हवामहल के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम रात 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है। इस सप्ताह एक ख़ास दिन रहा - बालदिवस, वैसे तो देश में बाल सप्ताह मनाया जाता है इसका असर इस प्रसारण में भी नजर आया।
9 बजे गुलदस्ता कार्यक्रम की शुरूवात हुई परिचय धुन से जो अंत में भी बजी। यह गैर फिल्मी रचनाओं का कार्यक्रम है। इस बार भी विभिन्न मूड की रचनाएँ सुनवाई गई।
शुक्रवार को शुरूवात हुई निदा फ़ाज़ली के कलाम से, इसे आवाजे दी चन्दन दास ने. इसके बाद कुछ ऐसे नाम आए जो इस कार्यक्रम में कम ही सुनाई देते है। हसन काजमी का कलाम तलत अजीज की आवाज में -
ख़ूबसूरत है आँखे तेरी रात को चाँद न छोड़ दे
ख़ुद ब ख़ुद नींद आ जाएगी मुझे सोचना छोड़ दे
हसन रिजवी का कलाम भी सुनवाया गया गुलाम अली की आवाज में।
शनिवार को शुरूवात हुई ग़ुलाम अली और आशा भोंसले की आवाज़ में नक्शलयल पुरी के गीत से -
नैना तोसे लागे सारी रैन जागे
इसके अलावा जगजीत सिंह की आवाज़ में वली आरसी का कलाम सुनवाया गया। छाया गांगुली की आवाज़ में कृष्ण बिहारी नूर की रचना और रविन्द्र रावल की रचना सुनी भूपेन्द्र-मिताली के युगल स्वरों में। इस दिन कुछ विविधता रही। रविवार को गीतकार और शायर नक्शलायल पुरी की रचनाएँ सुनवाई गई। शुरूवात बड़ी अजीब रही, वही गीत सुनवाया गया जिसे पिछली रात शुरू में सुनवाया गया था - नैना तोसे लागे सारी रैन जागे। लगातार दो दिन इसी रचना से शुरूवात ठीक नहीं लगी।
इसके बाद जगजीत सिह की आवाज़ में सुना - रिश्तों में दरार आई
फिर आशा भोंसले की आवाज़ और उसके बाद गूँजी दिलीप कपूर की आवाज़ जो शायद ही सुनी जाती है। सोमवार को शुरूवात में ज़फ़र गोरखपुरी का कलाम पंकज उदहास की आवाज़ मे सुनवाया गया। चंदन दास की आवाज में बशीर बद्र का कलाम, अलका याज्ञिक और हरिहरन की आवाजो में जावेद अख्तर का कलाम सुनवाया गया। अच्छी लगी यह रचना -
ढलते जाए शाम के साए लेकिन तुम न आए
मंगलवार को कुछ पुरानी स्वर लहरी उठी। शुरूवात नूरजहाँ से हुई, फिर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का कलाम सुनवाया शकीला ख़ानम की आवाज़ में। सुषमा श्रेष्ठ की आवाज़ में यह ग़ज़ल अच्छी लगी -
आज किसी ने दस्तक दी है वो भी इतनी रात गए
आहट तो ये उनकी सी है वो भी इतनी रात गए
इसके अलावा वली आरसी का कलाम अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन की युगल आवाज़ों में और बशीर बद्र का कलाम भी सुनवाया गया।
बुधवार को हेमन्त कुमार के गाए हसरत जयपुरी के गीत से शुरूवात हुई -
कल तेरी तस्वीर के सजदे किए रात हम
उसके बाद गूँजा भूपेन हज़ारिका का स्वर - ओ गंगा बहती हो क्यों
गीत रचना पंडित नरेन्द्र शर्मा की जिसके बाद वीनू पुरूषोत्तम की आवाज़ में बेख़ुद देहलवी का कलाम -
जब ख़्याल आपका नहीं होता
दर्द दिल से जुदा नहीं होता
इसके बाद एक एलबम से चन्दन दास की ग़ज़ल सुनवाई गई, कलाम बशीर बद्र का। समापन हुआ मिताली मुखर्जी की आवाज़ मे अश्क अंबालवी के कलाम से। वाह ! आनन्द आ गया !! वाकई गुलदस्ता महका, रंग-बिरंगे फूलों का।
गुरूवार को फैय्याज हाशमी के कलाम से शुरूवात हुई। गुलाम अली की आवाज में सुना कातिल शिफाई को, गुलज़ार की रचना गूंजी -
एक परवाज दिखाई दी है
एक आवाज सुनाई दी है
आवाज जगजीत सिंह की। रीता गांगुली की आवाज भी सुनी जो ज़रा कम ही सुनी जाती है।
सप्ताह में सिर्फ़ बुधवार को ही बढिया विविधता रही, हर दिन गजलों का ही बोलबाला रहा। एकाध बार विज्ञापन भी प्रसारित हुए और विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों में फ़रमाइश भेजने के संदेश तो थे ही।
