गीत फिल्म में महमूद गाते हैं जो लड़की के भेष में हैं, वास्तव में दुल्हन बने हैं जिनका विवाह आई एस जौहर से हुआ हैं। फिल्म में यह दोनों सबको और एक दूसरे को भी धोखा देकर पैसा कमाने वालो की भूमिका में हैं।

इस गीत को शायद शमशाद बेगम ने गाया हैं या किशोर कुमार ने लड़की की आवाज में गाया हैं जैसे एक युगल गीत गाया था हाफ टिकट फिल्म में या किसी और ने गाया हैं... मुझे ठीक से याद नही हैं।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Saturday, May 22, 2010

आकाशवाणी इन्दौर आज हो गया है पूरे पचपन बरस का



मालवा की सांस्कृतिक राजधानी इन्दौर का रेडियो स्टेशन मालवा हाउस के नाम से जाना जाता है. 22 मई 1955 को शुरू हुए यहाँ के आकाशवाणी केन्द्र ने रेडियो नाटकों,सुगम संगीत रचनाओं और जनपदीय कार्यक्रमों के ज़रिये देश भर में अपनी एक ख़ास पहचान बनाई है. हाँ यह भी सच है कि अस्सी के दशक तक इस केन्द्र की जो धाक थी वह अब बीते कल की बात हो चुकी है. मालवा हाउस अब नाम का रेडियो स्टेशन रह गया है जो विविध भारती एफ़.एम.के ट्रांसमिशन और अपने आंचलिक केन्द्र से समाचारों,वार्ताओं और खेती-किसानी के औपचारिक कार्यकमों का रस्मी केन्द्र बन गया है. इसी केन्द्र से कभी रचनात्मकता की सुरभि पूरे देश में फ़ैलती रही है.

कोई भी संस्थान उसके दरो-दीवार या तकनीक से समृध्द नहीं होता. उसे सवाँरते हैं कुछ लोग और उनकी कल्पनाशीलता,रचनात्मकता और समर्पण.जयदयाल बवेजा,केशव पाण्डे,नन्दलाल चावला और पी.के शिंगलू जैसे केन्द्र निदेशकों और स्वतंत्रकुमार ओझा,भाईलाल बारोट,नित्यानंद मैठाणी,विश्वदीपक त्रिपाठी (बीबीसी)भारतरत्न भार्गव(बीबीसी) निम्मी माथुर(अब मिश्रा-विविध भारती,मुम्बई) वीरेन मुंशी(बीबीसी) रमेश नाडकर्णी, सुनीलकुमार (आर.डी.बर्मन के अरेंजर,जिन्होंने बाद में रफ़ी साहब से वह प्रसिध्द ग़ैर फ़िल्मी रचना गवाई;रह न सकेगी प्रीत कुँवारी मेरी सारी रात) लेखा मेहरोत्रा(मुम्बई दूरदर्शन और वॉइस ऑफ़ अमेरिका) अमीक़ हनफ़ी,राकेश जोशी,प्रभु जोशी,इंदु आनंद,रणजीत सतीश,बी.एन.बोस,नरेन्द्र पण्डित कुछ ऐसे सशक्त नाम हैं जिन्होंने अपने ख़ून को पसीना कर इस केन्द्र की धजा को ऊँचा फ़हराया.

ब्रज शर्मा,ओम शिवपुरी,सुधा शिवपुरी, नरहरि पटेल,राजीव वर्मा,सुमन धर्माधिकारी,विजय डिंडोरकर,तपन मुखर्जी,अशोक अवस्थी,जैसे अतिथि कला्कारों ने अपनी प्रतिभा और आवाज़ के जादू के माध्यम से इस केन्द्र के नाटकों को देशव्यापी पहचान दिलवाई.प्रभु जोशी और राकेश जोशी ने मिल कर न जाने कितनी बार आकाशवाणी इन्दौर के स्टुडियोज़ में रचे प्रायोगिक नाट्य प्रस्तुतियों/रूपकों के लिये राष्ट्रीय सम्मान अर्जित किये.चेखव,मोपासा,कर्तारसिंह दुग्गल,रेवतीसरन शर्मा,चिरंजीत,एम.पी.लेले की रचनाओं पर एकाग्र नाटकों ने मालवा हाउस को देश भर में लोकप्रियता दी. ,शरद जोशी,इलाचंद्र जोशी,रमानाथ अवस्थी, देवराज दिनेश, डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन,कविवर दिनकर, महादेवी वर्मा, रामनारायण उपाध्याय , बालकवि बैरागी,गिरिवरसिंह भँवर,दिनकर सोनवलकर,देवव्रत जोशी जैसे साहित्यिक हस्ताक्षरों की दुर्लभ रेकॉर्डिंग्स मालवा हाउस से बज कर पूरी मालवा-निमाड़ जनपद को आनंदित करती रही है.राजेन्द्र माथुर,राहुल बारपुते द्वारा लिये गये कई साक्षात्कार मालवा हाउस की अमानत हैं.

शास्त्रीय संगीत रचनाओं के संग्रह के मामले में भी यह मालवा हाउस का सौभाग्य रहा उस्ताद अमीर ख़ाँ और पण्डित कुमार गंधर्व की कर्मभूमि मालवा होने से समय समय पर इस केन्द्र को बहुत दुर्लभ रचनाओं के संचयन का अवसर मिला. अमीर ख़ाँ साहब तो पहले-पहल इन्दौर केन्द्र पर आकर अपना गायन आने को राज़ी ही नहीं हुए थे क्योंकि उन्हें पहले स्वर-परीक्षण का आग्रह भेजा गया. ख़ाँ साहब ने कहा हमारा ऑडिशन कौन लेगा ? उनकी बात वाजिब भी थी. कालांतर में उन्हें समझाया गया कि यह तो मात्र एक औपचारिकता है. बेग़म अख़्तर,उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ,उस्ताद बिसमिल्ला ख़ान,उस्ताद रज्जब अली ख़ाँ, पं.भीमसेन जोशी,पं.मल्लिकार्जुन मंसूर मुबारक बेग़म,निर्मला अरूण (सिने अभिनेता गोविंदा की माँ)गिरिजा देवी,परवीन सुल्ताना, उस्ताद अहमदजान थिरकवा,उस्ताद जहाँगीर ख़ाँ,पण्डित रविशंकर,संगीतकार नौशाद,शोभा गुर्टू,संगीतकार जयदेव,प्रभा अत्रे,शंकर-शंभू, जैसे संगीतज्ञों की प्रस्तुतियों और साक्षात्कारों की कई रेकॉर्डिंग्स ने रेडियो-प्रेमी श्रोताओं के कानों को मालामाल किया है.गोस्वामी गोकुलोत्सवजी महाराज,अहमद हुसैन-मो.हुसैन,रोशन भारती,सुमना रॉय,बेला सावर,सुशील दोशी,डॉ.राहत इन्दौरी जैसे कई नामों को उनका नाम और काम मुक़म्मिल करने में आकाशवाणी इन्दौर सदा सहाय रहा है.

इस अंचल की बोलियों मालवी और निमाड़ी के प्रसार और भोले-भाले किसान भाई बहनों तक उन्हीं के अंदाज़ में प्रसारण को पहुँचाने का काम भी मालवा हाउस ने किया. नंदा-भेराजी और कान्हा जी की आवाज़ में खेती-ग्रहस्थी और ग्रामसभा कार्यक्रमों को लाखों ग्रामवासियों तक पहुँचाया. कृष्णकांत दुबे (नंदाजी) और सीताराम वर्मा(भेराजी) तो मालवा-निमाड़ के महानायक थे.

ज़माना तेज़ी से बदला है और एफ़.एम.रेडियो चैनल्स के उदभव ने आकाशवाणी केन्द्रों के लिये नई चुनौती पेश की है. अब आकाशवाणी या मालवा हाउस की रचनात्मकता या प्रसारण विस्तार या उसके सूचना तंत्र में श्रोताओं की रूचि घटती जा रही है. टी.वी.ड्राइंगरूम का स्थायी सदस्य हो गया है. रही सही कसर इंटरनेट ने पूरी कर दी है.
फ़िर भी अपने स्वर्णिम अतीत से जगमगाते मालवा हाउस के बारे में बतियाना और जुगाली करना हमेशा से सुख देता रहा है. दु:ख इस बात का है कि वर्तमान में मालवा हाउस में काम कर रहे लोगों में भावनाओं का वैसा ज्वार नहीं जिससे किसी भी रेडियो स्टेशन की गुणवत्ता निखरती और सँवरती है.नाटक का निर्माण बंद है,शास्त्रीय संगीत की रेकॉर्डिंग ख़ारिज और सुगम संगीत का निष्कासन.यदि कोई नया कार्यक्रम बनाना चाहता है तो उसे कहा जा रहा है आप ख़ुद बाज़ार जाकर प्रायोजक ढूँढिये . अब मालवा हाउस में काम करने वालों के लिये यह केन्द्र महज़ एक नौकरी हो गया है.उसके परिसर से आत्मीयता के तक़ाज़े गुम हैं और किसी काम को बेहतर अंजाम देने का जज़्बा ग़ायब. पूरा स्टेशन एनाउंसर्स के हवाले है जो रेकॉर्डिंग भी करते हैं,उदघोषणाएं भी और डबिंग भी. कॉंट्रेक्ट पर उदघोषकों के पास न उच्चारण का सलीक़ा है न भाषा का प्रवाह. टेक्नीशियंस के हवाले मालवा हाउस से वह कार्य-संस्कृति विदा हो चुकी है जिसके लिये उसकी ख्याति थी. पचपन का मालवा हाउस आई.सी.यू. में है...भगवान उसे फ़िर भी लम्बी उम्र दे.

