विविध भारती के कार्यक्रमों की विविध श्रेणियां हैं। कुछ श्रेणियों के कार्यक्रम पारंपरिक हैं तो कुछ आधुनिकता लिए हुए। कुछ कार्यक्रम अपूर्व हैं, कार्यक्रमों का ऐसा स्वरूप अन्य चैनलों पर नजर नहीं आता हैं। ऐसे ही हैं सदविचारों के कार्यक्रम। इस श्रेणी में दो कार्यक्रम आते हैं चिंतन और त्रिवेणी। दोनों ही दैनिक कार्यक्रम हैं और सुबह की सभा में प्रसारित होते हैं।
सुबह-सवेरे जब कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू होता हैं तब पहला ही कार्यक्रम होता हैं चिंतन। यह वास्तव में भक्ति संगीत के कार्यक्रम वन्दनवार का एक भाग हैं पर चिंतन से पहले और बाद में हल्की सी संकेत धुन इसके अलग अस्तित्व का आभास कराती हैं।
इसमे उदघोषक एक सदविचार बताते हैं जो किसी महापुरूष का कथन होता हैं या जीवन दर्शन की कोई नीति हैं या देश के महान नेताओं के उपदेश या क्रांतिकारियों, साहित्यकारों के विचारों को बताया जाता हैं। यह एक ऐसा विचार होता हैं जो महापुरूषों के अनुभव, चिंतन, मनन से प्राप्त जीवन दर्शन को बताता हैं। इस तरह जीवन को एक प्रेरणादायी सन्देश मिलता हैं। लेकिन दैनिक जीवन में सिर्फ आदर्श ही नहीं व्यावहारिकता भी जरूरी हैं इसी बात की पूर्ति करता हैं त्रिवेणी कार्यक्रम।
त्रिवेणी में दैनिक जीवन की व्यवहारकुशलता पर चर्चा होती हैं। इसमे मानव जीवन से लेकर प्रकृति के संतुलन तक की व्यावहारिकता हैं। यहाँ जीवन की छोटी-छोटी बातों पर भी महत्वपूर्ण चर्चा होती हैं। इसमे उदघोषक किसी एक विचार या विषय पर चर्चा करते हैं जिससे एक सकारात्मक सोच का विकास होता हैं। चूंकि कार्यक्रम 10-12 मिनट का हैं इसीसे बीच-बीच में विषय से सम्बंधित 3 गीत सुनवाए जाते हैं। महत्त्व चर्चा का हैं इसीसे गीत पूरे नहीं सुनवाए जाते। जितना बढ़िया यह कार्यक्रम हैं उतनी हैं आकर्षक हैं इसकी संकेत धुन जो आरम्भ और अंत में बजती हैं। पता नही यह धुन मूल रूप से तैयार की गई हैं या विभिन्न धुनों का मिश्रण, पर धुन हैं अच्छी। इस तरह सुबह के प्रसारण में इन दोनों ही कार्यक्रमों से दिन की शुरूवात अच्छी होती हैं।
आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -
इस सप्ताह तीन विशेष अवसर रहे - ईद, गणेश चतुर्थी और हिन्दी दिवस
6:05 पर सुनाया गया चिंतन। शुक्रवार को ईद को ध्यान में रखते हुए मोहम्मद साहब का कथन बताया - जो दूसरो का भला करता हैं उसका भला खुदा आप करता हैं। भलाई को बुराई से दूर रखो।
शनिवार को सोमदेव का कथन बताया गया - यशस्वी मनुष्य अपयश नही सह सकता। अच्छा होता इस दिन बुद्धि, चातुर्य से सम्बंधित कोई कथन बताया जाता। इस दिन गणेश चतुर्थी थी, गणेश जी गणनायक, प्रथम देवता, सदबुद्धि देने वाले माने जाते हैं। कोई ऐसा ही कथन ज्यादा उपयुक्त रहता।
