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Sunday, November 16, 2008
प्रचार के अभाव में दम तोड़ता रेडियो संगीत सम्मेलन
शास्त्रीय संगीत को जन जन में पहुँचाने का जो ख़ास काम आकाशवाणी ने किया है वह स्तुत्य है. इसी नेक मक़सद को विस्तृत करने के उद्देश्य से रेडियो संगीत सम्मेलन की शुरूआत की गई थी. तक़रीबन पचास बरसों से ये सिलसिला चल रहा है. इस आयोजन का फ़ॉरमेट बड़ा रचनात्मक रहा है. किया यूँ जाता रहा है कि पहले देश के विभिन्न शहरों में जहाँ आकाशवाणी केन्द्र मौजूद हैं ; संगीतप्रेमी श्रोताओं की उपस्थित में संगीत सभा आयोजित की जाती है. बाक़ायदा निमंत्रण पत्र छपवा कर रसिकों को भेजे जाते थे. तस्वीर के साथ कलाकारों का परिचय अख़बारों में प्रकाशित किया जाता. इसी मजमे की रेकॉर्डिंग कर लगभग महीने भर पहले रात ९.३० बजे और इन कुछ बरसों में रात १०.०० बजे इन सभाओं का प्रसारण रेडियो संगीत सम्मेलन के रूप आकाशवाणी के सभी केन्द्रों से राष्ट्रीय प्रसारण के रूप में किया जाता था.शास्त्रीय संगीत के इस अनुष्ठान की प्रतिष्ठा का ये आलम था का मैनें ख़ुद देश के नामचीन कलाकारों के परिचय ब्रोशर में यह उल्लेख देखा है कि आपने आकाशवाणी संगीत सम्मेलन में अब तक तीन बार प्रस्तुतियाँ दी हैं. गोया इस आयोजन में शिरक़त एक बड़ा काम माना जाता रहा है. इस लिहाज़ से भी रेडियो संगीत सम्मेलन का बड़ा नाम रहा है कि इसके ज़रिये देश के कई युवा कलाकारों को न केवल देशव्यापी पहचान मिली बल्कि देश के विभिन्न अंचलों में जाकर अपना विशिष्ट श्रोतावर्ग तैयार करने में भी मदद मिली है.और हाँ साथ ही दक्षिण के संगीत को उत्तर और उत्तर के संगीत को दक्षिण मे पहुँचाने का बहुत आदरणीय सेतु रहा है आकाशवानी संगीत सम्मेलन.
भारतरत्न पं.रविशंकर,भारतरत्न पं.भीमसेन जोशी,विदूषी गंगूबाई हंगल पं.ओंकारनाथ ठाकुर,विदूषी सिध्देश्वरी देवी,गिरजा देवी,निर्मला अरूण,परवीन सुल्ताना,किशोरी अमोणकर,प्रभा अत्रे,मल्लिकार्जुन मंसूर,कुमार गंधर्व,पं.जसराज,वसंतराव देशपांडे,जितेन्द्र अभिषेकी से लेकर शुभा मुदगल,राजन साजन मिश्र,छन्नुलाल मिश्र,हरिप्रसाद चौरसिया,शिवकुमार शर्मा, विश्वमोहन भट्ट जैसे एकाधिक और नामचीन कलाकारों की शिरक़त से आकाशवांणी संगीत सम्मेलन की शान का जलवा रहा है. कैसेट और सी.डी से परे पचास से अस्सी के शुरूआती दशक तक रेडियो ही ऐसे गुणी संगीतज्ञों को घर घर में मुफ़्त में पहुँचाने का जो काम आकशावाणी ने किया वह अदभुत है. मैंने ख़ुद अपने परिवारों में और मित्रों के यहाँ देर रात तक कई लोगों को रेडियो संगीत का समवेत श्रवण करते देखा है. लेकिन अब तो यह सुरीला अनुष्ठान दम तोड़ता और रस्म पूरी करता नज़र आ रहा है. ख़ुद अपने हाथों से इस राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के आयोजन के कर्ता धर्ताओं ने अपनी किरकिरी करवा रखी है.
