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Tuesday, September 7, 2010

इन्दौर के मालवा हाउस के माइक्रोफ़ोन से दूर चला गया वह संतोष-स्वर


सर्व-विदित है कि आकाशवाणी के सुनहरे दौर को रचने के लिये तकनीक से ज़्यादा उन लोगों का अवदान है जो इसे अपना घर समझ कर कार्यरत रहे और अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा को इस आदरणीय प्रतिष्ठान के लिये झोंकते रहे . आज फ़िज़ाँ और कार्य-संस्कृति बदल चुकी है लेकिन किसी ज़माने में आकाशवाणी में चुन कर आने वाले अधिकारी और कलाकार निसंदेह अभिनय,आवाज़,साहित्य,कविता,रंगमंच,संगीत जैसी बहुविध कलाओं से जीवंत तादात्म रखते थे. मालवा हाउस से भी तैतीस बरस की सुदीर्घ पारी खेल कर एक ऐसी ही शख़्सियत ने 6 अगस्त को विदा ले ली . संतोष जोशी शायद आकाशवाणी इन्दौर की लगभग अंतिम चिर-परिचित और ईमानदार आवाज़ है जिसने इस जानी-मानी प्रसारण संस्था के लिये अपना सर्वस्व दे डाला.

संतोष जोशी ने इस मुलाक़ात में बताया कि आकाशवाणी और अग्रणी समाचार पत्र नईदुनिया मालवा-निमाड़ के ऐसे दो महाविद्यालय थे जिनसे मेरी और मेरे पहले की पीढ़ी ने शब्द और स्वर का सलीक़ा सीखा. संतोष जोशी ने बताया कि वे सन 1961 से बाल-सभा में भाग लेने पहली बार मालवा-हाउस आए थे जिसमें एक प्रस्तुति के लिये उन्हें १० रू. बतौर पारिश्रमिक मिले थे.1970 में उन्होंने मुम्बई जाने का मन बना लिया. वहाँ कुछ स्टेज शोज़ आदि मिलते रहे. वहीं एक कार्यक्रम में अभिनेता विनोद खन्ना ने उन्हें देखा और अपनी फ़िल्म इम्तेहान(निर्देशक:मदन सिन्हा) के लिये मिलने को कहा और फ़िल्म में एक अच्छा ख़ासा रोल दे डाला. इस फ़िल्म के डायलॉग बाबूराम इशारा ने लिखे थे. इशारा ने संतोष में छुपे अभिनेता को पहचाना और अपनी आगामी फ़िल्म बाज़ार बंद करो(प्रमुख भूमिका:अंजना मुमताज़) में मौक़ा दिया.फ़िल्म कुछ ख़ास नहीं कर पाई.

अपने प्रसारण कार्यक्रमों से जुड़ी ख़ास याद को रेडियोनामा के साथ बाँटते हुए संतोष जोशी ने बताया कि वह सुबह बहुत दु;खद थी जब सहज में ही अपने केन्द्र पहुँचा और गेट पर ही सिक्योरिटी ने बताया कि राजीव गाँधी का निधन हो गया है.ये ख़बर मेरे लिये बहुत शॉकिंग थी.मैंने अपने कार्यक्रम का टोन ताबड़तोब बदला और उसे एक गंभीर अंदाज़ में एनाउंस किया. इसी तरह अभिनेता अशोककुमार का इंटरव्यू यादगार था जिसमें उन्होंने बताया था कि एक फ़िल्म के सीन में देविका रानी को मंगल सूत्र पहनाना था.चूँकि देविका रानी उस ज़माने की एक बड़ी सेलिब्रिटी थीं सो मेरे हाथ काँप रहे थे और मैंने मंगलसूत्र उनके बालों में उलझा दिया.

