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Thursday, December 31, 2009

नये साल में नहीं सुनाई देगा वर्ल्डस्पेस का सुरीलापन....

मेरे शहर के सांध्य दैनिक प्रभात-किरण में कल जब ये ख़बर पढ़ी कि वर्ल्डस्पेस सैटेलाइट रेडियो बंद हो रहा है तो मन भारी हो गया.आर्थिक संकटों से जूझ रही पूरी दुनिया के असर की गाज आख़िर वर्ल्डस्पेस पर भी गिर ही गई.एक शानदार सिलसिले के बंद हो जाने की ये ख़बर आपके साथ बाँटते हुए मन बड़ा दु:खी है....



बीतते जा रहे २००९ ने जाते जाते संगीतप्रेमियों को आख़िर वह मनहूस ख़बर सुना ही दी है. एक ईमेल के ज़रिये वर्ल्डस्पेस सैटेलाइट रेडियो ने अपनी भारतीय अनुशंगी इकाई को बंद करने की घोषणा कर दी है. सैटेलाइट के ज़रिये वर्ल्डस्पेस ने जिस ख़ूबसूरती से सुरीलापन परोसा था वह बेजोड़ ही नहीं था रोमांचकारी भी था. भारतीय शास्त्रीय संगीत,ग़ज़ल,चित्रपट संगीत के अलावा गुजराती,बांग्ला,मराठी,पंजाबी और तमिल भाषाओं में इसके प्रसारणों ने एक लम्हा तो हमारी देसी प्रसारण संस्थाओं को घबराहट दे ही दी थी. बेहतरीन क्वालिटी का डिजीटल प्रसारण, फ़िज़ूल की उदघोषणाओं से परहेज़,और दुर्लभ रचनाओं का संकलन वर्ल्डस्पेस को अन्य रेडियो प्रसारणों से अलग करते थे. वर्ल्डस्पेस ने अपने आपको आर्थिक रूप से स्वतंत्र रखने के लिये इश्तेहारों के बजाय श्रोताओं के सदस्यता शुल्क पर ज़्यादा ऐतबार किया. उसे हाथों हाथ लिया भी गया लेकिन लगता है वैश्विक मंदी और एक जगह जाकर रूक सी गई उसकी सदस्यता ने उसके वजूद को मुश्किल में डाल ही दिया. वैसे वर्ल्डस्पेस के बंद होने की ख़बर पिछले एक बरस से आ रही थी लेकिन अब यह एक सचाई है कि वर्ल्डस्पेस बंद हो रहा है. इस ख़बर ने संगीत के उन श्रोताओं को निश्चित ही दु:खी कर दिया है जो जुनूनी कहे जा सकते हैं.

इसमें की शक़ नहीं कि संगीतप्रेमियों को सीडी,इंटरनेट और आकाशवाणी और विविध भारती का आसरा तो है ही और सुनने वाला तो कैसे भी अपनी प्यास बुझा ही लेगा लेकिन वर्ल्डस्पेस ने जिस उत्कष्टता से अपनी महफ़िलें सजाईं थीं वह अब शायद ही सुनने को मिले. कुमार गंधर्व,अमीर ख़ाँ,गिरिजा देवी,सिध्देश्वरी देवी,बेगम अख़्तर,प्रभा अत्रे पर किये गये कार्यक्रम तो श्रोताओं को भुलाए नहीं भुलेंगे.वर्ल्डस्पेस की सबसे बड़ी ख़ासियत यह रही कि उसने प्रसारणकर्ताओं की अपनी टीम एकदम नई आवाज़ों को शुमार किया और भाषा,कंटेट और प्रसारण क्वालिटी के ख़ालिस नया अंदाज़ गढ़ा. रागों की जानकारी देने और शास्त्रीय संगीत की ओर नये श्रोताओं को लाने के लिये राग-रागिनियों पर आधारित गीतों का प्रसारण किया. अपने उर्दू चैनल फ़लक पर शायरों के साथ तीन से चार घंटों के इंटरव्यू प्रसारित किये. इनमें मुनव्वर राना का इंटरव्यू तो अविस्मरणीय था. प्रसारणकर्ताओं की फ़ेहरिस्त में भी वर्ल्डस्पेस ने माणिक प्रेमचंद जैसे फ़िल्म संगीत के गूढ़ ज्ञाता को अपने साथ जोड़ा. वर्ल्डस्पेस पर सीएनएन और बीबीसी सुनना एक अदभुत अनुभव होता था. मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले को जिस तरह से बीबीसी के संवाददाताओं ने कवर किया था वह तो अपने आप में नायाब था ही लेकिन स्पष्ट आवाज़ के साथ बीबीसी को अपने घरों में बजते सुनना किसी करिश्मे से कम नहीं था वरना मीडियम वेव और शार्टवेव पर बीबीसी को खरखराहट के साथ सुनने में सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है.

वर्ल्डस्पेस ने एक और ख़ास आदत से भारतीय श्रोताओं को रूबरू करवाया. और वह थी संगीत को पैसा देकर सुनने की आदत डालना.कई लोगों को याद होगा कि हम भारतीय लोग किसी ज़माने में रेडियो की लायसेंस फ़ीस भरने पोस्ट-ऑफ़िस जाया करते थे.धीर धीरे वह फ़ोकट का माल हो गया. वैसे भी हम संगीत और नाटक सुनने/देखने का काम मुफ़्त में करने के लिये कुख्यात हैं. वर्ल्डस्पेस ने उस मूर्खता को सुधारा. कभी भी कोई भी श्रोता बिना सदस्यता शुल्क दिये इस सैटेलाइट रेडियो के प्रसारण नहीं सुन सकता था. बहरहाल वर्ल्डस्पेस विदा हो रहे २००९ के साथ विदा ले रहा है लेकिन उसने सुननेवालों को जो सुकून,तसल्ली और परमानंद दिया है वह कई बरसों तक याद किया जाता रहेगा....

Tuesday, December 29, 2009

फ़िल्म हाथ की सफ़ाई से देवदास की हास्य नाटिका का गीत

हाथ की सफ़ाई फ़िल्म के इस गीत के दो संस्करण है। एक किशोर कुमार जी का गाया है इसमें शायद आशा जी की भी आवाज़ है। इसी गीत का दूसरा संस्करण स्टेज नाटिका के रूप में है।

यह देवदास का नाटक है पर हास्य रूप में जिसमें रणधीर कपूर और हेमामालिनी की आवाज़ों में संवाद है और आगे गीत किशोर कुमार का ही है। पहले कभी-कभार यह संस्करण सुनवाया जाता था। अब बहुत समय से सुना नहीं। जो कुछ याद आ रहा है वो इस तरह है -

चन्द्रमुखी - मैं पारो नहीं चन्द्रमुखी हूँ
देवदास - लेकिन मैं बड़ा दुःखी हूँ
चन्द्रमुखी - देवदास तूने पी ली है ज्यादा
देवदास - क्या कहा आधा, अरे मेरा तो है पूरी पीने का इरादा क्योंके

गीत -

पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए
देवदास बाज़ आओ चन्द्र मुखी के पास आओ

चन्द्रमुखी हो या पारो कोई फ़र्क नहीं है यारों
यारों को तो पीने का बहाना चाहिए

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Monday, December 28, 2009

श्री गोपाल शर्माजी को जनमदिन की बधाई

आज 'आवाझ की दुनिया के दोस्तो' सम्बोधन के सर्वप्रथम प्रयोग करनेवाले रेडियो सिलोन (श्री लंका) की हिन्दी सेवाके भूतपूर्व उद्दघोषक (1956-1967) और बादमें कई सालों तक भारतमें रेडियो विज्ञापन और प्रायोजित कार्यक्रम तथा फिल्म्स डिवीझन के दस्तावेजी फिल्मों के प्रवक्ता तथा नेशनल ज्योग्राफ़िक और डिस्कवरी जैसी चेनल्स के हिन्दी प्रवक्ता जैसी प्रवृतिमें व्यस्त रहे श्री गोपाल शर्माजी का जनमदिन है । तो इस अवसर पर आप आज तक उनको इस मंच से या रेडियो श्रीलंका से हर साल के इसी दिन केवल सुनते ही आये है उनको न केवल सुन सकेंगे पर बोलते हुए देख भी सकेगे और फिल्म संगीत के कार्यक्रमो के उस समय बिलकुल नये नते रूप के संकलन अपने निज़ी और मौलीक तरीके से किये या उनके गुरु और इस कार्यक्रमके एक ख़ास मेहमान श्री विजय किशोर दुबे के शुरू किये कार्यक्रममें किस तरह श्रोतालोगो की हिस्सेदारी बनाई वे सब बाते सुन पायेंगे और मूझे विश्वास है कि आप ऐस मेहसूस करेंगे जैसे पूराने समय का रेडियो सिलोन एफ एम पर सुनन मिल रहा है । इस कार्यक्रम, जो उनकी अत्मकथा 'आवाझ की दुनिया के दोस्तो-रेडियो सिलोन' नाम से ही प्रकाशित हुई है उस के जारी करने के समारंभ, था जानेमाने पूरानी फिल्मों के गीतो पर आधारित स्टेज-शॉझ के आयोजक और मंच संचालक तथा कुछ पोपगीत या अल्बम गीतों के शब्दकार श्री मनोहर आय्यरजी द्वारा संचालित किया गया है ।
तो सुनिये देख़ीये और जन्मदिन की बधाईयाँ दिजीये श्री गोपाल शर्माजी को और उनके लम्बे, बड़े (फिल्म आनंद के आनंद की जूबानमें) तथा स्वस्थ आयु की शुभ: कामना ।
भाग 1