(यही लेख प्रमुख हिन्दी दैनिक नईदुनिया ने आज ही प्रकाशित किया है. मालवा हाउस का चित्र नईदुनिया से ही साभार)

Friday, May 21, 2010

दोपहर बाद के जानकारीपूर्ण कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 20-5-10

दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम हैलो सहेली। फोन पर सखियों से बातचीत की रेणु (बंसल) जी ने। इस कार्यक्रम पर छुट्टियों का असर नजर आया। छात्राओं के बहुत फोन आए। एक गाँव की छात्रा ने बताया कि वह पढ़ना चाहती हैं, उसका विवाह होने जा रहा हैं, ससुराल वाले उसे आगे पढ़ने देना चाहते हैं। अच्छी लगी यह बातचीत। एक सखी ने बताया वह पढ़ना चाहती हैं, सिलाई भी जानती हैं और नौकरी करना चाहती हैं। एक गाँव से आए फोन काल में कहा गया कि वहां पढाई की व्यवस्था नही हैं जिससे वह नानी के घर रह कर पढाई करती हैं। पूरे कार्यक्रम में लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता की झलक मिली। वैसे एक घरेलु महिला ने भी बात की। एक काल से यह भी पता चला कि नानदेड में गरमी बहुत हैं। कुछ व्यक्तिगत बाते भी हुई, एक सखी ने बताया उसने घर बनवाया हैं। सखियों ने विविध भारती के कार्यक्रमों को पसंद करने की भी बात कही। रेणुजी ने बातचीत से वातावरण भी बहुत सौम्य बनाए रखा।

सखियों की पसंद पर नए-पुराने विभिन्न मूड के गाने सुनवाए गए - पुरानी फिल्म बेटी-बेटे का गीत - आज कल में ढल गया

नया गीत - थोड़ा सा प्यार हुआ हैं थोड़ा हैं बाक़ी

एक स्कूल की लड़की ने सत्तर अस्सी के दशक की फिल्म प्यासा सावन का गीत सुनना चाहा।

विभिन्न क्षेत्रो जैसे उत्तर प्रदेश का जिला भदौरी, पूना, बिहार से फोन आए। शहर, गाँव, जिलो से फोन आए। लोकल काल भी थे।

सोमवार को पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और कांचन (प्रकाश संगीत) जी। यह दिन रसोई का होता है, इस दिन बात हुई सत्तू की। पहले एक कार्यक्रम हुआ करता था चूल्हा चौका जिससे सत्तू बनाने और उत्तर भारत के सत्तू से बनाए जाने वाले क्षेत्रीय व्यंजन का अंश सुनवाया गया। व्यंजन बताए रेखा जमवार ने - लिप्पी, सत्तू का पराठा। सखियों के भेजे चुटकुले भी सुनवाए गए और सत्तू का शरबत बनाने और उससे होने वाले लाभ की जानकारी भी दी। अक्षय तृतीया के पारंपरिक स्वरूप पर भी चर्चा हुई।

सखियों की पसंद पर पुरानी फिल्मो के गीत सुनवाए गए - हावड़ा ब्रिज, बसंत बहार, यहूदी, पतंगा, बहार फिल्मो के गीत और जिन्दगी फिल्म का यह गीत -

घुंघरवा मोरा छम छम बाजे

मंगलवार को पधारी सखियां निम्मी (मिश्रा) जी और सुधा (अत्सुले) जी। यह करिअर का दिन होता है। इस दिन कृषि के क्षेत्र में कृषि इंजीनियरिंग, शोध, पशुपालन, विपणन और कृषि में समाज विज्ञान जैसे 6 क्षेत्रो में करिअर बनाने के लिए विभिन्न पाठयकर्मो की जानकारी दी। गर्मियों की छुटियो में युवाओं को छोटी-मोटी नौकरियाँ करने के लिए बढ़ावा देने की भी सलाह दी। इस दिन पानी की बचत, ताजे पानी का उपयोग और पानी रखने के बर्तन को साफ़ रखने जैसी जानकारियाँ देती कांचन (प्रकाश संगीत) जी की लिखी और अभिनीत झलकी सुनवाई गई।

हमेशा की तरह सखियो के अनुरोध पर गाने नए ही सुनवाए गए जैसे 3 इडियट्स, आशिक बनाया आपने, झंकार बीट्स, तारा रमपम, साथिया, कुछ कुछ होता हैं फिल्मो के गीत और कल हो न हो का शीर्षक गीत भी सुनवाया गया।

बुधवार को सखियाँ पधारीं - रेणु (बंसल) जी और कांचन (प्रकाश संगीत) जी। इस दिन स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। इस दिन इस विषय पर अच्छी प्रस्तुति रही। पानी से होने वाली बीमारियों के बारे में डा जैकब थॉमस से पहले किसी कार्यक्रम (शायद सेहतनामा, वैसे कार्यक्रम का नाम नही बताया, बताना चाहिए था) में की गई बातचीत के अंश सुनवाए गए। श्रोता सखियों द्वारा भेजे गए नुस्के बताए गए जैसे स्वास्थ्य, सुन्दरता के लिए आलू, नीम का प्रयोग। श्रोता सखियों की फरमाइश पर कुछ पुराने समय के लोकप्रिय गीत इन फिल्मो से सुनवाए गए - दाग, तलाश, ख़ूबसूरत, वासना फिल्मो से और यह मजेदार गीत सुनना भी अच्छा लगा -

दरिया किनारे एक बंगलो ...रे दई जो दई

अंत में बिखरे पन्ने के अंतर्गत एड्स से पीड़ित एक महिला की व्यथा को उभारती एक कहानी सुनाई कांचन जी ने जिसमे बताया कि कैसे एक महिला थोड़े से लालच में गलत रास्ते पर आ जाती हैं। बहुत मार्मिक रही कहानी।

गुरूवार को सखियाँ पधारी निम्मी (मिश्रा) जी और देवी कुमार जी। इस दिन सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस दिन किसी एक महिला के बारे में न बता कर, नारी के सम्मान और नारी की विशेषताओं के बारे में सखियों के विचार उनके पत्रों से पढ़ कर बताए गए जैसे माँ की महानता। कांचन जी की लिखी एक झलकी भी सुनवाई गई जिसमे कांचन जी के साथ अमरकांत (दुबे) जी ने भाग लिया। ठण्डे पानी के लिए मटके खरीदने और टूटने की बाते होती रही...

सखियों के अनुरोध पर लोकप्रय गीत सुनवाए - ज़मीर, जुर्म, अभिमान, चुपके-चुपके, लोफर फिल्मो से और यह गीत -

बाबुल का यह घर अंगना कुछ दिन का ठिकाना हैं

हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। कुछ पत्रों में कार्यक्रमों की तारीफ़ थी, कुछ सखियों ने अच्छे विचार भी भेजे जैसे बुढापा स्वस्थ विचारों का घर होना चाहिए। जनगणना के लिए सही जानकारी दे, यह सन्देश दिया गया।

इस कार्यक्रम की दो परिचय धुनें सुनवाई गई - एक तो रोज़ सुनी और एक विशेष धुन हैलो सहेली की शुक्रवार को सुनी। प्रस्तुति कांचन (प्रकाश संगीत) जी की रही। सप्ताह के चार कार्यक्रम अच्छे रहे पर गुरूवार का कार्यक्रम कमजोर लगा।

शनिवार और रविवार को प्रस्तुत हुआ सदाबहार नग़में कार्यक्रम जिसमे अच्छे सदाबहार नगमे सुनने को मिले। शनिवार को सुनवाए रोमांटिक गीत - इन्साफ, काली टोपी लाल रूमाल, एक कलि मुस्काई फिल्मो के और यह गीत -

आ नीले गगन तले प्यार हम करे

नमस्ते जी, चाचाचा फिल्मो से उदास गीत, काला पानी फिल्म से शरारती गीत - अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ न

रविवार को हमराही, कश्मीर की कलि, तीसरी मंजिल, साहब बीबी और गुलाम, ये रात फिर न आएगी, देवर फिल्मो के रोमांटिक गीत और यह गीत -

जोगी हम तो लुट गए तेरे प्यार में

और यह अलग सा गीत जानवर फिल्म से - लाल छड़ी मैदान खडी

इस तरह अलग-अलग मूड के सदाबहार गीत सुनने को मिले।

3:30 बजे नाट्य तरंग कार्यक्रम में शनिवार को सुरेश काला का लिखा नाटक धूप छाँव सुनवाया गया जिसका निर्देशन रमा अरूण त्रिवेदी ने किया हैं। नायक को प्यार हो जाता हैं अशिक्षित लोक नर्तकी से पर उसे अपनाने का साहस नही कर पाता। वर्षो बाद उसी गाँव से गुजरते समय पहले उसकी बेटी से मिलता ही फिर उससे जो विधवा हो चुकी हैं। इस बार अपना लेता हैं। लखनऊ केन्द्र की अच्छी मार्मिक प्रस्तुति।

रविवार को भी सामाजिक नाटक सुनवाया गया। राम नारायण विश्वनाथ पाठक के लिखे मूल गुजराती नाटक का बी एम भटनागर द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद सुनवाया गया - खेमी। नायिका खेमी के शराबी पति का निधन हो जाता हैं। वह अशिक्षित हैं और छोटे-मोटे काम करने लग जाती हैं। उसके पति के बीमे के पैसे और उसकी जगह सरकारी नौकरी खेमी को दिलाने में जो उसकी सहायता करता हैं वह उससे विवाह का प्रस्ताव रखता हैं जिसे खेमी यह सोच कर ठुकरा देती हैं कि जिसके संग इतना जीवन जिया उसी की याद में शेष जीवन बिता देगी। निर्देशक है सत्येन शरद। दिल्ली केन्द्र की प्रस्तुति।

शाम 4 से 5 बजे तक सुनवाया जाता है पिटारा कार्यक्रम जिसकी अपनी परिचय धुन है और हर कार्यक्रम की अलग परिचय धुन है।

शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सरगम के सितारे जिसमे सितारे रहे आज के जमाने के ख्यात पार्श्व गायक शान जिनसे बातचीत की युनूस (खान) जी ने और परिचय दिया रेणु (बंसल) जी ने। संगीत पर चर्चा हुई, गीत के बोल, उच्चारण पर चर्चा हुई। एक विवाह ऐसा भी, सांवरिया, फना फिल्मो के गीत बनने और गाने की चर्चा हुई। साथ ही चर्चा की हिन्दी अंग्रेजी गानों की। यह भी बताया की पहले बच्चो के लिए जिंजल गाते थे। तारे जमीन पर फिल्म के लिए बच्चो के गीत पर भी बात हुई। एक बात सही बताई शान ने कि फिल्मो में बच्चो के लिए गाने बन ही नही रहे। हलकी-फुल्की जानकारी व्यक्तिगत जीवन की भी मिली। चलते-चलते शान ने विविध भारती की कार्य शैली की भी तारीफ़ कर दी। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कल्पना (शेट्टी) जी ने विनायक (तलवलकर) जी के तकनीकी सहयोग से।

रविवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम उजाले उनकी यादो के जिसमे फिल्म पटकथा लेखन की ख्यात जोडी सलीम-जावेद के सलीम खान से युनूस (खान) जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनवाई गई। शुरूवात में पिछली कड़ी का अंश सुनवाया गया जिससे निरंतरता बनी रही। इसमे शक्ति फिल्म के माध्यम से दिलीप कुमार को याद किया और अमिताभ बच्चन को भी। फिल्मो के सीन भी सुनवाए। हेलन की बाते बताई, उनसे मुलाक़ात और प्यार की, पत्नी से कुछ समय के अलगाव की और इस तरह कुछ निजी जीवन की भी चर्चा चली। यह भी बताया कि आजकल लेख लिखते हैं जिसकी अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद भी होते हैं।

दिलीप कुमार के लिए गंगा जमुना फिल्म का गीत भी सुनवाया - नैन लड़ गई रे

हेलन के लिए एक कम सुना जाने वाला गीत भी सुनवाया और इन्तेकाम फिल्म का लोकप्रिय गीत भी - आ जाने जा

अगले सप्ताह भी बातचीत जारी रहेगी जिसकी झलक अंत में सुनवाई। इस रोचक बातचीत के रिकार्डिंग इंजीनियर हैं - मंगेश (सांगले) जी और जे पी (महाजन) जी, कार्यक्रम की प्रस्तुतकर्ता हैं कल्पना (शेट्टी) जी। सम्पादन खुद युनूस जी ने किया हैं।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में डा अति सांघवी से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई, विषय रहा - मधुमेह रोग। विस्तार से जानकारी दी। बताया कि इंसुलिन नामक हारमोन की शरीर में कमी होने से शरीर में शुगर का स्तर कम हो जाता हैं। अगर बच्चो में हो तो अक्सर लम्बी उम्र तक रहता हैं। कई मामलों में ठीक हो जाता ही। खाने-पीने में सावधानी रखनी हैं। मानसिक दबाव से भी शुगर बढ़ता हैं, इस रोग के प्रति लोगो में जागरूकता की कमी हैं। इस जानकारीपूर्ण कार्यक्रम की प्रस्तुतकर्ता हैं कमलेश (पाठक) जी।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में टेलीविजन और फिल्म के अभिनेता विनय पाठक से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई। जानकारी मिली कि पहले थियेटर फिर टेलीविजन और फिल्मो में प्रवेश किया। पहली फिल्म हम दिल दे चुके सनम फिर भेजा फ्राई। बाद में एक फिल्म भी बनाई। बताया कि कहानी पर ज्यादा ध्यान देते हैं। हर काम से जुड़े अपने अनुभव बताए। अपने विविध भारती से लगाव की भी जानकारी दी। इस कार्यक्रम को स्वाति (भंडारकर) के तकनीकी सहयोग से कलपना (शेट्टी) जी ने प्रस्तुत किया।

हैलो फ़रमाइश कार्यक्रम में शनिवार को श्रोताओं से फोन पर बात की अमरकांत जी ने। विभिन्न क्षेत्रो से फोन आए और लोकल काल भी थे। अलग-अलग तरह के श्रोताओं से बात हुई। छात्रो ने फोन किया। विभिन्न काम करने वालो ने अपने काम के बारे में बताया जैसे कम्पनी में पैकिंग का काम। सब की पसंद पर गाने अलग-अलग तरह के नए पुराने गीत सुनवाए जैसे पुराना गीत -

तेरे ख्यालो में हम तेरी ही बाहों में गुम

अवतार फिल्म का भक्ति गीत - चलो बुलावा आया हैं

नई फिल्म मुझसे शादी करोगी का शीर्षक गीत

इस कार्यक्रम को तैयार करने में तकनीकी सहयोग विनायक (तलवलकर) जी और प्रस्तुति सहयोग झरना (सोलंकी) जी का रहा। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया महादेव (जगदाले) जी ने।

मंगलवार को फोन पर श्रोताओं से बातचीत की अशोक जी ने। अलग-अलग तरह की बातचीत अच्छी लगी। श्रोताओं से बातचीत से पता चला हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में गरमी बहुत हैं। छात्र, खेती करने वाले, दूकान चलाने वाले जैसे विभिन्न श्रोताओं ने अपने काम के बारे में बताया। विभिन्न स्थानों से फोन आए और नए पुराने गीत उनके अनुरोध पर सुनवाए गए। एक प्रोफ़ेसर साहब ने समाज सेवा की बड़ी-बड़ी बाते की और पसंद किया यह गीत -

जरूरत हैं जरूरत हैं जरूरत हैं
एक श्रीमती की कलावती की
सेवा करे जो पति की

भई वाह ! बाते समाज सेवा की और पत्नी चाहिए ऎसी जो पति की सेवा करे, कम से कम उसे बराबरी का दर्जा तो देते, खैर... अपने अपने विचार...

इस कार्यक्रम को तैयार करने में तकनीकी सहयोग स्वाति (भंडारकर) जी और प्रस्तुति सहयोग माधुरी (केलकर) जी का रहा। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया महादेव (जगदाले) जी ने।

गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। इस कार्यक्रम पर छुट्टी का असर नजर आया पर स्कूल कॉलेज की छुट्टियां नहीं, खेती किसानी की छुट्टी। मई के महीने में खेत खाली होते हैं। मानसून के इन्तेजार में अक्सर किसान खेती की तैयारी करते नजर आते हैं जिससे समय मिल जाता हैं। इसीलिए खेती के काम से जुड़े श्रोताओं के फोन ज्यादा आए। कुछ अन्य कामकाजी श्रोता भी थे। विभिन्न स्थानों से फोन आए। ज्यादातर श्रोताओं ने सत्तर अस्सी के दशक की फिल्मो के गीत सुनने का अनुरोध किया। इन गीतों के अलावा एकाध नया और पुराना गीत भी शामिल था।

तीनो ही कार्यक्रमों में श्रोताओं ने विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों को पसंद करने की बात बताई। एक श्रोता के कहने पर एस एम एस करने का तरीका भी बताया गया, श्रोता की शिकायत थी कि सन्देश नही पहुंचता हैं। कुछ श्रोताओ ने बहुत ही कम बात की। कुछ ऐसे लोकल कॉल भी थे जिनमे श्रोताओं ने बताया कि उनका मूल निवास कहीं और हैं और वे काम के लिए मुम्बई आए हैं। ऐसे श्रोताओं ने अपने मूल राज्य को याद किया जैसे एक श्रोता ने मिर्जापुर की लीची और विन्ध्यावासिनी मंदिर के बारे में बताया।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद गाने सुहाने कार्यक्रम प्रसारित हुआ जिसमे अस्सी के दशक और उसके बाद के गीत सुनवाए गए। लगभग सभी ऐसे गीत सुनवाए गए जो लोकप्रिय रहे।

शुक्रवार को सुनवाए गए सिर्फ तुम, बिच्छू, धड़कन फिल्मो के गीत।

शनिवार को सुनवाए गए - मेला फिल्म का शीर्षक गीत, मिशन काश्मीर फिल्म का गीत और यह गीत भी शामिल था -

हम को हमी से चुरा लो

रविवार को सुनवाए गए - 1942 अ लव स्टोरी, दिल हैं कि मानता नही, आँखे फिल्मो के गीत और यह गीत -

लाल दुपट्टे वाली तेरा नाम तो बता

सोमवार को दिल वाले दुल्हनिया ले जाएगे, करण अर्जुन, साथ-साथ फिल्मो के गीत सुनवाए और यह गीत भी शामिल था -

क्या करे के कैसी मुश्किल हाय

मंगलवार को अस्सी के दशक की कर्ज, एक दूजे के लिए, रॉकी फिल्मो के गीत सुनवाए गए।

बुधवार को जिन फिल्मो के गीत सुनवाए उनमे याराना, लावारिस, तेरी क़सम फिल्मे शामिल थी।

गुरूवार को सुनवाए गए प्यार दीवाना होता हैं, तू खिलाड़ी मैं अनाडी फिल्मो के गीत और सौतन फिल्म का यह गीत चाय की चुस्कियाँ लेते हुए सुनना बहुत अच्छा लगा जबकि बाहर लैला (चक्रवाती तूफ़ान) की रिमझिम जारी थी -

शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया हैं
इसीलिए मम्मी ने मेरी तुम्हे चाय पे बुलाया हैं

इस कार्यक्रम में रिलीज होने वाली फिल्म के विज्ञापन प्रसारित हुए।

पूरी सभा में प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में बताया गया।

शाम 5:30 बजे गाने सुहाने कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

Tuesday, May 18, 2010

न कोई रहा हैं न कोई रहेगा

आज याद आ रहा हैं साठ के दशक की फिल्म का गीत, फिल्म का नाम हैं गोवा या जौहर महमूद इन गोवा

जैसा कि नाम से ही लगता हैं इसमे आई एस जौहर और महमूद की मुख्य भूमिका हैं। महमूद इसमे अलग रूप में हैं, क्रांतिकारी की भूमिका हैं। गोवा मुक्ति आन्दोलन पर बनी इस फिल्म में सोनिया साहनी की महत्वपूर्ण भूमिका हैं और यह सिम्मी ग्रेवाल की पहली फिल्म हैं।

इस फिल्म के एकाध गीत अब भी विविध भारती पर सुनाई देते हैं पर यह गीत नही सुने बहुत लंबा समय हो गया। इस गीत को शायद दो गायकों ने गाया हैं, नाम मुझे याद नही आ रहे - शायद मन्नाडे, मुकेश, रफी साहब...

गीत के कुछ बोल याद आ रहे हैं -

न कोई रहा हैं न कोई रहेगा
न कोई रहा हैं
हैं तेरे जाने की बारी विदेशी
ये देश आजाद हो के रहेगा
मेरा देश आजाद हो के रहेगा
न कोई रहा हैं

हलाकू रहा हैं न हिटलर रहा हैं
---------- मूसा भी -----------

सिकंदर की ताक़त को पोरस ने देखा
मुगलों की ताक़त को ------- ने ------
जब खूनी नादर ने छेड़ी लड़ाई
तो दिल्ली की गलियों से आवाज आई
लगा ले तू कितना भी जोर सितमगार
ये देश आजाद हो के रहेगा
मेरा देश आजाद हो के रहेगा
न कोई रहा हैं

चीन से चाओ और माओ भी आए
-------------------------

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, May 13, 2010

प्यार-मोहब्बत के गानों की दुपहरियों की साप्ताहिकी 13-5-10

सवेरे के त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

दोपहर 12 बजे का समय होता है इंसटेन्ट फ़रमाइशी गीतों के कार्यक्रम एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने का। इस कार्यक्रम पर छुट्टियों का असर नजर आ रहा हैं। हर दिन नई फिल्मे चुनी गई ताकि युवा श्रोताओ का अच्छा मनोरंजन हो सके। हमेशा की तरह शुरूवात में 10 फ़िल्मों के नाम बता दिए गए फिर बताया गया एस एम एस करने का तरीका। पहला गीत उदघोषक की खुद की पसन्द का सुनवाया गया ताकि तब तक संदेश आ सके। फिर शुरू हुआ संदेशों का सिलसिला।

शुक्रवार को आए कमल (शर्मा) जी और बड़े ही धूम मचाने वाले गीत सुनने के लिए श्रोताओं के सन्देश मिले - ये हैं जलवा जैसे गीत, नो एंट्री और आ देखे ज़रा फिल्मो के शीर्षक गीत, बचना ऐ हसीनो, धूम 2, किसना, कारपोरेट, राज फिल्मो के गीत सुनवाए लेकिन शुरूवात की ओंकारा फिल्म के बीडी जलाइले से।

शनिवार को रेणु (बंसल) जी ले आई फिल्मे - वीरजारा, मोहब्बते, चमेली, 36 चायना टाउन, ताल, अशोका जिनके गीतों के साथ संदेशो के अनुसार शीर्षक गीत सुनवाए कल हो न हो, कभी अलविदा न कहना फिल्मो से।

रविवार को नन्द किशोर (पाण्डेय) जी लेकर आए फिल्मे - जागर्स पार्क, रहना हैं तेरे दिल में, रिफ्यूजी, चीनी कम, आ अब लौट चले जिनके लोकप्रिय गीतों के लिए सन्देश आए।

सोमवार को नन्द किशोर (पाण्डेय) जी ले आए - मेजर साहेब , खाकी, जहर, बाबुल, फना, बागबान, इन फिल्मो के गीतों के साथ आशिक बनाया आपने फिल्म के शीर्षक गीत के लिए भी सन्देश आए।

मंगलवार को मैं हूँ ना, मुन्ना भाई एम बी बी एस, परिणीता, ओम शान्ति ओम, हम तुम, पहेली, विवाह, तारारमपम फिल्मे लेकर आए अशोक हमराही जी। और ओंकारा फिल्म का बीडी जलईले दुबारा सुनने को मिला इस एक सप्ताह में।

बुधवार को नन्द किशोर (पाण्डेय) जी लेकर आए फिल्मे - पुकार, फिर हेरा फेरी, राजू चाचा, दुश्मन, सरफरोश, जिस देश में गंगा रहता हैं। रोमांटिक गीतों के अलावा अलग भाव के गीतों के लिए भी सन्देश आए - फिर भी दिल हैं हिन्दुस्तानी फिल्म का शीर्षक गीत।

आज रेणु (बंसल) जी ने बड़ी मस्त शुरूवात की - मैं निकला गडी लेके गीत से। अन्य फिल्मे रही - दिल चाहता हैं, अजनबी, अशोका, प्यार किया तो डरना क्या, हमको दीवाना कर गए, चोरी चोरी चुपके चुपके। आज रेणु जी की प्रस्तुति भी बहुत मस्त रही।

आधा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर से बची हुई फ़िल्मों के नाम बताए गए और फिर से बताया गया एस एम एस करने का तरीका। इस कार्यक्रम के अंत में अगले दिन की 10 फ़िल्मों के नाम बताए गए। आरम्भ, बीच में और अंत में बजने वाली संकेत धुन ठीक ही हैं। देश के विभिन्न भागो से संदेश आए। सप्ताह भर इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने।

12:55 को झरोका में दोपहर और बाद के केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई।

1:00 बजे कार्यक्रम सुनवाया गया - हिट सुपर हिट। यह कार्यक्रम हर दिन एक कलाकार पर केन्द्रित होता है, उस कलाकार के हिट सुपरहिट गीत सुनवाए जाते है। शुक्रवार को यह कार्यक्रम अभिनेत्री जरीना वहाब पर लेकर आए कमल (शर्मा) जी। बहुत अच्छा रहा। शुरूवात की उनकी पहली सुपरहिट फिल्म चितचोर
के सुपरहिट गीत से -

तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले

उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी दी कि उनका जन्म विशाखापत्तनम में हुआ। पूना संस्थान से प्रशिक्षण लिया। पहली फिल्म इश्क, इश्क, इश्क पर दूसरी फिल्म चितचोर को अपार लोकप्रियता मिली। बाद में चरित्र भूमिकाएं की। उनकी हिट फिल्मो के हिट गीत सुनवाए - घरौंदा, सावन को आने दो, तुन्हारे लिए, नैय्या।

शनिवार को रेणु (बंसल) जी ने अभिनेत्री दीप्ति नवल पर प्रस्तुत किया यह कार्यक्रम। उन पर सामान्य जानकारी दी कि पहली फिल्म हैं जूनून। फिर आयी फिल्म एक बार फिर जिसका गीत भी सुनवाया गया - ये पौधे, ये पत्ते

उन्हें एक भावप्रवण उच्च कोटी की अभिनेत्री बताया और यह जानकारी भी दी कि उनकी जोडी बनी फारूक शेख के साथ। चश्मेबद्दूर फिल्म का गीत सुनवाया और साथ-साथ फिल्म के दो गीत सुनवाए। बाद में उन्होंने चरित्र भूमिकाए भी की जिसकी जानकारी नही दी।

रविवार को नन्द किशोर (पाण्डेय) जी ने गीतकार देव कोहली पर यह कार्यक्रम प्रस्तुत किया। उनके गीत सुनवाए - लाल पत्थर फिल्म कुछ पुरानी और शेष सभी गीत नई फिल्मो से रहे - हम आपके हैं कौन का दीदी तेरा देवर दीवाना, हम साथ साथ हैं और कोई मिल गया फिल्मो के गीत सुनवाए।

सोमवार को नन्द किशोर (पाण्डेय) जी ने पार्श्व गायक अनवर पर यह कार्यक्रम प्रस्तुत किया। अनवर के गीत आजकल बहुत कम सुनने को मिलते हैं। खासकर आहिस्ता आहिस्ता फिल्म का यह शीर्षक गीत बहुत-बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा -

मोहब्बत रंग लाती हैं मगर आहिस्ता आहिस्ता

शुरूवात की सोहनी महिवाल के गीत से। थोड़ी सी बेवफाई का लवली मौसम गीत भी शामिल था। विधाता फिल्म का गीत भी सुनवाया पर जनता हवालदार फिल्म के दो गीतों में से एक भी न सुनवाना अच्छा नही लगा, हालांकि इसी फिल्म से अनवर को पहचान मिली।

मंगलवार को पार्श्व गायक शब्बीर कुमार के लिए अशोक हमराही जी ने प्रस्तुत किया। शुरूवात की फिल्म बेताब के गीत से, इसके बाद प्यार झुकता नही, मेरी जंग, आज का अर्जुन और वो सात दिन फिल्मो के गीत सुनवाए गए। सभी गीत हिट सुपर हिट सुनवाए गए पर सभी गीत युगल गीत रहे और वो भी लता जी के साथ गाए गए। समझ में नही आया, क्या उनके सिर्फ लताजी के साथ गाए गीत ही हिट सुपर हिट हैं....

बुधवार को नन्द किशोर (पाण्डेय) जी ने पार्श्व गायक मोहम्मद अजीज पर यह कार्यक्रम प्रस्तुत किया। शुरूवात बढ़िया रही, आखिर क्यों फिल्म के इस गीत से -

एक अन्धेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे
सबसे बड़ी सौगात हैं जीवन नादाँ हैं जो जीवन से हारे

उसके बाद आखिरी रास्ता, अमृत, सौदागर, नगीना फिल्मो के गीत सुनवाए। अच्छी विविधता रही कार्यक्रम में।

आज इस कार्यक्रम में भी रेणु जी की प्रस्तुति बढ़िया रही। अनुराधा पौडवाल और कुमार सानू पर प्रस्तुत किया कार्यक्रम। दोनों के गाए युगल गीत सुनवाए गए। आमतौर पर एक ही कलाकार पर केन्द्रित होता हैं यह कार्यक्रम पर आज जोडी पर प्रस्तुति दी गई। आशिकी, दिल हैं कि मानता नही, साजन, दाग - द फायर फिल्मो के गीत सुनवाए और सुनवाया यह गीत भी -

तुम्हे अपना बनाने की कसम खाई हैं

आशा हैं आगे भी ऎसी प्रस्तुतियां जारी रहेगी और सिर्फ जोडी ही नही, टीम विशेष द्वारा तैयार किए गए कुछ बढ़िया गीत भी सुनवाए जाएगे।

इस कार्यक्रम में अक्सर केवल गीत ही सुनवाए, कलाकार की कोई जानकारी नही दी। यह अंदाज भी अच्छा रहा। हर दिन अंत में यह बताया जाता रहा कि यह कार्यक्रम रात में 9 बजे दुबारा प्रसारित होगा।

1:30 बजे का समय रहा मन चाहे गीत कार्यक्रम का। सप्ताह भर सत्तर अस्सी के दशक की फिल्मो का बोलबाला रहा। पत्रों पर आधारित फ़रमाइशी गीतों में शुक्रवार को शुरूवात नई फिल्म मासूम के गीत से की फिर लोकप्रिय गीत फरमाइश में से चुन कर सुनवाए गए। फिल्मे रही - हीरो, नमक हलाल, अजनबी, हिना, जेंटलमैन फिल्म का यह गीत -

रूप सुहाना लगता हैं चाँद पुराना लगता हैं तेरे आगे ओ जानम

अंत में दो गीत नई फिल्मो के थे - टक्कर और हम आपके दिल में रहते हैं।

शनिवार को अमरकांत जी ने सुनवाए श्रोताओं की फरमाइश पर इन फिल्मो के बहुत ही धूम मचाने वाले गीत, शुरूवात की -

मैं चट यमला पगला दीवाना
इत्ती सी बात न जाना
कि वो मैनू प्यार करती हैं

बहारो के सपने का चुनरी संभाल गोरी, गिर गया झुमका जिसके साथ मिस्टर नटवरलाल, मैंने प्यार किया, राम लखन और जानेमन फिल्म का यह गीत - की गल हैं, कोई नही। बहुत मजा आया।

रविवार को मंजू (द्विवेदी) जी ले आई बेहतरीन फिल्मो के लोकप्रिय गीत - मस्ताना, बैराग, कारवां, हम पांच, आपकी कसम, गौतम गोविंदा, हम आपके हैं कौन और धरती कहे पुकार के फिल्म का यह गीत -

जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जय्यो कहाँ ऐ हुजूर

सोमवार को गीत सुनवाने आई रेणु (बंसल) जी। सच्चा झूठा, जीवा, एक दूजे के लिए, फकीरा, आपके साथ, ये वादा रहा, सड़क, डर फिल्मो के गीत सुनवाए।

मंगलवार को निम्मी (मिश्रा) जी ने पहले ही गीत से गरमी की दुपहरी में श्रोताओं को झकझोर दिया, अपना देश फिल्म से आशा भोसले और आर डी बर्मन का गाया फ्रीडम वाला गीत। मिस्टर नटवरलाल, रंगीला, संगीत फिल्मो के मस्ती भरे और वास्तव, विजयपथ फिल्मो के शांत रोमांटिक गीत भी श्रोताओं की फरमाइश पर सुनवाए गए।

बुधवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने शुरूवात की फिल्म लैला मजनू के इस गीत से जिसकी फरमाइश श्रोताओं ने बहुत दिन बाद की -

कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को

उड़न खटोला, जेलर, जिद्दी, आँखे जैसी पुरानी फिल्मो के गीत और अस्सी के दशक की अब्दुल्ला, स्वीकार किया मैंने, मुद्दत, धनवान फिल्मो के गीत सुनने के लिए ई-मेल आए। अंतिम फरमाइशी गीत शोले फिल्म से रहा - महबूबा महबूबा जिससे मैक मोहन साम्भा को श्रद्धांजली दी गई।

आज अशोक (सोनामणे) जी आए गीत सुनवाने। शुरूवात पुरानी फिल्मो से हुई - लव मैरिज, पतिता, मिस बॉम्बे, राजहट फिल्म का गीत -

ये वादा करो चाँद के सामने

फिर आगे के समय की फिल्मो के गीत सुनवाए गए - प्रेम पुजारी, आनंद, पत्थर के सनम, हमराज, मोहरा, राज, फिल्मो से और समापन हुआ सिलसिला फिल्म के गीत से -

देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए

बुधवार और गुरूवार के ई-मेल मन चाहे गीत कार्यक्रम में इस सप्ताह मेल संख्या कम ही लगी। अधिकाँश गीत एक ही मेल पर सुनवाए गए।

इस कार्यक्रम में अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में बताया गया। दूरदर्शन की फिल्मो की जानकारी भी दी।

इस सप्ताह एक बात खटकी। गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की 150 वी जन्मशती समूचे उप महाद्वीप में मनाने की शुरूवात हुई। यह हामारे लिए गौरव की बात हैं कि विश्व में गुरूदेव एकमात्र रचयिता हैं जिनकी रचनाएं दो देशों - भारत और बंगला देश का राष्ट्रीय गान हैं। जिनकी दो फिल्मो के गीत बहुत ही लोकप्रिय हैं -काबुलीवाला का देश भक्ति गीत और घूंघट फिल्म के गीत। लेकिन इस सप्ताह यह गीत गूंजते सुनाई नही दिए। गुरूदेव के साथ उनकी पूरी बंगला संस्कृति महकती हैं। बंगला रचनाओं पर बनी हिन्दी फिल्मो में कई लोकप्रिय गीत हैं, फिर एस डी बर्मन के गाए गीत हैं, इस समूचे सन्दर्भ से सभी अनजान लगे। न विविध भारती ने कोई व्यवस्था दी और न ही श्रोताओं को ऐसे गीतों की फरमाइश भेजने की सुध रही।

इस प्रसारण को तेजेश्री (शेट्टे) जी, बलवंत जी, निखिल (धामापुरकर) जी, स्वाती (भंडारकर) जी, सुधाकर (मटकर) जी, के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुँचाया गया, नियंत्रण कक्ष (कंट्रोल रूम) से सुमति (शिंघाडे) जी, रीटा (गोम्स) जी, ने इस प्रसारण के तकनीकी पक्ष को सम्भाला और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर) करने के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी रही कमला कुन्दर जी। एक और महत्वपूर्ण जानकारी दी गई कि इन गीतों को संग्रहालय से चुन कर निकालने वालो के नाम भी बताए गए। यह जानकारी अचानक मिलने से नाम ठीक से मैं नोट नही कर पाई, शायद ये नाम हैं - शोभा, दीपा, श्याम। अनुरोध हैं कि यह नाम भी आगे से नियमित बताइए क्योंकि ढेरो गीतों में से कुछ गीत चुनना वाकई मेहनत का काम हैं।

दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

Tuesday, May 11, 2010

गीतों की श्रृंखला जारी - अनमोल मोती फिल्म का गीत

धन्यवाद पीयूष जी, रोमेंद्र सागर जी, युनूस जी। इस श्रृंखला को मैं जारी रख रही हूँ।

वास्तव में रेडियो से मेरा बचपन का साथ हैं। मैं उस उम्र से रेडियो सुनती हूँ जब गानों के शब्द भी मैं ठीक से पकड़ नही पाती थी। सुनते-सुनते गाने अच्छे लगने लगे फिर शुरू हुआ फिल्मे देखने का सिलसिला।

सिनेमाघरों में फिल्मे देखी, सुबह के शो में लगने वाली पुरानी फिल्मे भी देखी, दूरदर्शन पर देखी फिल्मे, वीडियो पर देखी और चैनलों पर देखती रहती हूँ।

ढेर सारे गाने, ढेर सारी फिल्मे। कुछ याद आते हैं, कुछ भूल जाते हैं। कभी गीत के कुछ बोल याद आते हैं, कभी सिर्फ धुन याद रह जाती हैं, कभी गीत बिलकुल भी याद नही आता पर फिल्म का सीन याद आ जाता हैं। कुछ ऐसे भी गीत मन में उभर आते जो सिर्फ मैंने रेडियो से सुने हैं, फिल्मे नही देखी।

इन्ही सुरीले गीतों को एक बार फिर रेडियो से सुनने की चाह में हैं यह श्रृंखला। आज याद आ रहा हैं अनमोल मोती फिल्म का गीत। यह फिल्म साठ के दशक के अंतिम वर्षो या सत्तर के दशक के शुरूवाती वर्ष की हैं। इसमे नायिका बबिता हैं। जितेन्द्र हैं या संजीव कुमार या कोई और, मुझे ठीक से याद नही।

वैसे इस फिल्म के महेंद्र कपूर के गाए गीत कभी-कभार सुनवाए जाते हैं पर आज मैं एक सामूहिक नृत्य गीत याद दिला रही हूँ जिसे बबिता और समूह पर फिल्माया गया हैं जिसे लता जी या आशा जी ने साथियो के साथ गाया हैं। गीत के बोल मुझे याद नही आ रहे हैं।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, May 6, 2010

सुबह के पंचरंगी प्रसारण की साप्ताहिकी 6-5-10

इस सप्ताह एक विशेष दिन रहा - मई दिवस यानि श्रमिक दिवस जिसकी झलक तक नही मिली सुबह के प्रसारण में। हालांकि चिंतन में श्रम संबंधी कथन बताया जा सकता था। त्रिवेणी कार्यक्रम भी श्रमिको को समर्पित किया जा सकता था।

सोमवार को छोड़ कर सप्ताह के हर दिन परम्परा के अनुसार शुरूवात संकेत धुन से हुई जिसके बाद वन्देमातरम फिर बताए गए दिन और तिथि, संवत्सर तिथि भी बताई गई जिसके बाद मंगल ध्वनि सुनवाई गई। यह सभी क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुआ। इसके बाद 6 बजे दिल्ली से प्रसारित हुए समाचार, 5 मिनट के बुलेटिन के बाद मुम्बई से प्रसारण शुरू हुआ जिसकी शुरूवात में कभी-कभार कार्यक्रमों के प्रायोजकों के विज्ञापन प्रसारित हुए जिसके बाद पहले कार्यक्रम वन्दनवार की शुरूवात मधुर संकेत धुन से हुई, फिर सुनाया गया चिंतन।

चिंतन में इस बार शामिल रहे कथन - आचार्य चाणक्य के दो कथन बताए गए - शिक्षा संबंधी कथन - विद्वानों में अनपढ़ तिरस्कृत होते हैं जैसे हंसो में बगुला। दूसरा कथन - वही सुभार्या हैं जो पवित्र हैं, सतचरित्र हैं, जो सत्य बोले और जिस पर पति की प्रीति हो। जयशंकर प्रसाद का कथन - प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नही करता। गांधी जी के दो कथन बताए गए - सच्चा मनुष्य कभी विचलित नही होता क्योंकि सत्य की शक्ति उसे संबल देती हैं। दूसरा कथन - शक्ति संकल्प से उत्पन्न होती हैं, हमारी शक्ति सत्य और अहिंसा हैं, सत्याग्रह हमारा हथियार हैं, मनुष्य का आनंद इसी में हैं। स्वामी स्वरूपानंद का कथन - भक्ति की शक्ति असीम हैं। गेटे का कथन - किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए कला, विज्ञान के साथ धैर्य की भी आवश्यकता होती हैं।

वन्दनवार कार्यक्रम में इस बार भी फिल्मी घुसपैठ जारी रही। विनम्र अनुरोध है कृपया फिल्मी भक्ति गीतों और देश भक्ति गीतों का अलग कार्यक्रम रखिए ऐसे समय जहां क्षेत्रीय कार्यक्रमों का समय न हो ताकि हम इन फिल्मी भक्ति गीतों और देश भक्ति गीतों का आनंद ले सके। वन्दनवार में इन गीतों से कार्यक्रम की गरिमा को धक्का लगता हैं।

सप्ताह भर विविध भक्ति गीत सुने -

ज्ञान और कर्म योग विषयक गीत - कर्म करो ऐसे भाई तुम पड़े न फिर पछताना

साकार रूप के भक्ति गीत - लीला तुम्हारी श्याम रूप भी तुम्हारा

निराकार रूप के भक्ति गीत शामिल रहे - पोथी पढी-पढी जग मुआ पंडित भया न कोय

पुराने लोकप्रिय भजन सुनवाए गए -

राम जी के नाम में तो
जो न जपे राम वो हैं किस्मत के मारे

शास्त्रीय पद्धति में ढला भक्ति गीत भी शामिल रहा - दर्शन देना प्राण प्यारे

भक्तों के भक्ति गीत - मने चाकर राखो जी गिरिधारी

एकाध ऐसा भक्ति गीत भी शामिल रहा जो कम सुनवाया जाता हैं - राधा कहे कृष्ण कृष्ण सीता कहे राम राम

कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा, प्रसिद्ध साहित्यकार सुभदा कुमारी चौहान का गीत सुनवाया - वीरो का कैसा हो वसंत

लोकप्रिय देशभक्ति गीत सुनवाए गए जैसे -

हम अपने सतकर्मो से मिले जुले धर्मो से
तेरी उतारे आरती
जय जननि जय भारती

चलो देश पर मर मिट जाए
इसकी इज्जत और बढाए
जो सोया हैं उसे जगाए
मिल कर भारत नया बनाए

जग से प्यारा देश हमारा प्यारा हिन्दुस्तान

यह गीत सप्ताह में दो बार सुनना अच्छा नही लगा -

सुनहला देश हमारा हैं
रूपहला देश हमारा हैं

सोमवार को क्षेत्रीय केंद्र में शायद कोई तकनीकी समस्या रही। संकेत धुन के बाद समाचार शुरू हो गए और 8 बजे तक लगातार हमने केन्द्रीय प्रसारण ही सुना। इस तरह 6:30 बजे युगल गीतों का कार्यक्रम तेरे सुर और मेरे गीत सुनने का भी अवसर मिला। शुरूवात हुई ममता फिल्म के गीत से - इन बहारो में अकेले न फिरो