रविवार को एलबर्ट आइन्स्टाइन का कथन बताया गया - किसी सफ़र में जाने से पहले उसकी कठिनाइयों के बारे में सोचा जाए तो हम सफ़र पूरा नही कर पाएंगे। जीवन के सफ़र में भी कठिनाइयां हैं।
सोमवार को जवाहर लाल नेहरू का कथन बताया गया - प्रेम और सदभावना ही एक ऐसा अस्त्र हैं जिससे समाज में शान्ति स्थापित की जा सकती हैं इसीलिए प्रेम और सदभावना को समाज के हर वर्ग में फैलाना हैं।
मंगलवार को हिन्दी दिवस था। इस दिन भाषा पर नही, गुरू की महिमा का बखान हुआ। इस दिन आचार्य रजनीश का कथन बताया गया - गुरू की महिमा ईश्वर से बढ़ कर हैं। गुरू हमेशा ईश्वर का साक्षात्कार कराता हैं। अच्छा होता इस दिन हिन्दी से सम्बंधित कोई कथन बताया जाता। गांधीजी सहित कई नेताओं के कथन इस सम्बन्ध में हैं।
बुधवार को स्टर्लिंन का कथन बताया गया - अपनी वर्त्तमान खुशियों को इस तरह भोगो कि भविष्य की खुशियों को हानि न हो। जो कर्तव्य का पालन करते हैं वही भावी खुशी भोगते हैं।
आज सुबह समाचार शुरू होते ही खरखराहट रही। बाद में साफ़ सुनाई दिया। जैसे ही चिंतन शुरू हुआ कुछ भी सुनाई नही दिया जब सुनाई देने लगा तब ही चिंतन समाप्त हुआ और भक्ति गीत शुरू हुए। इस तरह हम चिंतन सुन नही पाए। बाद में प्रसारण साफ़ सुनाई दिया। शायद कुछ समय के लिए तकनीकी समस्या रही। वैसे उस समय बारिश बहुत जोर से हो रही थी।
7:45 को त्रिवेणी कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। यह कार्यक्रम प्रायोजित होने से शुरू और अंत में प्रायोजक के विज्ञापन प्रसारित हुए।
शुक्रवार को सुन कर लगा कि नेहरू जी के जन्मदिवस के लिए तैयार किए गए कार्यक्रम को इस दिन फिर से प्रसारित किया गया। वैसे कार्यक्रम अच्छा था पर 14 नवम्बर न होने की वजह से इस रूप में सुनना अटपटा सा लगा। थोड़ा सा फेरबदल करने से यह कार्यक्रम सामान्य दिन के लिए भी अच्छा हो जाता था। शुरूवात आजाद भारत में नेहरू के योगदान से की। पंचशील और पंचवर्षीय योजना की चर्चा की। कर्म में आस्था रखने वाले नेहरू का नारा बताते हुए वह गीत भी सुनवाया -
आराम हैं हराम
फिर बच्चो की चर्चा की कि उनकी परवरिश अच्छी होनी चाहिए क्योंकि ये ही कल के नागरिक और देश का भविष्य हैं और गीत सुनवाया -
बच्चो तुम तक़दीर हो कल के हिन्दुस्तान की
उसके बाद चर्चा हुई कि देश की प्रतिभाओं ने विश्व में स्थान पाया हैं, उन्हें नफ़रत से दूर रखना और अच्छा माहौल देना चाहिए। यहाँ गीत अंतरे से सुनवाया क्योंकि विषय के अनुसार यही से सुनना उचित हैं -
मेरी दुनिया में न पूरब हैं न पश्चिम
यह गीत हैं - मेरी आवाज सुनो। जैसा कि मैंने पहले बताया इस कार्यक्रम की खासियत विषय हैं जिस पर उचित नए-पुराने गीत सुनवाए जाते हैं। इसीलिए गीत कम भी सुनवाए जाते हैं और जहां से अधिक उचित हो वही से सुनवाया जाता हैं जिससे कार्यक्रम सार्थक हो जाता हैं। अच्छी हैं यह शैली।