भाग 2

भाग 3

भाग 4


भाग 5

भाग 6


भाग 7

इस कार्यक्रम के मूख़्य अतिथी श्री मनोज कूमार तथा अन्य खास मेहमानो के व्यक्तव्यों को श्री गोपाल शर्माजी की शादी की सालगिराह के दिन जो इस किताब का भी जारि करनेका दिन है, इसी मंच पर दिख़ानेका इरादा है ।
(श्री अन्नपूर्णाजी से अनुरोध है कि कल आप की गाने की पोस्ट का दिन है तो स्वाभाविक है कि इस पोस्ट कुछ ही घंटे मूख़्य पृष्ठ पर रह पायेंगी तो अगर हो सके तो आप कम से कम शाम तक़ अपनी पोस्ट के किये थंभ जाये, जिससे शायद श्री गोपाल शर्माजी को शायद सर्व-प्रथम इस मंच से दिख़ानेकी और इतने सारे विडीयो क्लिपींग्स बना कर यू-ट्यूब पर अपलोड करनेमें जो समय खर्च हुआ है वह बेकार नहीं जाय, जैसे मेरी हार्मोनियम वादक मास्टर कान्तिलाल के जन्मदिनवाली पोस्ट पर आप सहित किसी के प्रतिभाव नहीं आये, हाँ उस ट्यून रेडियो सिलोन से रेकोर्ड करने के कारण थोड़ी डिस्ट्रबंस से भरी हुई जरूर है पर रेर भी है।)

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।
दि. 28-12-2009

Friday, December 25, 2009

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 24-12-09

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का जाना-पहचाना सबसे पुराना कार्यक्रम जयमाला। अंतर केवल इतना है कि पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर गाने की फ़रमाइश करते थे आजकल एस एम एस भेजते है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले धुन बजाई गई ताकि विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्र विज्ञापन प्रसारित कर सकें। फिर जयमाला की ज़ोरदार संकेत (विजय) धुन बजी जो कार्यक्रम की समाप्ति पर भी बजी। संकेत धुन के बाद शुरू हुआ गीतों का सिलसिला।

हर दिन गीतों का चुनाव संतुलित रहा। फ़ौजी भाइयों की फ़रमाइश में से समय और विषय की दृष्टि से मिले-जुले गीत चुने गए। शुक्रवार को उपकार फ़िल्म का देशभक्ति गीत - मेरे देश की धरती सोना उगले

कुछ समय पहले की फ़िल्म हम साथ साथ है का गीत - ये तो सच है के भगवान है

नीलकमल का विदाई गीत - बाबुल की दुआएँ लेती जा

और रोमांटिक गीत इन नई-पुरानी फ़िल्मों से - सरस्वतीचन्द्र, दादा, सीता और गीता और तेरे नाम फ़िल्म का शीर्षक गीत।

रविवार को दुनिया की, समाज की स्थिति बताते मुकेश के गाए तीसरी क़सम फ़िल्म के गीत से शुरूवात की -

दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई काहे को दुनिया बनाई

शास्त्रीय संगीत में ढला रफ़ी साहब का लोकप्रिय गीत सुनवाया -

मधुबन में राधिका नाचे रे

जीवन-मृत्यु, गीत, वीर ज़ारा, प्रेमरोग फ़िल्मों के रोमांटिक गीत भी शामिल थे। सोमवार को फ़ौजी भाइयों के दो गीत सुनवाए गए - बार्डर फ़िल्म से - संदेशे आते है और अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों का शीर्षक गीत। इसके अलावा बंटी और बबली से कजरारे और एक दूजे के लिए फ़िल्म से प्यार का तराना गूँजा। मंगलवार को करण-अर्जुन फ़िल्म का अर्थपूर्ण गीत सुनवाया गया -

सूरज कब दूर गगन से चंदा कब दूर किरण से
यह बँधन तो प्यार का बँधन है

इसके साथ राजा हिन्दुस्तानी, रंग, बाबी, लव फ़िल्मों के रोमांटिक गीत सुनवाए गए। बुधवार को सभी रोमांटिक गीत सुनवाए गए - जाने-अनजाने, लैला मजनू, पत्थर के सनम, फकीरा, एक दूजे के लिए, मोहब्बते जैसी नई-पुरानी फिल्मों से।

हर गीत के लिए दो-तीन फ़ौजी भाइयों के ही संदेश थे। कार्यक्रम में शुरू और अंतराल में बजने वाली धुन इस बार जानी-पहचानी फ़िल्मी धुन नहीं थी, यह समझ में नहीं आया कि नई फ़िल्मी धुन थी या आधुनिक संगीत था।

इस सप्ताह दो विशेष जयमाला प्रसारित हुए। एक हमेशा की तरह शनिवार को और दूसरा गुरूवार को।

24 को रफी साहब और 25 को नौशाद साहब का जन्मदिन है। गायक और संगीतकार की इस अनमोल जोडी को नमन करते हुए संग्रहालय से नौशाद द्वारा रफी की याद में प्रस्तुत जयमाला कार्यक्रम की रिकार्डिंग चुन कर प्रसारित की गई। नौशाद साहब ने रफी साहब की गायकी और निजी जीवन के विभिन्न पहलुओ पर बात की और नायाब गीत सुनावाए। बढ़िया चुनाव।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया गीतकार इन्दिवर ने। बहुत अच्छा प्रस्तुत किया, अपने बारे में कम ही बताया और साथी संगीतकारों कल्याणजी आनन्द जी, श्यामल मित्रा, रोशन को याद किया। कैबरे के लिए पहला गीत लिखने का अनुभव बताया। गीत बहुत अच्छे सुनवाए जो विविध भारती से आजकल कम ही सुने जाते है - एक बार मुस्कुरा दो, अनोखी रात और ख़ासकर अमानुष का यह गीत -

ग़म की दवा तो प्यार है ग़म की दवा शराब नहीं

बताया गया कि यह रिकार्डिंग संग्रहालय से निकाल कर प्रसारित की गई। संग्रहालय से बढिया चुनाव…

7:45 पर शुक्रवार को सुना लोकसंगीत कार्यक्रम। पहले गीत का विवरण पता नहीं चला क्योंकि कुछ समय के लिए केवल खरखराहट सुनाई दी। पर इन बोलों को सुनकर लगा यह शायद उत्तर प्रदेश का लोकगीत है -

बासन्ती रंग बृजवासी बृजमंडल छायो रे

इसके बाद केशवचन्द्र बैनर्जी की आवाज़ में बांग्ला गीत सुना - बन्धु रे ! हालांकि बोल समझ में नहीं आए पर गीत सुनकर आनन्द आया। समापन किया धनीराम महतो के गाए इस मैथिली गीत से जिसे बहुत बार सुनते रहे -

मैय्या बाड़ी दूर जाए रे (बोल लिखने में ग़लती हो सकती है)

शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और कमल (शर्मा) जी। पत्रों की संख्या ई-मेल से अधिक ही रही। संगीत सरिता, यूथ एक्स्प्रेस, सेहतनामा और नाटक के साथ धर्मेन्द्र और उदितनारायण के जन्मदिन पर उनसे की गई बातचीत भी पसन्द की गई। कार्यक्रम संबम्धी या तकनीकी कोई ख़ास शिकायत नहीं की गई। एक महत्वपूर्ण जानकारी दी गई कि बाईस्कोप की बातें कार्यक्रम फिर से शुरू किया जा रहा है।

मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में मज़ा आ गया। शुरूवात हुई मेरे हमदम मेरे दोस्त फ़िल्म की क़व्वाली से -

अल्ला ये अदा कैसी इन हसीनों में

जिसके बाद थोड़ी और पुरानी क़व्वाली सुनवाई गई -

शरमा के ये क्यूँ सब पर्दा नशीं आँचल को सँवारा करते है

लेकिन अंत में उस्तादों के उस्ताद फ़िल्म की रचना समय कम होने से पूरी नहीं सुनवाई गई -

मिलते ही नज़र तुम से हम हो गए दीवाने

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में ख़्यात पार्श्व गायिका उषा तिमोती से राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी की बातचीत सुनवाई गई। उषा जी ने बताया रफी साहब के बारे में उनके साथ गाए फ़िल्म हिमालय की गोद में के इस गीत के बारे में जो उनका पहला गीत है।

ओए सोनिये हिरीऐ हाय

शंकर जयकिशन नाईट के कार्यक्रमों में लता जी के लगभग सभी गीत गाने की बात बताई। घर के सन्गीत के माहौल से आरंभिक शिक्षा घर पर ही ली फिर शास्त्रीय सन्गीत सीखा। गैर फिल्मी गीत भी गाए, एलबम भी निकाले, बहुत शी भाषा में गाया। बढ़िया बातचीत, पर समझ में नही आया यह बातचीत इनसे मिलिएकार्यक्रम में क्यों प्रसारित की गई, अच्छा होता उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम के लिए बातचीत होती।

