कईं बार मेरे को रेडियो लाईसेंस फीस के दिन याद आते हैं...क्या होता था कि हम लोग घर के बाहर खेल रहे होते थे और कभी कोई पूछने आ जाता था कि घर में कितने रेडियो हैं ... हमें तो यह भी पता नहीं होता था कि जवाब क्या देना है ...बाद में थोड़े बड़े हुए तो पता चला कि जिन के घरों में रेडियो हैं उन्हें साल में दो बार या शायद एक बार पास के डाकखाने में जाकर लाईंसेंस फीस जमा करवानी होती है ...एक धुंधली सी याद है कि एक बार तो मैं भी ३ रूपये किसी डाकखाने में जमा करवा के आया था ...और इस काम के लिए भी एक पासबुक सी होती थी जिस पर पोस्टमाटर एंट्री कर के मोहर लगा दिया करता था....
अब सोचता हूं तो लगता है कि घर में रेडियो न हो जैसे कोई लाईसैंसी रिवाल्वर रखा हो ...वैसे भी अपना मर्फ़ी वाला रेडियो भी सत्तर के शुरुआती दिनों में बडा़ परेशान करता था ...हम लोग लंबी सी तार उस के साथ जोड़ कर छत पर ईंट के नीचे रख के आते कि शायद इस से आवाज़ साफ़ सुनाई दे ...उन दिनों हमें यह बिनाका गीत माला और आल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस पर (अमृतसर रहते थे हम लोग) आप की फरमाईश में हिंदी गीत और रविवार के दिन इकबाल साहब और एक बाजी द्वारा पेश किए जाने वाले बच्चों के प्रोग्राम का इंतज़ार रहता था ...मजे से कट रही थी ...
फिर हम लोगों ने १९७२-७३ के आसपास कहीं एक बुश का ट्रांजिस्टर खरीदा ... बंबई से खरीदा था ...क्योंकि वहां हम लोग गये हुए थे कुछ दिनों के लिए और मेरे ताऊ जी का दामाद बुश कंपनी में बहुत ऊंचे ओहदे पर था ... मुझे अच्छे से याद है कि यह हमारे आस पास के घरों में चर्चा का विषय था कि एक रेडियो जो सैलों से भी चलता है और बिजली से भी चलता है ... आप को ताजुब्ब होगा कि मैंने उस का ढांचा अभी तक रखा हुआ था ..just as a souvenir of good old innocent times!
बंबई में शायद १९९३-९४ में एफ एम आया तो बहुत अच्छा लगा ...उन दिनों हम लोग वहीं पोस्टेड थे ...एक फिलिप्स का वर्ल्ड रिसीवर इसी चक्कर में उस ज़माने में १७-१८०० रूपये का खरीद लिया ...यह भी सैल के साथ साथ बिजली से भी चलता है ...अभी भी सही चलता है ...
चलिए बात ज़्यादा लंबी नहीं करते ... नींद आ रही है ...अब तो यह आलम है कि घर में जितने कमरे हैं उस से भी ज़्यादा रेडियो हैं...बिजली वाले रेडियो ही मुझे ज़्यादा पसंद हैं... जिस कमरे में भी बैठता हूं वहां की रेडियो चला लेता हूं...और टीवी देखना लगभग २ महीने से बंद कर दिया है ..रिचार्ज ही नहीं करवाया ....इतनी गर्मा-गर्म बहसें देख-सुन कर अपना सिर भारी हो जाता था...देखते हैं कितना समय टीवी के बिना रह लेते हैं.....लेकिन जो भी है, टीवी के बिना सुकून है ...
विविध भारती मेरा पसंदीदा रेडियो है ...और सुबह सुबह लखनऊ का एफएम रेनबो चैनल भी सुनता हूं...रेडियो के बारे में लिखें तो लगता है लिखते ही जाएं...इतना कुछ लिखने को है ...कभी कभी किसी दूसरे चैनल को भी सुन लेता हूं ...लेकिन बहुत कम ...अपनी अपनी पसंद है...
हां, तो बात हो रही थी रेडियो लाईसैंस वाले दिनों से लेकर रेडियो लाईव स्ट्रीमिंग की ....हां, तो दोस्तो हुआ यह कि आज अपने के फेसबुक फ्रेंड काजल जी ने एक पोस्ट लिखी कि आप लोग Google playstore से Radio Garden App download कर लें और बिना एयर-फोन के मजे से दुनिया के किसी भी रेडियो स्टेशन के प्रोग्राम सुनें...तुरंत इस एप को इंस्टाल किया ..और कुछ समय तक प्रोग्राम सुने भी .....लेकिन जो मैं सुनना चाह रहा था वह मुझ नहीं दिखा ....शायद अभी इतने अच्छे से नेवीगेशन नहीं हो पाती ...
वैसे भी रेडियो तो तभी सुनने का मज़ा है कि जब आप सुनें तो आस पास बैठे दो चार लोग भी उस प्रोग्राम का आनंद लें...जैसे पुराने नाई की दुकान पर या चाय वाले की गुमटी पर एक अखबार को पांच सात लोग पढ़ रहे होते थे ...
