शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।
7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का जाना-पहचाना सबसे पुराना कार्यक्रम जयमाला। अंतर केवल इतना है कि पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर गाने की फ़रमाइश करते थे आजकल ई-मेल और एस एम एस भेजते है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले धुन बजाई गई ताकि विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्र विज्ञापन प्रसारित कर सकें। एकाध दिन यहाँ भी क्षेत्रीय विज्ञापन प्रसारित हुए। फिर जयमाला की ज़ोरदार संकेत (विजय) धुन बजी जो कार्यक्रम की समाप्ति पर भी बजी। संकेत धुन के बाद शुरू हुआ गीतों का सिलसिला। फरमाइश में से हर दशक से गीत चुने गए। इस तरह नए पुराने सभी समय के गीत सुनने को मिले। साथ ही अलग-अलग भाव के गीत चुने गए। अच्छा चुनाव, बढ़िया संतुलन।
शुक्रवार को - अनुपमा, हम साथ-साथ हैं, तेज़ाब, चितचोर, धड़कन और दो आँखे बारह हाथ फिल्म से यह प्रार्थना -
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम
रविवार को शुरूवात की सत्तर के दशक की लोफर फिल्म के गीत से फिर एकदम नई फिल्म 3 इडियट का गीत सुनवाया गया। इसी तरह विवाह, दिल का क्या कसूर, फूल और कांटे, गैंगस्टर के गीतों के साथ क्रान्ति फिल्म का देश भक्ति गीत भी शामिल था।
सोमवार को अजनबी, हम साथ साथ हैं, हिमालय की गोद मैं, एक बार फिर फिल्मो के गीत सुनवाए गए।
मंगलवार को एक ही नई फिल्म शामिल थी - रब ने बना दी जोडी और सभी पुराने गीत सुनवाए गए। इस दिन विविधता भी अच्छी रही - अंखियो के झरोखे से फिल्म का विभिन्न मूड का शीर्षक गीत, कन्यादान का रोमांटिक गीत, हमराज का सन्देश देता गीत -
न मुह छुपा के जियो
उपकार का देश भक्ति गीत।
बुधवार को मेरा गाँव मेरा देश, सफ़र, बेताब, याराना फिल्म का शीर्षक गीत, बार्डर फिल्म से देश भक्ति गीत सुनवाया गया और शामिल रहा यह गीत भी -
मुबारक हो तुमको हज का महीना
न थी मेरी किस्मत देखूं मदीना
गुरूवार को बार्डर, अजब प्रेम की गजब कहानी, पूरब और पश्चिम, राजा हिन्दुस्तानी और जानी दुश्मन फिल्मो के गीत शामिल रहे।
एक बात अखर गई। उगादी, गुडी पडवा के दिन फ़ौजी भाई-बहनों को शुभकामनाएं नही दी गई। यह पर्व पारंपरिक उल्लास से मनाए जाते हैं। फ़ौजी भाई-बहन अपने घर से दूर रहते हैं, उन्हें शुभकामना दी जानी चाहिए।
शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया ख्यात पार्श्व गायक यसुदास ने। पुरानी रिकार्डिंग थी। बताया गया संग्रहालय से चुन कर सुनवाई जा रही हैं। बढ़िया चुनाव।
यसुदास ने सभी वरिष्ठ गायकों को नमन किया और उनका एक चुना हुआ गीत सुनवाया - लताजी, आशाजी, रफी साहब, किशोर कुमार, तलत महमूद। खुद के गाए गीत भी सुनवाए। बताया कि फिल्मो में सलिल चौधरी ले आए।
7:45 पर शुक्रवार को सुना लोकसंगीत कार्यक्रम। शुरूवात हुई बढ़िया संकेत धुन से। विविध भारती की विभिन्न संकेत धुनों में यह धुन अच्छी हैं और कार्यक्रम की वास्तव में परिचायक धुन हैं। लोकगीतों की शुरूवात की रेहाना मिर्जा के राजस्थानी लोकगीत अंजन की सीटी से जिसके बाद प्रकाश कौर की आवाज में पंजाबी लोकगीत और समापन मनोरमा की आवाज में उत्तर प्रदेश के बिदेसिया गीत से। बढ़िया रहा कार्यक्रम।
शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे रेणु (बंसल) जी और कमल (शर्मा) जी। श्रोताओं ने विभिन्न कार्यक्रमों की तारीफ़ की जिसमे लगभग सभी कार्यक्रम शामिल हो गए। कुछ सुझाव भी थे। ख़ास बात यह रही कि यह सूचना दी गई कि जिज्ञासा कार्यक्रम शुरू हो रहा हैं। पत्र ही थे। ई-मेल नही थे।
मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में गैर फिल्मी कव्वालियाँ सुनवाई गई। शुरूवात हुई सैयानी कव्वाल की इस क़व्वाली से -
तोड़ोगे तो दिल मर गाएगे तुझको ही कहेगे सब कातिल
जिसके बाद सुनवाई गई सिराज कव्वाल की यह क़व्वाली - प्यार किया जिसने वो हुआ हैं फना
समापन हुआ मजीद शोला कव्वाल की इस क़व्वाली से - प्यार की शाम ढली
ठीक ही रही बज्म।
बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम मैं फिल्मो के फैशन डिजाइनर और स्टाइलिस्ट शाहिद आमिर से राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी की बातचीत प्रसारित हुई। शुरूवात में अपने करिअर की शुरूवात के बारे में बताया। बताया कि पहली फिल्म आशिकी हैं। अपने काम के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। अच्छी जानकारी मिल रही हैं इस क्षेत्र के बारे में। बातचीत जारी हैं, अगले सप्ताह अगला भाग प्रसारित होगा। प्रस्तुति वीणा (राय सिंघानी) जी की रही। तकनीकी सहयोगी रहे निखिल(धामापुरकर) जी।
गुरूवार और रविवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। रविवार को विभिन्न रागों की झलक लिए यह फ़िल्मी गीत सुनवाए गए -
राग बहार - मन की बीन मतवारी बाजे (फिल्म शबाब)
राग बैरागी भैरव - जय शिव शंकर (संत ज्ञानेश्वर)
राग भैरवी - माता सरस्वती शारदा (आलाप)
गुरूवार को इन रागों पर आधारित यह गीत सुनवाए गए -
राग यमन - हुस्न वाले तेरा जवाब नही
राग भोपाली - बैरन नींद न आए (चाचा जिंदाबाद)
राग गौड़ मल्हार में बहुत ही कम सुना जाने वाला गीत फिल्म हमारी याद आएगी से -
छैल छबीला ----- ओ जी मैं क्या बोलूँ सरकार
राग भैरवी - टूटे न दिल टूटे न (फिल्म अंदाज)
8 बजे का समय है हवामहल का जिसकी शुरूवात हुई गुदगुदाती धुन से जो बरसों से सुनते आ रहे है। यही धुन अंत में भी सुनवाई जाती है।
शुक्रवार को सुनवाई गई झलकी - घरवाली बाहरवाली जिसके लेखक है डा शरद सिंह और निर्देशक है राकेश ढौढीयाल। पत्नी कहती है वो भी नौकरी करेगी, स्टेनो बन सकती हैं, शादी से पहले टाइपिंग शार्ट हैण्ड सीखा हैं, इन संवादों से लगा झलकी पुरानी हैं, पर आज भी सुनने में अच्छी लगी। पति के कहने पर वो घर में कर्मचारी की तरह काम करती हैं। कर्मचारी बन कर वह नियम क़ानून की बात करती हैं और अधिकारों की भी जबकि घरवाली यानि पत्नी काम को धर्म मानती हैं। यह भोपाल केन्द्र की प्रस्तुति थी।
शनिवार को दिनेश भारती की लिखी नाटिका सुनवाई गई - बजट जिसके निर्देशक है मधुर श्रीवास्तव। इलाहाबाद केन्द्र की इस प्रस्तुति में बताया कि सरकार का आम बजट आने से पहले यह सोच लिया जाता हैं कि किन चीजो के दाम बढ़ेगे और वो चीजे साल भर की जरूरत के लिए खरीद ली जाती हैं, पर बजट में इनके दाम नही बढ़ते। इस तरह बजट संभालने के चक्कर में घर का बजट बिगड़ जाता हैं।
रविवार को प्रमोद वैष्णव की लिखी झलकी सुनी - सरप्राइज। पति अपनी पत्नी को सरप्राइज देना चाहता हैं पर पत्नी उस पर शक करती हैं। एक संवाद में मोबाइल फोन की चर्चा हुई जिससे लगा कि यह झलकी नई हैं, अन्यथा विषय, संवाद सभी दृष्टि से यह झलकी पुरानी ही लग रही थी। जोधपुर केंद्र से यह गोविन्द त्रिवेदी जी की प्रस्तुति रही।
सोमवार को सुनवाई गई झलकी - छोडिए भी जिसके लेखक है डा शरद सिंह और निर्देशक है राकेश ढौढीयाल। इस झलकी से मनोरंजन तो हुआ ही सन्देश भी अच्छा रहा - सिर्फ समाज में स्तर बनाए रखने के लिए पशु नही पालना चाहिए, इससे पशु और इसके मालिक दोनों को कष्ट होता हैं। यह भोपाल केन्द्र की प्रस्तुति थी।
मंगलवार को प्रकाश साथी की लिखी झलकी सुनी - नहले पे दहला जिसके निर्देशक है कमल दत्त। पति को बोनस मिलता हैं, पत्नी के साथ बाहर खाना भी खाना हैं, दोस्त उधार मांगे तो देना हैं, खुद का उधार चुकता करना हैं। ठेठ हवामहल की शैली के अनुरूप झलकी। दिल्ली केंद्र की यह प्रस्तुति रही।
बुधवार को गुडविन मतई (शायद नाम लिखने में गलती हो) की लिखी झलकी सुनी - और दांत उखड गए जिसके निर्देशक है विनोद आनंद। रायपुर केंद्र की यह प्रस्तुति मजेदार रही। बुढऊ मियाँ मजनू हसीनो को निहारने का शौक़ रखते हैं। अंत में एक हसीना ऎसी पिटाई करती हैं कि वो दांत झट से उखड जाते हैं जो उखड नही रहे थे और जिनसे दर्द बहुत था। हवामहल की प्रकृति के अनुसार गुदगुदाने वाली झलकी थी।
गुरूवार को भी गुदगुदाने वाला प्रहसन सुना - कवि और यमदूत। शीर्षक से ही समझा जा सकता हैं कि कवि यमदूत को भी पकड़ कर अपनी रचना सुनाते हैं। यमदूत लेने आया हैं, कवि को लगता हैं कवि सम्मलेन का न्यौता हैं, यमदूत पकड़ कर ले जाता हैं, कवि चिल्लाता हैं, सपना टूटता हैं। इंदौर केंद्र की इस प्रस्तुति के लेखक डा राजेन्द्र शर्मा और निर्देशक संतोष जोशी।
इस तरह हवामहल में अच्छा मनोरंजन हुआ। साथ ही सन्देश भी मिला। लेकिन एक बात अखर गई, एक ही केंद्र से, एक ही लेखक की, एक ही निर्देशक की दो झलकियाँ एक ही सप्ताह में... हालांकि विषय अलग थे, फिर भी...
प्रसारण के दौरान संदेश भी प्रसारित किए गए, कार्यक्रमों के बारे में बताया। एकाध बार क्षेत्रीय विज्ञापन भी प्रसारित हुए। शुक्रवार को जयमाला में यसुदास का गीत सुनवाते हुए बताया शनिवार को यसुदास द्वारा प्रस्तुत विशेष जयमाला सुनवाया जाएगा। लोक संगीत, राग-अनुराग कार्यक्रम की समाप्ति पर बताया अगले दिन सुबह यह दुबारा प्रसारित होगा। अच्छा लगा इस तरह जानकारी देना।
इस प्रसारण को संगीता (श्रीवास्तव) जी, शेफाली (कपूर) जी, अमरकांत जी ने सुनील (भुजबल) जी, प्रदीप (शिन्दे) जी, आर वी दवे जी के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुँचाया और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर करने) के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी रही मालती (माने) जी।
रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।
सबसे नए तीन पन्ने :
Friday, March 19, 2010
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