नया साल अब लगभग पुराना होने को है। जनवरी का महीना बस बीता ही जा रहा है। साल के शुरू होते-होते ही हमने रेडियोनामा के कुछ साथियों से ई-मेल पर नए साल में रेडियो से उनकी उम्मीदों के बारे में कुछ सवाल पूछे। ये हमारे वो साथी हैं जो रेडियो के नियमित श्रोता हैं।
हमारे सवाल थे ये-
1. नये साल में रेडियो की दुनिया से आपको कौन सी उम्मीदें हैं।
2. आज निजी और सरकारी रेडियो चैनलों में सबसे ज्यादा असह्य बात आपको कौन सी लगती है।
3. क्या गुज़रे साल का कोई यादगार कार्यक्रम याद है जिसके बारे में बताना चाहें।
सुजॉय चैटर्जी पेशे से इंजीनियर हैं। लेकिन संगीत के क़द्रदान हैं। इन दिनों वो रेडियो प्ले-बैक इंडिया पर संगीत पर लिख रहे हैं। इससे पहले 'आवाज़' पर उन्होंने फिल्म-संगीत पर बेहतरीन लेख लिखे थे। सुजॉय विविध-भारती के भी बहुत सजग श्रोता हैं।
1. नये साल में रेडियो की दुनिया से आपको कौन सी उम्मीदें हैं।
नये साल में रेडियो की दुनिया से मेरी उम्मीदें कई हैं, कुछ के बारे में बताता हूँ।
आकाशवाणी के स्थानीय केन्द्र, जो विविध भारती का प्रसारण रिले करते हैं, उनसे हाथ जोड़ कर विनती है कि विज्ञापन ठूंसते वक़्त कम से कम इतना ध्यान रखें कि सुनने वालों का मज़ा खराब न हो। कई बार ऐसा हुआ है और आज भी होता है कि फ़रमाइशी कार्यक्रमों में जब गीत के बाद फ़रमाइशी नाम बोले जाते हैं, उस वक़्त विज्ञापन बजाये जाते हैं, और जब तक विज्ञापन ख़त्म होते हैं, अगला गीत शुरु हो चुका होता है। 'विशेष जयमाला' के दौरान जब सेलिब्रिटी बोल रहे होते हैं, तब भी विज्ञापन बजाये जाते हैं, जिसके लिए माफ़ी की कोई गुंजाइश नहीं है। स्थानीय केन्द्रों को इस मामले में जागरूक होने और श्रोताओं के मनोभाव को समझने की ज़रूरत है।
जैसे-जैसे स्थायी उद्घोषक सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं, वैसे वैसे आकस्मिक उद्घोषकों की संख्या और उनके द्वारा प्रसारण समय में वृद्धि होती जा रही है। (आकाशवाणी गुवाहाटी में इस समय हिन्दी विभाग में कोई भी स्थायी उद्घोषक नहीं हैं, बस प्रोग्राम एग्ज़ेक्युटिव हैं और कुछ आकस्मिक उद्घोषक)। लिस्नर्स के साथ कनेक्ट करने के लिए रेगुलर अनाउन्सर की बहुत ज़्यादा ज़रूरत होती है। एक जो नियमितता वाली बात होती है, वह बहुत ज़्यादा मायने रखती है। यह बात मुझे आकाशवाणी गुवाहाटी की एक स्थायी उद्घोषिका नें ख़ुद बताई थी जब मैं उनसे मिलने रेडियो स्टेशन गया था कुछ साल पहले। अगर आकाशवाणी को बचाये रखना है तो सरकार को इस बारे में सोचना ही होगा।
और ख़ास तौर से विविध भारती से मेरी यह उम्मीद है कि 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में स्वर्गीय कलाकारों (जिनसे साक्षात्कार सम्भव नहीं हो पायी है), के परिवार वालों के भी इन्टरव्यूज़ लिए जायें। हिन्दी सिनेमा की प्रथम पार्श्वगायिका पारुल घोष की परपोती हैं, संगीतकार विनोद की बेटी और दामाद हैं, शक़ील बदायूनी के बेटे हैं, ये सभी फ़ेसबूक पर उपलब्ध हैं। साथ ही 'उजाले' में लता जी का लम्बा-सा इन्टरव्यू सुनने के लिए पता नहीं कब से तरसा बैठा हूँ।
2. आज निजी और सरकारी रेडियो चैनलों में सबसे ज्यादा असह्य बात आपको कौन सी लगती है।