सन 1977 में स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण संतोष जोशी इंदौर लौट आए और आकाशवाणी में बतौर प्रॉडक्शन असिस्टेंट जुड़ गये. अस्सी के दशक के मध्य तक मालवा हाउस की दीवारों से उसकी प्रतिष्ठा के पोपड़े झरने लगे थे लेकिन तब तक संतोष जोशी को रणजीत सतीश,स्वतंत्रकुमार ओझा,नरेन्द्र पण्डित ,वीरेन मुंशी,अविनाश सरमण्डल,कृष्णकांत दुबे, बी.एन.बोस जैसे समर्थ वरिष्ठ साथियों का अनुभव मिल चुका था. प्रशासकीय काम के रूटीन से दूर रहने उद्देश्य संतोष 1986 में उदघोषक बन गये. इस बीच उन्हें दक्षिण भारत के जाने माने निर्देशक के.एस.सेतुमाधवन के निर्देशन में बन रही फ़िल्म “ज़िन्दगी जीने के लिये” में अवसर मिला और वे जा पहुँचे चैन्नई.फ़िल्म में राकेश रोशन,राखी और टीना मुनीम की प्रमुख भूमिका था. संगीत राजेश रोशन ने रचा था. लेकिन मुम्बईया निर्माता ने तयशुदा शर्त के मुताबिक सेतुमाधवन को पैसा देने से इनकार कर दिया और फ़िल्म क़ानूनी विवादों में फ़ँस कर रिलीज़ ही नहीं हो पाई. संतोष जोशी मानते हैं कि ये फ़िल्म उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट हो सकती थी.मुम्बई के प्रवास के दौरान संतोष जोशी मनहर,पंकज और निर्मल उधास के स्टेज शो एंकर किया करते रहे. पंकज उधास उनके पुराने दिनों के साथी हैं और आज भी जब वे इन्दौर किसी ग़ज़ल कंसर्ट के लिये आते हैं तो संतोष जोशी को ज़रूर याद करते हैं.संतोष जोशी बताते हैं कि पंकज उधास के स्टेज शो में ही उन्होंने कविता कृष्णमूर्ति को प्रस्तुत किया था जो दिल्ली से क़िस्मत आज़माने फ़िल्म नगरी आईं थीं. इस पहले कार्यक्रम के लिये कविता को सौ रूपये दिये गये थे.

संतोष जोशी ने आकाशवाणी के नाटकों में बहुत उम्दा भागीदारी की.एक नाटक में तो उन्होंने एक बुढ़िया का स्वराभिनय कर श्रोताओं को चौंका ही दिया था. ई.एम.आर.सी. द्वारा निर्मित पुरस्कृत वृत्त-चित्र बाग की छपाई में संतोष का ही वॉइस ओवर था. संदीप श्रोत्रिय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हुए नाटक में भी आवाज़ के इस उम्दा कलाकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.बढिया गिटार वादक रहे संतोष जोशी एक बेहतरीन अदाकार है और हास्य उनका बहुत दमदार इलाक़ा . आकाशवाणी इन्दौर से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ठिठोली में उनके स्वर-अभिनय से सुनाए गये लतीफ़े आज भी गुदगुदाते हैं. संतोष जोशी ऐसे गुणी और समर्पित सेवी रहे हैं जिसने युव-वाणी,महिलाओं के कार्यक्रम,वार्ताओं से लेकर नाटकों के निर्देशन तक की कमान बखूबी सम्हाली. आकाशवाणी को उनके जैसा एक बहु-आयामी कलाकार ज़रूर मिला लेकिन अभिनय की दुनिया ने निश्चित रूप से एक बेजोड़ कलाकार गँवाया है. वे यदि इन्दौर वापस न आते तो मुम्बई में उनकी जगह आज सतीश शाह,जॉनी लीवर या राजपाल यादव से तो किसी हाल में कम न होती. बहरहाल संतोष जोशी एक “संतोषी मालवी आत्मा” हैं और जो कुछ मालवा-हाउस के लिये कर पाए उससे प्रसन्न. उम्मीद करें कि अब हिन्दी रंगकर्म और आवाज़ की दुनिया के नये खिलाड़ी उनके इल्म का फ़ायदा ले सकेंगे.

Saturday, May 22, 2010

आकाशवाणी इन्दौर आज हो गया है पूरे पचपन बरस का



मालवा की सांस्कृतिक राजधानी इन्दौर का रेडियो स्टेशन मालवा हाउस के नाम से जाना जाता है. 22 मई 1955 को शुरू हुए यहाँ के आकाशवाणी केन्द्र ने रेडियो नाटकों,सुगम संगीत रचनाओं और जनपदीय कार्यक्रमों के ज़रिये देश भर में अपनी एक ख़ास पहचान बनाई है. हाँ यह भी सच है कि अस्सी के दशक तक इस केन्द्र की जो धाक थी वह अब बीते कल की बात हो चुकी है. मालवा हाउस अब नाम का रेडियो स्टेशन रह गया है जो विविध भारती एफ़.एम.के ट्रांसमिशन और अपने आंचलिक केन्द्र से समाचारों,वार्ताओं और खेती-किसानी के औपचारिक कार्यकमों का रस्मी केन्द्र बन गया है. इसी केन्द्र से कभी रचनात्मकता की सुरभि पूरे देश में फ़ैलती रही है.