हर दिन इस वाक्य से समापन अच्छा लगा - सुनने वालों के लिए ये था विविध भारती का नजराना - गुलदस्ता
9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में बालदिवस ही नही बाल सप्ताह नजर आया।
शुक्रवार को राजू बन गया जेन्टलमैन फ़िल्म के गीत लेकर आए युनूस खान जी। ख़ास जानकारी यह दी कि 17 साल पहले इसी दिन यह फ़िल्म रिलीज हुई थी और इसी दिन जूही चावला का पच्चीसवा जन्म दिन था। ऎसी ख़ास बातें जानना अच्छा लगता है।
शनिवार को बाल दिवस पर विशेष फ़िल्म लेकर आई निम्मी (मिश्रा) जी - धनपत मेहता की फ़िल्म - हम बच्चे हिन्दुस्तान के
बहुत दिन बाद सुने यह गीत -
शीर्षक गीत - हम बच्चे हिन्दुस्तान के
ये रक्षाबंधन सबसे बड़ा त्यौहार
मानचित्र पर कितना सुंदर देश हमारा है ये देश हमारा है
गीत लिखे है सनम गोरखपुरी ने। गायक कलाकार है - शमसी (पूरा नाम नोट नहीं कर पाई), अनूप जलोटा, प्रीति सागर, ज्ञानेश्वर और दिलराज कौर, इस फ़िल्म के रिलीज का वर्ष और कलाकारों के नाम नही बताए गए। मेरी जनकारी के अनुसार मुख्य भूमिका में बाल कलाकार के रूप में पल्लवी जोशी है।
सोमवार को 1965 में रिलीज फ़िल्म मेरे सनम के गीत सुनवाए गए। ओ पी नय्यर का संगीत और सिर्फ़ नायक नायिका के नाम बताए गए - विश्वजीत और आशा पारिख। इसके अलावा रेणु (बंसल) जी ने कोई जानकारी नही दी जैसे बैनर का नाम और अन्य कलाकारों के नाम। गाने सभी सुनवाए गए।
मंगलवार को 1971 में रिलीज़ आप आए बहार आई फ़िल्म के गीत सुनवाए शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। फ़िल्म के नायक राजेन्द्र कुमार नायिका साधना, गीतकार, संगीतकार और बैनर का नाम बताया गया और सभी गीत सुनवाए। लेकिन फ़िल्म से संबंधित कुछ ख़ास बातें नहीं बताई। जहाँ तक मेरी जानकारी है इस फ़िल्म में प्रेम चोपडा की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस फ़िल्म का विषय बलात्कार है और इस विषय पर बनी शायद यह पहली फ़िल्म है। इस फ़िल्म से राजेन्द्र कुमार ने एक ऐसे ड्रस का फ़ैशन चलाया जिसे सुना है उन दिनों कालेज के लडके बहुत पहना करते थे - दो गहरे रंग - हल्दी जैसा पीला और गहरा गुलबी रंग। एक ही कपडे से पैंट और शर्ट जिस पर काला चौडा बेल्ट और शर्ट के कालर चौडे।
बुधवार को 1947 मे रिलीज़ फ़िल्म दर्द के गीत सुनवाए गए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने और फ़िल्म से जुड़े सभी प्रमुख नाम बताए गए जैसे बैनर, निर्माता निर्देशक का नाम, गीतकार शकील बदायूँनी, संगीतकार नौशाद, गायक कलाकार सुरैया, उमादेवी, शमशाद बेगम और अभिनय श्याम कुमार और सुरैया का। नामों से ही समझा जा सकता है कार्यक्रम सुनने में कितना आनन्द आया होगा। शुरूवात हुई लोकप्रिय गीत से -
अफ़साना लिख रही हूँ दिले बेक़रार का
आँखों में रंग भरके तेरे इंतेज़ार का
इतनी पुरानी फ़िल्म की इससे अधिक जानकारी देना भी कठिन है। लेकिन एक बात छूट गई जो बताई जा सकती थी कि दर्द नाम से एक फ़िल्म सत्तर के दशक में भी आई थी जिसके मुख्य कलाकार राजेश खन्ना और हेमामालिनी है।
गुरूवार को बच्चो की फ़िल्म बूट पालिश के गीत सुनवाए गए। यह फ़िल्म 1954 में रिलीज हुई थी। इसका विषय है बाल मजदूरी।
इस तरह इस सप्ताह भर लगभग हर दशक से एक फ़िल्म के गीत सुनवाए गए। हर दिन फिल्म से जुड़े नाम बताए गए और दर्द और बूट पालिश को छोड़ कर बाक़ी फिल्मो के लिए कुछ ही सामान्य जानकारी भी दी गई लेकिन कई ख़ास बातें नही बताई, लगता है विविध भारती के उदघोषक फ़िल्में नहीं देखते।
रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में ख़्यात गायिका शमशाद बेगम से कमल (शर्मा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। कार्यक्रम की शुरूवात परम्परा के अनुसार परिचय धुन से हुई। इस कड़ी में मुंबई आने के बाद की बातें बताई गई। बताया कि पहली फ़िल्म महबूब साहब की तक़दीर रही। इसके बाद पन्ना फ़िल्म के सभी गीत गाए, यह फ़िल्म और गाने बहुत लोकप्रिय हुए। जब यह पूछा गया कि पर्दे पर पहली बार अपना नाम कब देखा तब बताया कि उन दिनों नाम पर इतना ध्यान नहीं होता था, कभी कहा भी नहीं नाम देने के लिए, फ़िल्मकार खुद नाम देने लगे। एक पुराने स्टूडियो को याद किया जो आज के रंजीत स्टूडियो के पास था। आज के संगीत को शोर बताया। ख़ास बात यह कही कि अंत तक उन्होनें रेडियो नहीं छोड़ा। उनकी आवाज़ में उमर का असर साफ़ नज़र आ रहा था। बीच-बीच में उनके गाए अधिक सुने जाने वाले और कम सुने जाने वाले दोनों ही तरह के गीत सुनवाए -
कहाँ चले जी प्यार में दीवाना करके
मैं तो नीम तले आ गई बहाना करके
दिल तुझको दे दिया किसी को क्या
रात रंगीली गाए रे मोसे रहा न जाए रे
मैं क्या करूँ
इस कार्यक्रम का संयोजन सुभाष (भावसरे) जी के तकनीकी सहयोग और पी के ए नायर जी के प्रस्तुति सहयोग से कमलेश (पाठक) जी ने किया और प्रस्तुति कमल (शर्मा) जी की रही। ऐसे कार्यक्रमों को प्रायोजित किया जा सकता है।
10 बजे छाया गीत प्रसारित हुआ जो प्रायोजित था। शुक्रवार को कमल (शर्मा) जी की प्रस्तुति रही। पचास साठ के दशक के कुछ लोकप्रिय और कुछ कम सुने गीतों से कार्यक्रम को सजाया गया।
फिर वही शाम वही गम वही तन्हाई
से आरम्भ कर गम, उदासी और अकेलेपन की चर्चा हुई। कम सुने गीत रहे -
दिल उनको ढूँढता है हम उनको ढूँढते है
रात में ऎसी काव्यात्मक प्रस्तुति अच्छी तो लगती है पर माहौल को उदास कर देती है।
शनिवार को अशोक जी ने इस बार भी मोहब्बत की बातें की, गीत लोकप्रिय और कम सुने दोनों ही सुनवाए -
आप से प्यार हुआ आप खफा हो बैठे
मेरे पहलू में आके बैठो खुदा के वास्ते
रविवार को युनूस (खान) जी की प्रस्तुति रही। एक ख़ास बात रही सभी गीत मुकेश के रहे अन्य गायिकाओं के साथ। लोकप्रिय गीत -
प्यार का फ़साना बनाए दिल दीवाना
और कम सुने जाने वाले गीत भी शामिल थे - तारों कि ठण्डी छैंया याद रहे
सावन, वीर दुर्गादास फ़िल्मों के गीत भी शामिल थे। आलेख में तो नई बात नहीं थी पर समापन नए ढंग से किया। सभी सुनवाए गए गीतों की झलक सुनवाते हुए विवरण यानि फ़िल्म, गीतकार, संगीतकार और गायक के नाम बताए। यह अच्छा रहा क्योंकि अक्सर इस कार्यक्रम में विवरण नहीं बताया जाता।
सोमवार को छायागीत प्रस्तुत किया अमरकान्त जी ने, सुन कर लगा कि एक विषय पर दो त्रिवेणी कार्यक्रम तैयार किए गए और इसे जोड़ कर छाया गीत के नाम से सुनवा दिया गया। विषय सुनवाए गए इन गीतों में स्पष्ट है -
मुसाफिर हूँ यारो
जिन्दगी एक सफर है सुहाना
इसके अलावा फकीरा, सम्बन्ध फिल्मो के गीत शामिल थे।
मंगलवार को शहनाज़ (अख़्तरी) जी की प्रस्तुति रही। ख़ुशियों के जहाँ की तलाश हुई, प्यार-मोहब्बत की बात हुई। कुल मिलाकर कोई नई बात नहीं थी। गाने साठ सत्तर के दशक के अच्छे सुनवाए गए। लोकप्रिय गीत -
आ जा मेरे प्यार के सहारे कभी कभी
कम सुना हुआ गीत -
ऐसा होता तो नहीं है
ऐसा हो जाएगा
तुम्ही मिल जाओ
बुधवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए। सप्ताह भर के इस समय के प्रसारण में यह एक्लौता कार्यक्रम रहा जिसमें नए गीत सुनवाए गए। इसीलिए यह प्रस्तुति ख़ास लगी।
गुरूवार को रेणु (बंसल) जी की प्रस्तुति रही, प्यार की बातें हुई -
