हम हिन्दुस्तानी चीज़ों को संग्रह करने के लिये दुनिया भर में बदनाम हैं। लेकिन कभी कभी यह प्रवृत्ति बड़े काम की साबित होती है। काग़ज़ों की अवेर-धवेर में अनायास सन 1977 आकाशवाणी पत्रिका हाथ में आ गई। आनंद द्विगुणित इसलिये हो गया कि इसके आमुख पर अज़ीम शायर हफ़ीज़ जालंधरी(पाकिस्तान के राष्ट्रगीत और मशहूर नज़्म अभी तो मैं जवान हूँ के रचयिता) तस्वीर मौजूद थी। बता दूँ कि अकाशवाणी पत्रिका का पूर्व नाम सारंग था और सन 1935 के आसपास इसका प्रकाशन प्रारंभ हुआ। सनद रहे कि आकाशवाणी के दो ट्रांसमीटरों की शुरूआत सन 1927 में मुम्बई और कोलकाता से हुई थी। इसतरह से इस पत्रिका की शुरूआत आकाशवाणी की स्थापना के तक़रीबन 8 बरस बाद हो गई थी।
रेडियोनामा पर यह जानकारी साझा करना ज़रूरी है कि पचास के दशक में भारतीय जीवन बीमा निगम के अलावा संभवत: आकाशवाणी ही ऐसा सार्वजनिक उपक्रम रहा होगा जिसका कोई विधिवत प्रकाशन उन दिनों रहा होगा। आकाशवाणी पत्रिका का आवरण बहुरंगी होता था और इस अंक पर नज़र डालें तो सन 1980 के पहले या उल्लेखित अंक तक इसकी क़ीमत महज़ 50 पैसे प्रति अंक और रू। 12 प्रतिवर्ष थी। भीतर का काग़ज़ अच्छा और साफ़सुथरा सुफ़ैद हुआ करता था और प्रिंटिंग श्वेत-श्याम। जहाँ तक इसकी सामग्री का सवाल है वह उत्कृष्ट हुआ करती थी। जाने-माने कवि,कहानीकार और लेखक इसमें सहभाग करते थे जिनमें कई आकाशवाणी के मुलाज़िम हुआ करते थे। कवर पर हफ़ीज़ जालंधरी साह्ब के चित्र की वजह यह थी कि भीतर उनकी दो बेहतरीन नज़्मों का प्रकाशन भी हुआ था। इसी अंक में मशहूर कार्टूनिस्ट(सन 77 में युवा) सुधीर तैलंग का एक लेख कार्टून कला पर है।

मूलत: यह पत्रिका आकाशवाणी के केन्द्रों पर उपलब्ध हुआ करती थी लेकिन शुल्क चुकाकर इसे कोई भी ख़रीद सकता था। इनहाउस जर्नल होते हुए थी यह सार्वजनिक थी। इसमें देश भर के आकाशवाणी केन्द्रों पर स्टाफ़ के भर्ती के लिये आवश्यकता (अपॉइंटमेंट) के इश्तेहार भी होते थे। बहुत ज़रूरी सामग्री के रूप में आगामी माहों में विभिन्न केन्द्रों के कार्यक्रमों का झरोखा यानी प्रसारण दिनांक और समय और मीटर बैण्ड्स का उल्लेख होता था। प्रसारित हो चुकी झलकी और एकांकी भी इस पत्रिका में होते रहे हैं जिससे यदि एक केन्द्र के बाद यदि दीगर केन्द्र किसी कृति को अपने यहाँ तैयार करना चाहे तो उसे स्क्रिप्ट की कमी न अखरे। समाचार प्रभाग शासकीय स्तर पर क्रियान्वित हो रही योजनाओं को लेख के रूप में छापता था। यह पत्रिका आकाशवाणीकर्मियों को जीवंत संपर्क प्रदान करती थी। चूँकि अस्सी के दशक में टेलिग्राम,टेलिफ़ोन(एसटीडी भी नहीं) और टेलिप्रिंटर ही महत्वपूर्ण संचार माध्यम थे और ईमेल,फ़ैक्स,मोबाइल का अवतरण नहीं हुआ था;आकाशवाणी पत्रिका अपने प्रसारण केन्द्रों के बीच सार्थक संवाद बनाती थी। इसके अलावा विभिन्न केन्दों पर आनेवाले सितारा कलाकारों,कवियों,फ़िल्मी हस्तियों,साहित्यकारों के चित्रों को भी आकाशवाणी पत्रिका में शामिल किया जाता था। इन चित्रों में केन्द्रों द्वारा आयोजित लाइव संगीत कार्यक्रमों और जयमाला जैसे अत्यंत लोकप्रिय कार्यक्रमों में सम्मिलित होने वाले कलाकारों के चित्र अवश्य शुमार होते थे।
इन सब के अवाला आकाशवाणी केन्द्रों में काम करने वाले प्रसारण और तकनीकी स्टाफ़ की रचनाओं को मंच देने का महत्वपूर्ण कार्य भी इस प्रकाशन ने किया। बहरहाल आकाशवाणी पत्रिका देश के अग्रणी प्रसारण संस्थान के जगमगाते कार्यों का जीता-जागता चिट्ठा पेश करती थी। संस्कृति,संगीत और साहित्य से महकते इसके पन्ने आकाशवाणी गौरवशाली परंपरा का आख्यान होते थे। मालूम नहीं अब आकाशवाणी पत्रिका का प्रकाशन होता या नहीं लेकिन आज जब मैंने इसके पुराने अंक कोथ में लिया तो आकाशवाणी की महान विरासत की ख़ुशबू मेरे दिल में उतर गई। बात को ख़त्म करते हुए आइये आकाशवाणी पत्रिका के जून 1977 के इस दुर्लभ अंक से हफ़ीज़ जालंधरी साहब के इस रूहानी गीत को पढ़ते चलें।
झूठा सब संसार प्यारे
झूठा सब संसार
मोह का दरिया, लोभ की नैया, कामी खेवन हार
मौज के बल पर चल निकले थे, आन फंसे मझधार
तन के उजले , मन के मैले, धन की धुन असवार
ऊपर ऊपर राह बताएं, अंदर से बटमार
ज्ञान ध्यान के पत्तर बाजें, बेचे स्वर्ग उधार
ज्ञानी पात्र बन कर नाचे, नक़द करें बयोपार
चोले धर के दीन धर्म के, निकले चोर चकार
इन चोलों की आड़ में चमके, दो धारी तलवार,
प्यारे झूठा सब संसार, प्यारे झूठा सब संसार।