शनिवार का दिन बहुत विशेष था। इस दिन दो ख़ास अवसर थे - ईद और गणेश चतुर्थी। लेकिन न ईद की मुबारकबाद दी गई और न गणेश उत्सव का उत्साह नजर आया। मेरी समझ में सुबह के प्रसारण में सभी कार्यक्रमों में ख़ास दिन का उल्लेख होना चाहिए। ऐसे अवसर बहुत ही कम मिलते हैं जब ईद और त्यौहार साथ हो। त्रिवेणी कार्यक्रम के स्वरूप के अनुसार यह बहुत ही विशेष दिन था। इस दिन संस्कृति की बात की जा सकती थी पर इस ओर ध्यान ही नही रहा और विज्ञान और तकनीकी की बात की, देश की हर क्षेत्र में हो रही प्रगति की बात की। सुनवाया यह गीत -
आओ तुम्हे चाँद पे ले जाए
बताया कि देश के नेताओं ने वैज्ञानिकों के साथ मिल कर तकनीकी उन्नति की नींव बहुत पहले ही रख दी थी। विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति, फिर यह गीत -
जागेगा इंसान ज़माना देखेगा
यह भी बताया कि कभी-कभार कुछ दुःख दायी घटनाएं भी हो जाती हैं, लेकिन प्रेरणा दायी प्रसंग भी हैं जिससे देश की अखण्डता बनी हैं , गीत रहा -
छोडो कल की बाते
अंत में उन फिल्मो के नाम भी बताए जिनके गीत सुनवाए गए - जख्मी, आदमी और इंसान और हम हिन्दुस्तानी। इस तरह कार्यक्रम अच्छा होने पर भी इस दिन के लिए ठीक नही रहा।
रविवार को बताया गया कि हमारा सामाजिक ढांचा इतना गहरा हैं कि हम अपने जीवन का कोई निर्णय लेते समय इस बात पर अधिक ध्यान देते हैं कि लोग क्या कहेंगे। सामाजिक मर्यादा का ध्यान रखे पर इन बातों की परवाह न करे। समाज में कुछ लोगो का काम ही यही हैं, दूसरो के बारे में अच्छी-बुरी बाते बनाना। यहाँ एक मुहावरे का भी अच्छा प्रयोग किया कि लोग सूरज पर भी कीचड़ उछालते हैं पर कीचड़ सूरज तक पहुंचता नहीं हैं। हमें इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए -
दीवाना मुझको लोग कहे, मैं समझूं जग हैं दीवाना
लोग जल गए जाने क्या बात हुई
कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम हैं कहना
अंत में उन फिल्मो के नाम भी बताए जिनके गीत सुनवाए गए - दीवाना, रास्ते प्यार के और अमर प्रेम। अच्छी रहा विषय और गीत भी।
सोमवार को चर्चा हुई कि नफ़रत की भावना होनी ही नही चाहिए पर हर तरफ नफ़रत नजर आती हैं। प्यार और अपनेपन की चंद बूंदों से नफ़रत की ये आग बुझ सकती हैं। ईश्वर ने हमें प्रेम और भाईचारे से रहने के लिए भेजा हैं लेकिन हमने अपने चारो ओर नफ़रत की दीवार खडी कर ली हैं। चर्चा के दौरान उपयुक्त तीन गीत सुनवाए गए -
नफ़रत की दुनिया को छोड़ कर प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार
नफ़रत की लाठी तोड़ो -----------मेरे देश प्रेमियों आपस में प्रेम करो
और समापन किया इस गीत से - नफ़रत करने वालो के सीने में प्यार भर दूं
फिल्मो के नाम नही बताए गए। गीत इतने लोकप्रिय सुनवाए गए कि नाम बताने की जरूरत ही नही थी।