कोई भी संस्थान उसके दरो-दीवार या तकनीक से समृध्द नहीं होता. उसे सवाँरते हैं कुछ लोग और उनकी कल्पनाशीलता,रचनात्मकता और समर्पण.जयदयाल बवेजा,केशव पाण्डे,नन्दलाल चावला और पी.के शिंगलू जैसे केन्द्र निदेशकों और स्वतंत्रकुमार ओझा,भाईलाल बारोट,नित्यानंद मैठाणी,विश्वदीपक त्रिपाठी (बीबीसी)भारतरत्न भार्गव(बीबीसी) निम्मी माथुर(अब मिश्रा-विविध भारती,मुम्बई) वीरेन मुंशी(बीबीसी) रमेश नाडकर्णी, सुनीलकुमार (आर.डी.बर्मन के अरेंजर,जिन्होंने बाद में रफ़ी साहब से वह प्रसिध्द ग़ैर फ़िल्मी रचना गवाई;रह न सकेगी प्रीत कुँवारी मेरी सारी रात) लेखा मेहरोत्रा(मुम्बई दूरदर्शन और वॉइस ऑफ़ अमेरिका) अमीक़ हनफ़ी,राकेश जोशी,प्रभु जोशी,इंदु आनंद,रणजीत सतीश,बी.एन.बोस,नरेन्द्र पण्डित कुछ ऐसे सशक्त नाम हैं जिन्होंने अपने ख़ून को पसीना कर इस केन्द्र की धजा को ऊँचा फ़हराया.

ब्रज शर्मा,ओम शिवपुरी,सुधा शिवपुरी, नरहरि पटेल,राजीव वर्मा,सुमन धर्माधिकारी,विजय डिंडोरकर,तपन मुखर्जी,अशोक अवस्थी,जैसे अतिथि कला्कारों ने अपनी प्रतिभा और आवाज़ के जादू के माध्यम से इस केन्द्र के नाटकों को देशव्यापी पहचान दिलवाई.प्रभु जोशी और राकेश जोशी ने मिल कर न जाने कितनी बार आकाशवाणी इन्दौर के स्टुडियोज़ में रचे प्रायोगिक नाट्य प्रस्तुतियों/रूपकों के लिये राष्ट्रीय सम्मान अर्जित किये.चेखव,मोपासा,कर्तारसिंह दुग्गल,रेवतीसरन शर्मा,चिरंजीत,एम.पी.लेले की रचनाओं पर एकाग्र नाटकों ने मालवा हाउस को देश भर में लोकप्रियता दी. ,शरद जोशी,इलाचंद्र जोशी,रमानाथ अवस्थी, देवराज दिनेश, डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन,कविवर दिनकर, महादेवी वर्मा, रामनारायण उपाध्याय , बालकवि बैरागी,गिरिवरसिंह भँवर,दिनकर सोनवलकर,देवव्रत जोशी जैसे साहित्यिक हस्ताक्षरों की दुर्लभ रेकॉर्डिंग्स मालवा हाउस से बज कर पूरी मालवा-निमाड़ जनपद को आनंदित करती रही है.राजेन्द्र माथुर,राहुल बारपुते द्वारा लिये गये कई साक्षात्कार मालवा हाउस की अमानत हैं.