गुरूवार और रविवार को दो दिन प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। रविवार को विभिन्न रागों की झलक लिए यह फ़िल्मी गीत सुनवाए गए -

राग सिन्धु भैरव - प्यार से देखे जो कोई (फ़िल्म डार्क स्ट्रीट)
राग नट - छलके तेरी आँखों से (आरज़ू)
राग देशगार - इन हवाओं में इन फ़िजाओं में तुझको मेरा प्यार पुकारे (गुमराह)

गुरूवार को इन रागों पर आधारित यह गीत सुनवाए गए -

राग यमन - नाम गुम जाएगा (फ़िल्म किनारा)
राग बागेश्री - दीवाने तुम दीवाने हम (बेजुबान)
राग वृन्दावानी सारंग - गोरी तोरी पैजनिया (महबूबा)

8 बजे का समय है हवामहल का जिसकी शुरूवात हुई गुदगुदाती धुन से जो बरसों से सुनते आ रहे है। शुक्रवार को सुना दिनेश भारती का लिखा हास्य नाटक तमाचा कांड। शीर्षक से ही समझा जा सकता है शुरूवात एक तमाचे से होती है और हो जाता है बड़ा कांड। पुलिस को इसकी जानकारी, तमाचे की जांच फिर राजनीति जो ढल जाते है भ्रष्टाचार उन्मूलन नारों में। हँसी के साथ-साथ बहुत सी ऐसी बातें भी बता गया यह नाटक जिनसे हम अनजान भी नहीं है। मधुप श्रीवास्तव के निर्देशन में यह इलाहाबाद केन्द्र की प्रस्तुति थी।

शनिवार को सुनवाई गई झलकी - बाल बने जंजाल जिसके रचयिता है एस एस रतनपाल और निर्देशक है दीनानाथ। जादू-टोना जैसे अंधविश्वास पर अच्छी रही यह झलकी। रविवार को सुदर्शन पानीपति की लिखी झलकी सुनवाई गई - चतुरराज जिसके निर्देशक है आनन्द किशोर माथुर। विषय पुराना था - पृथ्वी लोक में फैली अराजकता की स्वर्ग लोक में चर्चा लेकिन नए परिवेश के उदाहरणों से झलकी नई लगी। प्राण हरने में हुई गड़बड़ी मे स्वर्गलोक के काम में भी गड़बड़ी होने लगती है। यह जयपुर केन्द्र की प्रस्तुति थी। सोमवार को गंभीर नाटक सुनवाया गया - ठंडी धूप जिसके लेखक है अभिलाष। बहुत अच्छा संदेश है इसमें कि बड़ी बेटी घर-परिवार को बेटे की तरह सँभालने लगती है तो परिवार में सबको इसकी आदत हो जाती है। कोई अपनी ज़िम्मेदारी समझ नहीं पाते है और सभी उस एक बेटी पर निर्भर हो जाते है जिससे उस बेटी के जीवन का उद्येश्य ज़िम्मेदारियाँ निभाना ही रह जाता है निजी जीवन वो जी नहीं पाती। प्रस्तुति गंगाप्रसाद माथुर की और सहायिका कुमारी परवीज़ (नाम लिखने में शायद ग़लती हो)

मंगलवार को विनोद कुमार सेनगुप्ता का लिखा नाटक सुना - मुखौटा पड़ौसियों के चेहरे का। एक परिवार मुहल्ले में नया आता है। उनके घर के सामान से पड़ौसी उनकी अमीरी का अंदाज़ा लगाते है पर बाद में भ्रष्टाचार का पता चलता है। इस तरह का नाटक तीन दशक पहले सुनना अच्छा लगता था पर आज के समय में जँचता नही है। बुधवार को अनूप कश्यप की लिखी झलकी सुनी नौकर और बीवी जिसके निर्देशक है गोपाल सक्सेना। अच्छी थी झलकी, घरेलु नौकर के लिए इंटरव्यू लिया जाता है, तरह-तरह के लोग आते है और अंत में जो उससे अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव लेकर आता है उसे भी नौकर ही समझा जाता है। गुरूवार को चिरंजीत की लिखी नाटिका सुनी - उलझ गए विवाह की धूम में। हमेशा की तरह लेखक ने हंसते-हंसाते सच्ची तस्वीर देखा दी। कम विकसित क्षेत्रो में अक्सर दूर स्थानों के परिवार में विवाह तय हो जाता है जिसे परिवार के एकाध सदस्य ही देखकर तय करते है। ऐसे ही एक विवाह के घर बरात आती है तब सबको लगता है वर ठीक नहीं है बाद में पता चलता है राह भटक कर यह बरात आई है। पहचान नहीं पाने से उलझन होती है, स्थिति भी बिगड़ने लगती है। इसके निर्देशक है मुख्तार अहमद।

सप्ताह में कभी-कभार जयमाला मे क्षेत्रीय केन्द्र से और केन्द्रीय सेवा से विज्ञापन प्रसारित हुए। समझ में नहीं आता कि विशेष जयमाला और हवामहल जैसे कार्यक्रम प्रायोजित क्यों नहीं होते।

प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें यह बताया गया कि फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में अपनी पसन्द का गाना सुनने के लिए ई-मेल और एस एम एस कैसे करें। हैलो सहेली कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बुधवार को फोन-इन-कार्यक्रम की रिकार्डिंग की सूचना दी। इसके अलावा साल के अंतिम सप्ताह में प्रसारित होने वाले विशेष कार्यक्रम चित्रलोक टाप 10 की सूचना भी दी गई।

इस प्रसारण को हम तक पहुँचाने वालों के नाम हर दिन नहीं बताए गए। कभी-कभार मिली जानकारी के अनुसार यह प्रसारण सविता (सिंह) जी, कमल (शर्मा) जी, संगीता (श्रीवास्तव) जी ने जयंत (महाजन) जी, शशांक (काटगरे) जी, के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुँचाया और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर) करने के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी - आशा नायकम।

हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर रात के प्रसारण के लिए हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

Tuesday, December 22, 2009

फ़िल्म उमर क़ैद का गीत जिसके बोल याद नहीं

उमर क़ैद नाम की एक पुरानी फ़िल्म फ़िल्म है जिसके मुकेश के गाए गीत अक्सर हम भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में सुनते रहते है।

उमर क़ैद नाम की एक फ़िल्म सत्तर के दशक में भी आई थी जिसके नायक है विनोद मेहरा जो शायद पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में है। शायद फ़रीदा जलाल की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस फ़िल्म का भी एक रोमांटिक युगल गीत मुकेश ने गाया है जिसमें साथी आवाज़ लता जी या आशा जी की है जो अक्सर विविध भारती से सुनवाया जाता है -

याद रहेगा प्यार का ये रंगीन ज़माना याद रहेगा

इसी फ़िल्म का एक समूह गीत है जो लोकगीत जैसा है। बहुत सारी गायिकाओं की आवाज़े है। यह शायद शादी-ब्याह का गीत है। यह गीत लम्बा है। पहले भी कभी-कभार ही सुनवाया जाता था। अब तो लम्बे समय से इसे सुना ही नहीं। इसके मुख्य बोल कुछ अलग है जो शायद हिन्दी नहीं किसी बोली के है, वैसे मुझे इसका एक भी बोल याद नहीं आ रहा।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Monday, December 21, 2009

श्री अमीन सायानी साहबको जन्मदिन की मुबारकबाद

आज रेडियो प्रसारण और विज्ञापन की दुनिया के बेताज बादशाह और लिविंग लिजन्ड श्री अमीन सायानी साहबका जन्मदिन है । तो रेडियोनामा की औरसे उनको जन्मदिन की तथा स्वस्थ जीवन के लिये तथा इसी क्षेत्रमें उनकी सक्रीयता कायम रहे और हमें वे नयी नयी पूरानी बातों से रेडियो या सीडी के माध्यम से अवगत कराते रहे वैसी शुभ: कामना ।
मेरे साथ की गयी मुलाकात के समय की बातचीत आप

http://radionamaa.blogspot.com/2008/03/blog-post_2082.html

उपर की लिन्क पर देख़ सकेंगे ।


पियुष महेता ।
सुरत-395001.

