शास्त्रीय संगीत के दैनिक कार्यक्रम संगीत सरिता में दो पद्धतियों का आनंद देती श्रृंखला प्रसारित हुई - कर्नाटक पद्धति के कुछ राग और उनकी मान्यताएं आमंत्रित कलाकार हैं शकुन्तला नरसिम्हन इसके पहले भाग में विभिन्न रागों की चर्चा हुई। पट्टनम सुब्र्हामण्यम ने लगभग 150 साल पहले राग कट्टन पुट्टूवलम बनाया। यह अंग्रेजो का शासन काल था इसीसे इस राग की गायन शैली में अंग्रेजियत हैं लेकिन इसके स्वर राग शंकराभरणम से लिए गए, इन्ही स्वरों का हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का राग हैं - बिलावल। इस राग में शेष गोपालम का गायन सुनवाया गया और जल तरंग वादन भी सुनवाया। राग सौराष्ट्रम और मध्यमावती के बारे में बताया कि इनमे मंगलम गाया जाता हैं। यह अच्छी जानकारी दी कि कार्यक्रम का समापन मंगलम से किया जाता हैं ताकि कार्यक्रम के दौरान अगर राग और गायन शैली आदि को लेकर कोई अशुभ बात हुई हो तो इससे वातावरण ठीक हो जाए। इनके स्वर ही ऐसे हैं कि वातावरण शांत लगता हैं। इन दोनों रागों के हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के समान राग बताए - राग भैरवी और बिलावल राग सौराष्ट्रम के लिए और मध्यमावती के लिए राग मदमादी सारंग। ख्यात गायिका एम एस सुब्बा लक्ष्मी का मंगलम गायन और डा एम रमणी का बाँसुरी वादन सुनवाया। दूसरे भाग में 19 वी शताब्दी के तिरूअनन्तपुरम के राजा स्वाति तिरुनाल की हिन्दी रचनाएं हिन्दुस्तानी शास्त्रीय पद्धति में प्रस्तुत की गई जो ख्यात कवि और संगीतज्ञ थे। संस्कृत, मलयालम और हिन्दी में उन्होंने रचनाएं की। राग वृन्दावनी सारंग में गायन - चलिए कुंजन हो तुम हम श्याम हरि और इस राग पर आधारित फिल्म चश्मेबद्दूर का गीत सुनवाया - कहाँ से आए बदरा। राग धनाश्रयी की चर्चा हुई जिसके स्वर हिन्दुस्तानी पद्धति के राग भीमपलासी के समान हैं। राग धनाश्रयी में शिवस्तुति सुनवाई - सीस गंग भस्म अंग और राग भीमपलासी में रामराज्य फिल्म का सरस्वती राणी का गाया गीत सुनवाया - वीणा मधुर-मधुर बोल। ये दोनों शास्त्रीय गायन ध्रुपद शैली में थे। हिन्दुस्तानी पद्धति के राग दरबारी कानडा में भगवद गीता के प्रसंग पर आधारित रचना सुनवाई - देवो के पति इंद्र तारों के पति चन्द्र जिसमे कर्नाटक पद्धति के राग पल्लवी के स्वर हैं। इन रागों पर चर्चा भी हुई और राग दरबारी पर आधारित मेरे हुजूर फिल्म का मन्नाडे का गाया गीत सुनवाया - झनक झनक तोरी बाजे पायलिया। अंतिम दो कड़ियों में राग भैरवी पर चर्चा हुई कि दक्षिण की भैरवी अलग हैं जिसमे काफी थाट के स्वर लगते हैं। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय पद्धति की भैरवी में कहरवा ताल में रचना सुनवाई -रामचंद्र प्रभु तुम बिन प्यारे कौन खबर ले। प्रचलित दादरा ताल में सुनाया - विश्वेश्वर दर्शन कर। इस राग पर आधारित डा हरिवंश राय बच्चन की सरस्वती वन्दना सुनवाई - माता सरस्वती शारदा जिसे लताजी और दिलराज कौर ने फिल्म आलाप के लिए गाया हैं। समापन कड़ी में दोनों पद्धतियों में भैरवी के स्वर गाकर सुनाए जिससे फर्क समझ में आया। श्रृंखला का समापन किया फिल्म दूज का चाँद के मन्नाडे के गाए इस गीत से - फूल गेंदवा न मारो लगत करेजवा पे चोट। समापन पर श्रोताओं को पता भी बताया गया जिससे कार्यक्रम के सम्बन्ध में श्रोता पत्र लिख सके, पता हैं - संगीत सरिता, विविध भारती सेवा, पोस्ट बॉक्स नंबर 19705 मुम्बई - 400091
सुबह 7:30 बजे 15 मिनट के लिए प्रसारित इस श्रृंखला को चित्रलेखा (जैन) जी के सहयोग से रूपाली रूपक जी ने प्रस्तुत किया, तकनीकी सहयोग दिनेश (तापोलकर) जी का रहा। इस तरह कर्नाटक और हिन्दुस्तानी दोनों ही संगीत शैलियों के संगम का आनंद मिला। अब प्रतीक्षा हैं रविन्द्र संगीत के प्रसारण की.....
गुरूवार को रात 7:45 पर 15 मिनट के लिए प्रसारित हुआ साप्ताहिक कार्यक्रम राग-अनुराग जिसमे विभिन्न रागों पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए गए। शुरूवात अच्छी हुई, बहु चर्चित राग खमाज पर आधारित गाइड फिल्म का गीत सुनवाया लता मंगेशकर और साथियो की आवाज में - इन आँखों से नैना लागे रे। इसके बाद ऐसा राग सुनवाया जो कम ही सुनवाया जाता हैं, राग भटियार जिस पर आधारित सुरैया का गाया फिल्म रूस्तम सोहराब का उदास मूड का गीत सुनवाया - ऐ दिलरूबा। यहाँ तक ठीक रहा पर तीसरा गीत राग भीमपलासी पर वही सुनवाया जो सुबह संगीत सरिता में सुनवाया गया था, रामराज्य फिल्म से। इस लोकप्रिय राग में किसी गायक की आवाज में अच्छे मूड के गीत का चुनाव बेहतर होता क्योंकि अभी तक गायिकाओ के ही गीत सुनवाए गए थे और समापन भी युगल गीत से था। यह युगल गीत राग आसावरी पर आधारित था, इस राग की चर्चा बहुत अधिक नही होती। इस तरह रागों का संयोजन अच्छा रहा पर गीतों का नही।
चलते-चलते हम आपको बता दे कि यह सभी कार्यक्रम हमने हैदराबाद में एफ़ एम चैनल पर 102.8 MHz पर सुने।
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Monday, June 20, 2011
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3 comments:
बेहद बढ़िया और विस्तृत जानकारी भरी पोस्ट बढ़िया लगी - धन्यवाद -
- लावण्या
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Abhijeet Gavhankar
शास्त्रीय संगीत की साप्ताहिकी पढ़ी.मै बहोत खुश हूँ,क्योकि हमें तो शास्त्रीय संगीत का इतना ज्ञान नहीं है ,मगर पढ़कर ऐसा लग रहा है की कुछ दिनोके बाद हम जरुर समझ जायेंगे.बहोत सुन्दर भाषा शैली ,हर बात में ज्ञान का भंडार मिला.
अभिजीत गव्हानकर
मेहेर नगर उमरखेड
लावण्या जी, अभिजीत जी, दोनों का धन्यवाद !
अन्नपूर्णा
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