और समापन किया हम दोनों फिल्म के गीत से - अभी न जाओ छोड़ कर

जिसके साथ एक मुसाफिर एक हसीना, सूरज, आधी रात के बाद फिल्मो के बढ़िया युगल गीत सुनवाए गए, यह प्यारा सा गीत भी शामिल था -

देखो रूठा न करो बात नजरो की सुनो
हम न बोलेगे कभी तुम सताया न करो

शेष हर दिन 6:30 बजे से क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु भक्ति गीत सुनवाए गए जिसके बाद 6:55 को झरोका में केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई।

7 बजे का समय रहा भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम का जो प्रायोजित रहा। शुक्रवार को अच्छे गीत सुनवाए गए, शास्त्रीय पद्धति में ढला परिवार फिल्म का गीत, परदेसी, जलपरी फिल्मो के गीत और यह लोकप्रिय गीत -

याद रखना प्यार की निशानी गोरी याद रखना

शनिवार को ख्यात पार्श्व गायक मन्नाडे का जन्मदिन था। इस अवसर पर उनका बढ़िया गीत सुनवाया गया फरेब फिल्म से, वैसे यह गीत कम ही सुनवाया जाता हैं -

मेरी महबूबा आज मेरे घर आई
एक परी आसमान से उतर आई

इसके अलावा अन्य गायक कलाकारों के गीत भी शामिल रहे, चारमीनार जैसी पुरानी भूली बिसरी फिल्मो के गीत भी शामिल थे। इस दिन इस अवसर पर प्रसारित होने वाले अन्य कार्यक्रमों की भी जानकारी दी गई जैसे सदाबहार नगमे, एक ही फनकार और मन्नाडे द्वारा प्रस्तुत विशेष जयमाला।

रविवार को यह कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा। आरम्भ किया कुंदनलाल सहगल के जिन्दगी फिल्म के गीत से - मैं क्या जानूं जादू हैं और समापन किया क़व्वाली की रात फिल्म की क़व्वाली से। बीच में बच्चो का एक बढ़िया गीत सुनवाया हम पंछी एक डाल के फिल्म से जिसमे जंगल की कहानियां थी, जानवरों की आवाजे थी, वैसे यह गीत कम ही सुनवाया जाता हैं।

सोमवार को यह कार्यक्रम मूल स्वरूप में नजर आया। लगभग सभी गीत भूले बिसरे थे। घर की लाज, राजसिंहासन, हीर फिल्मो के गीत और हुस्न का चोर फिल्म से संध्या मुखर्जी का गाया गीत - संग दिल जमाने

मंगलवार को एक अरमान मेरा भी, दो दोस्त, रंगीला राजा फिल्मो के गीतों के साथ यह लोकप्रिय गीत भी सुनवाया गया मुकेश और उषा खन्ना की आवाजो में -

तेरा मेरा प्यार कोई आजकल की तो बात नही
हमेशा से हैं और हमेशा रहेगा

बुधवार को हनीमून और शाहजहाँ फिल्म का सहगल साहब का गाया अक्सर सुना जाने वाला गीत शामिल था। इनके साथ ऐसे गीत भी सुने जो गीत तो क्या, फिल्मो के नाम भी भूले बिसरे हैं - खुफिया महल और फिल्म फौलादी मुक्का का यह गीत -

समझेगे न ये इन्हें समझाना पडेगा

आज शुरूवात और समापन बहुत ही भूली बिसरी फिल्मो के भूले बिसरे गीत से हुआ - गृह लक्ष्मी फिल्म के गीत से शुरूवात और जंगल किंग फिल्म के गीत से समापन हुआ। एकाध लोकप्रिय गीत भी शामिल रहा।

इस कार्यक्रम में भूली बिसरी आवाजे गूंजी - गीता दत्त, हेमंत कुमार, मीना कपूर, शमशाद बेगम, सुधा मल्होत्रा, मुबारक बेगम की। हर दिन कम सुनवाए जाने वाले गीत अधिक सुनवाए गए और लोकप्रिय गीत भी शामिल रहे। फिल्मो और फिल्मी गीतों के बारे में सामान्य जानकारी भी कभी-कभार दी गई जैसे रिलीज होने का वर्ष, बैनर आदि।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला प्रसारित हुई - चित्रपट संगीत में शास्त्रीय संगीत का प्रयोग जिसे प्रस्तुत किया प्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खाँ ने। राग यमन और यमन कल्याण की चर्चा हुई। दोनों में अंतर बताया। फिल्म मुगले आजम के गीत की धुन बजा कर सुनाई गई। राग जिला काफी में सरोद और सितार की जुगलबंदी भी सुनवाई गई। ऐसे रागों की भी चर्चा हुई जिनमे ऎसी रचनाए हैं जिनसे खुशी छलकती हैं। यह गीत सुनवाया -

जाइए आप कहाँ जाएगे

राग हेमावती में सितार भी सुनवाया। ऐसे गीतों की चर्चा हुई जिसमे राग बिलावल और खमाज की छाया हैं, गीत सुनवाए गए -

सीने में सुलगते हैं अरमां

जमाने का दस्तूर हैं ये पुराना

दिलरूबा और गिटार पर राग खमाज बिलावल भी सुनवाया गया। श्रृंखला का समापन किया गया राग भैरवी से। चर्चा का गीत रहा -

तू प्यार करे या ठुकराए

कड़ी समाप्त हुई उस्ताद बिस्मिला खाँ और साथियो से शहनाई पर राग भैरवी में ठुमरी से।

एक और श्रृंखला आरम्भ हुई - इटावा घराने का सितार वादन जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध सितार वादक अरविंद पारिख। शुरूवाती कड़ी में सितार की शुरूवात की बाते बताई गई - सितार लगभग 250 साल पुराना हैं, इसकी शुरूवात के बारे में मतभेद हैं कोई इसे अमीर खुसरो की देन मानता हैं तो कोई गरीब खुसरो की। सितार की बनावट की जानकारी दी - पहले 2-3तार ही थे। अब 7 तार हैं। इन तारो को मिलाने की भी चर्चा हुई। यह भी बताया कि सितार वादन की दो शैलियाँ लोकप्रिय हैं -पंडित रविशंकर जी की शैली और उस्ताद विलायत खाँ साहब की शैली। खाँ साहब की शैली 6 तारो की हैं, तान लेने के लिए जोडी के तारो को मिलाकर एक तार कम कर देते हैं। यह जानकरी भी मिली कि आज मुख्य वाद्य बना सितार पहले क़व्वाली में फिलर की तरह प्रयोग में आता था। इस तरह बढ़िया जानकारी मिल रही हैं।

दोनों ही श्रृंखलाओं को तैयार किया था छाया (गांगुली) जी ने।

7:45 को त्रिवेणी में शुक्रवार को बताया कि जीवन में हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए। शिक्षा फिल्म का यह गीत सुनवाया -

तेरी छोटी सी एक भूल ने सारा गुलशन जला दिया

ऐसे विषय पर फिल्म मेरा नाम जोकर का ऐ भाई ज़रा देख के चलो गीत तो शामिल रहेगा ही साथ ही चलती का नाम गाड़ी का गीत बाबू समझो इशारे भी सुनवाया गया। आलेख में हर तरह की सावधानी की चर्चा हुई।

शनिवार का अंक भी बढ़िया रहा लेकिन इसका प्रसारण किसी और दिन होता तो ज्यादा आनंद आता। गर्मियों के मौसम की चर्चा हुई। हरे-भरे वृक्षों की ठंडी छाँव याद आई, गीत सुनवाया गाइड फिल्म का -

वहां कौन हैं तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ

चर्चा आगे बढी और मुसाफिर के ठंडी छाँव में बैठने से शाम में मिलजुल कर बैठने तक चली। जीवन शैली की इस चर्चा में गीत सुनवाया प्रदीप का - सुख दुःख दोनों रहते जिसमे जीवन हैं वो गाँव

समापन और भी बढ़िया रहा, परिणय के गीत से -

जैसे सूरज की गरमी से जलते हुए तन को मिल जाए तरूवर की छाया

अंत में गीतों के लिए फिल्मो के नाम बताए। हमारा अनुरोध हैं मौसम ख़त्म होने से पहले इसका दुबारा प्रसारण कीजिए। पर इस दिन श्रमिक दिवस पर न सुनना बहुत बुरा लगा।

रविवार का विषय था - दुनिया में रंगों का महत्त्व। नए गीत भी सुनवाए गए और पुरानी फिल्म भंवर का अपने समय का यह लोकप्रिय गीत -

रंग ले आएगे रूप ले आएगे कागज़ के फूल
खुशबू कहाँ से लाएगे

अच्छा रहा आलेख भी और प्रस्तुति भी।

सोमवार को रास्तो की बात हुई। जिन्दगी में मंजिल तक पहुँचने के रास्तो की चर्चा हुई। गीत शामिल रहे -