शास्त्रीय संगीत रचनाओं के संग्रह के मामले में भी यह मालवा हाउस का सौभाग्य रहा उस्ताद अमीर ख़ाँ और पण्डित कुमार गंधर्व की कर्मभूमि मालवा होने से समय समय पर इस केन्द्र को बहुत दुर्लभ रचनाओं के संचयन का अवसर मिला. अमीर ख़ाँ साहब तो पहले-पहल इन्दौर केन्द्र पर आकर अपना गायन आने को राज़ी ही नहीं हुए थे क्योंकि उन्हें पहले स्वर-परीक्षण का आग्रह भेजा गया. ख़ाँ साहब ने कहा हमारा ऑडिशन कौन लेगा ? उनकी बात वाजिब भी थी. कालांतर में उन्हें समझाया गया कि यह तो मात्र एक औपचारिकता है. बेग़म अख़्तर,उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ,उस्ताद बिसमिल्ला ख़ान,उस्ताद रज्जब अली ख़ाँ, पं.भीमसेन जोशी,पं.मल्लिकार्जुन मंसूर मुबारक बेग़म,निर्मला अरूण (सिने अभिनेता गोविंदा की माँ)गिरिजा देवी,परवीन सुल्ताना, उस्ताद अहमदजान थिरकवा,उस्ताद जहाँगीर ख़ाँ,पण्डित रविशंकर,संगीतकार नौशाद,शोभा गुर्टू,संगीतकार जयदेव,प्रभा अत्रे,शंकर-शंभू, जैसे संगीतज्ञों की प्रस्तुतियों और साक्षात्कारों की कई रेकॉर्डिंग्स ने रेडियो-प्रेमी श्रोताओं के कानों को मालामाल किया है.गोस्वामी गोकुलोत्सवजी महाराज,अहमद हुसैन-मो.हुसैन,रोशन भारती,सुमना रॉय,बेला सावर,सुशील दोशी,डॉ.राहत इन्दौरी जैसे कई नामों को उनका नाम और काम मुक़म्मिल करने में आकाशवाणी इन्दौर सदा सहाय रहा है.

इस अंचल की बोलियों मालवी और निमाड़ी के प्रसार और भोले-भाले किसान भाई बहनों तक उन्हीं के अंदाज़ में प्रसारण को पहुँचाने का काम भी मालवा हाउस ने किया. नंदा-भेराजी और कान्हा जी की आवाज़ में खेती-ग्रहस्थी और ग्रामसभा कार्यक्रमों को लाखों ग्रामवासियों तक पहुँचाया. कृष्णकांत दुबे (नंदाजी) और सीताराम वर्मा(भेराजी) तो मालवा-निमाड़ के महानायक थे.

ज़माना तेज़ी से बदला है और एफ़.एम.रेडियो चैनल्स के उदभव ने आकाशवाणी केन्द्रों के लिये नई चुनौती पेश की है. अब आकाशवाणी या मालवा हाउस की रचनात्मकता या प्रसारण विस्तार या उसके सूचना तंत्र में श्रोताओं की रूचि घटती जा रही है. टी.वी.ड्राइंगरूम का स्थायी सदस्य हो गया है. रही सही कसर इंटरनेट ने पूरी कर दी है.
फ़िर भी अपने स्वर्णिम अतीत से जगमगाते मालवा हाउस के बारे में बतियाना और जुगाली करना हमेशा से सुख देता रहा है. दु:ख इस बात का है कि वर्तमान में मालवा हाउस में काम कर रहे लोगों में भावनाओं का वैसा ज्वार नहीं जिससे किसी भी रेडियो स्टेशन की गुणवत्ता निखरती और सँवरती है.नाटक का निर्माण बंद है,शास्त्रीय संगीत की रेकॉर्डिंग ख़ारिज और सुगम संगीत का निष्कासन.यदि कोई नया कार्यक्रम बनाना चाहता है तो उसे कहा जा रहा है आप ख़ुद बाज़ार जाकर प्रायोजक ढूँढिये . अब मालवा हाउस में काम करने वालों के लिये यह केन्द्र महज़ एक नौकरी हो गया है.उसके परिसर से आत्मीयता के तक़ाज़े गुम हैं और किसी काम को बेहतर अंजाम देने का जज़्बा ग़ायब. पूरा स्टेशन एनाउंसर्स के हवाले है जो रेकॉर्डिंग भी करते हैं,उदघोषणाएं भी और डबिंग भी. कॉंट्रेक्ट पर उदघोषकों के पास न उच्चारण का सलीक़ा है न भाषा का प्रवाह. टेक्नीशियंस के हवाले मालवा हाउस से वह कार्य-संस्कृति विदा हो चुकी है जिसके लिये उसकी ख्याति थी. पचपन का मालवा हाउस आई.सी.यू. में है...भगवान उसे फ़िर भी लम्बी उम्र दे.

(यही लेख प्रमुख हिन्दी दैनिक नईदुनिया ने आज ही प्रकाशित किया है. मालवा हाउस का चित्र नईदुनिया से ही साभार)

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