Sunday, December 20, 2009

युनूसजी को जन्मदिनकी बधाई दो रे ।

आज हमारे रेडियोनामा के एक सम्पादक श्री युनूसजी की जन्मतारीख़ है । तो मेरी और रेडियोनामा के पूरे वाचक एवं पाठ्क दल की और से उनको जन्मदिन की शुभ: कामनाएँ । आज इस मंच पर जो लोगो से दोस्ती हुई है उसकी मेरे लिये पहली कड़ी श्री युनूसजी ही है । भगवान उनको लम्बी भी और बड़ी (जो फिल्म आनंद में आनंद बोलते है वैसी) भी आयु दे ।
इस मंच पर या रेडियोवाणी पर युनूसजीने मेरे लिये एक बार मेरे प्रति आदर के साथ ही लिख़ा था कि मेरी टिपणीयाँ भी पोस्ट से ज्यादा लम्बी कभी कभी होती है । तो यही बात सच साबित करके आज की सबसे छोटी पोस्ट को समाप्त करता हूँ ।

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।

हार्मोनियम वादक श्री कानतिलाल सोनछत्राजी-जन्म दिनकी बधाई

आज यानि दि. 18 दिसम्बर के दिन राजकोट निवासी प्रखर हार्मोनियम वादक श्री कानतिलाल सोनछत्राजी अपनी आयु के 80 साल पूरे करके 81वें सालमें प्रवेश कर चूके है । तो इस अवसर पर उनकी हारमोनियम पर बजाई फिल्म पतिता के गीत किसीने अपना बनाके मूझको की धून जो कई साल पहले रेडियो श्रीलंका से वहाकी अस्थायी उद्दघोषिका श्री नलिनी माअलिका परेरा की उद्दग्होषणा के साथ सुन पायेंगे नीचे : (आज भी श्रीमती ज्योति परमारने मेरे बधाई संदेश के साथ उनको बधाई देते हुए अन्य गीत की धून उनकी ही बजाई हुई प्रस्तूत की थी जो अपलोड नहीं हो पा रही है । अगर कामयाबी मिली तो इस पोस्टको सुधारा जायेंगा ।

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पियुष महेता । सुरत-395001.

Friday, December 18, 2009

दोपहर बाद के जानकारीपूर्ण कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 17-12-09

दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की निम्मी (मिश्रा) जी ने। रतनपुर से सुमन उपाध्याय का पहला फोनकाल आया, यह सखि अक्सर पत्र भेजती रहती है, पर कोई विशेष बात नहीं की। विभिन्न क्षेत्रों जैसे जबलपुर, उदयपुर, झाड़खण्ड, छतीस गढ़ और पटना के गाँव से फोन आए और एक लोकल काल भी था। कार्यक्रमों के बारे में बात हुई, विविध भारती के कार्यक्रम पसन्द करने की भी बात की। छात्राओं ने अपनी पढाई के बारे में बताया, कुछ कम शिक्षित घरेलु महिलाओं ने भी बात की। अपने सिलाई कढाई के शौक के बारे में बताया। एक सखि ने बताया कि पसन्दीदा विषय हिन्दी साहित्य है और उदयपुर की सखि ने नए देखने योग्य पार्क के बनने की बात बताई। एक सखि ने खीर बनाना बताया। खीर देश में सभी जगह बनाई जती है, अच्छा होता किसी क्षेत्रीय व्यंजन के बारे में बताते।

सखियों ने नए-पुराने विभिन्न मूड के गानों की फ़रमाइश की।

सुन री सखि मोहे सजना बुलाए
मोहे जाना है पी की नगरिया

साजन साजन मेरे साजन तेरी दुल्हन सजाऊँगी

सोमवार को पधारे रेणु (बंसल) जी और अंजू जी। यह दिन रसोई का होता है। श्रोता सखि द्वारा भेजा गया व्यंजन बताया गया - मक्का के ढोकले जो अच्छे लगे, हालांकि बनाना थोड़ा कठिन है। इसे अलग-अलग विधियों से बनाना भी बताया गया। एक विधि में गेहूँ के आटे का प्रयोग मक्का की जगह बताया यानि दाल ढोकली जैसा। हम इसे बहुत आसान तरीके से बनाते है, मोटी रोटी बेल कर उसके चौकोर टुकड़े काट कर उबलती दाल में डाल देते है। चलिए… अच्छा लगा एक ही व्यंजन को कई तरीके से जानना। इस दिन गाड़ियों की भी चर्चा की गई कि ग़ायब होते अन्य वाहनों के साथ कम होते दुपहिया वाहन और बढती मोटर गाड़ियाँ।

सखियों की पसन्द पर इस दिन पुराने गीत सुनवाए गए जैसे पतंगा फ़िल्म का यह लोकप्रिय गीत -

मेरे पिया गए रंगून किया है वहाँ से टेलीफून

एक मज़ेदार गाड़ी का गीत भी सुना -

कभी न बिगड़े किसी की मोटर

मंगलवार को पधारी सखियां निम्मी (मिश्रा) जी और अंजू जी। इस दिन हमेशा की तरह सखियो के अनुरोध पर गाने नए ही सुनवाए गए जैसे दिल्ली 6, रैट, मुस्कान फ़िल्मों के गीत और यह गीत भी -

आँखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएँ है

इस दिन सखियों के पत्र कुछ अधिक ही पढे गए। अलग-अलग विषयों के पत्र, किसी पत्र के आधार पर सेना में महिलाओं को फ्रंट पर भेजने की भी जानकारी दी, कुछ पत्रों में प्रकृति की बातें थी, कुछ ने अच्छे विचार बताए, कुछ ने बचपन की बातें की। कुल मिलाकर कार्यक्रम सुन कर लगा - कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा

बुधवार को सखियाँ पधारीं - रेणु (बंसल) जी और चंचल जी। इस दिन स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। संतरे, पपीता, आँवला के उपयोग की सलाह… कौन सी नई बात है, हर तरह का उपयोग सभी जानते है। श्रोता सखियों ने पत्रों से सर्दियों के मौसम को ध्यान में रख कर कुछ नुस्ख़े बताए, मेकअप के सुझाव बताए, सभी पुराने।

इस दिन सखियों के अनुरोध पर कुछ पुराने समय के गाने सुनवाए गए - हीर रांझा, तीन देवियाँ, रोटी कपड़ा और मकान, हरे रामा हरे कृष्णा, प्यासा सावन और प्रेमरोग फ़िल्म का यह गीत -

अब हम तो भए परदेसी के तेरा यहाँ कोई नहीं

सभी गाने अच्छे सुनवाए गए, प्यार के अलग-अलग रूप भी नज़र आए, अच्छी फ़रमाइश भेजी सखियों ने।

गुरूवार को पधारीं राजुल जी और अंजू जी। इस दिन सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस बार क्रान्तिकारी कमला देवी चट्टोपाध्याय के बारे में जानकारी दी गई। सखियों की पसन्द पर मिले-जुले गीत सुनवाए गए, नई पुरानी फ़िल्में और विषय और भाव भी अलग-अलग जैसे तीन देवियाँ, बातों बातों में और नितिन मुकेश का गाया यह गीत -

थोड़ा दुःख है थोड़ा सुख है, दुःख में सुख छिपा है

हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। कुछ पत्रों में कार्यक्रमों की तारीफ़ थी, कुछ पत्रों में सखियों ने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार भी बताए। गुरूवार को कुछ नयापन रहा। इस कार्यक्रम में सखियों से भी कुछ बौद्धिक कसरत करने के लिए कहा गया है, इसी सिलसिले में सखियों से कहा गया कि ऐतिहासिक व्यक्तित्व झंकारी बाई के बारे में जानकारी भेजे। यह भी पूछा गया कि सखि-सहेली कार्यक्रम की किसी बात से अगर आपका मन व्यथित हुआ है तो बताए।

सखि ने एक प्रश्न भेजा कि श्रोता सखियाँ इसका उत्तर दे - सत्तर के दशक की कौन सी ऐसी फ़िल्म है जिसमें एक भी गीत नहीं था। इस प्रश्न को विविध भारती ने विस्तार दिया और एक प्रश्न जोड़ दिया कि ऐसी पहली फ़िल्म का नाम भी बताए जिसमें एक भी गीत नहीं था। सत्तर के दशक की यह फ़िल्म मेरी पसन्दीदा फ़िल्म है। उत्तर मैं अलग से मेल से भेज रही हूँ।

इस कार्यक्रम की दो परिचय धुनें सुनवाई गई - एक तो रोज़ सुनी और एक विशेष धुन हैलो सहेली की शुक्रवार को सुनी।

इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कांचन (प्रकाश संगीत) जी, कमलेश (पाठक) जी ने प्रदीप शिन्दे जी, मंगेश (सांगले) जी और सुभाष (कामले) जी के तकनीकी सहयोग और रमेश (गोखले) जी की सहायता से।

सदाबहार नग़में कार्यक्रम में गीत तो सदाबहार थे पर विविधता दिखाई नहीं दी। वही प्यार-मोहब्बत के गाने बजते रहे। रविवार को सभी रोमांटिक गीत सुनवाए गए, जोशीला, आकाशदीप, सूरज, परवरिश, आमने-सामने, गीत और गैम्बलर फ़िल्म का यह गीत -

चूड़ी नहीं मेरा दिल है

3:30 बजे नाट्य तरंग कार्यक्रम रविवार को अच्छा रहा, इस्मत चुगतई का लिखा नाटक सुनवाया गया - बाँदी। बहुत मार्मिक कहानी थी। दस सेर अनाज के बदले लड़की खरीदी जाती है जिसे बाँदी यानि नौकरानी की तरह रखा जाता है, पर इस घर के संस्कार निराले, बाँदी से संबंध बनाते है और उसे उसी हाल में छोड़ देते है। यहाँ तक कि महिलाओं का व्यवहार भी वैसा ही है। लेकिन नायक यह संबंध स्वीकारता है और घर छोड़ने से भी नहीं झिझकता। इस नाटक क्स कलाकारों का नम बताया गया पर निर्देशक का नाम नहीं बताया गया। मुंबई केन्द्र की प्रस्तुति थी। रिकार्डिंग पुरानी ही लगी पर कोई जानकारी नहीं दी गई।