दिल की बातें दिल ही जाने
वो चाँद खिला वो तारे हसे
इस बार भी किसी भी दिन कोई नयापन नही रहा, वही प्यार, चाँद, रात की बातें। कम से कम एक दिन बच्चो के लिए प्रस्तुत करते तो कुछ तो नया रहता।
10:30 बजे प्रसारित हुआ आप की फरमाइश कार्यक्रम जिसमे श्रोताओं की फ़रमाइश पर गीत सुनवाए गए। यह कार्यक्रम प्रायोजित रहा। हर गीत की फ़रमाइश में देश के विभिन्न भागों से औसत 5 पत्र आए और हर पत्र में नामों की लम्बी सूची। अधिकतर कुछ पुराने गीतों की फ़रमाइश की गई। बुधवार और गुरूवार को एस एम एस से प्राप्त फ़रमाइश पर गीत सुनवाए गए। अक्सर एकाध एस एम एस पर ही गीत सुनवाए गए।
शुक्रवार को साठ के दशक के अच्छे गीत सुनवाए गए। फ़िल्म गूँज उठी शहनाई से -
जीवन में पिया तेरा साथ रहे
और हरियाली और रास्ता, इन्तेकाम, प्रिंस और एक सत्तर के दशक की फ़िल्म हम किसी से कम नहीं भी शामिल रही।
शनिवार को बाल दिवस को ध्यान में रख कर श्रोताओं ने फरमाइश भेजी। शुरूवात हुई बेटी फ़िल्म के इस गीत से -
बच्चो तुम तक़दीर हो कल के हिन्दुस्तान की
इसके बाद घराना फ़िल्म का गीत सुना - दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ
सन आफ इंडिया फ़िल्म का शान्ति माथुर का गाया गीत भी शामिल था - नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूँ
इसके साथ काला बाजार फ़िल्म से खोया खोया चाँद जैसे अन्य गीत भी शामिल रहे।
रविवार को साठ सत्तर के दशक के लोकप्रिय गीत गूँजे। वक़्त, ख़ानदान, आप आए बहार आई और दुल्हन वही जो पिया मन भाए फ़िल्म से -
ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में
प्यार की छाँव में बिठाए रखना
सजना सजना
सोमवार को अनाडी, नई उमर की नई फसल, ताजमहल और ममता फ़िल्म का यह गीत सुनवाया गया -
रहे न रहे हम महका करेगे
मंगलवार को लव मैरिज, साथी, प्रेम पुजारी फ़िल्मों के गीत के साथ सुनवाया गया यह गीत -
जिस दिल में बसा था प्यार तेरा
उस दिल को कभी का तोड दिया
बुधवार को नई फ़िल्म इतिहास के साथ कुछ समय पुरानी फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए - धर्मात्मा, उमराव जान और कभी-कभी फ़िल्म का शीर्षक गीत
गुरूवार को दोस्ताना, रातो का राजा, निकाह, आशिकी के साथ पुरानी फ़िल्म हकीकत का गीत भी शामिल था।
11 बजे अगले दिन के कार्यक्रमों की जानकारी दी गई जिसका प्रसारण सीधे केन्द्रीय सेवा से होने से सभी कार्यक्रमों की जानकारी मिली हालांकि क्षेत्रीय प्रसारण के कारण सभी कार्यक्रम यहां प्रसारित नहीं होते। जिसके बाद दिल्ली से समाचार के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद प्रसारण समाप्त होता रहा।
विविध भारती का यह प्रसारण हम तक पहुँचाया सविता (सिंह) जी, शेफ़ाली (कपूर) जी, मंजू (द्विवेदी) जी, राजेन्द्र (त्रिपाठी) और संगीत (श्रीवास्तव) जी ने जयंत (महाजन) जी, प्रशांत (काटगरे) जी, अशोक (माहुलकर) जी, साइमन (परेरा) जी, सुनील (भुजबल) जी, मंगेश (सांगले) जी, वन्दना (नायक) जी और निखिल (धामापुरकर) जी के तकनीकी सहयोग से और यह प्रसारण हम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर करने) के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी आफ़िसर रहे मालती (माने) जी, आशा (नाईकन) जी, रमेश (गोखले) जी
सबसे नए तीन पन्ने :
Friday, November 20, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
आज किसी ने दस्तक दी है वो भी इतनी रात गए
आहट तो ये उनकी सी है वो भी इतनी रात गए
Is audio version available?
Post a Comment
आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।