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Thursday, March 4, 2010

वि. भा के उद‍घोषकों से हुई गलतियां

पिछले दिनों अलग अलग उद्‍घोषकों ने कई गलतियां की। संगीत सरिता कार्यक्रम में जिन दिनों राजस्थानी लोक संगीत पर शास्त्रीय संगीत का असर वाला कार्यक्रम आ रहा था तब महेन्द्र जी ने अनुवाद में कई गलतियां की जिससे की कई बार बड़ी गड़बड़ी हुई दिखी।
लगभग सारे गीतों को उन्होने विरह पर आधारित बताया, जबकि ऐसा नहीं था। एक गाने के बोल थे बाबोसा री ओळू आवे.... महेन्द्रजी ने बताया की नायिका कह रही है कि सखा तुम्हारी याद आ रही है। जबकि असल में बाबोसा का अर्थ राजस्थानी में होता है पिता या दादाजी...अब बताईये भला विवाहित नायिका को अपने दादाजी की याद आ रही है और वह कह रही है बाबोसा री ओळू (याद) आवे... और कहां महेन्द्रजी के अर्थ के अनुसार वह अपने सखा/प्रियतम को याद कर रही है।
इस तरह की और भी कई गलतियां हुई जिन्हें मैने एक पेपर पर लिखा था पर दुर्भाग्य से पिछले दिनों राजस्थान यात्रा के दौरान वह पेपर मुझसे कहीं खो गया।

पिछले हफ्ते ही भूले बिसरे गीत के पंकज मल्लिक स्पेशल में एक गीत जिसे उमा शशि ने गाया था; को बार नहीं दो बार नहीं पूरे तीन से चार बार उमादेवी का गाया बताया। अशोक हमराही जी जो इतना शोध करते हैं(?) गीत किस बैनर के तले बनी है, किस साल में बनी है... आदि बताते हैं, वे ऐसी गलती कैसे कर गये? क्या उन्हें उमाशशि और उमादेवी (टुनटुन) में फरक नहीं पता?

5 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

जब से FM सुनने लगे हैं, आकाशवाणी के किसी उद्घोषक की कोई भी ग़लती अब ग़लती नहीं लगती.

रोमेंद्र सागर said...

अजी गलती किससे नहीं होती ? और आज के ज़माने में तो गलती को गलती ही नहीं माना जाता ....क्यूंकि ना तो गलती करने वाले को अपनी गलती का अहसास होता है और ना ही सुनने/देखने वालों को ! एक ज़माना था जब उदघोषक एक एक शब्द फूक फूक कर बोला करते थे ...यहाँ तक कि सांस की आवाज़ पर भी नियंत्रण रखना पड़ता था ...और एक ज़माना यह है जब उदघोषक बड़े शान से अपनी चूड़ियों या झुमको की आवाज़ से ....या एंकरिंग करते करते पिज्जा या बर्गर खाने के चपर चपर के स्वर से लोगों का मनोरंजन करते नज़र आते हैं ! भाई काजल कुमार ने सही कहा कि जब से FM सुनने लगे हैं, आकाशवाणी के किसी उदघोषक की कोई भी ग़लती अब ग़लती नहीं लगती !

स्तिथी गंभीर है पर निदान से परे ही प्रतीत होती है !

शरद कोकास said...

आप जिन उद्घोषको की बात कर रही है निश्चित ही वे अनुभवी उदघोषक होंगे । उनसे ऐसी गलती नही होनी चाहिये । जिन उदघोषको की बात रोमेन्द्र कर रहे है उन्हे तो पता भी नही होगा यह कितना महत्वपूर्ण कार्य है । क्या करे अब यही शैली जनस्वीकृति प्राप्त कर चुकी है ।

रोमेंद्र सागर said...

बिलकुल सही फ़रमाया शरद भाई ! पहले ज़माने में तो यह काम किसी पूजा से कम नहीं होता था और स्टूडियो की अपनी एक गरिमा हुआ करती थी ....मुझे याद पड़ता है , यहाँ दिल्ली में , कुछ सीनियर उदघोषक तो अपने जूते भी बाहर उतार कर स्टूडियो में प्रवेश किया करते थे ....पर अब तो बस यही कहना है .......
"वो भी इक दौर था यह भी इक दौर है, कल जहाँ खुद था वहां, दूसरा कोई और है "

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री सागरभाई,
अब गलतीयोँको तो इतने सहज रूपसे लिया जा रहा है कि जब हम और आप जैसे उस पर ध्यान दोरते है तब कुछ ही लोग जो आकाशवाणी से है, उनको गंभीरता से लेते है और बताने के लिये आभार व्यक्त करते है और अगर कहीं अवकाश मिले भूल सुधार प्रसारणमें बताते भी है, चाहे भूल दिख़लाने वाले का नामोल्लेख नहीं भी हो, पर कभी कभी तो ऐसा होता है कि बताने पर हम कोई गुनाह कर रहे है, और उलते रूपसे सवाल पूछा जाता है, जैसे एक बार विध भारती की केन्द्रीय सेवासे किसी अवकाश-प्राप्त उद्दघोषकने अन्तरालमें श्री अनिल मोहीले की वायोलिन पर धून गुलाबी आँखें (फिल्म: ध ट्रेन ) गलत गतिसे बजाई जो एक नियम से अलग 45 RPM LP है, जो हर LP की तरह 33 पर बजाई तो उद्दघोषिका या प्रसारण अधिकारी किसी को यह अलगाव सुनने पर तो मेहसूस नहीं हुआ यह तो अचरज था ही पर जब मैनें प्रसारण अधिकारी को सीधा फोन पर इस गलती पर घ्यान आकर्षित किया तब मूझे सामने पूछा गया कि 'क्या आप इस वक्त स्टूडियोमें है और रेकोर्ड देख़ रहे है क्या ?' और फ़िर आघे ही घंटेमें एक और अन्तराल पर उसी LP को फिर उसी प्रकारकी गलत गतिसे बजाया गया । हमारे सुरतमें तो कोई उद्दघोषिका उन श्रोता लोगमें अपनी आवाझके जादूसे लोकप्रिय बनी है, जो पूराने रेडियो प्रसारण की गतिविधीयोँ, से सम्पूर्ण बेख़बर है, और रेडियो FM के अलावा MW और SW भी होता है और उसकी प्रसारण सीमा क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और आन्तर-राष्ट्रीय भी होती है और उस कक्षा के प्रसारक भी होते है,इस बातसे भी बे ख़बर है, वैसे श्रोताओँ की तारीफ़से अपनी लोकप्रियता पर इतनी मूस्ताक है,कि उसको कूपमंडूकता ही कहा जा सकता है । इस बारेमें रेडियो श्रीलंका की उद्दघोषिका श्रीमती ज्योति परमार और पद्दमिनी परेरा गलती का श्रोताके द्वारा फोन पर सुधार तूर्त ही स्वीकार करती है ।
पियुष महेता
सुरत-395001.

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