शाम 4 से 5 बजे तक सुनवाया जाता है पिटारा कार्यक्रम जिसकी अपनी परिचय धुन है।

शुक्रवार को सुना कार्यक्रम पिटारे में पिटारा जिसमें कुछ चुने हुए कार्यक्रमों का दुबारा प्रसारण होता है। इस बार प्रसारित हुआ कार्यक्रम चूल्हा चौका। रेणु (बंसल) जी का यह कार्यक्रम मुझे बहुत पसंद है। रेणु जी ने पाक शास्त्री संजीव कपूर से कुछ व्यंजनों पर बात की। ख़ास बात यह रही कि इन व्यंजनों को घर के अलावा ढाबे पर बनाने का भी तरीका बताया गया। यह व्यंजन है - पारंपरिक सरसों का साग, मांसाहारी व्यंजन मटन और जानी पहचानी घरेलु मिठाई खीर।

रविवार को पर्यावरण को बचा कर चलाते हुए यूथ एक्सप्रेस लेकर आए युनूस खान जी। पूरी गाड़ी पर्यावरणमय रही, विश्व स्तर पर चल रहे पर्यावरण संबंधी कार्यक्रम से ओत-प्रोत। जलवायु परिवर्तन पर विमर्श के लिए आए सभी मुद्दों और देशों की जानकारी दी। ऊर्जा के विकल्प पर रामचरण मिश्र की वार्ता सुनवाई गई। ऊर्जा की बचत के घरेलु उपाय भी बताए युनूस जी ने। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यान (नैशनल पार्क) की सैर भी करवाई। गाने भी इसी विषय पर चुन कर सुनवाए -

ए नीले गगन के तले धरती का प्यार पले

बाग़ों में फूल खिलते है

इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में पेट के रोगों पर डा समीर पारिख से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई। बताया कि खान-पीने के अलावा भी पेट रोग के कारण होते है। पीलिया (जानडिक्स) पर विस्तार से जानकारी दी। एक बात अख़र गई। डाक्टर साहब ने बताया कि वो गाने सुनते है पर निम्मी जी हर बार कहती रही, डाक्टर साहब यह गीत सुन लीजिए, क्यों भई, ऐसा क्यों ? डाक्टर साहब से पूछ कर उनकी पसन्द का गीत क्यों नहीं सुनवाया।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा से यूनूस (ख़ान) जी की बातचीत की कड़ी प्रसारित हुई। पिछले सप्ताह की कड़ी से बातचीत को आगे बढाया गया। यह जानकारी मेरे लिए तो नई है कि अभिनय के साथ-साथ गायक भी है पर ख़ुद को बाथरूम सिंगर ही बताया। अपने निजी जीवन के बारे में बताया। बहुत खुल कर बातचीत हुई। पूरी बातचीत इस कड़ी में सिमटी नहीं थी इसीलिए अभिनय यात्रा की बहुत सी बातें पता नहीं चली।

एक बेहतरीन कलाकार को पर्दे से हट कर जानने का मौका मिला इस कार्यक्रम से। प्रस्तुति कल्पना (शेट्टी) जी की रही। तकनीकी सहयोगी रहे दिलीप (कुलकर्णी) जी और सुधाकर (मटकर) जी।

हैलो फ़रमाइश कार्यक्रम में शनिवार को श्रोताओं से फोन पर बात की रेणु (बंसल) जी ने। कुछ श्रोताओ ने बहुत ही कम बात की। एक ड्रेस डिजाइनर से बातचीत अच्छी लगी। अपने काम की विस्तार से जानकारी दी इस महिला ने। नए पुराने अलग-अलग मूड के गाने श्रोताओं के अनुरोध पर सुनवाए गए। पुरानी फ़िल्म संघर्ष का गीत -

मेरे पैरो में घुँघरू बंधा ले तो फिर मेरी चाल देख ले

कुछ पुरानी फ़िल्म कर्तव्य का गीत -

चन्दा मामा से प्यारा मेरा मामा

मंगलवार को फोन पर श्रोताओं से बातचीत की राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। इस बार भी कुछ श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की, एक महिला ने तो फोन-इन-कार्यक्रम का उपयोग भी फ़रमाइशी पत्र की तरह किया, इतना ही कहा कि वो कुछ नहीं करती है, मनोरंजन के लिए रेडियो सुनती है, पुराने गाने पसन्द है और बस, फ़रमाइश की चोरी-चोरी फ़िल्म के गीत की। समझ में नहीं आता ऐसे फोनकाल क्यों शामिल किए जाते है, फोन पर बात का कुछ तो फ़ायदा हो, कुछ तो बातचीत हो। पर इस दिन गाने कुछ अलग ही सुनवाए गए श्रोताओं की पसन्द पर जो अच्छे रहे -

नया गीत - जय माँ काली

गीत गाया पत्थरों ने फ़िल्म का शीर्षक गीत।

और गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की युनूस (ख़ान) जी ने। बौद्धिक स्तर के फोनकाल भी थे। एक महिला ने छोटी सी रचना सुनाई और गीत भी उच्च स्तर का पसन्द किया। हरीशचन्द्र तारामती फ़िल्म का -

सूरज रे जलते रहना

एक आटोमोबाइल का काम करने वाले श्रोता ने भी ऐसा ही अंकुश फ़िल्म का गीत पसन्द किया। एक श्रोता ने सउदी अरब से फोन किया। पता चला वहाँ मौसम ठंडा है और उनके अनुरोध पर नीलकमल फ़िल्म का रफ़ी साहब का गाया लोकप्रिय गीत सुनवाया गया -

बाबुल की दुआएँ लेती जा

पर इन श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की। अधिक बात होती तो अच्छा लगता, दूसरों के कुछ अच्छे विचार पता चलते।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद प्रसारित हुआ नए फिल्मी गीतों का कार्यक्रम फिल्मी हंगामा। शुक्रवार को दीवाने हुए पागल, सिलसिले फिल्मों के गीत शामिल थे। शनिवार को जाने तू या जाने न, युवराज, अजनबी फिल्मों के गीत सुने। रविवार को नई फ़िल्म डान का जाना-पहचाना गीत सुना-

खईके पान बनारस वाला

जागर्स, आँखों में सपने लिए फ़िल्मों के गीत भी शामिल रहे। सोमवार को 42 किलोमीटरस के अलावा निगेबान फ़िल्म का यह देसी गीत सुनना अच्छा लगा -

मैं की करा दिल है तुमपे आशना

मंगलवार को टशन जैसी जानी-पहचानी फ़िल्मों के गाने शामिल रहे। बुधवार की फ़िल्में उतनी जानी-पहचानी नहीं थी, हाईजैक, इक़बाल फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। गुरूवार को डार्लिंग जैसी कम जानी-पहचानी फ़िल्मों के गीतों के साथ जाने-पहचाने गीत भी शामिल थे -

प्यार तुमको ही किया, दिल भी तुमको ही दिया

इस कार्यक्रम में के के की आवाज़ बहुत गूँजती है। इस दौर में उन्हीं के गाने लगता है ज्यादा है। इस कार्यक्रम को प्रायोजित किया जा सकता है पर न यह कार्यक्रम प्रायोजित था और न ही विज्ञापन प्रसारित हुए।

प्रसारण के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों में साल के अंतिम सप्ताह में प्रसारित होने वाले विशेष कार्यक्रम चित्रलोक टाप 10 और 31 दिसम्बर को श्रोताओं के फोनकाल पर आधारित हैलो मन चाहे गीत की सूचना दी गई। मन चाहे गीत कार्यक्रम की रिकार्डिंग के लिए श्रोताओं से 23 दिसंबर को फोन करने के लिए कहा गया।

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

Tuesday, December 15, 2009

फ़िल्म उस पार का हिंडोला गीत

सत्तर के दशक में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी - उस पार जिसके मुख्य कलाकार है विनोद मेहरा और मौसमी चटर्जी

आज इसी फ़िल्म का एक गीत याद आ रहा है जिसे बहुत दिनों से रेडियो से नहीं सुना है। लताजी के गाए इस गीत के कुछ बोल मुझे याद है -

प्यारा हिंडोला मेरा
प्यारा हिंडोला मेरा उड़न खटोला मेरा

घूमे घूमे घूमे
घूमे तो आकाश सारी धरती मगन होके घूमे घूमे घूमे
प्यारा हिंडोला मेरा

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, December 10, 2009

प्यार-मोहब्बत के गानों की दुपहरियों की साप्ताहिकी 10-12-09

सवेरे के त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है। कभी-कभार एकाध मिनट देर से जुड़ते है। रविवार को क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम 12:30 बजे के बाद भी जारी रहा।

दोपहर 12 बजे का समय होता है इंसटेन्ट फ़रमाइशी गीतों के कार्यक्रम एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने का। हमेशा की तरह शुरूवात में 10-11 फ़िल्मों के नाम बता दिए गए फिर बताया गया एस एम एस करने का तरीका। पहला गीत उदघोषक की खुद की पसन्द का सुनवाया गया ताकि तब तक संदेश आ सके। फिर शुरू हुआ संदेशों का सिलसिला और इन संदेशों को 12:50 तक भेजने के लिए कहा गया ताकि शामिल किया जा सकें।