मंगलवार को इस दूसरे कार्यक्रम में भी हिन्दी दिवस का ध्यान नही रखा गया। हमारे इस बहुभाषी देश पर अच्छा कार्यक्रम तैयार किया जा सकता था। इस तरह के अच्छे गीत भी हैं पर हिन्दी भाषा का उल्लेख तक नही हुआ। इस दिन नाम की चर्चा हुई। बताया कि नाम से ही पहचान हैं। नाम के लिए लोग क्या-क्या करते हैं। नाम की खातिर खतरों से भी जूझते हैं। हम भी चाहते हैं कि हमारे देश का नाम हो। कई हस्तियों के नाम रोशन हैं। लोग बच्चो का नाम भगवान के नाम पर रखते हैं ताकि इस बहाने भगवान का नाम ले सके। चर्चा के दौरान यह गीत सुनवाए गए जो आलेख के साथ कुछ जमे नही -
मेरा नाम अब्दुल रहमान रिक्शा वाला मैं हूँ पठान
मेरा नाम राजू घराना अनाम
समापन इस गीत से किया जो ठीक रहा - जब तक दुनिया हैं रहेगा तेरा नाम मेरा नाम
संदेशप्रद दोनों ही कार्यक्रमों में हिन्दी की चर्चा तक नही हुई जबकि विविध भारती पूरी तरह से हिन्दी चैनल हैं। इस बात से इन्कार नही किया जा सकता कि सिर्फ अपने देश में ही नही बल्कि विदेशों में भी हिन्दी की लोकप्रियता में हिन्दी फिल्मो का महत्वपूर्ण योगदान हैं। विविध भारती हिन्दी फिल्मी गीतों का गढ़ हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में वर्षो से विविध भारती का योगदान रहा हैं फिर हिन्दी दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिन की इन दो कार्यक्रमों में चर्चा तक नही की गई जबकि दिन के शुरूवाती प्रसारण के ये महत्वपूर्ण कार्यक्रम हैं।
बुधवार को अच्छी प्रस्तुति रही। चर्चा रही कि जीवन में सफलता सभी चाहते हैं पर सभी कामयाब नही होते। इसके कई कारण हैं। कोई खिलाड़ी होता हैं तो कोई अनाडी होता हैं। इन दोनों के बीच की भावना हैं चतुराई जिसमे छिपी हैं प्रेम की भावना जो हम भारतीयों में रची-बसी हैं। यही हमें संघर्ष में संयम देती हैं और सहज हो कर हम असफलता के कारण ढूंढ सकते हैं। चर्चा के दैरान गीत भी उपयुक्त चुन कर सुनवाए गए -
जिन्दगी हैं खेल कोई पास कोई फेल
प्रेम के पुजारी हम हैं
और समापन किया इस गीत से - रूक जाना नही तू कहीं हार के
आज की त्रिवेणी भी अच्छी रही। असामाजिक कार्यों पर चर्चा हुई। बताया कि कोई भी कर्म अपने आप में पाप या पुण्य नही होता। हालात के अनुसार ऐसे काम करने पड़ते हैं जिसे समाज मान्यता नही देता। वैसे जो कमजोर होते हैं वही इस राह पर चलते हैं। कुछ लोग काँटों पर चलना पसंद करते हैं पर ऐसे काम नही। कुछ लोग इन बुरे कामो को चतुराई मानते हैं और ऐसे ही कामो से उम्र गुजार देते हैं। चर्चा के दौरान सुनवाए ये गीत -
चोरी मेरा काम फिल्म का शीर्षक गीत
बनारसी बाबू फिल्म का शीर्षक गीत - बुरे भी हम भले भी हम
अंत में कहा, कहीं ऐसे लोग आपके आसपास भी तो नही और सुनवाया बंटी और बबली फिल्म का गीत - दुनिया को ठेंगा दिखाई के
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Thursday, September 16, 2010
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