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Wednesday, July 2, 2008

हारमोनियम पर भारतीय शास्त्रीय संगीत: लेखक मृदुल मोदी

[ मृदुल मोदी आई. आई. टी. मुम्बई से पढ़े इन्जीनियर हैं । उन्हें तथा उनकी चिकित्सक पत्नी डॉ. भारती को संगीत में गहरी रुचि है । हाल के मुम्बई प्रवास के दौरान उनसे भेंट हुई तब मैंने आकाशवाणी पर फिल्म संगीत और हारमोनियम पर रोक की चर्चा की । मृदुल भाई ने इस विषय पर हमारा ज्ञानवर्धन किया। पिछले उल्लेख के बाद सुधी पाठकों ने इस विषय में रुचि प्रकट की थी। मैंने मृदुल भाई से इस पर एक नोट लिखने का निवेदन किया , जो उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया । अनुवाद मेरा है तथा तालिकाओं के चित्र बनाने में मैथिलीजी की मदद मिली है । - अफ़लातून ]


1940 से तीस वर्षों तक आकाशवाणी पर हारमोनियम भारतीय शास्त्रीय संगीत के संगत-वाद्य के रूप में अयोज्ञ होने की वजह से प्रतिबन्धित था । इस आलेख में संक्षेप में ऐसा मानने की वजह का ख़ुलासा किया गया है ।


  1. हारमोनियम ( ऐसे अन्य वाद्यों की भाँति) में बटन या कुंजी (keys) होती हैं जिन्हें दबाने पर एक निश्चित आवृत्ति (frequency) का स्वर उत्पन्न होता है । प्रत्येक सप्तक (octave) में 12 कुंजियां होती हैं - 5 काली तथा 7 सफ़ेद । इस प्रकार एक सप्तक के निश्चित आवृत्ति वाले १२ स्वर एक-के-बाद-एक बजाए जा सकते हैं । इन 12 कुंजियों की आवृत्तियाँ कैसे तय हों ?





  2. भौतिकी के संनाद - विश्लेषण (Harmonics) से हमें ज्ञात होता है कि 13 वीं कुंजी ( अगले तार सप्तक की प्रथम कुंजी ) की आवृत्ति मध्य सप्तक की प्रथम स्वर की आवृत्ति से दुगुनी होनी चाहिए। इस प्रकार यदि मध्य सप्तक की प्रथम कुंजी की आवृत्ति 100 हर्ट्ज़ (Hz) है तब तेरहवीं कुंजी की आवृत्ति 200 हर्ट्ज़ होनी चाहिए ।




  3. शेष बची मध्य सप्तक की 11 कुंजियों की आवृत्तियाँ मुकर्रर करने का एक सरल , तार्किक और अत्यन्त उपयोगी तरीका अगल-बगल की कुंजियों के बीच आवृत्तियों का समान अनुपात रखना होता है । इस प्रकार किसी निश्चित आवृत्ति से शुरु होने वाले स्वर तथा उससे दुगुनी आवृत्ति के स्वर के बीच 12 स्वरों की क्रमश: दो स्वरों की आवृत्तियों के बीच 1 : 1.0594631 का अनुपात रखा जाना चाहिए । इस प्रकार प्राप्त 12कुंजियों की आवृत्तियां नीचे की सारिणी 1 में दी गई हैं :









4. आप देख सकते हैं कि आवृत्तियां तय करने का यह काफ़ी सरल और तार्किक है । तालिका 2 में दिखाया गया है कि यह तरीका उपयोगी भी है ।


यह गौर करें कि 3 सप्तकों के सभी 12 स्वरों में क्रमवार 1 : 1.0594631 का अनुपात रखा गया है ।


5. अब सहूलियत वाले पक्ष को देखें :


कल्पना कीजिए कि भारती और मृदुल दोनों को एक - एक गीत गाना है । भारती सारिणी 2 के स्वर क्रमांक 8 को अपना षडज ( आवृत्ति १०० ) मान कर गाती है । उसके ऋषभ , गान्धार आदि की आवृत्तियां सारणी 2 में दिखाई गई है तथा वह बिना किसी दिक्कत के हारमोनियम को संगत - वाद्य के रूप में इस्तेमाल कर सकती है ।


मृदुल जब गाते हैं तब उन्हें एक दिक्कत होती है । चूँकि उनकी आवाज गंभीर है इसलिए स्वर क्रमांक 8 को षडज मान कर शुरु करने पर वे तार सप्तक के स्वर नहीं गा सकते । इस कारण वे स्वर क्रमांक 5 ( आवृत्ति 74.915 ) को षडज मान कर गाना चाहते हैं। इस स्थिति में मृदुल के स्वरों की आवृत्तियां नीचे उल्लिखित सारिणी 3 के अनुरूप होंगी ।

इस प्रकार मृदुल द्वारा गाए गए स्वरों को भारती के हारमोनियम पर ज्यों - का-त्यों उठाया जा सकता है । दूसरे शब्दों में मृदुल के स्वर 5 कुंजियां नीचे जाने पर मेल खाते हैं - इस प्रकार भारती का मन्द्र पंचम मृदुल का षडज हो जाता है । हारमोनियम की ( अथवा ऐसे अन्य वाद्यों की) यह खूबी है कि कोई भी गायक किसी भी कुंजी को अपना षडज बना सकता है । स्वर संगति के इस प्रकार को संस्कारित अथवा " 12 tone equi tempered scale" अथवा tempered scale कहते हैं ।

6. इस पृष्टभूमि को जान लेने के बाद हारमोनियम की अनपयुक्तता वाला आयाम समझा जा सकता है । सारिणी 2 के स्वर सं. 8 तथा 12 ( पंचम) की आवृत्तियों में 1: 1.49831 का अनुपात है जो स्वर-संगतिपूर्ण नहीं हैं ( not harmonic) इसी प्रकार स्वर सं. 11 (मध्यम) तथा 15 ( तार षडज ) में असंगतिपूर्ण अनुपात है । स्वर सं 10 ( गान्धार ) की आवृत्ति 125.000 होनी चाहिए ताकि उसकी षडज से संगति बैठे । सच्चाई यह है कि इस ' संस्कारित स्वर संगति ' में स्वरों में आपसी तालमेल का पूरा अभाव है जिसके कारण संगीत ( चाहे वह भारतीय हो अथवा पाश्चात्य अथवा अन्य कोई ) बेसुरापन आ जाता है । इस वजह से टेम्पर्ड स्केल वाले वाद्यों से संवेदनशील संगीतकार चिढ़ते हैं । यहूदी मेनुईन ने कहीं लिखा है ,

" पश्चिम द्वारा टेम्पर्ड स्केल का अविष्कार करना पद़्आ जिसमें हर स्वर अपने मूल
केन्द्र से ऊपर या नीचे एडजस्ट किया गया ताकि कुंजियों का समाधान निकले । मेरी पूरी
संगीत - यात्रा इससे प्रभावित रही है - मैं इसके पछतावे का दिखावा नहीं करूँगा ,
परन्तु यह भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि टेम्पर्ड स्केल हमारी पश्चिम की
श्रवण-शक्ति को भ्रष्ट करता है ।"

7. हारमोनियम के टेम्पर्ड स्केल की संनादी सीमा (harmonic limitation) अपने आप में शुद्धतावादियों द्वारा एक संगत-वाद्य के रूप में इसे अपनाने से बचने के लिए पर्याप्त है । भारतीय शास्त्रीय संगीत की हारमोनियम के प्रति आपत्ति अधिक बुनियादी है । इस आपत्ति की जड़ में यह तथ्य है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक सप्तक में 12 नहीं 22 स्वर होते हैं । इन 22 स्वरों को श्रुति कहा जता है। ऋषभ , गान्धार , मध्यम , धैवत और निषाद में प्रत्येक के 4 भेद हैं - इस प्रकार षडज और पंचम को शामिल कर लेने पर कुल 22 श्रुतियां हो जाती हैं । रे , गा , धा , तथा नि के विभिन्न प्रकारों का प्रयोग निपुण संगीतकारों द्वारा गाते / बजाते वक्त होता है । मसलन , राग तोड़ी का कोमल रे भैरवी के कोमल रे से काफ़ी जुदा होता है। श्रोता अति पंडित न भी हो तब भी उसे इनके गलत प्रयोग सुन कर वाकई परेशानी होगी ।

सामान्य हारमोनियम में दो षडजों के बीच 22 स्वरों को समायोजित करने के लिए जगह नहीं होती। इसके अलावा 22 श्रुतियों की आवृत्ति क्या - क्या हों यह संगीतकारों के बीच अपने आप में गर्मागरम बहस का विषय है । यहाँ यह उल्लेख करना चाहिए कि ठाणे निवासी सुविख्यात हारमोनियम वादक डॉ. विद्याधर ओक ने इस पर गहन शोध किया है तथा न सिर्फ १२ श्रुतियों की आवृत्तियां निश्चित करने के लिए तगड़े गणितीय तर्क दिए हैं , अपितु इन सभी को समायोजित कर मेलोडियम नामक एक यन्त्र भी विकसित किया है ।

यहाँ जिन तकनीकी मामलों की चर्चा की गई है उनकी गहन जानकारी के बिना भी महान तथा उनसे कमतर-महान गायकों ने भी भारतीय शास्त्रीय संगीत गाया है। इस विषय के गहन ज्ञान के बावजूद सुधी श्रोताओं के बीच प्रस्तुति करना आसान नहीं होता । ऐसे मामलों को ऐसी वैज्ञानिक रुझान वाली जमात के जिम्मे छोड़ देना श्रेयस्कर होगा जिन्हें चुनौतीपूर्ण पहेलियाँ सुलझाने में आनन्द आता हो ।

- मदुल मोदी .

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नोट : इस विषय में अधिक रुचि रखने वाले व्यक्त डॉ. विद्याधर ओक की " 22 Shrutis and Melodium " नामक संस्कार प्रकाशन , 6/400 अभ्युदय नगर , कालचौकी , मुम्बई - 400033 , फोन - 022 - 24755900 ,मोबाइल - 09869185959 से प्रकाशित यह पुस्तक पढ़ सकते हैं ।




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