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Saturday, May 22, 2010
आकाशवाणी इन्दौर आज हो गया है पूरे पचपन बरस का
मालवा की सांस्कृतिक राजधानी इन्दौर का रेडियो स्टेशन मालवा हाउस के नाम से जाना जाता है. 22 मई 1955 को शुरू हुए यहाँ के आकाशवाणी केन्द्र ने रेडियो नाटकों,सुगम संगीत रचनाओं और जनपदीय कार्यक्रमों के ज़रिये देश भर में अपनी एक ख़ास पहचान बनाई है. हाँ यह भी सच है कि अस्सी के दशक तक इस केन्द्र की जो धाक थी वह अब बीते कल की बात हो चुकी है. मालवा हाउस अब नाम का रेडियो स्टेशन रह गया है जो विविध भारती एफ़.एम.के ट्रांसमिशन और अपने आंचलिक केन्द्र से समाचारों,वार्ताओं और खेती-किसानी के औपचारिक कार्यकमों का रस्मी केन्द्र बन गया है. इसी केन्द्र से कभी रचनात्मकता की सुरभि पूरे देश में फ़ैलती रही है.
कोई भी संस्थान उसके दरो-दीवार या तकनीक से समृध्द नहीं होता. उसे सवाँरते हैं कुछ लोग और उनकी कल्पनाशीलता,रचनात्मकता और समर्पण.जयदयाल बवेजा,केशव पाण्डे,नन्दलाल चावला और पी.के शिंगलू जैसे केन्द्र निदेशकों और स्वतंत्रकुमार ओझा,भाईलाल बारोट,नित्यानंद मैठाणी,विश्वदीपक त्रिपाठी (बीबीसी)भारतरत्न भार्गव(बीबीसी) निम्मी माथुर(अब मिश्रा-विविध भारती,मुम्बई) वीरेन मुंशी(बीबीसी) रमेश नाडकर्णी, सुनीलकुमार (आर.डी.बर्मन के अरेंजर,जिन्होंने बाद में रफ़ी साहब से वह प्रसिध्द ग़ैर फ़िल्मी रचना गवाई;रह न सकेगी प्रीत कुँवारी मेरी सारी रात) लेखा मेहरोत्रा(मुम्बई दूरदर्शन और वॉइस ऑफ़ अमेरिका) अमीक़ हनफ़ी,राकेश जोशी,प्रभु जोशी,इंदु आनंद,रणजीत सतीश,बी.एन.बोस,नरेन्द्र पण्डित कुछ ऐसे सशक्त नाम हैं जिन्होंने अपने ख़ून को पसीना कर इस केन्द्र की धजा को ऊँचा फ़हराया.
ब्रज शर्मा,ओम शिवपुरी,सुधा शिवपुरी, नरहरि पटेल,राजीव वर्मा,सुमन धर्माधिकारी,विजय डिंडोरकर,तपन मुखर्जी,अशोक अवस्थी,जैसे अतिथि कला्कारों ने अपनी प्रतिभा और आवाज़ के जादू के माध्यम से इस केन्द्र के नाटकों को देशव्यापी पहचान दिलवाई.प्रभु जोशी और राकेश जोशी ने मिल कर न जाने कितनी बार आकाशवाणी इन्दौर के स्टुडियोज़ में रचे प्रायोगिक नाट्य प्रस्तुतियों/रूपकों के लिये राष्ट्रीय सम्मान अर्जित किये.चेखव,मोपासा,कर्तारसिंह दुग्गल,रेवतीसरन शर्मा,चिरंजीत,एम.पी.लेले की रचनाओं पर एकाग्र नाटकों ने मालवा हाउस को देश भर में लोकप्रियता दी. ,शरद जोशी,इलाचंद्र जोशी,रमानाथ अवस्थी, देवराज दिनेश, डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन,कविवर दिनकर, महादेवी वर्मा, रामनारायण उपाध्याय , बालकवि बैरागी,गिरिवरसिंह भँवर,दिनकर सोनवलकर,देवव्रत जोशी जैसे साहित्यिक हस्ताक्षरों की दुर्लभ रेकॉर्डिंग्स मालवा हाउस से बज कर पूरी मालवा-निमाड़ जनपद को आनंदित करती रही है.राजेन्द्र माथुर,राहुल बारपुते द्वारा लिये गये कई साक्षात्कार मालवा हाउस की अमानत हैं.
