गुम हो गए हैं रेडियो इन दिनों
बेगम अख्तर और तलत मेहमूद की आवाज की तरह
कबाड मे पडे रेडियो का इतिहास जानकर
फैल जाती है छोटे बच्चे की आँखें
बृजेश कानूनगो
25 सितम्बर 1957 देवास, मध्य प्रदेश मे जन्म । रसायन विज्ञान तथा हिन्दी साहित्य मे स्नातकोत्तर।
देश की प्रतिष्ठित पत्र –पत्रिकाओँ मेँ वर्ष 1976 से बाल कथाएँ ,बालगीत, वैचारिक पत्र, व्यंग्य लेख ,कविताएँ, कहानियाँ ,लघुकथाएँ प्रकाशित।
वर्ष 1995 मे व्यंग्यसंग्रह-पुन: पधारेँ, 1999 मे कविता पुस्तिका-धूल और धुएँ के परदे मेँ, 2003 मे बाल कथाओँ की पुस्तक- फूल शुभकामनाओँ के तथा 2007 मेँ बाल गीतोँ की पुस्तिका- चाँद की सेहत प्रकाशित।
स्टेट बैक आफ इन्दौर मे 33 वर्ष सेवा के बाद स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति। बैककर्मियोँ की साहित्यिक संस्था-प्राची के माध्यम से अनेक साहित्यिक गतिविधियोँ का संचालन। तंगबस्तियोँ के गरीब बच्चोँ के लिए चलाए जाने वाले व्यक्तित्व विकास शिविरोँ मे सक्रिय सहयोग।
503, गोयल रिजेंसी,
कनाड़िया रोड़, इन्दौर-18,
मो. नं. 09893944294
न जाने क्या सुनते रहते हैंछोटे से डिब्बे से कान सटाए चौधरी काकाजैसे सुन रहा हो नेताजी का सन्देशआजाद हिन्द फौज का कोई सिपाहीस्मृति मे सुनाई पडता हैपायदानों पर चढताअमीन सयानी का बिगुलन जाने किस तिजोरी में कैद हैदेवकीनन्दन पांडे की कलदार खनकहॉकियों पर सवार होकरमैदान की यात्रा नही करवाते अब जसदेव सिंहस्टूडियो में गूंजकर रह जाते हैंफसलों के बचाव के तरीकेमाइक्रोफोन को सुनाकर चला आता है कविताअपने समय का महत्वपूर्ण कविसारंगी रोती रहती है अकेलीकोई नही पोंछ्ता उसके आँसूयाद आता है रेडियोसुनसान देवालय की तरहमुख्य मन्दिर मे प्रवेश पानाजब सम्भव नही होता आसानी सेऔर तब आता है यादजब मारा गया हो बडा आदमीवित्त मंत्री देश का भविष्यनिश्चित करने वाले हों संसद के सामनेंपरिणाम निकलने वाला हो दान किए अधिकारों की संख्या काधुएँ के बवंडर के बीच बिछ गईं हों लाशेंफैंकी जाने वाली हो क्रिकेट के घमासान में फैसलेवाली अंतिम गेन्दऔर निकल जाए प्राण टेलीविजन केसूख जाए तारों में दौडता हुआ रक्ततब आता है यादकबाड में पडा बैटरी से चलनेवालापुराना रेडियोयाद आती है जैसे वर्षों पुरानी स्मृतिजब युवा पिताइमरती से भरा दौना लिएदफ्तर से घर लौटते थे।
3 comments:
भाई वाह !!! आज के युग में कोई कवि अपने आगे-पीछे गुज़र रही तमाम युगांतरकारी घटनाओं के बीच बेचारे स्मृति-शेष रेडियो को इतनी शिद्दत से याद करे तो इसे उस समय के प्रसारणकर्ताओं की उपलब्धि ही कहना चाहिए. काश, हम आज के प्रसारकों को भी कभी कोई इस तरह याद करे.... --शुभ्रा शर्मा
बहुत अच्छी रचना
अन्नपूर्णा
इस रचना को पढ़कर नॉस्टेल्जिया तारी हुआ....दिल थोड़ा भारी हुआ....अशोक के.व्यास (SBI)
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