सबसे नए तीन पन्ने :

Sunday, June 26, 2011

..आखिरकार सपना बन गया हकीकत!

मित्रों, इन दिनों रेडियोनामा पर हम शुभ्रा शर्मा जी के संस्मरण प्रकाशित कर रहे हैं। इस श्रंखला की अब तक जितनी भी कड़ियाँ प्रकाशित हुई है उन्हें आप सुधी पाठकों ने बहुत सराहा और प्रोत्साहन दिया। इस कड़ी में हम आज आपके लिए एक और मशहूर समाचार वाचिका क्लेयर नाग के संस्मरण प्रकाशित कर रहे हैं। यह आलेख हमें जागरण-याहू .कॉम से मिला है। हम चाहते हैं कि रेडियो से जुड़ी सारी जानकारियाँ और समाचार वाचकों के संस्मरण हम यहाँ एकत्रित कर सकें।

..आखिरकार सपना बन गया हकीकत!
नई दिल्ली। रांची के दूर-दराज के एक आदिवासी कस्बे की रहने वाली और वहीं पली-बढ़ी क्लेयर नाग के लिए देश की राजधानी को अपना बसेरा बनाना और आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग में समाचार वाचिका बन करोड़ों लोगों को दुनियाभर में पल-पल घटित हो रही घटनाओं की जानकारी देने का माध्यम बनना, किसी सपने के सच हो जाने जैसा था।

आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग में 27 बरस सेवाएं देने के बाद पिछले साल मार्च में सेवानिवृत्त हुईं क्लेयर बचपन से ही लीक से हटकर कुछ करना चाहती थीं। पिता की प्रेरणा से अखबार पढ़ना शुरू किया और धीरे-धीरे देश-दुनियाभर की खबरों में रुचि जग उठी। राजनीति शास्त्र में एम.ए. क्लेयर शादी के बाद 1980 में दिल्ली आई। उस समय तक उन्होंने आकाशवाणी भवन में कदम तक नहीं रखा था। एक दिन समाचार पत्र में छपे आकाशवाणी के विज्ञापन को देख उनके मन में आस जगी और तुरत-फुरत आवेदन कर डाला। लिखित परीक्षा, स्वर परीक्षा और साक्षात्कार की सीढि़यां एक-एक कर के पार होती चली गई और एक दिन क्लेयर ने खुद को आकाशवाणी के समाचार कक्ष में पाया।

क्लेयर बताती है कि उन दिनों आकाशवाणी में देवकीनंदन पांडे, विनोद कश्यप, रामानुज प्रसाद सिंह, जयनारायण शर्मा, मनोजकुमार मिश्र, अशोक वाजपेयी, राजेंद्र अग्रवाल जैसे मंजे हुए समाचार वाचक थे। मुझे विद्वानों के बीच काम करने और उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। शुरू-शुरू में मुझे कुछ संकोच हुआ लेकिन मेरे आत्मविश्वास ने मुझे टिकाए रखा।

वे बताती है कि उन दिनों माइक पर आने का मौका सहजता से नहीं मिलता था। उनका चयन समाचार वाचक एवं अनुवादक पद पर हुआ था। बीते दिनों को याद करते हुए क्लेयर कहती हैं कि उन दिनों अनुवाद खूब कराते थे और पूरी तरह मंजने के बाद ही माइक पर आने का मौका मिल पाता था। क्लेयर के लिए यह काम एकदम नया था और उस पर देवकीनंदन पांडे, विनोद कश्यप, अशोक वाजपेयी जैसे दिग्गजों की उपस्थिति। शुरू-शुरू में उन्हे कुछ परेशानी हुई लेकिन वरिष्ठों के मार्गदर्शन की बदौलत धीरे-धीरे सब सहज होता चला गया।

क्लेयर ने आकाशवाणी पर खबरे पढ़ने की शुरूआत 'धीमी गति के समाचार' वाले बुलेटिन से की। करीब साल भर बाद उन्हे पहली बार पांच मिनट का बुलेटिन पढ़ने का मौका मिला। पहले दिन के समाचार वाचन के अनुभव के बारे में पूछने पर क्लेयर ने बताया कि समाचार बुलेटिन समाप्त होते ही उद्घोषक उनसे मिलने आए और उन्हे बहुत सराहा। उसके बाद क्लेयर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे लोग आवाज पहचानने लगे। रांची के लोग तो बहुत ही खुश हुए। उन्हे लगता है कि समाचार प्रभाग में अस्सी के दशक के माहौल में और अब में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। बुलेटिनों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है और उसी हिसाब से काम भी पहले की तुलना में काफी बढ़ गया है। टाइपराइटरों की जगह कंप्यूटर ने ले ली है। इससे संपादन अपेक्षाकृत आसान हो गया है। वे कहती हैं कि जब उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी तो उस समय लगता था कि हम पर बड़ों का साया है। उनसे जितना सीखेंगे अच्छा होगा, लेकिन कंप्यूटर युग में जीने वाले आजकल के बच्चों को लगता है कि जिन चीजों की उन्हे जानकारी है, बड़े उनके बारे में नहीं जानते। इसलिए बड़ों की बाते गंभीरता से सुनना, उनका सम्मान करना और उनसे सीखने की कोशिश करना जैसी बाते अब पुरानी पड़ गई है। आकाशवाणी श्रव्य माध्यम है। श्रोता एक-एक शब्द सुनकर आत्मसात करते है इसलिए सभी को अपना काम जिम्मेदारी से काम करना चाहिए। उनका मानना है कि नए लोगों में समय की पाबंदी की भी कमी है, जबकि आकाशवाणी में एक-एक क्षण कीमती होता है।