शुक्रवार को साठ सत्तर अस्सी के दशक की यह फ़िल्में रही - आँधी, हीरो, हरे काँच की चूड़ियाँ, आमने-सामने, समाधि, कन्यादान, अँखियों के झरोके से, जवानी दीवानी, आप तो ऐसे न थे, इन फ़िल्मों से रोमांटिक गानों के लिए ही सदेश आए और बहुत दिन बाद श्रोताओं ने हरे काँच की चूड़ियाँ फ़िल्म के इस गीत की फ़रमाइश की -

पंछी रे ओ पंछी उड़ जा रे ओ पंछी
मत छेड़ तू ये तराने
हो जाए न दो दिल दीवाने

इन फ़िल्मों के गीत सुनवाने आईं रेणु (बंसल) जी। शनिवार को नई फ़िल्में रही - जब वी मेट, मैं ऐसा ही हूँ, देवदास, ग़दर एक प्रेम कथा, डोर, गुरू, । इस दिन अच्छा लगा, कुछ अलग गीतों के लिए संदेश भेजे श्रोताओं ने जैसे रंग दे बसन्ती फ़िल्म से दलेर मेहन्दी और चित्रा का गाया शीर्षक गीत जिसमें पंजाबी लोक संगीत झलका। भूलभुलैय्या का शास्त्रीय रंग में रंगा गीत -

मेरे ढोलना सुन मेरे प्यार की धुन

इन फ़िल्मों के गीत सुनवाने आईं निम्मी (मिश्रा) जी। सोमवार को 1942 ए लव स्टोरी, आज का गुन्डाराज, अमर अकबर एन्थोनी, साजन, त्रिशूल, लव स्टोरी फ़िल्में लेकर आए अजेन्द्र (जोशी) जी। मंगलवार को अभिनेता धर्मेन्द्र को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देते हुए उनकी लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आए अजेन्द्र (जोशी) जी - शोले, इज्ज़त, आए दिन बहार के, अपने, धर्मवीर, प्यार ही प्यार, काजल।
बुधवार को दोस्त फ़िल्म के प्रेरणादायी गीत से शुरूवात हुई -

आ बता दे के तुझे कैसे जिया जाता है

इसके अलावा इजाज़त, रोटी, कपड़ा और मकान, सिलसिला, मेरे अपने जैसी कुछ पुरानी फ़िल्मों के साथ आईं रेणु (बंसल) जी। इस दिन 12:15 से क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम प्रसारित हुआ फिर 12:30 बजे से हम केन्द्रीय सेवा से जुड़े। आज अशोक कुमार की पुण्य तिथि और रति अग्निहोत्री के जन्मदिन पर उन दोनों की महत्वपूर्ण फ़िल्मों को शामिल किया गया - सफ़र, बहू बेगम, हावड़ा ब्रिज, वक़्त, मिली, विक्टोरिया नम्बर 203, एक दूजे ले लिए, ग़ुलामी, शौक़ीन, ख़ामोशी, यह फ़िल्में लेकर आए अजेन्द्र (जोशी) जी। इस दिन की शुरूवात भी बढिया गीत, वक़्त के शीर्षक गीत से हुई -

वक़्त के दिन और रात, वक़्त की हर शय ग़ुलाम

आधा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर से बची हुई फ़िल्मों के नाम बताए गए और फिर से बताया गया एस एम एस करने का तरीका। एक घण्टे के इस कार्यक्रम के अंत में अगले दिन की 10-11 फ़िल्मों के नाम बताए गए।

इस सप्ताह भी पुराने पचास के दशक से लेकर आज के दौर की फ़िल्में शामिल रही, यानि हर उमर के श्रोता के लिए रहा यह कार्यक्रम।

इस सप्ताह संदेशों की संख्या अधिक रही बिल्कुल उसी तरह जैसे फ़रमाइशी पत्रों के नामों की सूची पढी जाती है। सप्ताह भर इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने।

1:00 बजे शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम अनुरंजनि संतुलित रहा। एक दिन गायन और दो दिन वादन तथा शेष हर दिन गायन को अधिक समय देते हुए दोनों सुनवाए गए, इस तरह दोनों का बराबर आनन्द मिला। लोकप्रिय राग नन्द, यमन के अलावा राजकल्याण जैसे कम सुने जाने वाले राग भी सुनवाए गए और विभिन्न वाद्य सुनवाए गए।

शुक्रवार को शास्त्रीय गायन में विदुषी अंजली बाई लोलेलकर का गाया राग जयजयवन्ती, केदार, शुद्ध कल्याण और छाया नट सुनवाया गया। उस्ताद अल्लारखा खाँ का तबला वादन द्रुत गति एक ताल में सुनवाया गया। शनिवार को पंडित राजन मिश्रा और पंडित साजन मिश्रा का गायन सुनवाया गया, राग राजकल्याण में ख़्याल और तराना। मंजुला जगन्नाथ राव का सरस्वती वीणा वादन राग बैरागी भैरव में सुनवाया गया। रविवार को बब्बन राव हल्लण का गायन सुनवाया गया, अंत में वायलन वादन में बहुत छोटी धुन सुनवाई गई। सोमवार को पंडित जितेन्द्र अभिषेकी का गायन और उस्ताद साबरी खाँ का सारंगी वादन सुनवाया गया। मंगलवार को हब्बू खाँ और बाबू खाँ का बजाया वायलन पर राग मधुवन्ती और यमन सुनवाया गया।

बुधवार को गायन सुनवाया गया - विदुषी प्रभा अत्रे से मिश्र ख़माज ठुमरी - कौन गली गयो श्याम
पंडित कुमार गन्धर्व से राग नन्द - अब तो आ जा रे राजन
विदुषी परवीन सुल्ताना से राग नन्द कौंस - पय्या पड़ू तोरे रसिया मोहे छेड़ो न
पंडित जसराज से राग नागर ध्वनि कानड़ा - हमको बिसार कहाँ चले

आज सुनवाया गया रईस खान का बजाया सितार वादन - तीन ताल में राग तिलक कामोद और दरबारी कानड़ा तथा छोटी सी दादरा धुन। तबले पर संगत की वसीर खान ने।

1:30 बजे का समय रहा मन चाहे गीत कार्यक्रम का। पत्रों पर आधारित फ़रमाइशी गीतों में शुक्रवार को पुरानी नई फ़िल्मों के मिले-जुले गीत सुनवाए गए - अपना देश, कलाकार, कुछ कुछ होता है, साँवरिया, विवाह, सिर्फ़ तुम। सभी रोमांटिक गीत सुनवाए गए जैसे जुदाई फ़िल्म से यह गीत -

मौसम सुहाने आ गए प्यार के ज़माने आ गए

केवल एक गीत बेटा फ़िल्म से शादी-ब्याह के माहौल का गीत था।

शनिवार को सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्मों के अलावा नई फ़िल्मों - महबूब की मेहन्दी, बैराग, फ़ासले, क्या दिल ने कहा, तलाश, जिस्म, बादशाह के गीत सुनवाए गए। इस दिन एक ख़ास बात हुई, प्यार-मोहब्बत से हट के भी गीत सुनवाए गए जैसे जवानी-दीवानी फ़िल्म की अंताक्षरी -

अगर साज़ छेड़ा तराने बनेगें

रविवार को फिल्मकार शेखर कपूर का जन्मदिन था। शुभकामनाओं के साथ उनके बारे में बताया गया। पद्मश्री और विश्व स्तर के सम्मान की जानकारी देते हुए उनकी फिल्मों के श्रोताओं की फरमाइश पर गीत सुनवाए गए। टूटे खिलौने, मिस्टर इंडिया के साथ मासूम फ़िल्म का यह गीत शामिल था -

मुझसे नाराज नही जिन्दगी हैरान हूँ मैं
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं

इसके अलावा दिल तो पागल है, धनवान जैसी नई पुरानी फ़िल्मों के गीत शामिल रहे। सोमवार की फ़िल्में रही - शर्मिली, सोहनी महिवाल, वीर ज़ारा, सिंग इज़ किंग, हीरो, दिल माँगे मोर, किस्मत कनेक्शन जैसी नई फ़िल्मों के साथ एकाध पुरानी फ़िल्म का गीत शामिल था। मंगलवार को सुना साजन, सच्चा झूठा, लाखों में एक फ़िल्मों के रोमांटिक गीत और इन्कार फ़िल्म का उदास गीत -