शास्त्रीय संगीत रचनाओं के संग्रह के मामले में भी यह मालवा हाउस का सौभाग्य रहा उस्ताद अमीर ख़ाँ और पण्डित कुमार गंधर्व की कर्मभूमि मालवा होने से समय समय पर इस केन्द्र को बहुत दुर्लभ रचनाओं के संचयन का अवसर मिला. अमीर ख़ाँ साहब तो पहले-पहल इन्दौर केन्द्र पर आकर अपना गायन आने को राज़ी ही नहीं हुए थे क्योंकि उन्हें पहले स्वर-परीक्षण का आग्रह भेजा गया. ख़ाँ साहब ने कहा हमारा ऑडिशन कौन लेगा ? उनकी बात वाजिब भी थी. कालांतर में उन्हें समझाया गया कि यह तो मात्र एक औपचारिकता है. बेग़म अख़्तर,उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ,उस्ताद बिसमिल्ला ख़ान,उस्ताद रज्जब अली ख़ाँ, पं.भीमसेन जोशी,पं.मल्लिकार्जुन मंसूर मुबारक बेग़म,निर्मला अरूण (सिने अभिनेता गोविंदा की माँ)गिरिजा देवी,परवीन सुल्ताना, उस्ताद अहमदजान थिरकवा,उस्ताद जहाँगीर ख़ाँ,पण्डित रविशंकर,संगीतकार नौशाद,शोभा गुर्टू,संगीतकार जयदेव,प्रभा अत्रे,शंकर-शंभू, जैसे संगीतज्ञों की प्रस्तुतियों और साक्षात्कारों की कई रेकॉर्डिंग्स ने रेडियो-प्रेमी श्रोताओं के कानों को मालामाल किया है.गोस्वामी गोकुलोत्सवजी महाराज,अहमद हुसैन-मो.हुसैन,रोशन भारती,सुमना रॉय,बेला सावर,सुशील दोशी,डॉ.राहत इन्दौरी जैसे कई नामों को उनका नाम और काम मुक़म्मिल करने में आकाशवाणी इन्दौर सदा सहाय रहा है.
इस अंचल की बोलियों मालवी और निमाड़ी के प्रसार और भोले-भाले किसान भाई बहनों तक उन्हीं के अंदाज़ में प्रसारण को पहुँचाने का काम भी मालवा हाउस ने किया. नंदा-भेराजी और कान्हा जी की आवाज़ में खेती-ग्रहस्थी और ग्रामसभा कार्यक्रमों को लाखों ग्रामवासियों तक पहुँचाया. कृष्णकांत दुबे (नंदाजी) और सीताराम वर्मा(भेराजी) तो मालवा-निमाड़ के महानायक थे.
ज़माना तेज़ी से बदला है और एफ़.एम.रेडियो चैनल्स के उदभव ने आकाशवाणी केन्द्रों के लिये नई चुनौती पेश की है. अब आकाशवाणी या मालवा हाउस की रचनात्मकता या प्रसारण विस्तार या उसके सूचना तंत्र में श्रोताओं की रूचि घटती जा रही है. टी.वी.ड्राइंगरूम का स्थायी सदस्य हो गया है. रही सही कसर इंटरनेट ने पूरी कर दी है.
फ़िर भी अपने स्वर्णिम अतीत से जगमगाते मालवा हाउस के बारे में बतियाना और जुगाली करना हमेशा से सुख देता रहा है. दु:ख इस बात का है कि वर्तमान में मालवा हाउस में काम कर रहे लोगों में भावनाओं का वैसा ज्वार नहीं जिससे किसी भी रेडियो स्टेशन की गुणवत्ता निखरती और सँवरती है.नाटक का निर्माण बंद है,शास्त्रीय संगीत की रेकॉर्डिंग ख़ारिज और सुगम संगीत का निष्कासन.यदि कोई नया कार्यक्रम बनाना चाहता है तो उसे कहा जा रहा है आप ख़ुद बाज़ार जाकर प्रायोजक ढूँढिये . अब मालवा हाउस में काम करने वालों के लिये यह केन्द्र महज़ एक नौकरी हो गया है.उसके परिसर से आत्मीयता के तक़ाज़े गुम हैं और किसी काम को बेहतर अंजाम देने का जज़्बा ग़ायब. पूरा स्टेशन एनाउंसर्स के हवाले है जो रेकॉर्डिंग भी करते हैं,उदघोषणाएं भी और डबिंग भी. कॉंट्रेक्ट पर उदघोषकों के पास न उच्चारण का सलीक़ा है न भाषा का प्रवाह. टेक्नीशियंस के हवाले मालवा हाउस से वह कार्य-संस्कृति विदा हो चुकी है जिसके लिये उसकी ख्याति थी. पचपन का मालवा हाउस आई.सी.यू. में है...भगवान उसे फ़िर भी लम्बी उम्र दे.