क्लेयर आकाशवाणी में बिताए अपने दिनों को याद कर कहती है कि उन्होंने पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम किया और बदले में आकाशवाणी ने भी उन्हे बहुत कुछ दिया।

10 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

क्लेयर नाग ने एकदम सही कहा. पर ये उन्होंने भी नहीं कहा कि हिंदी न्यूज़ रूम में हर सीनियर गुरूडम का भयंकर शिकार रहता है... उसे जूनियर चींटियों जैसे दिखते हैं और बेचारे कैज़ुअल तो जैसे अस्तित्वविहीन. यहॉं इस बात पर ही राजनीति रहती है कि कौन कौनसा बुलेटिन हथिया सकता है. कमरे में बैठे नहीं कि ऐसी लंबी लंबी छोड़ते हैं कि सुनने वालों को उबकाई आ जाए. HNR मेरे जीवन का सबसे बेढब अनुभव है...

Anonymous said...

बहुत बार क्लेयर नाग जी से समाचार सुने पर आज पहली क्लेयर जी के बारे में जानना अच्छा लगा.

अन्नपूर्णा

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह वाह
(आशा है कि यह प्रतिक्रिया आपको अवश्य पसंद आएगी)

Yunus Khan said...

काजल भाई आपकी दोनों प्रतिक्रियाएं पसंद करने लायक़ हैं। मैं मानता हूं कि अमूमन कैजुअल बंदों के साथ भेदभाव किए जाते हैं। मैं ख़ुद कैजुअली के रास्‍ते यहां तक पहुंचा हूं। और आसपास के नज़ारे ख़ामोशी से देखता हूं तो पुराने दिन याद आते हैं। क्‍लेयर जी के बारे में जानना अच्‍छा लगा सागर भाई। शुभ्रा जी ने बताया है कि क्‍लेयर जी रांची में हो सकती हैं। उनके बारे में पता लगाया जा रहा है।

Yunus Khan said...

शुभ्रा जी की प्रतिक्रिया।

काजल कुमार की प्रतिक्रिया से मैं सहमत नहीं हूँ. हर समाचारवाचक हर समय "गुरुडम" दिखाता नहीं घूमता. ज़्यादातर लोग अपने काम में उलझे होते हैं. अंतर आया है नयी पीढ़ी के कैज़ुअल्स में, जो अपने को अधिक ज्ञानी और दूसरों को मूर्ख समझने का पूर्वाग्रह लेकर आते हैं. HNR उनके लिए काम सीखने की जगह नहीं, मात्र स्टेशन का प्लेटफॉर्म है, जहाँ से वे निजी चैनलों की गाड़ी पकड़ना चाहते हैं. पौराणिक कथा याद आती है कि रावण राजनीति का परम ज्ञाता था. उसकी मृत्यु निकट जानकर भगवान राम ने लक्ष्मण को उसके पास नीति सीखने भेजा. लक्ष्मण ने सिरहाने खड़े होकर पूछा तो रावण ने मुंह फेर लिया. फिर राम स्वयं गए, चरणों में बैठे, प्रणाम निवेदित किया और तब पूछा. रावण ने उन्हें नीति का उपदेश दिया. समझे मित्र?

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

:)

Anonymous said...

आज की युवा पीढ़ी में सीनियर्स के लिए सम्मान जैसी कोई बात ही नज़र नहीं आती । वे सीखने से अधिक सिखाने में यक़ीन रखते हैं । और आकाशवाणी में तो जो एक बार क़दम रख लेता है वो अपने को देवकीनन्दन पाँडे या विनोद कश्यप से कम नहीं समझता । इसके पीछे सरकार की नीतियाँ भी हैं । आप जान ही चुके हैं पहले बड़े बड़े स्थायी समाचार वाचकों को सालों साल तक प्रमुख बुलेटिन पढ़ने को नहीं मिलते थे । लेकिन आज ऐसे कैजुअल प्रमुख बुलेटिन पढ़ते हैं जिन्हें "में" और "मैं" में अन्तर नहीं पता और जेब में आकाशवाणी के समाचार वाचक होने का नाम-कार्ड लिए फिरते हैं ।

Anonymous said...

आकाशवाणी जैसी संस्था की साख़ ख़तरे में है । सरकार भी कलाकारों की क़द्र नहीं करती । तभी तो कलाकार काडर ही ख़त्म कर दिया । अब तो कोई भी रास्ता चलता आकाशवाणी का उदघोषक और समाचार वाचक है । और जो भी एक बार आकाशवाणी में प्रवेश पा जाता है वो आत्मस्तुति करता नहीं अघाता । कुछ अपवाद अवश्य हैं लेकिन बहुसंख्यक औसत भी नहीं बस कामचलाऊ हैं ।

Yunus Khan said...

अनाम जी।
आपकी टिप्‍पणी से कोई ऐतराज़ नहीं।
पर कृपया नाम के साथ आने का साहस रखें।
आप ही देखिए। काजल भाई ने अपनी बात इसी पोस्‍ट पर बेबाकी से रखी ना।

नीरज गोस्वामी said...

"देवकीनंदन पांडे" नाम पढ़ते ही एक धीर गंभीर आवाज़ कानों में गूँज उठी है...आज की पीढ़ी के बारे में कही गयी बातें बहुत सच्ची हैं...बहुत रोचक पोस्ट.

नीरज

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें