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Saturday, June 28, 2008

हैलो फ़रमाइश !

विविध भारती और फ़रमाइश दोनों का चोली-दामन का साथ है या यूँ कह सकते है कि विविध भारती वाले और फ़रमाइश करने वाले दोनों एक-दूजे के लिए बने है - मेड फ़ार इच अदर

बचपन से सुनती आई हूँ एक गाना सुनवाने के लिए फ़रमाइश करने वालों की सूची। कभी-कभी सूची बड़ी मज़ेदार हुआ करती जैसे एक दो सामान्य नाम लेने के बाद नाम आते पप्पू गुड्डी उनके मम्मी पापा और उनके परिवार के सभी सदस्य… अरे ! कितना बड़ा परिवार है !!

देश के कई शहरों के नाम तो हमें विविध भारती से ही पता चले जैसे भाटापारा, छपड़ा, छिवड़िया, देवरिया और भी ऐसे कई नाम है जिनको सुन कर लगता है क्या शहरों के ऐसे नाम भी है… अरे ऐसा नाम तो शायद ही कभी सुना हो…

मुद्दा ये कि पता नहीं देश के किस कोने से विविध भारती में चिट्ठी आ जाए। अब ये बात काग़ज़ों से निकल कर तार-बेतार पर आ गई है। जिन गानों की फ़रमाइश चिट्ठियों से आती थी अब फ़ोन पर आने लगी है। सीधे बात होती है इसीलिए फ़रमाइश के अलावा और भी दो-चार बातें हो जाती है। वैसे चिट्ठियों का क्रम अब भी जारी है।

इस समय मन चाहे गीत के अलावा सखि-सहेली में फ़रमाइशी गीतों का अनुरोध किया जाता है। सखि-सहेली में केवल महिलाएँ ही अनुरोध करती है। इन चिट्ठियों के अलावा हर शुक्रवार को सखियाँ फोन पर अपनी फ़रमाइश बताती है। फ़ोन पर फ़रमाइश की सुविधा सभी के लिए सप्ताह में तीन बार मंगलवार, गुरूवार और शनिवार को पिटारा के अंतर्गत हैलो फ़रमाइश कार्यक्रम में है। हर कार्यक्रम एक घण्टे का है।

सभी फ़रमाइशी कार्यक्रमों में अधिकतर वही गाने बार-बार सुनने को मिलते है। बचपन में अब्बा (मेरे पूज्य पिताजी) कहा करते थे अरे इतने लोगो ने फ़रमाइश कर दी इस गाने की, ये गाना तो अभी सप्ताह भर पहले ही तो सुना था। क्या इन लोगों ने यह गाना नहीं सुना था या इतना अच्छा है कि बार-बार सुनना चाहते है ! आख़िर कितनी बार ? जबकि कुछ गाने तो ऐसे है जो शायद ही कभी बजते हो।

गानों की फ़रमाइश के अलावा आजकल फ़ोन पर कुछ बातचीत भी होती है। बातों से लगता है कि कुछ पढने-लिखने वाले लड़के-लड़कियाँ है। कुछ पढी-लिखी और कुछ अशिक्षित गृहणियाँ है। कुछ व्यापारी है जैसे दुकान चलाने वाले। कुछ है खेती करने वाले। बहुत कम फ़ोन आते है रिटायर लोगों के।

हमें अक्सर इस बात का आश्चर्य होता है कि जो लोग अभी रिटायर है उनका ज़माना रेडियो का ज़माना था। उन्हें रेडियो की आदत रही होगी और ज़ाहिर है उस समय के गानों के शौकीन रहे होगें तो क्यों नहीं आज फ़ुरसत में अपने इस शौक को वे पूरा करते जबकि ऐसे लोगों के फोन बहुत ही कम आते है।

मैं हर शुक्रवार का हैलो सहेली ! ध्यान से सुनती हूँ और मुझे याद नहीं कि मैनें ऐसी किसी महिला का फोन सुना है जिसने यह कहा हो कि अब मैं नौकरी से रिटायर हुई हूँ और आराम से रेडियो सुनती हूँ। वैसे हमारे देश में महिलाएँ अध्यापन की नौकरी अधिक करती है। मैनें किसी अध्यापिका का फोन भी कभी नहीं सुना।

लगता है कुछ पेशे से जुड़े लोग ही विविध भारती में फ़रमाइश करते है और बाकी सब इन्हीं के फ़रमाइशी गीतों से संतोष कर लेते है।

जहाँ तक बात पिटारा की है हम तो कहेगें तीन दिन हैलो फ़रमाइश बहुत है। किसी एक दिन फ़रमाइश को छोड़ कर किसी और रूप में फ़िल्मी गीत सुनवाए जाए, किसी ऐसे रूप में जिसमें नए-पुराने उन सभी गीतों को समेटा जा सके जिनकी फ़रमाइश तो नहीं की जाती पर जो अच्छे और लोकप्रिय गीत है।

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