लेकिन अब मामला गड़बड़ हो गया है.
-रेडियो संगीत सम्मेलन में सितारा कलाकार आने से झिझकते हैं.कारण दीगर आयोजनों से मिलने वाला अधिक पारिश्रमिक और फ़ाइव स्टार मेज़बानी.
-प्रचार प्रसार का अभाव.ख़ुद आकाशवाणी अपने कार्यक्रमों में रेडियो संगीत सम्मेलन का प्रचार नहीं कर रहा है. क्या एक सुरीला प्रोमो बना कर विविध भारती के कार्यक्रमों में प्रसारित नहीं करना चाहिये.प्रचारित किया जा रहा है कि विविध भारती देश का सबसे लोकप्रिय रेडियो चैनल है तो रेडियो संगीत सम्मेलन का प्रचार तो विविध भारती को करना ही चाहिये ही. ये इसलिये भी कि तमाम संगीतप्रेमी विविध भारती के श्रोता तो हैं ही.
-आकाशवाणी की अपनी अधूरी अधूरी सी वैबसाइट पर रेडियो संगीत सम्मेलन जैसे महत्वपूर्ण आयोजन की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
-प्रसार भारती तमाम एम.एम.चैनल्स को बाध्य कर सकता है कि वे शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से अपने चैनल्स पर आकाशवाणी संगीत सम्मेलन का प्रोमो बजाए.
-देश के समस्त समाचार पत्रों में आकाशवाणी संगीत सम्मेलन की विज्ञप्ति प्रसारित की जाए कि इस साल के आकर्षण फ़लाँ कलाकार हैं.
-बच्चों में शास्त्रीय संगीत को प्रचारित करने के लिये रेडियो संगीत सम्मेलन को स्कूल परिसरों में ले जाया जाए जहाँ अन्य संगीतप्रेमी भी निमंत्रित किये जाएँ.
-समाचार आज भी आकाशवाणी का सबसे सशक्त और विश्वसनीय प्रसारण है. उसमें उसी दिन प्रस्तुति देने वाले कलाकार का नाम दिया जाए कि आज रात रेडियो संगीत सम्मेलन में आप उस्ताद राशिद ख़ाँ या डॉ.बाळ मुरळीकृष्ण का शास्त्रीय गायन सुनेंगे.
-दूरदर्शन प्रसार भारती और आकाशवाणी की सहोदर संस्था है. उसके प्रसारणों में समय समय पर आकाशवाणी संगीत सम्मेलन का प्रोमो दिखाया जाए.या स्क्रीन पर चलने वाले स्ट्रिप पर रात को प्रसारित होने वाले कार्यक्रम का समय और कलाकार का नाम चलाया जाए.
हुज़ूर कोई कुछ करना चाहे तो अनेक है राहें.लेकिन नौकरशाहों के मकड़जाल में फ़ँसा तंत्र कुछ नया,रचनात्मक और श्रोता हित का करने का माहौल ही नहीं बनने देता. जब कार्यक्रम की लोकप्रियता में कमीं आती जाती है तो कलाकार भी उसमें रूचि क्यों लें.हो सकता है आकाशवाणी की अपनी विवशताएँ हों लेकिन मन में सुरीलेपन को संक्रामक बनाने वाली इस महान संस्था की कार्यशैली का सुनहरा दौर तो अब काल कवलित हो चुका है इसमें की शक नहीं
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3 comments:
मैं इस चिट्ठे से पूरी तरह सहमत हूँ।
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मैं भी सहमत हूँ, रात्रि को प्रदर्शित होने वाली फीचर फिल्म के बारे में रेडियो पर जानकारी दी जाती है तो रेडियो के कार्यक्रमों की जानकारी भी दूरदर्शन पर दी जानी चाहिए।
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