दिल की कलि खिलती रहे बगिया तुम्हारी महकती रहे

इस दिन 2:00 बजे से धर्मेन्द्र के जन्मदिन पर विशेष कार्यक्रम प्रसारित हुआ। कमल (शर्मा) जी की धर्मेन्द्र से हुई टेलीफ़ोन पर बातचीत सुनवाई गई। धर्मेन्द्र ने भी पुराने दिनों में विविध भारती को याद किया। अपने संघर्ष की बात बताई। अपनी ख़ास फ़िल्में सत्यकाम, हक़ीकत की बातें बताई और फ़ौजी भाइयों को संदेश दिया। अपनी संस्कृति से जुड़ने को सुखद बताया। दिलीप कुमार को अपनी प्रेरणा बताया। उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में नायिकाओं द्वारा उनको याद किए जाने की बात पर धर्मेन्द्र ने उन्हें याद करते हुए पुराने शूटिंग के दिन याद किए। अपने लिखने के शौक के बारे में बताया। उनकी ही पसन्द पर शोला और शबनम, हक़ीक़त, ब्लैक मेल, मेरे हमदम मेरे दोस्त, शालीमार फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। बहुत स्वाभाविक बातचीत। धर्मेन्द्र की आवाज़ बहुत दिन बाद सीधे सुनना बहुत अच्छा लगा।

बुधवार और गुरूवार को श्रोताओं के ई-मेल से प्राप्त संदेशों पर फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए। इस सप्ताह भी ज्यादातर लोकप्रिय गीत सुनवाए गए। विवाह, जब वी मेट, आँधी, आशा, हम आपके है कौन, अमर अकबर एंथोनी, बहुत पुरानी फ़िल्म गंगा जमुना और आज़ाद के इस गीत की फ़रमाइश मेल से आई तो अच्छा लगा -

कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफ़र है

आज जब प्यार किसी से होता है, आँखें, जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली, लम्हें, अमृत, मेरे हुज़ूर, जोश, रब ने बना दी जोड़ी, जब वी मेट फ़िल्मों के गीतों के लिए मेल आए जिससे नए पुराने मिलेजुले गीतों का आनन्द मिला।

इस सप्ताह भी अधिकतर गीत एक-एक मेल प्राप्त होने पर ही सुनवा दिए गए, अभी भी मेल संख्या बढी नहीं है जबकि पत्रों की स्थिति पहले जैसी ही रही और एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में संदेशों की संख्या बढी।

इस कार्यक्रम में अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें यह बताया गया कि फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में अपनी पसन्द का गाना सुनने के लिए ई-मेल और एस एम एस कैसे करें। सोमवार को कार्यक्रम के दौरान महत्वपूर्ण सूचना दी गई प्रसिद्ध अभिनेत्री बीना राय के निधन की और उन पर प्रस्तुत किए जाने वाले विशेष सदाबहार नग़में कार्यक्रम की।

इस सप्ताह यह देख कर अच्छा लगा कि विविध भारती के श्रोता कुछ सुधर गए, लगता है उन्हें समझ में आने लगा है कि औए भी ग़म है ज़माने में मोहब्बत के सिवा। प्यार-मोहब्बत के अलावा दूसरी तरह के गानों के लिए भी फ़रमाइशें आईं।

इस सप्ताह इस समय के प्रसारण में एक भी कार्यक्रम प्रायोजित नहीं था, पहले की तरह मन चाहे गीत भी नहीं। हालांकि एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम को प्रायोजित किया जा सकता है।

दोपहर के इस प्रसारण को हम तक पहुँचाने में तकनीकी सहयोग रहा गणेश शिन्दे जी, विनायक तलवलकर जी, सुनील भुजबल जी, तेजेश्री शेट्टी जी, पी के ए नायर जी का और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर) करने के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी रहे कमला कुन्दर, आशा नायकन

दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

Tuesday, December 8, 2009

गीत का एक भी बोल याद नहीं

आज एक ऐसा गीत याद आ रहा है जिसका एक भी बोल याद नहीं।

फ़िल्म का नाम है - प्यासी नदी जो 1974 के आसपास रिलीज़ हुई थी। इस फ़िल्म के नायक है - विक्रम (जूली फ़ेम) जिनकी शायद यह पहली फ़िल्म है। शायद उनकी ड्राइवर की भूमिका थी।

नायिका वाणी गणपति है जो प्रसिद्ध नृत्यांगना और कमल हसन की पूर्व पत्नी है और सहनायिका है शाहीन, इन दोनों ने शायद इस एक ही फ़िल्म में काम किया है। यह रोमांटिक युगल गीत शायद मुकेश और वाणी जयराम ने गाया है। मुझे इसके अलावा और कुछ भी याद नहीं आ रहा। एक समय था जब यह गीत बहुत सुना करते थे रेडियो से।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, December 3, 2009

सुबह के पंचरंगी प्रसारण की साप्ताहिकी 3-12-09

इस सप्ताह एक ख़ास दिन था - बकरीद, जिसकी झलक सुबह के प्रसारण में मिली।


सप्ताह भर सुबह पहले प्रसारण की शुरूवात परम्परा के अनुसार संकेत धुन से हुई जिसके बाद वन्देमातरम फिर बताए गए दिन और तिथि, संवत्सर तिथि भी बताई गई जिसके बाद मंगल ध्वनि सुनवाई गई। यह सभी क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुआ। क्षेत्रीय केंद्र से अभिवादन अच्छा लगता है, तेलुगु में जो कहा जाता है वह मैं यहाँ लिख रही हूँ जिसे आसानी से समझा जा सकता है - श्रोतलुकु नमोः सुमान्जलि ! शुभोदयम !! इसके बाद 6 बजे दिल्ली से प्रसारित हुए समाचार, 5 मिनट के बुलेटिन के बाद मुम्बई से प्रसारण शुरू हुआ जिसकी शुरूवात प्रायोजकों के एकाध विज्ञापन से होती रही जिसके बाद पहले कार्यक्रम वन्दनवार की शुरूवात मधुर संकेत धुन से हुई, फिर सुनाया गया चिंतन।

चिंतन में इस बार शामिल रहे कथन - आचार्य चाणक्य का कथन कि विद्वानों में अनपढ तिरस्कृत होते है जैसे हंसों में बगुला, इसीलिए जो माता-पिता अपनी संतान को शिक्षा के लिए प्रेरित नहीं करते वे संतान के शत्रु होते है। पंचतंत्र में आचार्य विष्णु शर्मा ने कहा कि कटु वचन बोलना विष फैलाना है। जवाहर लाल नेहरू का कथन कि शान्ति और सौहार्द की स्थिति अच्छी होती है। स्वामी स्वरूपानन्द का कथन कि भक्ति में शक्ति असीम होती है। शनिवार को बच्चो के लिए जवाहर लाल नेहरू के विचार बताए गए कि बच्चो की आँखों में देश का भविष्य होता है इसीलिए बच्चो के प्रति जागरूक रहकर उन्हें अच्छे संस्कार देने चाहिए। इस दिन बकरीद थी, क्या ही अच्छा होता अगर बलिदान, त्याग संबंधी किसी महर्षि का विचार बताया जाता। आज बताया गया स्वामी विवेकानन्द का कथन कि अग्नि अपने आप में न अच्छी होती है न बुरी उसी तरह होती है हमारी मानसिक स्थिति भी।

इस बार भी प्रस्तुति संकलित करने योग्य रही।

वन्दनवार में भक्ति गीतों में विविधता रही। शुक्रवार को शुरूवात में एक पुराना भजन नए रूप में सुनवाया गया -

श्री रामचन्द्र कृपालु भाजमन

इसे गायिका (लताजी) की आवाज़ में हम सुनते रहे पर इस बार गायक और साथियों की आवाज़ में सुनना अच्छा लगा।

साकार रूप के भक्ति गीत और पुराने लोकप्रिय भजन इस सप्ताह नहीं सुनवाए गए। निराकार रूप के भक्ति गीत शामिल रहे - मैं एक दिया हूँ तू रोशनी है

भक्तों के भक्ति गीत जैसे -

हे मनमोहन हे चतुरशान तुझको मेरा शत शत प्रणाम

प्रभुजी मेरे अवगुन चित्त न धरो शास्त्रीय पद्धति में ढले भक्ति गीत - सुभान तेरी कुदरत के क़ुर्बान

नया भजन भी सुनवाया गया -

राधा कहे कृष्ण कृष्ण सीता कहे राम राम

कृष्ण हो या राम दोनों है प्रथम नाम

हालांकि भाव के अनुसार यह अनूप जलोटा के लोकप्रिय भजन की नकल ही लगी।

कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा, लोकप्रिय देशभक्ति गीत सुनवाए गए जैसे -

हम अपने पथ पर, मिले-जुले सब धर्मों से

तेरी उतारे आरती, जय जननि जय भारती

चलना है नई डगर पर

सबसे प्यारा देश हमारा प्यारा हिन्दुस्तान

और अल्ताफ़ हुसैन के संगीत से सजी एन के सिन्हा की ये रचना जिसे सप्ताह में दो बार सुनवाया गया -
ये भूमि हमारी वीरों की हम हिन्दों की सन्तान है

हम भारत माँ की शान है

कम सुना जाने वाला देश गान भी सुनवाया गया -

हर तरफ़ अँधेरा है दीप तू जलाता चल रास्ते चमक उठे रोशनी लुटाता चल

नया देश गान भी शामिल रहा -

भारत एक दिया है, हम सब इस दिए की बातियाँ

यही बातियाँ धर्म-कर्म है और देश की जातियां

इस तरह इस सप्ताह देशगान अच्छे रहे पर एक बात खटकती रही कि सभी गीतों के लिए विवरण नहीं बताया गया।