तकनीकी ऐंगल की बात करें तो निजी चैनल सरकारी चैनलों से काफ़ी आगे हैं। उनका प्रसारण बहुत ही कसा हुआ होता है। गीत और घोषणा के बीच एक सेकण्ड का भी गैप नहीं होता। एक सेकण्ड के लिए भी आवाज़ ग़ायब नहीं होती और न ही कभी सीडी अटकने या किसी तरह का कोई तकनीकी समस्या जान पड़ती है। पर सरकारी चैनलों में ऐसा नहीं है। कभी सीडी अटक जाती है तो कभी घोषणा और गीत के बीच काफ़ी समय लिया जाता है। कभी ग़लत गीत भी बज जाता है।
निजी चैनलों की सबसे असह्य बात है कि उनके पास गीतों का बहुत बड़ा ख़ज़ाना नहीं होता। और ख़ास तौर से पुराने गीतों की बात करें तो राहुल देव बर्मन के गीतों की ही भरमार होती है। विविधता बहुत ही कम है। ऐसे में सरकारी चैनलों के पास कुबेर का ख़ज़ाना है। इस तरह से अगर निजी चैनलों का प्रसारण तकनीक और सरकारी चैनलों का आरकाइव एक साथ हो जाये तो रेडियो की दुनिया में नई क्रान्ति आ सकती है।
3. क्या गुज़रे साल का कोई यादगार कार्यक्रम याद है जिसके बारे में बताना चाहें।
गुज़रे साल का कोई यादगार कार्यक्रम तो नहीं है। पर रविवार की शाम 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम को सुनना एक अच्छा अनुभव रहता है हर सप्ताह।
रवि रतलामी का नाम नेट-जीवियों के लिए अनजान नहीं है। उन्हीं की प्रेरणा से मैंने ब्लॉगिंग की दुनिया में क़दम रखा था। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी से रिटायरमेन्ट लेने के बाद वो पूर्ण-कालिक तकनीकी सलाहकार हैं। लिनक्स पर हिंदी और छत्तीसगढ़ी को शामिल करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। रवि भाई ब्लॉगिंग और कंप्यूटर की दुनिया में हम जैसे अज्ञानियों के लिए एक सतत हेल्पलाइन हैं। उनका नाम ब्लॉगिंग की दुनिया में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। दिलचस्प बात ये है कि वो रेडियो की दुनिया से जुड़ाव रखते हैं। ये रहे उनके जवाब
1. नये साल में रेडियो की दुनिया से आपको कौन सी उम्मीदें हैं।
उम्मीद तो कुछ खास नहीं है. निजी चैनलों में वही फालतू की बकवास - बकबक, वही 4-5 नए हिट गाने जिसे हर घंटे बीस बार बजाकर आपके दिमाग का दही जमाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. सरकारी चैनलों में वही बीस साल से चल रहे टाइप्ड प्रोग्राम - कहीं कोई नयापन नहीं.
2. आज निजी और सरकारी रेडियो चैनलों में सबसे ज्यादा असह्य बात आपको कौन सी लगती है।
निजी - फालतू की बकवास, सड़ियल चुटकुले, बारंबार बजते प्रोमो गाने। सरकारी - शून्य प्रयोगधर्मिता. बाबा आदम के जमाने से चले आ रहे टाइप्ड किस्म के प्रोग्राम. अरे भाई, कोई घंटे/आधे घंटे का दुनिया के बेहतरीन संगीत के बारे में कोई प्रोग्राम (या ऐसे ही कुछ अन्य) बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचता?
3. क्या गुज़रे साल का कोई यादगार कार्यक्रम याद है जिसके बारे में बताना चाहें।
यादगार याद नहीं.
'डाकसाब' का जिक्र रेडियोनामा पर पहले भी होता रहा है। ज़ाहिर है कि पेशे से डॉक्टर/सर्जन हैं। और रेडियो कार्यक्रमों के सुधि श्रोता। रेडियो कार्यक्रम पसंद आए तो बढिया। वरना यहां भी उनकी सर्जरी से बचना मुश्किल है। ऐसे सुधि-श्रोताओं से रेडियो-प्रस्तुतकर्ताओं को सुधार करने में काफी मदद मिलती है। उनके ज़रिये हम अपने कार्यक्रमों में रोचकता की नब्ज़ टटोल पाते हैं। ये रहे उनके जवाब
1. नये साल में रेडियो की दुनिया से आपको कौन सी उम्मीदें हैं ?