एक रास्ता हैं जिन्दगी

और तपस्या फिल्म का गीत भी शामिल था - जो राह चुनी तूने

मंगलवार को स्वस्थ मनोरंजन की बात हुई। घूमने फिरने की भी चर्चा हुई। सुनवाए गए गीतों में मेहनत से मिले फल पर खुशी में गाए जाना वाला गीत पराया धन फिल्म से - आओ झूमे गाए

और खुशी के गीत शामिल रहे - अबके ये बहार कोई गुल नया खिलाएगी

मतवाले पिया डोले जिया

आलेख गीत कुछ आपस में जमते नही लगे।

बुधवार को पुराने अंक का प्रसारण दुबारा किया गया जिसमे बताया गया कि जिन्दगी को देखने का सबका अपना नजरिया हैं। गीत भी उपयुक्त चुने गए -

जिन्दगी हैं खेल कोई पास कोई फेल

कभी तो मिलेगी बहारो की मंजिल

और आज चर्चा की गई अकेलेपन की लेकिन ख़ास बात रही कि नकारात्मक चर्चा नही हुई। बताया कि कुछ लोगो को अकेलापन पसंद होता, अकेलेपन से सृजनशीलता बनती हैं। गीत सुनवाए गए -

अकेला हूँ मैं

चल अकेला चल अकेला चल अकेला
तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला

सवेरे के त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

Tuesday, May 4, 2010

श्रृंखला का अंतिम गीत - फ़ौजी गया जब गाँव में

आज इस श्रृंखला का मैं अंतिम चिट्ठा लिख रही हूँ।

आज याद आ रहा हैं सत्तर के दशक की फिल्म आक्रमण का एक गीत। वैसे इस फिल्म के गीत कभी-कभार विविध भारती से सुनवाए जाते हैं पर यह गीत बहुत लम्बे समय से नही सुना। पहले सभी केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था।

इस गीत को गाया हैं किशोर कुमार ने और इसे राजेश खन्ना पर फिल्माया गया हैं। इस फिल्म में राजेश खन्ना अतिथि भूमिका में हैं, भूमिका क्या हैं, केवल दो गीत ही उन पर फिल्माए गए हैं जिनमे से एक गीत अक्सर सुनवाया जाता हैं - देखो वीर जवानो अपने खून पे ये इल्जाम न आए

इस गीत में वो प्रोत्साहित कर रहे हैं युद्ध पर जाने वाले फ़ौजी भाइयो को, इनका एक पैर कटा हुआ हैं।

आज मैं दूसरा गीत याद दिला रही हूँ। यह एक स्टेज शो हैं। बड़ा मस्त अंदाज हैं इसमे राजेश खन्ना के अभिनय और किशोर कुमार की आवाज का।

इस गीत में एक कहानी हैं कि कैसे उसे गाँव वाले पहले नकारा समझते हैं, फिर वह फ़ौजी बनता हैं और जब गाँव वापस आता हैं तो उसका स्वागत होता हैं फिर वह डाकुओ से गाँव वालो की रक्षा करता हैं।

गीत का मुखड़ा और अन्तरो के कुछ बोल याद आ रहे हैं -

फ़ौजी गया जब गाँव में
पहन के फुल बूट पाँव में

पहले लोगो ने रखा था मेरा नाम निखट्टू
दो दिनों में ऐसे घूमा जैसे घूमे टट्टू
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मेरे स्वागत को दौड़े चाचा चाची मामा मामी
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इतने में बन्दूक चली गाँव में आ गए डाकू
मैं एक वो ----------
मैंने एक-एक को मारा

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

अब और गीत मुझे याद नही आ रहे हैं इसीलिए इस श्रृंखला को मैं यही समाप्त कर रही हूँ। अलविदा !

Saturday, May 1, 2010

1.श्री मन्ना डे साहब-जनमदिन की बधाईयाँ ।2. श्री एनोक डेनियेल्स साहब पर रेडियो श्री लंका-हिन्दी सेवा से 16 अप्रैल, 2010 के दिन प्रस्तूत कार्यक्रम

आज एक साथ दो नहीं पर तीन बल्कि चार बात करनी है ।
1. आज महान पार्श्वगायक श्री मन्ना डे यानि श्री प्रबोध चन्द्र डे साहब का जनमदिन है । तो इसके बारेमें विविध भारती और अन्य स्थानिय आकाशवाणी केन्द्रों से उनको बधाई देते हुए और उनकी जीवन-झरमर को प्रस्तूत करते हुए कई कार्यक्रम का सिलसिला जारि है, इस लिये मैं वो बातें इधर नहीं दोहराऊँगा पर मेरी कुछ निजी याद बताऊँगा । कई साल पहेले सुरतमें उनको एक मंच कार्यक्रममें सुनने का मौका मिला था । पर पिछले साल 9 मई के दिन सुरत के गाँधी स्मृती होममें वे फ़िर तसरीफ़ लाये थे और इस उम्रमें उनकी ताक़त भले थोड़ी कम हुई हो पर गाने की शास्त्रीयता पर कोई फरक नहीं आया था और लोगोने उनकी प्रस्तूती का मन भरके आनंद उठाया था । मध्यांतरमें कई लोग उनसे मिलने और उनके हस्ताक्षर पाने के लिये बंध परदे के पिछे गये, जिसमें एक मैं भी था और मेरी कोई अपना नाम बताते हुए निज़ी पहचान तो नहीं हुई और अगर होती तो शायद इतने लोगोमें से उनको याद रहने की कोई गुन्जाईश भी नहीं थी पर इतने बड़े और नामवर कलाकार को नज़दीक से देख़ने का एक आनंद था (श्री अमीन सायानी साहब के साथ भी 14 साल पहेले ऐसा ही वाक्या हुआ था और उसके कई साल बाद उनसे निज़ी परिचय और सम्बंध हुआ था ।)विविध भारती से उनसे आजके मेहमान कार्यक्रम अंतर्गत श्री कमल शर्माजी द्वारा की गई भेटवार्ता से उनका गुजराती सुगम-संगीत और ख़ास स्व. अविनाश व्यासजी प्रति उनके आदरभाव को याद रख़ते हुए मैंनें उनको नमस्कार करके पूछा था कि उनका श्री अविनास व्यासजी के संगीत निर्देषनमें गाया गीत चरा चरर मारुं चकडोळ चाले उस कार्यक्रममें प्रस्तूत करने की कोई गुन्जाईश थी या नहीं तो उन्हों ने एक मझेदार मंद हास्य बिख़ेरा और अपने ऑटोग्राफ़ मेरे कागज़ पर दिये । तो रेडियोनामा की और से उनको जनमदिन और स्वस्थ जिवनकी शुभ: कामनाएँ ।
2. 16 अप्रैल, 2010 के दिन मेरी दी हुई जानकारी के आधार पर रेडियो श्रीलंका से श्रीमती ज्योति परमारजीने जो कार्यक्रम प्रस्तूत किया था, जिसका जिक्र उस दिन की पोस्टमें किया था वह कार्यक्रम पुणे के श्रोता श्री गिरीशभाई मानकेश्वरजी के सौजन्य से इस मंच पर सुनिये । एक बात ख़ास बताना चाहता हूँ कि रेडियोनामा पर एक ही रसीक श्रोता श्री मयुर मल्हार यानि श्री मयुर बक्षी जी की ही टिपणी आयी और एक टिपणी जनदुनिया ब्लोग से औपचारिक रूपसे ही अपने ब्लोग के प्रचार के हेतु से आयी थी पर विषेष चर्चा इस विषय पर उसमें नहीं थी । पर रेडियो सिलोन के श्रोता ठाणे के श्री सुभाष कुलकर्णीजी ने कहीं से भी मेरा फोन नं प्राप्त करके मूझे सम्पर्क किया और अचरजकी बात यह थी कि उन्होंनें शुद्ध गुजरातीमें ही बात शुरू की और करते रहे और कार्यक्रम को सराहा और वे श्री अनोक डेनियेल्स को भी जनमदिन की बधाई दे चूके थे । वैसा दूसरा फोन इस ब्लोग को पढ कर राजस्थान के युवा श्रोता श्री रामस्वरूप सुथारजी का आया और इस जानकारी को सराहा था । युनूसजी और अन्नपूर्णाजी का तो पता नहीं । तो सुनिये रेडियो श्रीलंका की श्रीमती ज्योति परमार को फ़िर एक बार श्री एनोक डेनियेल्सजी के बारेमें (तीन भागोमें)।






3. आज विश्व मज़दूर दिन को भी याद करें ।

4. आज गुजरात और महाराष्ट्र के 51 सालमें प्रवेष करने पर उनके स्थापना दिनके लिये दोनों राज्य की जनता को बधाई और शुभ: कामाना ।
पियुष महेता ।
नानपुरा, सुरत ।

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