(यही लेख प्रमुख हिन्दी दैनिक नईदुनिया ने आज ही प्रकाशित किया है. मालवा हाउस का चित्र नईदुनिया से ही साभार)
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4 comments:
आकाशवाणी का इन्दौर केन्द्र इस इलाके की सांसों में थिरकता रहा था. अब मीडियम वेव पर तो ट्यून करने को तो जी ही नहीं चाहता. किसी जमाने में मालवी निमाड़ी लोकगीतों को सुनने का बड़ा जी करता था और तब बरबस ही आकाशवाणी इन्दौर की याद आ जाती थी. किसी समय मैं भी बच्चों के कार्यक्रम का प्रतिभागी हुआ करता था. इस कार्यक्रम से हमारे शहर को न जाने कितने बड़े नाम मिले. टीवी के आने के पहले तो मीडियम वेव पर क्रिकेट कमेंट्री सुनने का एक खास जूनून होता था. महिलाओ का कार्यक्रम,युववाणी और देर रात को प्रसारैत होने वाले नाटक का बैचेनी से इंतजार रहता था. अब मालवा भी मालवा जैसा नहीं रहा और न उसका यह प्रसारण पता...मालवा हाउस....उसके पचपन का होने पर हमें अपना बचपन जरूर याद आ गया....
bahut achchhii jankari bhari post.
dhanyavaad !
श्री नरेन्द्र पंडितजी को मैंनें इसी रेडियोनामा के मंच पर याद किया था, वो बात संजयजी को याद होगी शायद । उस समय आकाशवाणी इन्दौर-भोपाल एक ट्वीन केन्द्रों के रूपमें कार्यरत थे, इस लिये सुरतमें हम लोग वाया भोपाल लघू-तरंग 41 मीटर्स पर से इन्दौर के कार्यक्तम सुन पाते थे । बादमें कभी भोपाल-इन्दौर भी सुनाई पड़ता था । बादमें सिर्फ़ भोपाल सुनाई पड़ने पर इन्दौर को मध्यम तरंग से सुननेमें काफ़ी दिक्कत होती थी । अब तो शायद देशमें अमदावाद-वडोदरा एक मात्र ट्वीन केन्द्र रह गया है और जब भी वडोदरा के कार्यक्रम होते है वहाँ से भी अमदावाद नाम ही पहेले बोला जाता है । जब कार्यक्रम के लिये पत्रव्यवहार का पता दिया जाता है तभी श्रोता जान पाते है कि वे वडोदरा से कार्यक्रम सुन रहे थे । यह बात सिर्फ प्रायमरी चेनल्स को लागु होती है । विविध भारती के दोनो केन्द्र लोकल -वेरियेसन और एक्ष्टेंसन तथा प्रसारण सभा की ओपनिंग और समाप्ती के बारेमें अलग ही है ।
बाकी संजयजी आप जो भी अपना जी जला रहे है वह स्थिती सभी सरकारी विभागों की तराह ही है, और निवृत कर्मचारी और अधिकारीयों के पदों को कहीं नीचे दरज्जे के अधिकारियों द्वारा कलवाये जाने की या उन पदों को समाप्त करने की और तनख़्वाह में बढोतरी करने के बाद नये प्रमोशन्स या भरती पर गलत तरीके की रोक लकाने से यही हाल होगा और किसी कलाकार या साहित्यकार को अम6त्रीत किया, बड़ी रासि दे कर तो इसी ध्वनि-मुद्री को बार बार पुन: पुन: प्रसारित करते रहना, इससे तो विविध भारती भी कहाँ बच पायी है ! पुन: प्रसारण कम से कम दो साल तक़ नहीं होना चाहिये । लम्बे समयांतराल के बाद तो पुन: प्रसारण तो सिर्फ़ ठीक ही नहीं पर सराहनिय भी रहेगा ।
पियुष महेता ।
सुरत
एक दो जगह उंगलियोँ के सरकाव को आप क्षमा करेंगे । यह रात्री 12 बजे के काम के कारण हुआ है ।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।