(क) नये ज़माने के हिसाब से कन्टेन्ट में बदलाव की ।
(ख) देश के भावी नागरिकों (देश की जनसंख्या और श्रोता-वर्ग का एक बहुत बड़ा प्रतिशत) के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी के एहसास की ।
आज देश में संस्कृति और मूल्यों के आदर्श का जो संकट है, उसके पीछे मुख्य कारण मेरी दॄष्टि में नयी पीढ़ी में इस तरह की सोच विकसित न कर सकने की हमारी अक्षमता है । "बच्चे देश के भावी नागरिक हैं" - यह जुमला जहाँ-तहाँ उछालते सब हैं ,पर उनके लिये अच्छे कार्यक्रमों का कम से कम रेडियो की दुनिया में तो आज सर्वथा अभाव दिखता है ।
2. आज निजी और सरकारी रेडियो चैनलों में सबसे ज्यादा असह्य बात आपको कौन सी लगती है ?
(क) सरकारी चैनलों पर घटिया सरकारी प्रचार की । पिछले लगभग पाँच दशकों से आकाशवाणी के समाचारों की शुरुआत हमेशा " प्रधानमंत्री ने ....." से ही होती आयी है, कभी-कभार के अपवादों को छोड़ कर ।
(ख) निजी चैनलों पर भाषा के बिगड़ते संस्कार और प्रसारण-सामग्री में घोर अश्लीलता ।
3. क्या गुज़रे साल का कोई यादगार कार्यक्रम याद है जिसके बारे में बताना चाहें।
विविध भारती पर "उजाले उनकी यादों के" श्रॄंखला में प्रसारित भेंट-वार्ताएं, जिनके माध्यम से तमाम उन लोगों को निकट से जानने-समझने का अवसर मिला, जिन्होंने अपने काम से हमारे समाज पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
सागर नाहर रेडियोनामा के संस्थापकों में से एक हैं। हैदराबाद में रहते हुए वे लगातार रेडियो सुनते हैं। और अपनी पसंद-नापसंद बताते रहते हैं। फेसबुक पर रेडियोनामा और श्रोता बिरादरी समूहों का और यहां रेडियोनामा ब्लॉग का कुशल तकनीकी संचालन दर्शाता है कि वे परदे के पीछे चुपचाप अपना काम करते रहने वाले लोगों में से हैं। ये रहे उनके जवाब।
1. नये साल में रेडियो की दुनिया से आपको कौन सी उम्मीदें हैं।
नए साल में रेडियो से उम्मीद है कि कार्यक्रम के बीच में विज्ञापन ना बजाएं मसलन पं वसंत देसाई के कार्यक्रम के दौराना गाना बज रहा था, राधा को विदा के इशारे थे... तभी बीच में मैं अपना इंश्योरेंस बदलना चाहता हूँ... फिर से गाने का हिस्सा घुमकित- घुमकित घूम गई.. !!! इस तरह विज्ञापन नहीं बजने चाहिए।
मानता हूँ कि विज्ञापन भी जरूरी है तो विज्ञापन बजाने के समय पर कंपनी को बता दिया जाए कि इस समय गीत बज रहा होता है सो विज्ञापन गाने के बाद बजेगा। चाहें तो बीच में एक की बजाए दो ब्रेक ले लिए जाएं लेकिन गाने में खलल ना डाला जाए। दिनांक 23.1.2011 को संगीत सरिता में पं उल्हास बापट कुछ बोल रहे थे, और उसी समय स्थानीय स्टेशन ने विज्ञापन बजा दिया। इस तरह की हरकतें खीझ पैदा करती है सो उम्मीद है कि इस दिशा में कोई सार्थक कदम उठेगा।
दूसरी बात शास्त्रीय संगीत से जुड़े कार्यक्रमों में नए कलाकारों को भी मौका दिया जाए जैसे विदुषी डॉ राधिका बुधकर, पं संजीव अभ्यंकर आदि। लोकेन्द्र शर्मा जी का कार्यक्रम बाइस्कोप की बातों को पुन: चालू किया जाए। उजाले उनकी यादों को हफ्ते में एक से अधिक बार सुनाया जाए।
मेरी राय त्रिवेणी को बन्द करके उसका समय संगीत सरिता को दिया जाना चाहिए। बच्चों के कार्यक्रम विविध भारती पर नहीं है अत: बच्चों के लिए भी कार्यक्रम चालू किए जाएं।
स्थानीय स्टेशन के प्रसारण कर्ताओं को हिदायत दी जानी चाहिए कि हिन्दी कार्यक्रमों का विवरण हिन्दी में दें, क्यों कि वे तेलुगु में बताते हैं और हमें पता भी नहीं चल पाता कि कौनसा कार्यक्रम कितनी बजे आएगा।