6:30 बजे से क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु भक्ति गीत सुनवाए गए जिसके बाद 6:55 को झरोका में केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के दूसरे भाग से हम जुड़े। सप्ताह में अधिकतर लोकप्रिय गीत ही सुनवाए गए। मंगलवार को लगा कि सदाबहार नग़में कार्यक्रम सुन रहे है। वक़्त, सावन की घटा, मेरे लाल, जौहर महमूद इन गोवा (गोवा) फ़िल्मों के हमेशा सुने जाने वाले गीत और यह गीत -

नैन मिले चैन कहाँ दिल है वहीं तू है जहाँ

अन्य दिनों में भी ऐसे गीत शामिल रहे - रविवार को फ़िल्म वीर दुर्गा दास से - थाने काजलिया बना लूँ और सोमवार को बरसात की रात फ़िल्म का शीर्षक गीत। याद नहीं आ रहा कि ये गीत कब भुलाए-बिसराए गए।

एकाध ऐसा गीत भी शामिल रहा जो कम सुनवाया जाता है पर लोकप्रिय इतना है कि भूला-बिसरा गीत नहीं लगता जैसे शुक्रवार को सुनवाय गया मदर इंडिया फ़िल्म का गीत -

मतवाले पिया डोले जिया

आज सुनवाया गया हिमालय की गोद में फ़िल्म का गीत - कंकरिया मार के जगाया, इसी तरह नया दौर फ़िल्म का गीत।

कुछ कम सुने, भूले-बिसरे गीतों को सुनना अच्छा लगा। भूली-बिसरी आवाज़ों में अनमोल घड़ी का गीत शमशाद बेगम और ज़ोहरा बाई अम्बाले वाली की आवाज़ों में -

उड़न खटोले पे उड़ जाऊँ तेरे हाथ न आऊँ

गीता दत्त का फ़िल्म 12 ओ क्लाक का गीत - कैसा जादू बालम तूने डाला

इसके अलावा कुछ और गीत -

मैं राही भटकने वाला हूँ कोई क्या जाने मतवाला हूँ

शनिवार को बकरीद की शुभकामना दी और सुनवाया किशोर कुमार का गाया हम सब उस्ताद है फ़िल्म का यह गीत - प्यार बाटते चलो

एकाध वाकई भूला बिसरा गीत सुना -

दिखा दो जलवा हमें एक बार थोड़ा सा

तेरा दिल है मेरा,

जबसे हमने दिल बदले है सारा जग है बदला

लालारूख़ और हंगामा फ़िल्म से भी भूले-बिसरे गीत शामिल थे।

हर दिन कार्यक्रम का समापन कुंदनलाल सहगल के गीत से होता रहा।

इस कार्यक्रम में कुछ सामान्य जानकारी भी दी गई जैसे महबूब प्रोडक्शनस की फ़िल्म मदर इंडिया में 12 गाने है। कुछ फिल्मों के रिलीज का वर्ष और बैनर बताया गया।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला आरंभ हुई - शास्त्रीय संगीत में अष्टपदी जिसमें आमंत्रित कलाकार है ख़्यात गायिका कल्पना जोगलकर। बातचीत कर रही है निम्मी (मिश्रा) जी। शुरूवात में ही बताया गया कि 19वी सदीसे ग्वालियर घराने से अष्टपदी आरंभ हुई। इससे शास्त्रीय संगीत अधिक सुलभता से अधिक लोगों तक पहुँचने लगा। ख्यात कवि जयदेव जी की रचना गीत-गोविन्द से अष्टपदी की शुरूवात हुई। विभिन्न रागों में अष्टपदी सुनवाई गई। इन रागों का पहले चलन बताया गया फिर बंदिशें भी सुनवाई गई जिसमें हारमोनियम पर संगत की चैतन्य कुंटे जी और तबले पर संगत की ओंकार गुलपाणी जी ने। हर दिन अलग-अलग रागों में अष्टपदी में पहले बंदिशे गाकर सुनवाई गई फिर जाने-माने कलाकारों की गई अष्टपदी सुनवाई गई। इन दोनों ही रागों का चलन बताया जाता रहा। राग मियाँ की मल्हार, देस, पूर्वी, झिंझोटी, बहार, वृन्दावनी सारंग, कामोद सुनवाए गए। जितेन्द्र अभिषेकी, पंडित कृष्ण राव शंकर पंडित, पंडित बाला साहेब का गायन सुनवाया गया। पूरा कार्यक्रम साहित्य और शास्त्रीय संगीत को समर्पित रहा इसीलिए सप्ताह भर कोई फिल्मी गीत नहीं सुनवाया गया। इस श्रृंखला की प्रस्तुति कांचन (प्रकाश संगीत) जी की है जिसमें सहयोग दिया वसुन्धरा अय्यर ने और तकनीकी सहयोग है विनायक तलवलकर का।

7:45 को त्रिवेणी में शुक्रवार को बताया गया विचार था - जीवन में सावधान रहना चाहिए, थोड़ी सी असावधानी से भी भारी नुकसान हो सकता है। सुनवाया गया गीत शिक्षा फ़िल्म से -

तेरी छोटी सी एक भूल ने सारा गुलशन जला दिया

इसके साथ मेरा नाम जोकर का ऐ भाई देख के चलो और चलती का नाम गाड़ी का बाबू समझो इशारे, पो पो गाना भी शामिल था।

शनिवार को बकरीद का रंग था, विचार था - ज़मीन की ख़ातिर जंग में दुनिया में अशान्ति फैली है। ताजमहल के इस गीत से शुरूवात की -

तेरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यों है

फिर सुनवाया गया - इंसान का इंसान से हो भाईचारा

रविवार का विषय था - लड़का और लड़की में अंतर। आलेख अच्छा था। गीत भी, ख़ासकर यह गीत -

गुड़िया हमसे रूठी रहोगी कब तक न हंसोगी

सोमवार का विचार था - रिश्तों का आधार दिखावा होने से कई बार ये डगमगाने लगते है। आलेख भी अच्छा था और गाने भी अच्छे चुने गए -

ज़िन्दगी इम्तेहान लेती है

और जैसा कि अक्सर होता है, सप्ताह में भूले-बिसरे गीत में सुनवाए गए गीतों में से एक गीत चुन लिया जाता है। इस दिन शामिल किया यह गीत - प्यार बाँटते चलो

मंगलवार का विचार था - जीवन में फूलों के साथ काँटे भी है। पहला गीत अच्छा लगा -

तेरे फूलों से भी प्यार तेरे काँटों से भी प्यार

उसके बाद गाइड का गीत सुना पर अंत में अनोखी रात का यह गीत विषय के साथ नहीं जँचा -

मेरी बेरी के बेर मत तोड़ों कोई काँटा चुभ जाएगा

शुरू से आलेख की जो ऊँचाई बनती आई थी वो अंत में गिर गई।

बुधवार का विचार सुन-सुन कर थक गए - सबके लिए जीवन की परिभाषा अलग-अलग है और गीत भी वही -

ज़िन्दगी है खेल कोई पास कोई फेल

और आज का विचार था - कटुवचन न बोलो। आलेख अच्छा था पर गीतों के चुनाव में असावधानी हो गई, दोस्ती के गीत ही हावी रहे -

मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया सुना है के तू बेवफ़ा हो गया

मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे

शायद अन्य रिश्तों पर गीत कम है।

इस तरह इस सप्ताह भी हर दिन की शुरूवात के लिए अच्छे प्रेरणादायी विचार रहे।

इस समय के प्रसारण में दो ही कार्यक्रम प्रायोजित रहे - भूले-बिसरे गीत और त्रिवेणी और दोनों का एक ही प्रायोजक है जिसके विज्ञापन भी प्रसारित हुए। संगीत सरिता कार्यक्रम को भी कोई संगीत कंपनी प्रायोजित कर सकती है।

त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

Tuesday, December 1, 2009

संवादों से भरा गीत

आज सत्तर के दशक का एक ऐसा गीत याद आ रहा है जो संवादों से भरा है। शायद राजा रानी फ़िल्म का गीत है जिसे राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर पर फ़िल्माया गया। यह युगल गीत शायद मुकेश और आशा भोंसलें की आवाज़ों में है। जो बोल याद आ रहे है वो इस तरह है -

आसमाँ पे चाँदनी का एक दरिया बह रहा था
हाँ तो मैं क्या कह रहा था
हाँ तो मैं क्या कह रहा था

कह रहे थे तुम कहानी जब से आई है जवानी
हाँ मुझे अब याद आया जब से मैनें दिल लगाया
आज कौन सी तारीख़ है
आज पच्चीस

कह रहे थे तुम हसीना
इश्क में मुश्किल है जीना
हाँ --
जब से ये अरमान जागे
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आज कौन सा दिन है
आज सोमवार

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यह कौन सा महीना है
मई

ॠत सुहानी कह रही है
यह पुलिस, पुलिस किसे ढूँढ रही है
अरे बाबा तुम्हें नहीं किसी चोर को ढूँढ रही है
मैं तो धोखा खा रहा था
हाँ तो मैं क्या कह रहा था

पहले रेडियो से फ़रमाइशी और ग़ैर फ़रमाइशी कार्यक्रमों में बहुत सुनवाया जाता था। अब बहुत समय से नहीं सुना।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

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