तरक्की कितनी भी हो गई हो, हमें तो भई अभी भी पुराने रेडियो सेट ही भाते हैं ....कईं बार सोच कर हंसी भी आती है जब लगता है कि इन डिब्बों के अंदर से कोई बोल रहा है ...
आज या कल रेडियो पर एक गीत सुना था ...मुझे बहुत पसंद है यह गीत .... सुनते हैं ....मैं इस समय भी यह पोस्ट लिखते हुए भी रेडियो सुन रहा हूं ... अच्छा लगता है ...अपने बचपन के साथी को अपने आस पास रखना ..
लीजिए, मिल गई वह पासबुक भी नेट से ढूंढने पर जिस को ले जाकर डाकखाने
में साल के दो या तीन या साढ़े तीन रूपये जमा करवाने पड़ते थे
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अब सोचता हूं तो लगता है कि घर में रेडियो न हो जैसे कोई लाईसैंसी रिवाल्वर रखा हो ...वैसे भी अपना मर्फ़ी वाला रेडियो भी सत्तर के शुरुआती दिनों में बडा़ परेशान करता था ...हम लोग लंबी सी तार उस के साथ जोड़ कर छत पर ईंट के नीचे रख के आते कि शायद इस से आवाज़ साफ़ सुनाई दे ...उन दिनों हमें यह बिनाका गीत माला और आल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस पर (अमृतसर रहते थे हम लोग) आप की फरमाईश में हिंदी गीत और रविवार के दिन इकबाल साहब और एक बाजी द्वारा पेश किए जाने वाले बच्चों के प्रोग्राम का इंतज़ार रहता था ...मजे से कट रही थी ...
कुछ अरसा पहले मैँ इसे एक रेडियो के मैकेनिक के पास ले गया ... मैंने उसे कहा कि इस में एफएम फिट करवाना है, उसने मुझे ऐसे देखा कि मुझे जवाब मिल गया ... |
बंबई में शायद १९९३-९४ में एफ एम आया तो बहुत अच्छा लगा ...उन दिनों हम लोग वहीं पोस्टेड थे ...एक फिलिप्स का वर्ल्ड रिसीवर इसी चक्कर में उस ज़माने में १७-१८०० रूपये का खरीद लिया ...यह भी सैल के साथ साथ बिजली से भी चलता है ...अभी भी सही चलता है ...
चलिए बात ज़्यादा लंबी नहीं करते ... नींद आ रही है ...अब तो यह आलम है कि घर में जितने कमरे हैं उस से भी ज़्यादा रेडियो हैं...बिजली वाले रेडियो ही मुझे ज़्यादा पसंद हैं... जिस कमरे में भी बैठता हूं वहां की रेडियो चला लेता हूं...और टीवी देखना लगभग २ महीने से बंद कर दिया है ..रिचार्ज ही नहीं करवाया ....इतनी गर्मा-गर्म बहसें देख-सुन कर अपना सिर भारी हो जाता था...देखते हैं कितना समय टीवी के बिना रह लेते हैं.....लेकिन जो भी है, टीवी के बिना सुकून है ...
हमारी रेडियो की लत की वजह से घर में रखे टीवी धूल चाट रहे हैं.. घर में किसी को भी टीवी का शौक नहीं है |
हां, तो बात हो रही थी रेडियो लाईसैंस वाले दिनों से लेकर रेडियो लाईव स्ट्रीमिंग की ....हां, तो दोस्तो हुआ यह कि आज अपने के फेसबुक फ्रेंड काजल जी ने एक पोस्ट लिखी कि आप लोग Google playstore से Radio Garden App download कर लें और बिना एयर-फोन के मजे से दुनिया के किसी भी रेडियो स्टेशन के प्रोग्राम सुनें...तुरंत इस एप को इंस्टाल किया ..और कुछ समय तक प्रोग्राम सुने भी .....लेकिन जो मैं सुनना चाह रहा था वह मुझ नहीं दिखा ....शायद अभी इतने अच्छे से नेवीगेशन नहीं हो पाती ...
वैसे भी रेडियो तो तभी सुनने का मज़ा है कि जब आप सुनें तो आस पास बैठे दो चार लोग भी उस प्रोग्राम का आनंद लें...जैसे पुराने नाई की दुकान पर या चाय वाले की गुमटी पर एक अखबार को पांच सात लोग पढ़ रहे होते थे ...
तरक्की कितनी भी हो गई हो, हमें तो भई अभी भी पुराने रेडियो सेट ही भाते हैं ....कईं बार सोच कर हंसी भी आती है जब लगता है कि इन डिब्बों के अंदर से कोई बोल रहा है ...
आज या कल रेडियो पर एक गीत सुना था ...मुझे बहुत पसंद है यह गीत .... सुनते हैं ....मैं इस समय भी यह पोस्ट लिखते हुए भी रेडियो सुन रहा हूं ... अच्छा लगता है ...अपने बचपन के साथी को अपने आस पास रखना ..
2 comments:
वाह क्या बात है, रेडियो भी एक नशा है 😊
रेडियो पर कोई प्रोग्राम देना हो तो क्या प्रक्रिया है सर
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।