- आज निजी और सरकारी रेडियो चैनलों में सबसे ज्यादा असह्य बात आपको कौन सी लगती है।
निजी तो मैं कभी सुनता ही नहीं सरकारी में जो बात असह्न लगती है वह मैं पहले प्रश्न में बता चुका।
- क्या गुज़रे साल का कोई यादगार कार्यक्रम याद है जिसके बारे में बताना चाहें।
कई सारे हैं जैसे कि ऊर्दू सर्विस पर मशहूर गायिका राजकुमारी जी का साक्षात्कार; ऊर्दू सर्विस का प्रसारण और उनके उद्घोषकों को श्रोताओं की पसन्दगी की अच्छी समझ है। जब राजकुमारीजी बोल रही थी, एक बार भी उद्घोषिका ने उन्हें टॊका नहीं कि इस बात पर यहाँ एक गीत तो बनता है, या आपकी पसन्द का कोई गीत बताईये... ना ही उद्घोषिका ने बेवजह ठहाके नहीं लगाए।
विविध भारती पर संगीत सरिता में बहुत से सुन्दर कार्यक्रम आए हैं जैसे रसिकेषु, राजस्थानी लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम जिसमें महेन्द्र मोदी जी ने राजस्थानी कलाकारों के गीतों का भावार्थ बताया था। , विदुषी गिरिजा देवी, उस्ताद वासिफुद्दीन डागर की श्रृंखला, विविध भारती के ख़ज़ाने से वाली श्रृंखला और बाद में उनके रागों पर चर्चा.. ऐसे कई कार्यक्रम जो फिलहाल याद नहीं आ रहे हैं।
उम्मीद है कि वि.भा. पर ऐसे रचनात्मक कार्यक्रम आगे और भी सुनने को मिलेंगे।
4 comments:
...बाक़ी सब तो ठीक पर मुझे एक बात समझ नहीं ही आती कि देश भर में FM के लोगों को यह ग़लतफ़हमी क्योंकर है कि उनके कार्यक्रम केवल छिछोरे लोग ही सुनेंगे/सुनते हें (?)
"गलतफ़हमी" नहीं,बल्कि "जानकारी" है;वह भी शायद काफ़ी हद तक एकदम सटीक।
एक बात और भी समझ में आयी-यह कि आज विविध भारती को अपनी जान का ख़तरा ख़ुद विविध भारती से ही है,दूसरे FM चैनल्स से नहीं । उसके स्थानीय स्टेशन ऐसे ही अपनी बेसिर-पैर की मनमानियाँ और हरक़तें जारी भर रखें बस,फिर देखिये कि कितनी जल्दी होता है यह काम(तमाम) ।
बढ़िया प्रस्तुति ! बधाई !
युनूसजी, वैसे आपने इस मंच पर हमें राय लेने लायक माना नहीं है । पर उपर के सभी लोगोकी राय से सहमत होते हुए कुछ अपनी बात टिपणी के रूपमें ही सही, रख़ता हूँ, जो इसके पहेले मैनें फेसबूक पर रेडिय्नामा गुपमें रख़ी थी । नये साल विविध भारती से उम्मीद है कि, फिल्मी धून के साम के सिर्फ़ के प्रसारणॅ को भूमिगत रेडियो एफ एम नेटवर्क प्रसारण के दायरे में लाये और सिर्फ़ सीडी की धूनों को कम्प्यूटरमें बिना कलाकार और साझ की जानकारी, संग्रहीत करके बजाया नहीं जाय । पर पूरानी 78 आर पी एम और 45 आर पी एम तथा सिर्फ़ गिंनी चूनी एलपी रेकोर्ड्झ को छोड कर ज्यादा पूरानी यानि पूराने गीतो की उस समय प्रकाशित फिल्मी धूनो के रेकोर्ड्झ का प्रसारण कलाकारो और साझ की जानकारी के साथ शुरू करें । और एनोक डेनियेल्स साहब को हमारे मेहमान में बुलाया जाय तथा । सुरत स्थित अभिनेता क्रिष्नकान्तजी को भी इसी कार्यक्रममें बुलाया जाय । तथा विविध भारती और स्थानिय विज्ञापन प्रसारणॅ सेवा के केन्दों में कार्यक्रम प्रसारणॅ और विज्ञापनो के प्रसारण में जो बेताला[पन दिख़ रहा है और सातत्यभंग दिख़ता है उसे समाप्त किया जाय । हालाकि विविध भारती इसमें अपने आप कुछ कर नहीं सकती है पर हमारी चाहना को सेन्ट्रल सेल्स युनिट और महानिर्देशालय तथा सुचना-प्रसारण मंत्रालय पहोचाया जाय । पियुष महेता-सुरत ।
Post a Comment
आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।